भाग्य के भरोसे न रहो, अपनी शक्ति पर विश्वास करो- डॉ. बी.आर. आम्बेडकर

 बाबासाहेब डॉ. बी.आर आंबेडकर भारत के अद्वितीय चिंतक, अर्थशास्त्री और महान समाज सुधारक थे। भारत के संविधान निर्माता के रूप में वे विश्वविख्यात हैं ही उनका योगदान भी अद्वितीय है। लेकिन वे केवल एक कानूनी व्याख्याकार ही नहीं थे, वरन उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। समाजशास्त्र,राजनीत शास्त्र, मानव शास्त्र एवं तुलनात्मक धर्म शास्त्र अध्ययन में उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। एक संसदीय नेता, महान शिक्षा शास्त्री , विश्वविख्यात पत्रकार और इस सबसे ऊपर भारत में करोड़ो दबे कुचले लोगों के मानव अधिकारों के लिए संघर्षशील समाज सुधारक के रूप में उनकी भूमिका इतिहास के पन्नों पर सदैव विद्यमान रहेगी। उन्होंने दलित समुदाय की गरिमा, सामाजिक सुधार और धार्मिक उन्नति को प्रमुखता प्रदान की, जो मानवीय विकास के लिए सदैव प्रासंगिक रहेगी। उनका कहना था कि धर्मों के जद में आकर भाग्य पर भरोसा करना कतई उचित नहीं है। भाग्य के भरोसे न रहकर मनुष्य को अपनी शक्ति पर विश्वास करने की आवश्यकता है, क्योंकि उसकी शक्ति ही, उसकी मानसिक मजबूती है। मानसिक मजबूती ही भारत को आगे ले जा सकती है ना कि अंधविश्वासी मानसिकता।

1933 में 18 फरवरी को कसारा में ठाणे जिला अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर बी.आर आंबेडकर ने कहा- “अंधविश्वासी प्रचलन ने दलितों को, श्रमिकों को युगों से शक्ति विहीन किया है और उनकी पुरूषत्व को समाप्त कर दिया है। रोटी कमाना भगवान की पूजा से बेहतर है, कहकर उन्होंने लोगों के मन तथा मस्तिष्क पर छाप छोड़ी।” अधिवेशन में डॉक्टर अंबेडकर ने अछूतों से कहा- “हमें चतुर्वर्ण व्यवस्था को उखाड़ फेंकना होगा। उच्च जातियों के लिए विशेष सुविधाएं और निम्न वर्गों के लिए गरीबी के सिद्धांत का अंत होना चाहिए। ब्रिटिश सरकार विदेशी सरकार है, इसलिए हमारी दशा में अधिक प्रगति नहीं है। फूट को अपने ऊपर हावी ना होने दें। आपसी फूट सर्वनाश की ओर ले जाती है। परिवेश परिस्थितियों का स्वयं की दृष्टि से अध्ययन करें। यह ना भूलें कि महाड़ तथा नासिक की तुम्हारी मुठभेड़ से तुम्हें शीघ्र ही राजनीतिक प्रतिष्ठा मिलने वाली है। नासिक सत्याग्रह के समाचार लंदन के ‘टाइम्स’ में हर दिन छपते थे तथा इनसे ब्रिटिश निवासियों में हमारे बारे में जानने की रुचि बढ़ी और उन्हें सीखने को मिला।

उन्होंने आगे कहा, “तुमने जो खोया, उससे दूसरों को लाभ हुआ। तुम्हारे अपमान से दूसरों का स्वाभिमान बढ़ता है। तुम्हें अभावों की जिंदगी जीने को मजबूर किया जाता है, वस्तुओं से वंचित तथा अपमानित किया जाता है, क्योंकि वे जो तुमसे ऊपर हैं, प्रबल तानाशाह हैं और अविश्वसनीय है और यह किसी भी तरह तुम्हारे पूर्व जन्म में किए पापों का फल नहीं है। तुम्हारे पास कोई जमीन नहीं है क्योंकि दूसरों ने हड़प ली। तुम्हारे पास कोई पद नहीं है क्योंकि दूसरों ने उस पर कब्जा कर लिया। भाग्य के भरोसे ना रहो अपनी शक्ति में विश्वास रखो।”

बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने अपने लोगों को मंदिर प्रवेश आंदोलन तथा पारस्परिक भोज की भूल भुलैया में खो जाने के विरुद्ध चेताया। उन्होंने समझाया कि इससे उनकी दाल रोटी की समस्या हल नहीं होगी। इस मूर्खता पूर्ण धारणा कि तुम्हारी कंगाली तथा विपदा ईश्वर द्वारा निर्धारित है, जितनी जल्दी त्याग दो उतना ही तुम्हारे लिए बेहतर है। यह विचार कि तुम्हारी गरीबी अवश्यंभावी है, जन्मजात है तथा मृत्यु पर्यंत है, कोरा झूठ तथा गलत एवं बकवास है। उन्होंने आगे कहा कि अपने आप को दास समझने वाली विचारधारा को त्याग दो

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4 मार्च 1933 को बंबई सेंडहस्र्ट मार्ग के समीप जीआईपी रेलवे आवास के मैदान पर अछूतों की एक सभा हुई थी। यह सभा डॉक्टर आंबेडकर को 85 लोगों द्वारा हस्ताक्षरित सम्मान पत्र भेंट करने के लिए बुलाई गई थी। इस सभा में डॉक्टर आंबेडकर ने कहा “आपने मुझे जो सम्मान पत्र भेंट किया है, मैं उसके लिए आप सब का आभार व्यक्त करता हूं। यह सम्मान पत्र मेरे काम और गुणों के लिए प्रशंसा से भरा है। इसका अर्थ है कि आप अपने जैसे ही एक साधारण मनुष्य को ‘पूजा की वस्तु’ मान रहे हैं’। यह नायक पूजा की सोच अगर तुरंत समय रहते नहीं रोकी गई तो यह आप का विनाश कर देगी। किसी एक व्यक्ति को पूज्यनीय बनाकर आप अपनी सुरक्षा तथा मुक्ति का दायित्व उस अकेले व्यक्ति पर डालकर भार मुक्त हो, विश्राम मुद्रा में चले जाते हैं और आप में आश्रित रहने तथा अपने कर्तव्य के प्रति उदासीनता की आदत पर जाती है। अगर आप ऐसे विचारों के शिकार बन जाते हैं, तो आपका भाग्य राष्ट्र की जीवनधारा में बहते कटे लकड़ी के लट्ठे से बेहतर तो नहीं हो सकता। आप का संघर्ष तो शून्य हो जाएगा, समाप्त हो जाएगा, खत्म हो जाएगा।

उन्होंने अपनी बात को आगे कहा “नवयुग ने आपको जो राजनीतिक अधिकार उपलब्ध कराएं हैं उनकी उपेक्षा मत करो। आपका पूरा समाज अब तक पैरों तले रौंदा जा रहा था क्योंकि आपके मन तथा मस्तिष्क में बेबसी भरी थी। मैं यह भी कहूंगा कि नेता पूजा के विचार तथा नेता पूजा तथा कर्तव्य की अनदेखी ने हिंदू समाज का विनाश किया है तथा हमारे देश के पिछड़ने के कारण बने हैं। उन्होंने बताया “दूसरे देशों में राष्ट्रीय विपत्ति तथा संकट के समय लोग एकजुट होकर खतरे को टालने के लिए सक्रिय हो जाते हैं और शांति तथा संपन्नता प्राप्त करते हैं। इसके विपरीत हमारा धर्म हमारे कानों में बार-बार “मनुष्य कुछ नहीं करता” का राग अलापता रहता है और मनुष्य को निष्क्रिय कर देता है। वह एक बेबस लकड़ी के लट्ठे के समान है। किसी भी राष्ट्रीय संकट के समय ईश्वर के अवतरित होने तथा संकट से उबारने की आशा रखी जाती है। सारांश में शत्रुओं से एकजुट होकर निपटने के बजाय इस काम को करने के लिए अवतार लेने की प्रतीक्षा करते रहते है।”

