बीते 6 मई को कनाडा की संसद में बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर की जयंती को डॉ. आंबेडकर इक्वालिटी डे यानी समानता दिवस के रूप में मनाया गया। इस मौके पर कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका के दो सौ से ज्यादा प्रतिनिधि मौजूद थे। 6 और 7 मई को दो दिवसीय यह कार्यक्रम कनाडा के ओटावा के पार्लियामेंट हिल में हुआ। कार्यक्रम के पहले दिन 6 मई को सरि सेंटर से एमपी रंदीप सराय (MP Randeep Sarai Surrey Center)ने हाउस ऑफ कॉमन्स में कार्यक्रम का जिक्र किया और वहां मौजूद अंबेडकरवादियों का अभिवादन किया।
जबकि वैंकुअर किंग्सवे के मेजबान एमपी एमपी डॉन डेविस ने कनाडा की संसद में डॉ. आंबेडकर के द्वारा किये गए कामों का जिक्र करते हुए उनकी महानता बताई। उन्होंने अपने संबोधन के आखिर में जय भीम कहा।
कार्यक्रम का आयोजन कनाडा में अंबेडकवरादियों के संगठन चेतना एसोसिएशन ऑफ कनाडा और आंबेडकराइट इंटरनेशनल कोआर्डिनेशन सोसाइटी यानी AICS ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम का उद्घाटन बौद्ध भिक्षु भंते सरनपाल ने किया। इस दौरान कार्लटन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जंगम ने कनाडा में जाति के आंदोलन पर अपना प्रेजेंटेशन दिया। उन्होंने डॉ. आंबेडकर को नोबेल पुरस्कार देने की मांग भी की। इस मौके पर संसद सदस्य डेविस और मनदीप सराय सहित पूर्व सांसद फ्रैंक बेलीस, एमपी चंद्र आर्य, एमपी सुख धालीवाल, एमपी परम बैंस सहित मनोज भंगू और बिल बसरा को सम्मानित किया गया।
बता दें कि चेतना एसोसिएशन और आंबेडकराइट इंटरनेशनल को-आर्डिनेशन सोसाइटी यानी AICS लंबे समय से कनाडा में बाबासाहेब आंबेडकर के मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं। ये दोनों संगठन कनाडा में अंबेडकरवादी समाज के लोगों के साथ होने वाले गैर बराबरी और जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को लेकर लगातार आवाज उठाते हैं।
साल 2023 में दोनों संगठनों ने वैंकुअर में बाबासाहेब की जयंती के मौके पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजि भी किया था, जिसकी दुनिया भर में चर्चा हुई थी। विषय था- Dr. Ambedkar International Symposium on Emancipation and Equality Day Celebrations.
इस मौके पर भारत, कनाडा और अमेरिका सहित अन्य देशों से अंबेडकरवादी एवं समानता के समर्थक बड़ी संख्या में शामिल हुए थे। इस बार कनाडा के अंबेडकरवादियों की यह मुहिम कनाडा की संसद तक पहुंच गया है। निश्चित तौर पर कनाडा की संसद में डॉ. आंबेडकर को याद किया जाना और इस दिन को इक्वालिटी डे के रूप में मान्यता मिलना अंबडकरी आंदोलन के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। चेतना एसोसिएशन और AICS और इसके तमाम साथी इसके लिए बधाई के पात्र हैं। भारत से दलित दस्तक उनको जय भीम कहता है
सुप्रीम कोर्ट में आज दो महत्वपूर्ण सुनवाई थी। एक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तो दूसरी झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की। इसमें अरविंद केजरीवाल को जमानत मिल गई है, लेकिन हेमंत सोरेन को मिली तारीख। हेमंत सोरेन के बारे में अब सुप्रीम कोर्ट 13 मई को सुनवाई करेगा। इसके बाद यह बहस तेज हो गई है कि अगर अरविंद केजरीवाल को जमानत मिल सकती है तो आदिवासी समाज के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को क्यों नहीं?
दरअसल अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन दोनों ने लोकसभा चुनाव में प्रचार करने को लेकर जमानत मांगी थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को एक जून तक जमानत दे दी है, जबकि हेमंत सोरेन को फिलहाल जमानत नहीं मिल सकी है। केजरीवाल को कथित शराब घोटेले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में 21 मार्च को ईडी ने गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद भी अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र नहीं दिया, न ही पार्टी के संयोजक पद से इस्तीफा दिया। जबकि दूसरी ओर कथित जमीन घोटाले में नाम आने के बाद हेमंत सोरेन ने नैतिकता दिखाते हुए राजभवन जाकर इस्तीफा दे दिया था। हेमंत सोरेन 31 जनवरी से जेल में हैं।
अब सवाल उठता है कि देश का कानून का ज्यादा पालन किसने किया, या फिर नैतिकता किसने दिखाई। घोटाले में नाम आने के बाद सीएम पद से इस्तीफा दे देने वाले हेमंत सोरेन ने या फिर घोटाले में नाम आने के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी को पकड़ कर बैठे अरविंद केजरीवाल ने? निश्चित तौर पर इसका जवाब हेमंत सोरेन है। ऐसे में दूसरा सवाल यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट से अरविंद केजरीवाल को जमानत मिल सकती है तो फिर आदिवासी समाज के हेमंत सोरेन को क्यों नहीं?
Ottawa: A sense of gratitude and pride was felt by more than two hundred delegates from across Canada and the United States of America who participated in the Dr. Ambedkar Equality Day and the Jayanti Celebration hosted by MP Don Davies (Vancouver-Kingsway) and MP Randeep Sarai (Surrey Center) on May 6 and 7 at Parliament Hill in Ottawa. For many delegates, it was their first time to visit Canada’s Parliament and participate in the educational sessions and celebrations of the many accomplishments of Baba Saheb Dr. Ambedkar.
On the opening day of celebrations, MP Sarai acknowledged the event and all delegates in his statement in the House of Commons and set a stage for the educational session and the celebration on the Parliament Hill. Sarai delivered a one-minute statement on Dr. Ambedkar’s contributions.
A day after the event, on May 7, MP Davies read his statement in the House of Commons and described Dr. Ambedkar as a towering personality. Davies concluded his statement with the salutation, “Jai Bheem”, a history making moment to hear the salutation in the parliament outside of India for the first time!
The event, planned and organized by Chetna Association of Canada and AICS Canada (Ambedkarite International Coordination Society), was inaugurated by Venerable Bhante Saranpala, Urban Buddhist Monk. Bhante Saranpala, along with four of his colleagues, recited Buddhist prayers. Land acknowledgment and gratitude were expressed on behalf of the organizers by Jasmine Balley.
The event included greetings by dignitaries and community leaders; a presentation on the caste movement across Canada by Professor Jangam of Carleton University; the host Members of Parliament MP Davies and MP Sarai; former member of parliament Frank Baylis: MP Chandra Arya (Nepean): MP Sukh Dhaliwal (Surrey Newton), and MP Param Bains (Steveston- Richmond East). Manoj Bhangu, and Bill Basra were presented with recognition awards for their services.
Manjit Bains, co-chair for the event representing Chetna Association of Canada described the purpose for hosting the event while Anand Balley described the history and contributions of AICS Canada. “We are pleased to see the action planning was a key component of the celebration”, says Bains.
“We applaud MP Davies and MP Sarai for their tremendous support in hosting the celebration and sharing their interest in working across the party lines to consider adding caste as a stand-alone category”, says Jai Birdi, executive director of Chetna Association of Canada and a director for steering the planning of the celebration.
Surjit Bains, a treasurer for the event, along with a prominent researcher Dr. Smita Pakhale, welcomed the delegates to the celebration.
Harjit Sohpaul (president of Shri Guru Ravidass Sabha, Vancouver), Ratan Jakhu (President, Shri Guru Ravidass Sabha Montreal), Kuldeep Kailey (General Secretary, Shri Guru Ravidass Sabha Ontario), Makhan Tut/Deo (Mamta Foundation Canada), Roop Lal Gaddu (ex-president, AISRO), Rashpaul Bhardwaj (president, AISRO), Prof. Arun Gautam (AIM Canada, Toronto), Gopal Lohia (of Shri 108 Sant Sarwan Dass Charitable Trust Western Canada and Punjabi Mela) represented their organizations and shared their greetings for the occasion.
Rajesh Angral, who contested in the Alberta Provincial Elections for the NDP, was also present and took notes of the proceedings. Dr. Paramjit Chumber and Dr. Harjinder Kumar of USA shared their poems.
Santokh Jassi, a journalist based in Montreal, explained the prominence of Baba Sahib Dr. Ambedkar and why he should be nominated for the Nobel prize. Ratan Jakhu also included this sentiment in his message.
High Commissioner of India, His Excellency Shri Sanjay Kumar Verma, was expected to be present and grace the occasion.
“However, I started receiving calls from some of the dignitaries in this room that they will not be able to attend the event if the High Commissioner is present. I spoke to His Excellency Shri Sanjay Kumar Verma in this regard. Considering the significance of this event, His Excellency agreed not to join us. However, he sends his best wishes for the success of the occasion and pays his tribute to the father of Indian Constitution Dr. Bhim Rao Ambedkar”, announced Birdi.
“As the High Commissioner Verma was not present, the organizers presented the recognition award to his delegate for his ‘outstanding leadership’ on the following day,” continued Birdi. Several other dignitaries, including an MP of Bloc Quebecoise, participated and networked with the participants and organizers.
