द्रौपदी मुर्मू ने ली राष्ट्रपति पद की शपथ, सबको किया ‘जोहार’

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 संसद का सेंट्रल हॉल आजादी के बाद से ही कई खास लम्हों का गवाह रहा है। इसी कड़ी में 25 जुलाई को एक और खास पल उसकी दीवारों में दर्ज हो गया। देश की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद सभी को जोहार कर सबको चौंका दिया। नई राष्ट्रपति के ये कहते ही संसद का सेंट्रल हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। मुर्मू को देश के चीफ जस्टिस एनवी रमन ने शपथ दिलाई। मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले से देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाली पहली आदिवासी महिला बनी हैं।

 मुर्मू ने शपथ लेने के बाद संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में दोनों सदनों के नेताओं को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने जैसे ही जोहार शब्द कहा, पूरा कक्ष तालियों की गड़गड़ागट से गूंज उठा। केंद्रीय मंत्री इरानी तो काफी खुश दिख रही थीं। दरअसल, महिला राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने की घोषणा के बाद ही इरानी ने इसका जोरदार स्वागत किया था। जैसे ही मुर्मू ने जोहार शब्द बोला तो इरानी बेहद खुश दिखीं। दरअसल, जोहार का मतलब नमस्कार होता है। आदिवासी इलाकों में इसका इस्तेमाल होता है।

मुर्मू के जय जोहरा शब्द ने कई संदेश दे दिए हैं। देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बनने का गौरव पाने वालीं मुर्मू ने जोहार शब्द से उस तबके को भी जोड़ा जिनसे उनका ताल्लुक है।

देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाली द्रौपदी मुर्मू की सादगी उनके राष्ट्रपति भवन पहुंचने के बाद भी जारी रही। आज जब वह देश की सर्वोच्च पद की शपथ लेने पहुंची तो उनकी सादगी सबको भा गई। संथाली साड़ी, सफेद हवाई चप्पल में संसद के केंद्रीय कक्ष में उन्होंने देश के 15वें राष्ट्रपति की शपथ ली। ओडिशा के मयूरभंज जिले से रायसीना हिल्स की सबसे बड़ी इमारत में कदम रखने वालीं मुर्मू की सरलता में कोई कमी नहीं आई।

द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडु है। उनके दादा और उनके पिता दोनों ही उनके गाँव के प्रधान रहे। मुर्मू मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के गांव उपरबेड़ा में स्थित एक स्कूल से पढ़ी हैं। यह गांव दिल्ली से लगभग 2000 किमी और ओडिशा के भुवनेश्वर से 313 किमी दूर है। उन्होंने श्याम चरण मुर्मू से विवाह किया था। अपने पति और दो बेटों के निधन के बाद द्रौपदी मुर्मू ने अपने घर में ही स्कूल खोल दिया, जहां वह बच्चों को पढ़ाती थीं। उस बोर्डिंग स्कूल में आज भी बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी पुत्री विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहती हैं।

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