कनाडा से लौटने से पहले की शाम को मैं रो पड़ा था। दरअसल दूसरे दिन सुबह मेरी फ्लाइट थी और मेरी विदाई के लिये तमाम साथी इकट्ठा हुए थे। सभी बारी-बारी से मेरे बारे में अपने अनुभव बता रहे थे। फिर मेरी बारी आई, और मेरा गला रुंध गया। मैं रोने लगा। मेरे लिये कुछ भी कह पाना मुश्किल हो रहा था। फिर मेरे साथ बाकियों की आँखें भी गीली हो गई।
जब चेतना एसोसिएशन, कनाडा के जय बिरदी सर से कई दौर की बातचीत के बाद 21-26 अप्रैल 2023, तक चलने वाले Dr. Ambedkar International Symposium and Emancipation and Equality Day के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कनाडा जाने का कार्यक्रम तय हुआ था तो मुझे अंदाज़ा नहीं था कि #Jai_Birdi जी और सहयोगी संस्था #AICS के #Param_Kainth जी मेरे लिये 20 दिन लंबा कार्यक्रम बना रहे हैं। जब उन्होंने मुझे फ्लाइट का टिकट भेजा तो मैं भी परेशान था कि इतने दिन करूँगा क्या? क्योंकि देश से बाहर जाकर अकेले घूमना भी मुश्किल होता है, ख़ासकर वहाँ; जहां का एक डॉलर हमारा 63₹ हो।
मैं प्रोग्राम के दो दिन पहले पहुँच गया था, ताकि जेटलैक (लंबे हवाई सफ़र के कारण होने वाली परेशानी) से उबर कर रिलैक्स हो जाऊँ। इस कारण मैं जय बिरदी जी और परम कैन्थ जी के साथ आख़िरी की तैयारियों में शामिल हो गया। और 21 अप्रैल, 2023 को कार्यक्रम के पहले दिन तक मैं आयोजक मंडल का हिस्सा बन चुका था। लगने लगा कि मैं कार्यक्रम में शामिल होने नहीं आया, बल्कि ये कार्यक्रम मेरा ही है। इसके बाद तो 21-26 अप्रैल तक एक के बाद एक शानदार कार्यक्रम हुए।
शुरुआत बुद्धिज्म पर चर्चा के साथ हुई। विषय था- Contemporary Buddhism and Emancipation. फिर ज्यूडिशियल सिस्टम, Caste in academic settings in Canada and other jurisdictions, Caste and Entrepreneurship, वंचित समूहों की महिलाओं और युवाओं के सशक्तिकरण जैसे अहम विषयों पर भी शानदार चर्चा हुई। पैनल में शामिल हर वक्ता शानदार थे और अपने विषय पर तैयारियों के साथ अपना पक्ष रख रहे थे। अमेरिका के सुपीरियर कोर्ट की #Judge_Neetu_Badhan और अलबर्टा की MLA Leela_Aheer और भारत से गए राजरतन अंबेडकर जी ने तो शानदार बोला। और इन तमाम दिग्गजों को कार्यक्रम के संयोजक संगठनों #AICS और #Chetna_Association_Canada जिस तरह एक मंच पर लाए, वो सराहनीय था।
एक और बात जो बताने वाली है वो है चेतना एसोसिएशन के जय बिरदी जी और उनके टीम की दूरदृष्टि और सोच। छह दिनों के इस इंटरनेशनल सिंपोज़ियम के लिए British_Columbia State के बड़े विश्वविद्यालयों को चुना गया था। शुरुआती तीन दिनों कार्यक्रम University of British Columbia (UBC) में हुआ, तो बाद के तीन दिन का सेमिनार Simon Fraser University, Burnaby, University of Fraser Valley, Abbotsford और University of Victoria में हुआ। सुखद यह भी रहा कि इन तमाम कार्यक्रम में अम्बेडकरी समाज के युवाओं के साथ-साथ एशियाई और कनाडा मूल के Student भी शामिल रहे।
23 April को अंबेडकर जयंती के कार्यक्रम में अपने परिवार के साथ शामिल लगभग 500 अम्बेडकरवादियों के जुटान से साफ़ जो हो गया कि कनाडा के वैंकूवर क्षेत्र में बाबासाहेब का आंदोलन मज़बूत हाथों में है। मुझे इस कार्यक्रम से भविष्य में बेहतर उम्मीद दिखती है। मैंने अपनी इस यात्रा में 30 से ज्यादा वीडियो स्टोरी की, जिसने मुझे कनाडा में अंबेडकरी आंदोलन को समझने में मदद की।
इस बीच एक दिन के लिए 29 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अमेरिका के सियाटल शहर जाना भी हुआ। सियाटल और वैंकुअर के बीच महज 4 घंटे की दूरी है। कार्यक्रम से इतर मुझे ब्रिटिश कोलंबिया स्टेट की वादियाँ और यहाँ के लोगों से प्यार हो गया है। यह इतना खूबसूरत है कि आपको मनाली, शिमला, रोहतांग और कश्मीर इसी जगह मिल जाते हैं। यहाँ की वादियाँ दुनिया की सबसे खूबसूरत वादियों में है। उसी तरह से मुझे यहाँ बेहतरीन लोग मिले। उनका जिक्र किये बिना यह रिपोर्ट पूरी नहीं होगी। जय बिरदी जी और उनकी पत्नी निर्मला आंटी ने जिस तरह 20 दिनों तक मुझे अपने परिवार के सदस्य की तरह साथ रखा और प्यार एवं अपनापन दिया, वो अपनापन भारत लौटने के बाद भी मेरे साथ है। परम कैन्थ जी और हरमेश जी से बड़े भाई जैसा प्यार मिला। सुरजीत बैन्स और मनजीत बैन्स जी ने हमेशा घर जैसा अहसास कराया। मनजीत कैन्थ, गुरप्रीत और सीमा जी जैसे दोस्त मिले। मनजीत कैन्थ और उनके भाईयों की मंडली के साथ डाउन टाउन इलाके में देर रात तक घूमना यादगार रहेगा।
बरजिंदर जी और सियाटल के चैतन्य जी ने बिना शोर किये जिस तरह दलित दस्तक की मदद को हाथ बढ़ाया, उसके लिए शुक्रिया शब्द कम है। इसी तरह अलबर्टा स्टेट में हरजिंदर मल जी और चंचल मल जी और सियाटल में चरणजीत जी और उनकी पत्नी निर्मला जी से मिला स्नेह याद रहेगा। आप सभी मेरी ज़िंदगी की एक ख़ास वक़्त का हिस्सा बने, इसके लिए आप सबका धन्यवाद।