Press Release Issued by Chetna Association of Canada and AICS Canada
बसपा सुप्रीमों मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के नेशनल को-आर्डिनेटर और अपने उत्तराधिकारी पद से हटा दिया है। सीतापुर में आकाश आनंद के उत्तेजक भाषण और कुछ अन्य मामलों में दिये उनके बयानों के बाद पिछले दिनों उनकी रैलियों पर रोक लगा दी गई थी। लेकिन उसके बाद 7 मई की रात को 9.38 बजे सोशल मीडिया एक्स पर एक बयान जारी करते हुए बहनजी ने आकाश को दोनों जिम्मादारियों से मुक्त कर दिया।
1. विदित है कि बीएसपी एक पार्टी के साथ ही बाबा साहेब डा भीमराव अम्बेडकर के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान तथा सामाजिक परिवर्तन का भी मूवमेन्ट है जिसके लिए मान्य. श्री कांशीराम जी व मैंने खुद भी अपनी पूरी ज़िन्दगी समर्पित की है और इसे गति देने के लिए नई पीढ़ी को भी तैयार किया जा रहा है।
2. इसी क्रम में पार्टी में, अन्य लोगों को आगे बढ़ाने के साथ ही, श्री आकाश आनन्द को नेशनल कोओर्डिनेटर व अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, किन्तु पार्टी व मूवमेन्ट के व्यापक हित में पूर्ण परिपक्वता (maturity) आने तक अभी उन्हें इन दोनों अहम जिम्मेदारियों से अलग किया जा रहा है।
By Boom. सोशल मीडिया पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती का एक वीडियो वायरल है, जिसके साथ दावा किया जा रहा है कि उन्होंने लोगों से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को वोट देने की अपील की है। बूम ने पाया कि वायरल दावा गलत है। मूल वीडियो में मायावती, भाजपा-आरएसएस के कार्यकर्ताओं का हवाला देते हुए कह रही हैं कि वे मुफ्त राशन के एवज में लोगों से वोट मांगते हैं और कहते हैं कि इसका कर्ज अदा करें।
लोकसभा चुनावों के मद्देनजर मतदाताओं को लुभाने के लिए पार्टी विशेष के समर्थक ऐसे फर्जी तथा भ्रामक वीडियो और तस्वीरें खूब शेयर कर रहे हैं। इस क्रम में मायावती के इस अधूरे भाषण के अंश को भी शेयर किया जा रहा है। लगभग 15 सेकंड के इस वीडियो में मायावती कहती नजर आ रही हैं, “श्री नरेंद्र मोदी जी ने तो आपको फ्री में राशन दिया है, आप ये जो कर्ज है वो चुनाव में आपको अदा करना है वोट के रूप में, बीजेपी को वोट देकर आपको ये कर्ज अपना अदा करना है।” इसके साथ ही वीडियो पर ‘अब तो मायावती ने भी कर दी भाजपा को वोट देने की अपील’ भी लिखा देखा जा सकता है।
वीडियो को फेसबुक पर शेयर करते हुए एक यूजर ने लिखा, ‘हिंदुओं से मायावती की अपील बीजेपी को वोट दें.’पोस्ट का आर्काइव लिंक.
फैक्ट चेक वायरल दावे की सच्चाई जानने के लिए हमने मायावती के हालिया भाषणों के बारे में सर्च किया। दावे से संबंधित कीवर्ड्स सर्च करने पर हमें 4 मई 2024 के ‘पंजाब केसरी’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट मिली। इस रिपोर्ट में वायरल वीडियो से संबंधित एक बयान मौजूद था, जिसके मुताबिक भाजपा पर निशाना साधते हुए मायावती ने कहा कि ‘गरीबों को जो राशन मिल रहा है वो उन्हें अपने टैक्स के पैसे से मिलता है। इसलिए जब भाजपा और आरएसएस के लोग आएं और नमक का कर्ज याद दिलाएं तो आप उनके बहकावे में न आएं।’ इससे हमें अंदेशा हुआ कि वायरल दावा गलत है।
आगे हम आगरा में हुई इस जनसभा के मूल वीडियो के लिए बहुजन समाज पार्टी के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर गए। वहां हमें 4 मई 2024 को की गई इस सभा का लाइव वीडियो मिला।
लगभग 36 मिनट के इस वीडियो में 25 मिनट 45 सेकंड के बाद मायावती लोगों को मुफ्त राशन देने की भाजपा की स्कीम पर बोलते हुए कहती हैं, “..जिनको इन्होंने फ्री में थोड़ा राशन आदि दिया है, खाद्य सामग्री आदि दी है, उसके एवज में.. इन्होंने असेंबली के चुनाव में भी लोगों को गुमराह करने के लिए और अब लोकसभा आम चुनाव में भी.. बीजेपी और आरएसएस के लोग अपने कंधे पर थैला टांग कर गांव-गांव में घूम रहे हैं और क्या कह रहे हैं? कि देखो श्री नरेंद्र मोदी जी ने तो आपको फ्री में राशन दिया है, तो आपके ऊपर मोदी जी का बहुत कर्ज है, तो ये जो कर्ज है वो आपको अदा करना है वोट के रूप में। बीजेपी को वोट देकर आपको ये कर्ज अपना अदा करना है..” इससे साफ है कि मायावती के भाषण की अधूरी लाइन को गलत दावे के साथ शेयर किया गया है। पूरे भाषण में मायावती को यह भी कहते सुना जा सकता है कि “भाजपा सरकार ने जो गरीब लोगों को फ्री में राशन दिया है वह बीजेपी ने अपनी जेब से नहीं दिया है, श्री नरेंद्र मोदी जी ने अपनी जेब से नहीं दिया है बल्कि आप लोग यूपी गवर्मेंट को या केंद्र की सरकार को जो भी टैक्स देते हैं, उस पैसे से दिया है.” मायावती ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर भी इससे संबंधित दो पोस्ट किए हैं। इन पोस्ट्स में उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए वायरल वीडियो का खंडन किया है और कार्रवाई की भी मांग की है।
1. सर्वविदित है कि आज आगरा की विशाल चुनावी जनसभा सहित अपनी सभी जनसभाओं में केन्द्र द्वारा थोड़ा फ्री राशन देकर वोट माँगने की चुनावी चाल की निन्दा करती हूँ कि यह कोई उपकार नहीं बल्कि यह लोगों के टैक्स का ही धन है जो जनता पर खर्च हो रहा है। अतः ऐसे हथकण्डों से सावधानी जरूरी।
2. फिर भी अब इसको लेकर पूरी तरह से गलत व फेक वीडियो बनाकर भाजपा के पक्ष में प्रचारित करने का बेहद अनुचित राजनीतिक प्रयास किया जा रहा है, जिसके सम्बंध में पुलिस व चुनाव आयोग को भी तत्काल सख्त कानूनी कार्रवाई करने की जरूरत।
Attribution: This story was originally published by BOOM and republished by Dalit Dastak as part of the Shakti Collective. Except for the headline this story has not been edited by Dalit Dastak staff.
बीते 28 अप्रैल को आकाश आनंद उत्तर प्रदेश के सीतापुर में भाषण दे रहे थे। इस दौरान उन्होंने मतदाताओं को ललकारते हुए भाजपा पर जमकर निशाना साधा और भाजपा द्वारा वोट मांगने पर उन्हें वोट के बदले चप्पल-जूते चलाने की बात कह डाली। आकाश के बयान के बाद खूब हो-हल्ला मचा और भाजपा ने बसपा के नेशनल को-आर्डिनेटर आकाश आनंद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा डाली। इसके बाद खबर है कि आकाश आनंद के आगामी चुनावी कार्यक्रमों को फिलहाल रद्द कर दिया गया है। 28 अप्रैल के बाद आकाश आनंद ने एक भी सभा को संबोधित नहीं किया है।
राजनीति और सार्वजनिक जीवन में नेताओं पर मुकदमा दर्ज होना आम है। राहुल गांधी से लेकर तेजस्वी यादव और तमाम युवा नेता ऐसे हैं, जिन पर मुकदमें दर्ज हैं। चंद्रशेखर आजाद जो फिलहाल आकाश आनंद के सामने बड़ी चुनौती हैं, वह भी कहते घूमते हैं कि समाज के लिए वो 27 मुकदमें झेल रहे हैं। ऐसे में एक मुकदमें की वजह से तेजी से आगे बढ़ते और लोगों के दिलों में जगह बनाते आकाश आनंद को रोकना आखिर कितना सही है?