इस दासता का उन्मूलन आपको स्वयं ही करना है। इसके लिए ईश्वर या किसी दैवी शक्ति पर निर्भर ना रहें, आपकी मुक्ति तो आपकी राजनीतिक शक्तियों में है ना कि तीर्थ यात्राओं अथवा उपवास रखने में या व्रत रखने में। धर्मग्रंथों के प्रति निष्ठा से आपको अपने दासता के बंधनों, अभाव व गरीबी से मुक्ति नहीं मिल सकती। तुम्हारे पूर्वज यह सब पीढ़ी दर पीढ़ी करते आए हैं पर उन्हें दुखद जीवन से नाम मात्र भी राहत नहीं मिली। आप अपने पूर्वजों की ही तरह से चिथड़े पहनते हो। उनकी तरह तुम फेंके हुए बचे-खुचे टुकड़ों पर जीते हो। उनकी तरह गंदी बस्तियों में गंदी झोपड़ियों में सड़ रहे हो और उन्हीं की तरह बीमारियों के आसान शिकार होते हो और मुर्गियों के चूजों की मौत मरते हो। अपने धार्मिक उपवास में संयम व प्रायश्चित ने भी आपको भूखमरी से नहीं बचाया।”

उन्होंने आगे कहा “यह विधानमंडल का कर्तव्य है कि आप को भोजन, कपड़े, आवास, शिक्षा औषधि व रोजगार उपलब्ध कराएं। कानून का निर्माण कार्य और इसे लागू करना जैसे कार्य आप की स्वीकृति, सहायता व आपकी इच्छा से पारित किए जाएंगे। संक्षेप में कानून वैश्विक प्रसन्नता का आवास है। इसलिए अपना ध्यान उपवास, पूजा-पाठ और प्रायश्चित से हटाकर विधि व्यवस्था निर्माण करने की शक्ति को अपने काबू में करो, इसी में आपकी मुक्ति है। इसी मार्ग से आपकी भुखमरी का अंत होगा। स्मरण रहे कि यह आवश्यक नहीं है कि संख्या में लोगों का बहुमत हो। हमेशा सतर्क, शक्तिशाली, सुशिक्षित और आत्मसम्मान के प्रति सजग हो, तभी सफल होंगे।”

वर्तमान समय में कोरोना के कहर ने यह साबित कर दिया है कि कोई ईश्वरीय महाशक्ति, आत्मा-परमात्मा जैसी कोई वस्तु नहीं है। जो कुछ भी घटित होता है वह या तो मानव जनित होता है या प्रकृति जनित। सबसे बड़ी विडंबना यही है कि हम करते खुद हैं और उसका श्रेय ईश्वर, अल्लाह या भगवान को दे देते हैं। भगवान को मानव ने खुद बनाया है, भगवान ने मानव को नहीं। कुछ स्वार्थी लोगों ने अपने स्वार्थ में भगवान को जन्म दिया और लोगों को उसका डर दिखाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। हम अपने आप पर विश्वास कर सकते हैं। मानवता पर विश्वास कर सकते हैं। भाग्य और भगवान पर विश्वास करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के समान है। इसलिए भाग्य पर भरोसा मत रखिए, अपने आप पर भरोसा रखिए। तभी अपना, समाज का और राष्ट्र का उद्धार किया जा सकता है।
जय भीम !! जय बहुजन समाज!!


यह आलेख संजय कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर (बी.एड.विभाग बीआरडीपीजी कॉलेज देवरिया, उत्तर प्रदेश) ने भेजा है। उनसे संपर्क- 9919 62 3541 पर कर सकते हैं।

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