हमारी जिंदगी में कई मोड़ और पड़ाव आते हैं। कनाडा की यह यात्रा मेरे लिए एक सुखद मोड़ और नया पड़ाव लेकर आया है। वहां मैंने एक परिवार बनाया है। मैं वहां के लोगों के परिवार में शामिल हो गया हूं। मुझे आप सभी से प्यार हो गया है। आपलोग बहुत दिलदार हैं। आपने खूब तोहफे दिये। उन्हें संभाल कर रखूंगा। यह यात्रा मेरे जीवन में एक सुखद याद बनकर रहेगी। आखिर में एक शख्स का नाम लिखकर और उनसे एक बात कह कर खत्म करना चाहूंगा। जय बिरदी सर- थैंक्यू। लव यू। खूब सारा आदर। जय भीम।
अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-अंबेडकरवादी पत्रकारिता के प्रमुख चेहरा हैं। जब हिन्दी पट्टी में अंबेडकरवादी मूल्यों की पत्रकारिता दम तोड़ने लगी थी, अशोक ने 2012 में मासिक पत्रिका ‘दलित दस्तक’ शुरू कर सामाजिक न्याय की पत्रकारिता को नई धार दी। उनके काम को देखते हुए हार्वर्ड युनिवर्सिटी ने साल 2020 में उन्हें हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया। जहां उन्होंने Caste and Media विषय पर अपनी बात रखी। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास की पत्रकारिता को लेकर DW (Germany) सहित The Asahi Shimbun (Japan), The Mainichi Newspapers (Japan), The Week और Hindustan Times आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
IIMC दिल्ली से 2006 में पत्रकारिता करने के बाद अशोक दास ने अपनी पत्रकारिता शुरू की। वह लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में रहे। 2010-2015 तक उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
‘दलित दस्तक’ एक मासिक पत्रिका के साथ वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल एवं प्रकाशन (दास पब्लिकेशन) है। उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
Ashok Das (Ashok Kumar) is a prominent face of Dalit-Ambedkarite journalism. When journalism based on Ambedkarite values was beginning to die down in the Hindi belt, Ashok gave a new edge to social justice journalism by starting ‘Dalit Dastak’ in 2012. Harvard University invited him as a speaker at the Harvard India Conference in the year 2020.Where he spoke on the topic of Caste and Media. India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of 50 Dalits, Remaking India in april 2021 issue. Features regarding Ashok Das’s journalism have been published in media organizations like DW (Germany), The Asahi Shimbun (Japan), The Mainichi Newspapers (Japan), The Week and Hindustan Times etc.
Ashok Das started his journalism career after doing journalism from IIMC Delhi in 2006. He worked in prestigious media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4Media and Deshonnati. From 2010-2015 he covered various ministries and the Indian Parliament. He has been awarded the Prabhash Joshi Journalism Award. On January 31, 2020, on the completion of 100 years of the first paper ‘Mooknayak’ published by Dr. Ambedkar, Ashok Das and Dalit Dastak organized a grand event in Delhi where Dr. Ambedkar was remembered as a journalist. This gave a new edge to Ambedkarite journalism in India.
Dear Ashok Das,
Jai Bheem!
You really did a wonderful work by visiting Canada. You shared almost all the stories with me covered by you while staying in Canada. I am really thankful to you for keeping me updated about your journey to Canada.
Ashok Ji, it was wonderful having you as an active member of the symposium and the equality day/Dr. Ambedkar Jayanti team. Not only the coverage your provided, but, also how you cooperated and brought people together was remarkable and much appreciated. Jai Bhim.
Bahut bahut badhaai Ashok ji
I am proud of your work and a lot of blessings you jai bheem
Dear Ashok Das,
Jai Bheem!
You really did a wonderful work by visiting Canada. You shared almost all the stories with me covered by you while staying in Canada. I am really thankful to you for keeping me updated about your journey to Canada.
Ashok Ji, it was wonderful having you as an active member of the symposium and the equality day/Dr. Ambedkar Jayanti team. Not only the coverage your provided, but, also how you cooperated and brought people together was remarkable and much appreciated. Jai Bhim.
With gratitude,