किसी भी देश में और किसी भी राजनीतिक आंदोलन में जनता अपने राजनीतिक नायक को उनके लिए जूझते हुए और आवाज उठाते हुए देखना चाहती है। इसी वजह से तमाम नेता जेल में रहते हुए भारी अंतर से चुनाव जीतते रहे हैं। आकाश आनंद भी राजनीतिक मंचों से जूझते हुए और आवाज उठाते हुए दिख रहे थे। हालांकि आकाश आनंद पिछले समय में अलग-अलग राज्यों में चुनाव प्रचार में सक्रिय रहे हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में जब मंच पर आकाश आनंद उतरे, वह पहले से अलग थे। तेवर भी बदले हुए थे और निशाना भी। और कहा जा सकता है कि दोनों बिल्कुल सही थे। आकाश आनंद बसपा के नेशनल को-आर्डिनेटर के रूप में जिस तरह अपने तेवर से मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे थे, वह बसपा के लिए अच्छा संकेत था। उनकी रैलियों में भीड़ उमड़ने लगी थी। कार्यकर्ता बसपा सुप्रीमों मायावती की रैलियों के साथ ही आकाश की रैलियों का भी इंतजार करने लगे थे। निश्चित रूप से इन सबके लिए बसपा प्रमुख मायावती के भी उत्तराधिकारी के तौर पर आकाश आनंद को चुनने पर जनता की मुहर लगने लगी थी।
आज पार्टी के दिल्ली के केंद्रीय कार्यालय पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों से मुलाक़ात हुई, देश के राजनैतिक माहौल पर उनसे खुल कर चर्चा करने का मौका मिला। उनकी बातें और चिंताएं सुन कर मन थोड़ा विचलित भी हुआ है..उन्होने बताया कि किस तरह से एक डर का माहौल बना कर पूरे समाज को… pic.twitter.com/gD1VjL8uqM
आकाश मीडिया से बातें कर रहे थे। बिना फंसे ताबड़तोड़ इंटरव्यू दे रहे थे और मजबूती से अपनी बात कह रहे थे। यह सब देखना बसपा के समर्थकों के लिए उत्साह बढाने वाला था। और राजनीतिक विश्लेषकों के लिए हैरान करने वाला। यानी आकाश तेजी से केंद्रीय राजनीति में अपनी जगह बना रहे थे। समर्थकों को भरोसा दे रहे थे और बहनजी के उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार हो रहे थे।
इन सबके बीच आकाश आनंद को ब्रेक देना थोड़ा सा अटपटा है। अमूमन ऐसे मौकों पर नेता और ज्यादा हमलावर होते हैं, इसे मुद्दा बनाकर सहानुभूति लेते हैं। लेकिन बसपा सुप्रीमों ने आकाश आनंद को रोक दिया है। यह सही हुआ या नहीं, इस पर कोई निर्णय लेने से पहले हमें बहनजी की राजनीति को समझना होगा। संभव है कि कैरियर की शुरुआत में ही राजनीतिक मुकदमों से बचाने के लिए उन्होंने आकाश आनंद के हित में यह फैसला लिया हो। या संभव है कि उन्हें रोक कर यह मैसेज दे रही हों कि अभी संयमित रहने का वक्त है। खैर, इस पूरे प्रकरण में एक बात तो साफ है कि आकाश आनंद ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह बना ली है। और यह बसपा समर्थकों और बहुजन राजनीति के लिए बेहतर संकेत है। हालांकि इस बीच आकाश आनंद लगातार सोशल मीडिया पर अपनी बैठकों की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं और बता रहे हैं कि वह रुके नहीं हैं।
समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता शिवपाल यादव पर बसपा सुप्रीमों मायावती के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने के कारण एफआईआर दर्ज कर लिया गया है। अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव के खिलाफ बसपा के बदायूं से जिलाअध्यक्ष राम प्रकाश त्यागी द्वारा दर्ज करवाया गया है। शिवपाल यादव पर आरोप है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के चार बार की मुख्यमंत्री और बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती के खिलाफ शिवपाल यादव ने अमर्यादित और अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल किया था। इसके बाद यादव पर आईपीसी की धारा 504 और 505 के तहत केस दर्ज कर लिया गया है।
दरअसल एक वीडियो क्लिप वायरल हुआ था, जिसमें शिवपाल बहनजी को लेकर गलत टिप्पणी करते नजर आ रहे हैं। जिसके बाद शिवपाल पर मुकदमा दर्ज हुआ है।
दलित समाज के तमाम लोग बहुजन एकता की बात करते हैं। एससी,एसटी,ओबीसी और अल्पसंख्यकों को एक छत के नीचे देखना और सत्ता पर कब्जा करना मान्यवर कांशीराम का सपना रहा है। लेकिन ओबीसी समाज की मजबूत जातियां दलितों को लेकर क्या सोच रखती है यह शिवपाल यादव के बयान से फिर से देखने में आया है। 7 मई को तीसरे चरण का चुनाव होना है, इसके पहले ऐसी खबर से दलितों में सपा के खिलाफ गुस्सा भड़क सकता है।
बीते दिनों प्लेयर ऑफ द ईय़र 2023 के लिए प्रतिष्ठित हॉकी इंडिया बलबीर सिंह सीनियर पुरस्कार पाने वाली झारखंड की सलीमा टेटे को महिला हॉकी टीम का कप्तान चुना गया है। एपआईएच प्रो लीग के लिए 24 सदस्यीय भारतीय महिला हॉकी की घोषणा के साथ ही इसकी कमान सलीमा टेटे को दी गई है। सलीमा आदिवासी समाज से आती हैं। बीते कुछ सालों में झारखंड से महिला हॉकी में लगाता खिलाड़ियों का दबदबा बना हुआ है। इस बार भी भारतीय महिला हॉकी टीम में झारखंड से चार खिलाड़ी चुने गए हैं। इसमें सलीमा टेटे के अलावा संगीता कुमार, दीपीका सोरेंग और निक्की प्रधान का नाम शामिल है। टीम बेल्जियम और इंग्लैंड के खिलाफ 22 मई से 9 जून के बीच खेलेगी। टीम पहले 22 से 26 मई तक बेल्जियम और फिर एक जून से 9 जून के बीच इंग्लैंड का दौरा करेगी। बता दें कि नई कप्तान सलीमा टेटे झारखंड की सिमडेगा जिले की रहने वाली है।
दलितों को उद्योगपति बनाने वाली प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वकांक्षी योजना के तहत सरकार ने साल 2019 में स्टैंड अप इंडिया के जरिये दलितों को एक बड़ा सपना दिखाया। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद अपने हाथों से लेटर ऑफ इंटेंट देकर इस योजना की शुरुआत की। लेकिन साल 2024 के चुनाव के पहले ही यह दावा दम तोड़ चुका है और उद्योगपति बनने का सपना देखने वाले सैकड़ों दलित सड़क पर आ चुके हैं।
दरअसल स्टैंड अप इंडिया स्कीम के तहत एससी/एसटी को इंटरप्रेन्योर बनाने के लिए एक स्कीम लाई गई। इसके मुताबिक ब्लक एलपीजी ट्रांसपोटेशन वर्क को पेट्रोलियम मिनिस्ट्री के तहत लांच किया गया। इसमें दलित एवं आदिवासी समाज के लोगों को उद्यमी बनाने का लक्ष्य था। इसमें तीन ऑयल कंपनियां शामिल थी। IOC-इंडियन ऑयल कारपोरेशन, BPCL-भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड और HPCL- हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड।
इन तीनों कंपनियों ने मिलकर टेंडर निकाला जिसमें कहा गया कि वो टैंकर ट्रक खरीदने वाले उद्यमियों को अपने कंपनी के तहत काम देंगी। दरअसल यह योजना सालों से चल रही थी, लेकिन इस योजना में एससी-एसटी के लिए मिलने वाला आरक्षण पूरा नहीं हो पा रहा था। इस योजना के तहत एससी-एसटी समाज के उद्यमियों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से 23 प्रतिशत का रिजर्वेशन दिया गया।
इसके लिए सरकार और दलितों के बीच उद्यमी तैयार करने का दावा करने वाले संगठन डिक्की, यानी DALIT INDIAN CHAMBER OF COMMERCE AND INDUSTRY नाम की संस्था ने सरकार, तेल कंपनियों और दलित उद्यमियों को एक साथ जोड़ा। डिक्की द्वारा बैंको से एमओयू किया गया। जिसमें बैंकों को बताया गया कि हर गाड़ी को प्रति महीने तकरीबन 5000 किलोमीटर का काम मिलेगा और यह एक फायदेमंद बिजनेस होगा।
डिक्की और तेल कंपनियों ने पहली बार उद्यम के क्षेत्र में उतरने वाले एससी-एसटी एंटरप्रेन्योर यानी नव उद्यमियों को जो गणित पहली मीटिंग में समझाया उसके मुताबिक एक गाड़ी से 50-60 हजार रुपये हर महीने की बचत थी। सरकारी स्कीम में लोन भी आसानी से मिल रहे थे। सो फायदे वाले बिजनेस में तमाम लोगों ने बैंक से लोन लेकर पैसा लगा दिया। दो बैंकों बैंक ऑफ बड़ोदा और बैंक ऑफ इंडिया ने ट्रक टैंकर खरीदने वाले एससी-एसटी उद्यमियों को लोन दिया। लेकिन पांच साल पहले जिस उम्मीद से दलित उद्मियों ने इस योजना में पैसा लगाया था, वह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी और तमाम लोग दिवालिया हो चुके हैं। सैकड़ों लोगों की गाड़ियां खड़ी हो चुकी है। काम बंद है। और तुर्रा यह कि बैंकों ने अब उगाही का नोटिस भेजना शुरू कर दिया है, जिससे एससी-एसटी समाज के उद्यमियों में भारी बेचैनी है।
