कौशाम्बी। उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जिले में उस समय हंगामा खड़ा हो गया, जब एक दलित परिवार को उसकी मासूम बेटी का शव दफनाने से सवर्णों ने रोक दिया. दलित परिवार ने इसका विरोध किया तो पास के गांव के सवर्णों ने तालाब की जमीन को अपना बताते हुए उन्हें जबरन मार-पीट और पथराव कर भगा दिया. जिससे नाराज़ सैंकड़ों की संख्या में इकठ्ठे हुए दलितों ने स्थानीय रोड को जामकर दिया. घटना सैनी थाना इलाके के थुलथुला गांव की बताई जा रही है. इस पूरे मामले पर जहां पुलिस के अधिकारी सवर्णों पर कोई ठोस कार्रवाई न करने के कारण मीडिया के सवालों से बच रहे है, वहीं दूसरी तरफ कौशाम्बी के डीएम पूरे मामले की जांच एसडीएम से कराकर कड़ी कार्रवाई का भरोसा दे रहे हैं.
स्थानीय लोगों के मुताबिक सैनी थाने के थुलथुला गांव में रहने वाले मोती लाल की 8 महीने की बेटी बीमारी के कारण मौत के मुंह में चली गई. जिसके अंतिम संस्कार के लिए परिवार ने गांव के तालाब की जमीन पर गड्डा खोद कर दफनाने की प्रक्रिया शुरू की. अभी कब्र खोद कर लोग शव लेकर पहुंचे ही थे कि पास के ही गांव के कुछ सवर्णों ने तालाब की जमीन को अपना बता कर मोती लाल को शव दफनाने से मना कर दिया. इतना ही नहीं जातिवादियों ने दलित परिवार के विरोध करने पर उनके साथ मार-पीट की और पथराव कर उन्हें वहां से भगा दिया.
शव का अंतिम संस्कार न कर पाने से नाराज़ मोती ने गांव के लोगों से अपनी बात बताई. जिसके बाद सैंकड़ों की संख्या में पहुंचे दलितों ने सैनी के देवीगंज रोड को जाम कर विरोध प्रदर्शन किया. घटना की जानकारी लोगों से मिलने के बाद भारी पुलिस बल मौके पर पंहुचा. कई घंटे की जद्दोजहद के बाद पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने तालाब की ज़मीन को सरकारी भूमि बताते हुए शव का अंतिम संस्कार कराया. जिसके बाद पूरा मामला शांत हुआ.
इस पूरे मामले पर सैनी थाना पुलिस ने जातिवादियों पर कोई कार्रवाई नहीं की है. कार्रवाई के बाबत तहरीर न मिलने का हवाला देकर पुलिस अधिकारी मीडिया के सवालों से बच रहे हैं. फिलहाल कौशाम्बी के डीएम ने इस पूरे मामले की जांच एसडीएम सिराथू को सौंपी है. कौशाम्बी के डीएम मनीष कुमार वर्मा का कहना है कि जांच रिपोर्ट आने के बाद ही ठीक-ठीक कहना उचित होगा और रिपोर्ट के बाद ही ठोस कार्रवाई की जाएगी. जिससे भविष्य में इस तरह की घटना दोहराई न जा सके.
संपादित-रमेश कुमार

दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।
