14 अक्टूबर 2011. नोएडा के सेक्टर 18 के पास एक भव्य स्थल दुल्हन की तरह सजा हुआ था. सबके स्वागत को तैयार. तभी उसके प्रांगण में गड़गड़ाता हुआ एक हेलिकॉप्टर उतरा, और उसमें से उतरीं उत्तर प्रदेश की तत्कालिन मुख्यमंत्री मायावती. दरअसल मायावती उस भव्य स्थल का उद्घाटन करने आई थीं, जिसका नाम ‘राष्ट्रीय दलित स्मारक’ था और जिसे दलित प्रेरणा स्थल भी कहा जाता है. इसके जरिए बहनजी ने 14 अक्टूबर के महत्वपूर्ण दिवस पर धम्मचक्र को गतिमान करने की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया था.

दलित प्रेरणा स्थल के उद्घाटन को आज 8 साल पूरे हो गए हैं. और आठ साल बाद ही बहुजनों की आस्था को केंद्र में रखकर बनाए गए इस इमारत के प्रमुख गुंबद पर ताला जड़ा जा चुका है. आप जो ये दरवाजा देख रहे हैं, वह इस भव्य इमारत का प्रमुख गुंबद है, जिसके भीतर बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर, बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम और बसपा प्रमुख सुश्री मायावती की आदमकद प्रतिमा लगी हैं. तो इसकी दीवारों पर बहुजन समाज के नायकों और उनके द्वारा किए गए प्रमुख आंदोलनों और कार्यों का जिक्र है. लेकिन इसके बंद होने की वजह से यहां आने वाले लोग अब इस तमाम इतिहास को देखने से मरहूम रह जा रहे हैं. वहां के स्टॉफ से वजह पूछने पर पता चलता है कि इसे पिछले कई महीनों से मेंटनेंस के लिए बंद किया गया है, लेकिन हकीकत में वहां कोई काम होता हुआ दिख नहीं रहा था.
आधिकारिक तौर पर 685 करोड़ रुपये की लागत से 82.5 एकड़ में बने इस प्रेरणा स्थल की खूबसूरती शुरुआती दौर में देखते ही बनती थी. शानदार पार्क, पानी के फव्वारे और दर्जन भर प्रमुख बहुजन नायकों की आदमकद प्रतिमाएं दिल्ली से सटे नोएडा के प्रमुख केंद्र में बहुजन समाज के शानदार इतिहास की गवाही देती थी. रात को रोशनी में नहाए इस स्थल की खूबसूरती और बढ़ जाती थी. यह वहां से गुजरने वाले हर व्यक्ति का ध्यान खिंच लेती थी, लेकिन अब इसकी चमक फीकी होने लगी है.
जगह-जगह घास उग चुके हैं तो कई जगह दीवारों से पत्थर टूट कर गिर रहे हैं. कई जगहों पर पार्क घास के जंगल सरीखे दिख रहे हैं. कैंपस में मौजूद टायलेट बंद पड़े हैं, कई नलों से पानी नहीं आता. पत्थरों पर काई जम चुकी है जो लगातार इस इमारत को कमजोर कर रहे हैं. सबसे ज्यादा चिंता की बात यहां खड़े बहुजन नायकों की आदमकद प्रतिमाओं का खराब होना है.

यहां बहुजन समाज के दर्जन भर प्रमुख संतों-महापुरुषों की आदमकद प्रतिमाएं लगी है. प्रतिमाओं के नीचे नायकों का परिचय है. लेकिन इन्हें देखने से साफ पता चलता है कि ये सभी प्रतिमाएं घोर उपेक्षा की शिकार हैं. महामना जोतिबा फुले की प्रतिमा के नीचे लिखा उनका परिचय गायब हैं तो संत शिरोमणि रविदास का परिचय धुंधला पर चुका है.

बुद्ध से लेकर बिरसा मुंडा और संत कबीर से लेकर बाबासाहब आम्बेडकर और गाडगे महाराज की प्रतिमाओं पर काई का कब्जा हो चुका है जो इन प्रतिमाओं को खराब कर रही है. हां, मान्वयर कांशीराम की प्रतिमा इन तमाम उपेक्षाओं के बावजूद साफ-सुथरी खड़ी है, जैसे वह अकेले आज भी मनुवादियों से लोहा ले रहे हों.
दरअसल दलित प्रेरणा स्थल के उद्घाटन के एक साल बाद ही 2012 में हुए उत्तर प्रदेश के चुनाव में बसपा सत्ता से बाहर हो गई और मायावती को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. उसके बाद आई सपा की सरकार ने भी इन बहुजन स्थलों की उपेक्षा की. वहीं भाजपा सरकार में तो नौबत तालेबंदी की आ गई है. जब हमने इस बारे में वहां के स्टॉफ से बात करनी चाही तो कैमरे के सामने आने को कोई तैयार नहीं था. इतना भर कहा गया कि सरकार ने रख-रखाव को काफी फंड दिया है. लेकिन यह वैसा ही है जैसे कहने को संविधान में दलितों के लिए तमाम अधिकार तो हैं, लेकिन अधिकार दिलाने वालों की नीयत साफ नहीं है. दलित प्रेरणा स्थल के बारे में भी सवाल सरकार की नीयत पर ही उठ रहे हैं जो नहीं चाहती की बहुजन अपने इतिहास को जाने.
सवाल है कि बहुजन समाज को स्वाभिमान और संबल देने वाला एक प्रमुख केंद्र सिर्फ इसलिए धाराशायी होने की ओर अग्रसर है क्योंकि सत्ता में बहुजन समाज नहीं है. बसपा शासन इस बात का उदाहरण है कि सत्ता के शिखर पर होते हुए बहुुजन समाज क्या कर सकता है और सत्ता में नहीं होने पर क्या खो सकता है.

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।