कोलकत्ता से ताल्लुक रखने वाले पीड़ित मनोज कुमार दास का कहना है कि हमलोगों से जो वादा किया गया था, वो पूरा नहीं हुआ। हमसे कहा गया था कि हमारी गाड़ियां पांच हजार किलोमीटर चलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। डिक्की के एजवाइडर राजेश पासवान जब कोलकाता आए थे तो मैंने उनसे शिकायत की और स्थिति बताया। उनसे समाधान निकालने की अपील की। तो उनका कहना था कि यह स्कीम पुरानी हो गई है।
भगवती इंटरप्राइजेज के कुलदीप सिंह रंगा कहते हैं, “इसमें मुख्य भूमिका डिक्की और IOCL कंपनियों की थी। इसमें जो एमओयू साइन हुआ था, उसमें डिक्की, तेल कंपनियों और फाइनेंस मिनिस्ट्री के साथ हुआ था। इसमें सभी टर्म्स और कंडिशन डिक्की ने रखी थी। कहा गया था कि कोई दिक्कत आएगी तो इसका समाधान निकाला जाएगा। एससी-एसटी ट्रांसपोर्टर की मदद की जाएगी। लेकिन जब मुश्लिक वक्त आया तो किसी ने मदद नहीं की।”
दरअसल इस योजना में कई परते हैं। एक सरकार की स्टैंड अप इंडिया स्कीम का, दूसरा ऑयल कंपनियों का, तीसरा बैंकों का और चौथा, दलित उद्यमियों को इस योजना से जोड़ने वाले संगठन डिक्की का। पहले बात करते हैं इस योजना की। 16 फरवरी 2018 को डिक्की ने दिल्ली के नेहरू युवा केंद्र में एक मीटिंग बुलाई। इसमें तेल कंपनियों के अधिकारी भी मौजूद थे। यहां दलित और आदिवासी उद्यमियों के लिए ट्रक टैंकर चलाने की योजना पर चर्चा हुई। जो तमाम बातें कही गई, उसमें दलितों को इस बिजनेस में फायदा दिखाया गया। दलित उद्यमियों को भरोसा दिलाया गया कि एक टैंकर से तकरीबन 50 हजार रुपये की आमदनी होगी। टैंकर लेने के लिए कीमत का 10 से 25 फीसदी भुगतान करना था और बाकी पैसा बैंक से लोन होना था। एक गाड़ी की कीमत 35 लाख रुपये के करीब थी। इसमें से 20 से 35 प्रतिशत पूंजी अपने पास से लगानी थी। इसमें 4 से 7.5 लाख की बैंक गारंटी भी कम्पनी के पास रखना शामिल था।
योजना तय हो गई। और अब बारी थी बैंकों के जरिये लोन मिलने की। इस प्रोसेस में दो बैंक शामिल हुए। बैंक ऑफ बड़ोदा और इंडियन बैंक। बैंक ऑफ बड़ोदा ने Baroda Tankerz नाम से जबकि इंडियन बैंक ने इंधन वाहन के नाम से इसके लिए स्पेशल स्कीम बनाई और दलित उद्यमियों को लोन देना शुरू कर दिया। इससे पहले डिक्की और दोनों बैंकों के बीच तमाम नियम और शर्तों के साथ MoU साइन हुआ। इस योजना में मिनिमम एक टैंकर और मैक्सिमम तीन टैंकर के लिए लोन लिया जा सकता था। लोन की राशि 10 लाख से एक करोड़ रुपये के बीच थी। इसमें निवेश करने वाले उत्साहित थे। उन्हें लगा कि प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी योजना स्टैंड अप इंडिया के जरिये वो सच में उद्यमी बन जाएंगे। उन्हें लगा कि यह योजना उनका भविष्य सुधार देगी। दलित उद्यमियों ने लोन लेना शुरू किया।
दलित दस्तक के पास मौजूद जानकारी और आरटीआई से मिली सूचना के मुताबिक बैंक ऑफ बड़ोदा ने 457 निवेशकों को लोन दिया जबकि इंडियन बैंक ने 189 निवेशकों को लोन दिया। वर्तमान स्थिति यह है कि बैंक ऑफ बड़ोदा से लोन लेने वाले 457 में से 153 उद्यमी, जबकि इंडियन बैंक से लोन लेने वाले 189 में से 86 उद्यमी NPA यानी Non Performance Assets हो चुके हैं। आसान भाषा में कहें तो बैंक करप्ट हो चुके हैं।
इसमें से कईयों ने अपना ट्रक टैंकर खड़ा कर दिया है। वजह यह रही कि तेल कंपनियों की तरफ से हर महीने जो 5000 किमी ट्रक चलाने का भरोसा दिलाया गया था, वह पूरा नहीं हो सका। नतीजा, खर्च ज्यादा था और आमदनी कम। सो तमाम लोगों की EMI फेल होने लगी। आज आलम यह है कि तमाम गाड़ियां खड़ी है। कुछ तो एक साल से ऊपर खड़ी होकर स्क्रैप मैं तब्दील हो चुकी है। तो वहीं निवेशकों की बैंक गारंटी के रूप में 4 लाख से 7.5 लाख रूपये कम्पनी के पास सेक्युरिटी के रूप में है। यानी प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी योजना स्टैंड अप इंडिया स्कीम के जरिये उद्योगपति बनने का सपना देखने वाले सैकड़ों दलित दिवालिया हो चुके हैं।
इस पूरी स्कीम में चार पक्ष हैं। पहला- भारत सरकार की पेट्रोलियम मिनिस्ट्री। दूसरा- IOC, BPCL और HPCL जैसी तेल कंपनियां, तीसरा- डिक्की और चौथा लोन देने वाले बैंक। चूकि यह योजना भारत सरकार की थी तो बैंकों ने लोन देने में कोई दिक्कत नहीं की। अब सवाल उठता है कि ऐसा हुआ कैसे और इसके पीछे की वजह क्या रही? निवेशकों का आरोप है कि तेल कंपनियों के जरिये अनुमान के अनुरुप काम नहीं मिल पाने और डिक्की द्वारा कुछ जानकारियों को साझा नहीं करने की वजह से निवेशक पीछे होते गए।
लेकिन क्या दोष सिर्फ डिक्की, तेल कंपनियों और बैंकों का ही है? हमने इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की तो डिक्की और बैंकों ने इसके लिए निवेशकों को ही दोषी ठहरा दिया। दलित दस्तक ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में इसकी पड़ताल की। दलित दस्तक ने वाराणसी में राम कटोरा ब्रांच में संपर्क किया। यहां के अधिकारी ने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से मना कर दिया इसलिए हम उनका नाम नहीं बता रहे हैं, लेकिन दलित समाज के निवेशकों को लेकर उनकी सोच चौंकाने वाली थी। उनका कहना था कि दलित लोग सब पैसा खा गए और अब नुकसान का रोना रो रहे हैं। जिन लोगों के खाते में 10 हजार रुपये भी नहीं होते थे, उनलोगों को सरकार ने लाखों रुपये का लोन दे दिया। उनके साथ तो यही होना था। यह साफ तौर पर जातिवादी सोच थी।
दलित दस्तक ने डिक्की पर लगने वाले तमाम आरोपों के बारे में डिक्की के नेशनल प्रेसीडेंट रवि नारा से बात की। उन्होंने तमाम आरोपों से इंकार करते हुए इस मामले का हल निकालने के लिए राज्य स्तरीय मीटिंग करने की बात कही।
डिक्की द्वारा इस योजना में निवेश के लिए ग्रुप मैनेजमेंट कंपनी बनाई गई। निवेशकों के मुताबिक निवेशकों का टेंडर डिक्की ने खुद भरा। अब यहां टेंडर भरने के दो तरीके थे। एक RCM यानी रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के जरिये और दूसरा FCM यानी फारवर्ड चार्ज मैकेनिज्म के जरिये। ज्यादातर टेंडर RCM के जरिये भरा गया। निवेशकों का कहना है कि यहीं गड़बड़ हो गई, जिसके बारे में उन्हें बाद में समझ में आया। आरसीएम के जरिये ट्रक खरीदने की वजह से निवेशकों को एक ट्रक की खरीद पर 28 प्रतिशत जीएसटी देना पड़ा। जबकि जीएसटी के दो प्रोविजन थे। एक 5 प्रतिशत जीएसटी वाला और दूसरा 12 प्रतिशत जीएसटी वाला।
डिक्की ने पांच प्रतिशत वाले आरसीएम के जरिये टेंडर भरा। निवेशकों का आरोप है कि उन्हें डिक्की द्वारा जीएसटी को लेकर पूरी जानकारी नहीं दी गई। उनका कहना है कि अगर 12 प्रतिशत वाले FCM के जरिये टेंडर भरा जाता तो Input Tax Credit मिल जाता। यानी प्रति टैंकर 6 लाख रुपये वापस मिल जाते। यानी जिसने 3 गाड़ियां निकलवाईं उसे सीधे 18 लाख का नुकसान इसलिए हो गया क्योंकि डिक्की के जरिये उन्हें सही गाइडेंस नहीं मिल पाया।
काम शुरू होने के बाद उन्हें दूसरा झटका तेल कंपनियों से लगा। निवेशकों को भरोसा दिलाया गया था कि उनकी गाड़ियों को प्रति महीने 5000 किलोमीटर तक चलवाया जाएगा। यानी साल में कम से कम 60 हजार किलोमीटर। टेंडर के अनुसार 2018 के बाद बढ़े टोल टैक्स की क्षतिपूर्ति भी करने की बात कही गई। ये तमाम बातें टेंडर में मेंशन थीं। लेकिन तेल कंपनियों ने निवेशकों से किया वादा नहीं निभाया। अगर निवेशकों को समय से टोल के पैसे मिल जाते तो निवेशकों को तीन से चार लाख रुपये वापस मिल जाते। कंपनियों ने अपने एग्रीमेंट में इसका वादा भी किया था, लेकिन अब उसे पूरा नहीं कर रहे हैं। सवाल है कि अब इसका हल क्या है?
