Tuesday, July 1, 2025
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दलित डॉक्टर से मंगवाते थे चाय, करवाते थे चौकीदारी, आत्महत्या की कोशिश

पीड़ित डॉक्टर मरिराज

अहमदाबाद। किसी भी युवा के लिए डॉक्टर बन जाना, उसके सपने के साकार होने जैसा होता है. कोई भी युवा ऐसे ही अचानक डाक्टर नहीं बन जाता. वह दिन-रात पढ़ता है. प्रतियोगी परीक्षा में बैठता है, उसे पास करता है, तब जाकर डॉक्टर बनता है. लेकिन क्या हो जब डॉक्टर बन जाने के बावजूद उसे उसका काम न करने दिया जाए. उसे चाय लाने को कहा जाए, ऑपरेशन थियेटर के बाहर वॉचमैन की तरह खड़ा कर दिया जाए.

मामला देश के प्रधानमंत्री मोदी और देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के राज्य गुजरात का है. गुजरात के अहमदाबाद के बीजे मेडिकल कॉलेज के पोस्टग्रेजुएट मेडिकल छात्र डॉ. मरिराज ने अपने साथ हो रहे बर्ताव से दुखी होकर 5 जनवरी को आत्महत्या करने की कोशिश की. तमिलनाडु के तिरुनेलवेली के रहने वाले मरिराज ने खुद के साथ जातिगत भेदभाव होने का आरोप लगाया है. मरिराज का कहना है-
‘वे लोग मुझसे चाय सर्व करवाते हैं. मुझे सर्जरी नहीं करने दी जाती. वे लोग मुझे रोज ही टॉर्चर करते हैं. वे लोग मुझे वार्ड से बाहर कर देते हैं. आपरेशन थियेटर के बाहर वॉचमैन की तरह खड़ा रखते हैं. जिस दिन से मैं यहां आया, उसी दिन से मुझे जाति संबंधी भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है. वे लोग मेरी डिग्री जांचते रहते हैं, उन्हें लगता है कि मेरी डिग्री फेक है. मुझे गुजराती में भला-बुरा कहा जाता है. हर किसी के सामने मेरी बेइज्जती की जाती है.”

इस बारे में मरिराज ने विभाग के एचओडी को भी सूचना दी, लेकिन स्थिति जस की तस बनी रही. उसकी मां इंदिरा ने पिछले साल सितंबर में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के राष्ट्रीय आयोग (एनसीएससी) में इस बात की शिकायत भी की थी, बावजूद इसके मरिराज के साथ भेदभाव बंद नहीं हुआ. इससे परेशान मरिराज ने 5 जनवरी को नींद की गोलियां खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की.

हालांकि मरिराज बच गया और अब खतरे से बाहर है. उसने एक वीडियो जारी कर पूरी आपबीती सुनाई है. हालांकि अब मामला बढ़ने के बाद कॉलेज प्रशासन पूरे मामले से पल्ला झाड़ रहा है. लेकिन मरिराज का वीडियो वायरल होने के बाद विजय रूपाणी सरकार के सामाजिक न्याय विभाग के मंत्री ईश्वर पटेल ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं. हालांकि इस घटना ने समाज के एलीट क्लास के भीतर के जातिवाद को एक बार फिर उजागर कर दिया है. सवाल यह है कि क्या सिर्फ दलित होने की वजह से एक मेडिकल कॉलेज को अपने छात्र के साथ ऐसा भेदभाव करना चाहिए था.

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