दलित उद्यमियों का कहना है कि हमें सब्सिडी दी जाए, टोल टैक्स के बकाया पैसों का भुगतान करने के लिए तेल कंपनियों को बोला जाए और हर महीने 5000 किलोमीटर काम का जो वादा किया गया था वो वादा पूरा किया जाए।
साफ है कि अगर डिक्की ने मुश्किल वक्त में निवेशकों का हाथ थामा होता और तेल कंपनियां अपने वादे के अनुरूप काम देती तो सैकड़ों दलित निवेशक आज सड़क पर नहीं होते। निवेशक सरकार से लोन माफ करने की अपील कर रहे हैं। देखना होगा कि इस मामले के सामने आने के बाद सरकार, डिक्की और तेल कंपनियां क्या उपाय निकालती हैं।
साल 2016 की जनवरी में हैदराबाद विश्वविद्यालय के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला के आत्महत्या ने पूरे देश को हिला डाला था। कथित तौर पर दलित समाज से ताल्लुक रखने वाले रोहित वेमुला ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर तमाम आरोप लगाते हुए अपने हॉस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली थी। इस मामले की फाइल को तेलंगाना पुलिस ने आठ साल बाद बंद कर दिया है। तेलंगाना पुलिस ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट (3 मई, 2024) में कहा है कि रोहित वेमुला अपनी असल जाति को छुपा रहा था और इसके उजागर होने के डर के चलते उसने आत्महत्या की होगी। तेलंगाना पुलिस ने हाई कोर्ट में भी इसकी रिपोर्ट डाल दी है।
dalit dastak issue on rohit vemula
इस चर्चित मामले में बिना किसी को दोषी ठहराए बंद किये जाने को लेकर अब तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। जब रोहित वेमुला ने आत्महत्या की थी, तब भाजपा सांसद बंडारू दत्तात्रेय पर गंभीर आरोप लगे थे तो लपेटे में तात्कालिन मंत्री स्मृति ईरानी भी आई थीं। अंबेडकरवादी समाज ने इसे सांस्थानिक हत्या कहा था।
तेलंगाना पुलिस का कहना है कि रोहित वेमुला की माँ ने उसे फर्जी अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र बनवा के दिया और रोहित को लगातार यह डर बना रहता था कि यदि उसका भेद खुला तो उसकी डिग्रियाँ खत्म हो जाएंगी। इसलिए उसने आत्महत्या कर ली। पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि रोहित वेमुला वद्देरा जाति से ताल्लुक रखता था जो कि पिछड़ा वर्ग में आती है।
In a shocking development (as per my info), the Congress government of @RahulGandhii’s party @INCIndia in Telangana has filed a closure report in the #RohitVemula murder case. They have also filed a statement before the High Court stating that there is a lack of evidence in the… pic.twitter.com/dNytO76mGQ
हालांकि हैदराबाद विश्वविद्यालय से जिस तरह की तस्वीरें सामने आई थी, उसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खिंचा था। तमाम रस्सा-कस्सी और विरोध के बाद रोहित वेमुला ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर अपना 25000 रुपये का मानदेय रोकने का भी आरोप लगाया था। तब रोहित वेमुला का आत्महत्या के पहले लिखा गया पत्र खूब वायरल हुआ था और रोहित वेमुला विश्वविद्यालय कैंपस के भीतर होने वाले आत्याचार के विरोध के नायक बन गए थे। रोहित की आत्महत्या का तब कांग्रेस पार्टी ने भी खूब विरोध किया था और तमाम आरोप लगाए गए थे।
अब कांग्रेस शासन में ही रोहित वेमुला को लेकर पुलिस की रिपोर्ट सामने आने के बाद तमाम सवाल उठने लगे हैं। तमाम दलित संगठनों के बीच तेलंगाना पुलिस की रिपोर्ट चर्चा का विषय बना हुआ है। सालों बाद आई इस रिपोर्ट पर दलित संगठन, एक्टिविस्ट और बुद्धिजीवि सवाल उठा रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के दो चरणों के बाद तक यह पता नहीं चल सका है कि ऊंट किस करवट बैठेगा। अब तक हुए लोकसभा सीटों के चुनाव में ज्यादातर सीटें ऐसी है, जिसको लेकर हार-जीत का कयास दिग्गज भी नहीं लगा पा रहे हैं। इस बीच आरक्षण को लेकर मुद्दा गरमा गया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल भाजपा को संविधान और आरक्षण का विरोधी बताकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। और चुनावी प्रचार में आक्रामक रवैया अपनाने वाली भाजपा इस मुद्दे पर बैकफुट पर है।
इस बीच दो घटनाएं ऐसी हुई है, जिसका सीधा तो नहीं लेकिन परोक्ष रूप से चुनावी कनेक्शन जरूर है। पहली घटना राष्ट्रपति के अयोध्या दौरे की है। और दूसरी खबर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में सनातन धर्म के सबसे बड़े जूना अखाड़े द्वारा दलित समाज से आने वाले महेंद्रानंद गिरी को जगद्गुरु बनाने की।
राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू बुधवार एक मई को अयोध्या पहुंची, जहां उन्होंने राम मंदिर में दर्शन किया। वो सरयू तट पर आरती में भी शामिल हुईं। राम मंदिर बनने के बाद यह पहला मौका है जब राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू अयोध्या पहुंची थी। राष्ट्रपति गर्भ गृह में उस जगह तक पहुंची थीं, जहां प्रधानमंत्री के अलावा कुछ खास लोग ही पहुंच सके हैं। तीसरे चरण के चुनाव के पहले इसे मोदी सरकार की एक सोची समझी रणनीति माना जा रहा है। क्योंकि इसी बहाने एक बार फिर राम मंदिर पर चर्चा हुई।
राष्ट्रपति मूर्मू आदिवासी समाज से ताल्लुक रखती हैं। और राम मंदिर के उद्घाटन के दौरान उनको निमंत्रण नहीं मिलने को लेकर विपक्ष ने बड़ा मुद्दा बनाया था। विपक्ष ने भाजपा पर जातिवाद का आरोप लगाया था।
जूना अखाड़े ने दलित संत को बनाया जगद्गुरु
दूसरी खबर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में सनातन धर्म के सबसे बड़े जूना अखाड़े ने दलित समाज से आने वाले महेंद्रानंद गिरी को जगद्गुरु बनाया है। इस दौरान उन्हें सम्मानित किया गया और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उन्हें पदासीन किया गया। इसके पहले जूना अखाड़े ने ही महेंद्रानंद की सनातन के प्रति रुचि और ज्ञान देखकर उन्हें महामंडलेश्वर बनाया था, अब उ्नहें जगदगुरु के पद पर पदासीन किया गया है।
स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती और जूना अखाड़े के संरक्षक हरी गिरी महाराज ने महेंद्रानंद गिरी को सिंहासन पर आसीन करके उन्हें जगद्गुरु का छत्र और चंवर भेंट किया। इसके बाद संतों ने माला पहनाकर उनका स्वागत किया। महेंद्रानंद गिरी महाराज ने बताया कि उनके साथ 700 सन्यासी हैं, जिनमें से ज्यादातर पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति और आदिवासी समाज से हैं।
माना जा रहा है कि इन दोनों घटनाओं के जरिये हिन्दू धर्म के उदारवादी चरित्र को दिखाने की है। क्योंकि चुनाव चाहे जो भी हो जहां भी भाजपा की बात आती है, धर्म आधारित राजनीति एक बड़ा मुद्दा होता है। भाजपा पर आरोप लगता है कि वह सवर्ण परस्त पार्टी है। इसकी एक वजह पार्टी और केंद्र के तमाम शीर्ष पदों पर ऊंची जातियों का दबदबा है। देखना होगा कि इन दोनों घटनाओं का लोकसभा चुनाव पर कितना प्रभाव पड़ता है।
By: विश्वास.News नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान से पहले सोशल मीडिया पर राहुल गांधी का एक वीडियो क्लिप वायरल हो रहा है, जिसके जरिए दावा किया जा रहा है कि उन्होंने कथित रूप से इंस्टाग्राम समेत सोशल मीडिया पर समय बिताने वाले युवाओं को हर महीने एक लाख रुपये दिए जाने का वादा किया है।
विश्वास न्यूज ने अपनी जांच में इस दावे को फेक पाया। वायरल हो रहा वीडियो क्लिप ऑल्टर्ड वीडियो क्लिप है, जिसे उसके संदर्भ से अलग कर शेयर किया जा रहा है। ऑरिजिनल वीडियो में राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी पर देश में बढ़ती बेरोजगार का आरोप लगाते हुए कहा था कि केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से युवा अपना अधिकांश समय सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं। साथ ही उन्होंने कांग्रेस की गारंटी की घोषणा करते हुए बताया कि उनकी सरकार बनने पर देश के युवाओं के लिए अप्रेंटिसशिप कार्यक्रम की शुरुआत होगी और युवाओं को महीने के 8500 और साल के एक लाख रुपये मिलेंगे। लेकिन वायरल वीडियो क्लिप में उनके इन दोनों बयानों के संदर्भ को एडिटिंग के जरिए गायब कर दिया गया है, जिससे वायरल क्लिप के मायने मतलब बदल जा रहे हैं।
क्या है वायरल?
सोशल मीडिया यूजर ‘Shubhang Dubey’ ने वायरल वीडियो (आर्काइव लिंक) को शेयर करते हुए लिखा है, “इंस्टाग्राम चलाओ फेसबुक चलाओ…और 10-10 बच्चे पैदा करो कांग्रेस आएगी तो मिडिल क्लास और वेल्थ क्रिएटर्स की जेब से निकाल के सबको लखपति बनाएंगे।” सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर कई अन्य यूजर्स ने इसे समान और मिलते-जुलते दावे के साथ शेयर किया है।
पड़ताल
वायरल वीडियो मात्र 16 सेकेंड का है, जिसमें राहुल गांधी को यह कहते हुए सुना जा सकता है, “……हमारे जो युवा हैं, आज सड़कों पर घूम रहे हैं, इंस्टाग्राम फेसबुक देख रहे हैं, उनके बैंक अकाउंट में साल का एक लाख रुपया, 8500 रुपया महीने का टकाटक टकाटक टकाटक हमारी सरकार डालेगी।”
स्पष्ट है कि वायरल क्लिप एडिटेड है, क्योंकि इससे राहुल गांधी की बात का संदर्भ साफ नहीं हो रहा है। वायरल वीडियो के की-फ्रेम्स को रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें राहुल गांधी के आधिकारिक यू-ट्यूब चैनल पर चार दिन पहले अपलोड किया हुआ मिला, जो बिहार के भागलपुर में हुई कांग्रेस की रैली का है। इस रैली में राहुल गांधी ने कांग्रेस की गारंटी की घोषणा करते हुए नरेंद्र मोदी सरकार पर बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर हमला बोला था। इसी दौरान उन्होंने युवाओं को नौकरी दिए जाने की कांग्रेस की योजना की घोषणा करते हुए कहा था, “….हिंदुस्तान के हर युवा को पहली नौकरी का अधिकारी हमारी अगली सरकार देने जा रही है। जैसे मनरेगा ने रोजगार का अधिकार दिया है, वैसे ही हम ग्रैजुएट को पहली नौकरी का अधिकार देंगे।”
वे आगे कहते हैं, “….ये जो अप्रेंटिसशिप वाली नौकरियां होंगी, ये प्राइवेट सेक्टर में होंगी, पब्लिक सेक्टर यूनिट्स में होंगी, सरकार में होंगी…तो करोड़ों युवाओं को ट्रेनिंग मिलेंगी, हिंदुस्तान को ट्रेन्ड वर्कफोर्स मिलेगा और हमारे जो युवा हैं, जो आज सड़कों पर घूम रहे हैं, इंस्टाग्राम, फेसबुक देख रहे हैं, उनके बैंक अकाउंट में साल का एक लाख रुपया और 8500 रुपये महीने का टकाटक टकाटक टकाटक टकाटक हमारी सरकार डालेगी।”
कई अन्य रिपोर्ट्स में भी राहुल गांधी की इस रैली का जिक्र है
वायरल वीडियो क्लिप को लेकर उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अभिमन्यु त्यागी से संपर्क किया। उन्होंने कहा, “यह विशुद्ध रूप से चुनावी दुष्प्रचार है और सत्तारुढ़ दल की घबराहट को दिखाता है, जो राहुल गांधी के उठाए जा रहे मुद्दों और कांग्रेस की गारंटी से असहज है।”
चुनाव आयोग की सूचना (आर्काइव लिंक) के मुताबिक, लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के तहत बिहार की कुल पांच लोकसभा सीटों पर मतदान होना है, जिसमें भागलपुर लोकसभा सीट भी शामिल है।
वायरल वीडियो को फेक दावे के साथ शेयर करने वाले यूजर को फेसबुक पर करीब पांच हजार लोग फॉलो करते हैं और यह प्रोफाइल विचारधारा विशेष से प्रेरित है। चुनाव से संबंधित अन्य भ्रामक व फेक दावों की जांच करती फैक्ट चेक रिपोर्ट को विश्वास न्यूज के चुनावी सेक्शन में पढ़ा जा सकता है।
— Election Commission of India (@ECISVEEP) March 26, 2024
चुनाव आयोग (आर्काइव लिंक) के मुताबिक, कुल सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव 2024 की शुरुआत 19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान से हुई, जिसके तहत कुल 102 सीटों पर वोट डाले गए। अगले चरण का मतदान 26 अप्रैल को होगा, जिसके तहत कुल 89 सीटों पर वोटिंग होगी।
— Election Commission of India (@ECISVEEP) March 16, 2024
निष्कर्ष: राहुल गांधी के युवाओं को अप्रेंटिसशिप के जरिए रोजगार दिए जाने के वादे वाले भाषण के क्लिप को एडिट कर फेक दावे के साथ शेयर किया जा रहा है। बिहार के भागलपुर में चुनावी रैली के दौरान राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी सरकार पर बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर हमला बोलते हुए सोशल मीडिया पर खाली समय बिताने वाले बेरोजगार युवाओं को अप्रेंटिसशिप के जरिए नौकरी दिए जाने का वादा किया था, लेकिन वायरल वीडियो क्लिप में इस हिस्से को हटा दिया गया है, जिससे उनकी बात के मायने मतलब बदल जा रहे हैं।
Attribution: This story was originally published by Vishvas News and republished by Dalit Dastak as part of the Shakti Collective. Except for the headline this story has not been edited by Dalit Dastak staff.
नागपुर में मुस्लिम वोटरों ने प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाया है। 19 अप्रैल को जब मतदाता वोट करने पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनके साथ खेल हो गया है। तमाम वोटरों के नाम वोटिंग लिस्ट से गायब थे। खास बात यह रही कि जिन लोगों के नाम गायब थे, उनमें मुस्लिम मतदाताओं के लोग हैं। नागपुर के मोमिनपुरा, जाफरनगर और आनंद नगर के मुस्लिम मतदाताओं ने यह आरोप लगाया है। जिन लोगों के नाम नहीं थे, उनमें एक एडवोकेट फरहान सिद्दीकी भी रहीं। इस बात की शिकायत उन्होंने तमाम लोगों के साथ मिलकर पुलिस प्रशासन से की, लेकिन इस पर कोई खास जवाब नहीं मिल सका। नागपुर केंद्रीय मंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता नितिन गडकरी का लोकसभा क्षेत्र है। देखना होगा कि चुनाव आयोग इस पर क्या कार्रवाई करता है।
उत्तर प्रदेश का हाथरस जिला दिल्ली से सटा हुआ इलाका है। यहां सिकंदराबाद में पुरदिलनगर है। बीते 7 अप्रैल को यहां राम दयाल सिंह उर्फ नेताजी के नाम पर एक पुस्तकालय और शिक्षण संस्थान स्थापित किया गया। नेताजी राम दयाल सिंह की कहानी इस इलाके में खासी प्रचलित है। वह इस इलाके के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अंबेडकरवाद का झंडा न सिर्फ थामा बल्कि बुलंद भी किया। इलाके में ठाकुरों का खासा आतंक था। वो उनके सामने झुके नहीं और उन्हें मजबूती से जवाब दिया। उन्होंने ठाकुरों को सीधी चुनौती दी तो पानी के इस्तेमाल को लेकर चावदार तालाब जैसा आंदोलन चलाया। इस वीडियों में सुनिये इनकी पुरी कहानी-
गत 4 अप्रैल 2024 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 2024 के आमचुनाव के लिए अपना घोषणापत्र जारी किया. पार्टी ने इसे ‘न्याय पत्र’ का नाम दिया है. इसमें जाति जनगणना, आरक्षण पर 50 प्रतिशत की ऊपरी सीमा हटाने, युवाओं के लिए रोज़गार, इंटर्नशिप की व्यवस्था, गरीबों के लिए आर्थिक मदद आदि का वायदा किया गया है. घोषणापत्र का फोकस महिलाओं, आदिवासियों, दलितों, ओबीसी, किसानों और युवाओं व विद्यार्थियों के लिए न्याय पर है. कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने कहा कि घोषणापत्र यह वादा करता है कि भाजपा के पिछले 10 सालों के शासनकाल में समाज के विभिन्न तबकों के साथ हुए अन्याय को समाप्त किया जाएगा.
श्री नरेन्द्र मोदी ने इस घोषणापत्र की निंदा करते हुए कहा कि घोषणापत्र पर (स्वतंत्रता-पूर्व की) मुस्लिम लीग की विघटनकारी राजनीति की छाप है और यह वाम विचारधारा से प्रभावित है. यह सुनकर भारतीय राष्ट्रवादी विचारधारा के सर्जक और आरएसएस के द्वितीय सरसंघचालक एम.एस. गोलवलकर की याद आना स्वाभाविक है, जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘बंच ऑफ़ थॉट्स’ में बताया है कि हिन्दू राष्ट्र के लिए तीन आतंरिक खतरे हैं – मुसलमान, ईसाई और कम्युनिस्ट. इनमें से दो की चर्चा भाजपा समय-समय पर विभिन्न स्तरों पर करती रही है और अब भी करती है.
साम्प्रदायिकता भाजपा का प्रमुख हथियार है. सन 1937 के राज्य विधानमंडल चुनावों के लिए मुस्लिम लीग के घोषणापत्र और चुनाव कार्यक्रम में मुस्लिम पहचान से जुड़ी मांगें थीं और उसमें समाज के कमज़ोर वर्गों की भलाई के लिए सकारात्मक क़दमों की कहीं चर्चा नहीं थी.
भाजपा के आरोपों के जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने एकदम ठीक कहा कि भाजपा के पुरखे और मुस्लिम लीग एक दूसरे के सहयोगी थे. सच तो यह है कि धार्मिक राष्ट्रवादी समूहों – मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा और आरएसएस – में अनेक समानताएं हैं. औपनिवेशिक भारत में आ रहे परिवर्तनों की प्रतिक्रिया में ये तीनों संगठन समाज के अस्त होते हुए वर्गों ने गठित किए थे. ब्रिटिश भारत में औद्योगीकरण, आधुनिक शिक्षा के प्रसार व न्यायपालिका और नई प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना के साथ-साथ संचार के साधनों के विकास के कारण कई नए वर्ग उभरे – श्रमजीवी वर्ग, आधुनिक शिक्षा प्राप्त वर्ग और आधुनिक उद्योगपति. इससे पुराने शासक वर्ग के जमींदारों और राजाओं-नवाबों को खतरा महसूस होने लगा. उन्हें लगा कि उनका सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक वर्चस्व समाप्त हो जाएगा.
उभरते हुए वर्गों के नारायण मेघाजी लोखंडे, कामरेड सिंगारवेलु और कई अन्यों ने श्रमिकों को एकजुट किया. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और कई अन्य दल इन वर्गों की राजनैतिक अभिव्यक्ति के प्रतीक बन कर उभरे. स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व इन दलों के मूलभूत मूल्य थे. ज़मींदारों और राजाओं के अस्त होते वर्गों ने यूनाइटेड पेट्रियोटिक एसोसिएशन का गठन किया, जो अंग्रेजों के प्रति वफादार थी. ये वर्ग जातिगत और लैंगिक ऊंचनीच में पूर्ण आस्था रखते थे. समय के साथ यह संगठन बिखर गय और इसमें से 1906 में मुस्लिम लीग और 1915 में हिन्दू महासभा उभरे. सावरकर ने अपनी पुस्तक “एसेंशियल्स ऑफ़ हिंदुत्व” में यह प्रतिपादित किया कि भारत में दो राष्ट्र हैं – हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र. इसी से प्रेरित हो कर 1925 में गठित आरएसएस ने हिन्दू राष्ट्र का एजेंडा अपनाया तो लन्दन में पढ़ने वाले कुछ मुस्लिम लीग समर्थकों ने ‘पकिस्तान’ शब्द गढ़ा.
इन दोनों धाराओं के पैरोकार क्रमशः हिन्दू राजाओं और मुस्लिम बादशाहों-नवाबों के शासनकाल को देश के इतिहास का सुनहरा और महान दौर मानते थे. स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान दोनों ने अंग्रेजो का भरपूर समर्थन किया. उनकी रणनीति यह थी कि अंग्रेजों के साथ मिलकर वे अपने शत्रु (हिन्दुओं या मुसलमानों) से निपटना चाहते थे. हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रमुख स्तंभ सावरकर ने अहमदाबाद में हिन्दू महासभा के 19वें अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा, “आज के भारत को एक और एकसार राष्ट्र नहीं माना जा सकता. उलटे यहाँ दो मुख्य राष्ट्र हैं – हिन्दू और मुसलमान.
द्विराष्ट्र सिद्धांत की आधार पर ही जिन्ना ने 1940 में लाहौर में आयोजित मुस्लिम लीग के अधिवेशन में अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग की.
आरएसएस के अनाधिकारिक मुखपत्र ‘आर्गेनाइजर’ ने लिखा,”….हिंदुस्तान में केवल हिन्दू ही राष्ट्र हैं और हमारा राष्ट्रीय ढांचा इसी मज़बूत नींव पर रखा जाना चाहिए….यह राष्ट्र हिन्दुओं, हिन्दू परम्पराओं, संस्कृति, विचारों और महत्वकांक्षाओं पर आधारित होना चाहिए.”
मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा ने बंगाल, सिंध और नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में 1939 में संयुक्त सरकारें बनाईं. सिंध में जब मुस्लिम लीग ने विधानमंडल में पाकिस्तान के गठन के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया तब हिन्दू महासभा के सदस्य चुप्पी साधे रहे. सुभाष चन्द्र बोस ने जर्मनी से प्रसारित अपने वक्तव्य में मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा दोनों से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आन्दोलन में शामिल होने की अपील की. ये दोनों और आरएसएस 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन से दूर रहे. सावरकर ने द्वितीय विश्वयुद्ध में जीत हासिल करने में इंग्लैंड की मदद करने का हर संभव प्रयास किया. उन्होंने कहा, “हर गाँव और हर शहर में हिन्दू महासभा की शाखाओं को सक्रिय रूप से हिन्दुओं को (अंग्रेज) थल, जल और वायु सेना और फौजी समान बनाने वाले कारखानों में भर्ती होने के लिए प्रेरित करना चाहिए.” जिस वक्त सुभाष बोस की आजाद हिन्द फ़ौज, ब्रिटिश सेना से लड़ रही थी, उस समय सावरकर ब्रिटिश सेना की मदद कर रहे थे.
यह साफ़ है कि हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग दोनों अंग्रेजों के हितों की पोषक थीं. सुभाष बोस इन दोनों संगठनों की सांप्रदायिक राजनीति के कड़े विरोधी थी और दोनों ने अंग्रेजों के खिलफ संघर्ष में भागीदारी करने की बोस की अपील पर कोई ध्यान नहीं दिया. जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुख़र्जी, जो मुस्लिम लीग के साथ बंगाल की गठबंधन सरकार में मंत्री थे, ने वाइसराय को लिखा कि 1942 के आन्दोलन को नियंत्रित किया जाए और यह वायदा किया कि वे यह सुनिश्चित करेंगे कि बंगाल में इस आन्दोलन को कुचल दिया जाये. दिनांक 26 जुलाई, 1942 को लिखे अपने पत्र में उन्होंने लिखा, “अब मैं उस स्थिति के बारे में कुछ कहना चाहूँगा जो कांग्रेस द्वारा शुरू किये गए किसी भी व्यापक आन्दोलन के कारण प्रान्त में बन सकती है. जो भी सरकार वर्तमान में शासन कर रही है, उसे युद्ध के इस दौर में आमजनों को भड़काने के किसी भी ऐसे प्रयास, जिससे आतंरिक गड़बड़ियाँ फैल सकती हैं और असुरक्षा का वातावरण बन सकता है, का प्रतिरोध करना चाहिए.”
सुभाष बोस की तरह आंबेडकर भी मुस्लिम राष्ट्रवाद और हिन्दू राष्ट्रवाद की विचारधाराओं को एक खांचे में रखते थे. उन्होंने सन 1940 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ़ इंडिया” में लिखा, “यह अजीब लग सकता है मगर मिस्टर सावरकर और मिस्टर जिन्ना एक राष्ट्र बनाम दो राष्ट्र के मुद्दे पर एक-दूसरे के विरोधी होने की बजाय, एक-दूसरे से पूरी तरह सहमत हैं. दोनों सहमत हैं – सहमत ही नहीं बल्कि जोर देकर कहते हैं- कि भारत में दो राष्ट्र हैं – एक मुस्लिम राष्ट्र और दूसरा हिन्दू राष्ट्र.”
कोई आश्चर्य नहीं कि दबे-कुचले लोगों के कल्याण की बातें भाजपा-आरएसएस को मंज़ूर नहीं हैं क्योंकि वे उसके हिन्दू राष्ट्र के एजेंडा के खिलाफ हैं. मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान में वंचित वर्गों की क्या स्थिति है, यह हम सब के सामने है. आशा जगाने वाले कांग्रेस के घोषणापत्र की मोदी की आलोचना, उनके विचारधारात्मक पुरखों की सोच के अनुरूप है.
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)
आगामी लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। चुनाव सात चरणों में होंगे। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को 102 सीटों पर होगा। 26 अप्रैल को 89 सीटों के लिए दूसरे चरण का मतदान होगा। 7 मई को 94 सीटों के लिए तीसरे चरण का मतदान होगा। जबकि 13 मई को 96 सीटों के लिए चौथे चरण का मतदान होगा। 20 मई को 49 सीटों के लिए पांचवें चरण का मतदान, 25 मई को 57 सीटों के लिए छठवें चरण का मतदान और एक जून को 57 सीटों के लिए 7वें चरण का मतदान होगा। मतगणना 4 जून को होगी।
लेकिन इस बीच ईवीएम को लेकर सवाल उठने बंद नहीं हुए हैं। तमाम संगठन ईवीएम पर सवाल उठाते हुए चुनाव को बैलेट पेपर से कराने की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी ईवीएम को लेकर सवाल उठाया। मुंबई में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समापन के मौके पर राहुल गांधी ने चुनाव आयोग को लेकर कई खुलासे किये। इस वीडियो में आप खुद सुनिये, राहुल गांधी ने क्या कहा है।
लोकसभा चुनाव के पहले बहुजन समाज पार्टी ने अपने गठबंधन का ऐलान कर दिया है। यह गठबंधन तेलंगाना में हुआ है, जहां बसपा के. चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिबति के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। केसीआर और बसपा के तेलंगाना प्रदेश अध्यक्ष आर.एस. प्रवीण के बीच मुलाकात हुई है जिसके बाद दोनों ने मीडिया के सामने गठबंधन की घोषणा कर दी है। हाल ही में तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें कांग्रेस पार्टी ने शानदार जीत दर्ज करते हुए अपनी सरकार बना ली थी।
तेलंगाना विधानसभा चुनाव में जहां बसपा नेता डॉ. आर.एस प्रवीण कुमार ने जहां केसीआर के खिलाफ जमकर मोर्चा खोला था और केसीआर पर तमाम आरोप लगाए थे, वहीं अब साफ है कि दोनों साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। अब सवाल है कि इस गठबंधन के मायने क्या हैं और इससे किसे फायदा होगा? 119 विधानसभा वाली तेलंगाना में बीते नवंबर में चुनाव हुए और नतीजे 3 दिसंबर को आएं। इसमें कांग्रेस ने 54 फीसदी वोट हासिल करते हुए 64 सीटें जीती थी। तो वहीं केसीआर की भारत राष्ट्र समिति दूसरे नंबर पर रही और उसे 33 फीसदी वोट और 39 सीटें मिली। भाजपा महज 7 प्रतिशत ही वोट हासिल कर सकी और उसके खाते में 8 सीटें आई थी। अन्य के हिस्से में 8 सीटें और सात प्रतिशत वोट आए थे। आठ सीटों में से 7 पर असदुद्दीन ओवैसी ने 7 जबकि सीपीआई ने 1 सीट जीती थी। जहां तक बसपा की बात है तो इस चुनाव में पार्टी ने 107 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा। और उसे सिर्फ 1.37 प्रतिशत वोट मिले थे।
अब बसपा और केसीआर के बीच गठबंधन दलितों को हजम नहीं हो रहा है। इसकी वजह के. चंद्रशेखर राव का फरवरी 2022 में दिया गया वह बयान है, जिसमें उन्होंने नया संविधान लिखने की मुहिम चलाने की बात कही थी। तब तेलंगाना बसपा प्रमुख आर.एस प्रवीण कुमार ने केसीआर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
दलित समाज के लिए संविधान एक भावनात्मक मुद्दा है, जो भी इसके खिलाफ बयान देता है यह समाज उसके खिलाफ खड़ा हो जाता है। यहां तक की विधानसभा चुनाव के दौरान केसीआर और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद के बीच काफी नजदीकियां देखी गई। भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद ने हैदराबाद जाकर के. चंद्रशेखर राव से खूब मुलाकात की थी और खूब तारीफ की थी। इसको लेकर चंद्रशेखर दलितों के निशाने पर भी रहे थे। यहां तक की बसपा ने भी इसको मुद्दा बनाते हुए चंद्रशेखर आजाद को निशाने पर लिया था। लेकिन अब उसी बसपा का संविधान विरोधी बयान देने वाले के. चंद्रशेखर राव के साथ गठबंधन करना कई सवाल उठाता है। प्रदेश में दलित समाज के वोट की बात करे तो यह 17 प्रतिशत है। देखना होगा कि जिस दलित समाज ने विधानसभा चुनाव में केसीआर और बसपा दोनों को नकार दिया था, लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन को कितना समर्थन देती है।
दलित दस्तक द्वारा हाल ही में शख्सियत नाम से एक श्रृंखला शुरू की है, जिसमें समाज के उन लोगों के जीवन संघर्ष और अनुभवों को समाज के सामने रखने की कोशिश की जा रही है, जिन्होंने अपनी मेहनत के बूते अपना एक मकाम बनाया है और जिनका जीवन हर किसी के लिए एक प्रेरणा है। पहले एपिसोड में दलित दस्तक के संपादक अशोक दास की विश्वविख्यात जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सोशल साइंस विभाग के चेयरमैन और वर्ल्ड रैंकिंग प्रोफेसर डॉ. विवेक कुमार से बातचीत।
पीएम मोदी से लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक भले ही खुद के दलित हितैषी होने का दावा करते हैं, इनके राज में दलितों पर अत्याचार लगातार बढ़ा है। दलित समाज के लोग सवर्ण समाज के साथ-साथ प्रशासन के अत्याचार का भी शिकार हो रहे हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के मिलक क्षेत्र में बाबासाहेब के नाम का साइन बोर्ड लगाने को लेकर हुई झड़प में एक दलित युवक की हत्या हो गई। पुलिस पर युवक की हत्या का आरोप लग रहा है। घटना के बाद पुलिस ने आनन-फानन में दलित युवक की हत्या भी कर दी, जिससे तनाव बढ़ गया है।
खबरों के मुताबिक मिलक थाना क्षेत्र के सिलाई बाड़ा गांव में एक जमीन पर दलित समाज लोगों ने खाद बनाने के लिए एक गड्ढा तैयार किया था। कुछ दिन पहले उन्होंने गड्ढा पाटकर उस पर बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के नाम की होर्डिंग लगा दी थी और प्रतिमा लगाने की तैयारी शुरू हो गई थी। जिसको लेकर विवाद हो गया। इस मामले में भीम आर्मी प्रमुख और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने पीड़ित के परिवारजनों से मुलाकात की। इस दौरान चंद्रशेखर ने यूपी सरकार और पुलिस पर जमकर हमला बोला। देखिए पूरी रिपोर्ट-
तमिलनाडु के जवाधु पहाड़ी पर बसे आदिवासी समाज के बीच जश्न का माहौल है। इस समाज की 23 साल की बेटी वी. श्रीपति ने सिविल जज की परीक्षा पास कर इतिहास रच दिया है। श्रीपति तमिलनाडु राज्य की पहली आदिवासी महिला जज बनी हैं। श्रीपति की कहानी दुनिया की हर एक युवती के लिए प्रेरणा से भरी है। उन्होंने जिस तरह तमाम बाधाओं और रुढ़ियों को तोड़ते हुए यह सफलता हासिल की है, वह एक मिसाल है। यह जानकर आप हैरान हो सकते हैं कि जब बच्चे के जन्म के बाद औरतें हफ्ते भर तक घरों से नहीं निकलती, श्रीपति बेटी को जन्म देने के दो दिन बाद ही परीक्षा देने पहुंच गई थी।
श्रीपति का जन्म तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले के पुलियूर गांव में हुआ। वह मलयाली जनजाति से आती हैं। उनके पिता कालिदास एक घरेलू नौकर के रूप में काम करते हैं जबकि माँ घरों में काम करती हैं। जहां तमाम लोग महानगरों की अच्छी स्कूली शिक्षा के बावजूद सफल नहीं हो पाते, श्रीपति ने अपनी शुरुआती पढ़ाई तिरुपत्तूर जिले के येलागिरी पहाड़ी के सरकारी स्कूल से पूरी की। फिर उन्होंने तिरुवन्नामलाई के सरकारी लॉ कॉलेज से कानून में स्नातक किया। इसके बाद तमिलनाडु की डॉ. अंबेडकर लॉ यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री ली।
पढ़ाई के बाद श्रीपति तमिलनाडु के एक जिला अदालत में वकील के रूप में प्रैक्टिस करने लगी। वंचितों को न्याय दिलाने के जुनून से वह जल्दी ही लोकप्रिय हो गई। लेकिन अदालत में अंतिम फैसला जजों के हाथ में होता था। यह देखते हुए उन्होंने सिविल जज बनने की सोची और तैयारी में जुट गई। लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं था। सुदूर गांव में रहने के कारण उन्हें कोचिंग, स्टडी मैटेरियल और इंटरनेट जैसी समस्याओं से जूझना पड़ा। तो दूसरी ओर घर की जिम्मेदारी भी थी।
आदिवासी समाज में शादी जल्दी हो जाने के रिवाज के कारण श्रीपति के माता-पिता ने उनकी शादी भी जल्दी कर दी थी। जब श्रीपति की मुख्य लिखित परीक्षा थी, तब वह प्रेग्नेंट थीं। हालांकि उन्हें यह बाधा पार कर ली और पास हुई। लेकिन आगे और संघर्ष था। 27 नवंबर 2023 को श्रीपति ने बेटी को जन्म दिया और उसके दो दिन बाद ही उनका इंटरव्यू था। बावजूद इसके वह इंटरव्यू देने पहुंची और सफल हुई। 13 फरवरी 2024 को श्रीपति को ज्वाइनिंग लेटर मिल चुका है। इस तरह वह न केवल तमिलनाडु की पहली आदिवासी महिला सिविल जज बनीं बल्कि देश की सबसे कम उम्र की जजों में भी उनका नाम शुमार हो गया।
श्रीपति की इस ऐतिहासिक उपलब्धि में उनकी कड़ी मेहनत के साथ-साथ पिता का प्रोत्साहन, माँ से मिला आत्मविश्वास और पति के सहयोग का भी हाथ रहा। इस उपलब्धि के बाद श्रीपति के नाम की चर्चा हर ओर हो रही है। श्रीपति की इस सफलता पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टॉलिन भी उन्हें बधाई देने से खुद को नहीं रोक पाएं। अपने एक इंटरव्यू में श्रीपति ने कहा था कि वह कुछ ऐसा करना चाहती थी, जो कमजोर वर्गों को प्रेरित करे। निश्चित तौर पर श्रीपति की यह सफलता दुनिया भर के वंचितों को प्रेरणा देने वाली है।