बांदा। पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया, लेकिन यह क्या हमारे समाज में एक बच्चे को पढ़ने से रोका जा रहा है यानि इंडिया को बढ़ने से रोका जा रहा है. यूपी के बांदा में एक ऐसा ही मामला सामने आया है. जहां एक अध्यापक एक दलित बच्चे का दाखिला सिर्फ इसलिए नहीं ले रहा है क्योंकि बच्चा दलित समाज से है.
दरअसल, बांदा के नरैनी में दलित महिला अपने बेटे का स्कूल में दाखिला कराने के लिए पिछले सात महीने से चक्कर लगा रही है. दलित महिला जिस स्कूल में रसोइए का काम कर चुकी है, उसी स्कूल का प्रधानाध्यापक स्कूल में बच्चे का नाम लिखने को तैयार नहीं है.
नरैनी के बरुवा कालिंजर की रहने वाली दलित बुइया देवी ने सोमवार (6 नवंबर) को जिलाधिकारी को अर्जी देकर बच्चे के दाखिले की गुहार लगाई है. इसमें कहा कि गांव के प्राथमिक स्कूल में प्रधानाध्यापक बच्चे का एडमिशन नहीं कर रहे हैं. अप्रैल से वह बेसिक शिक्षा विभाग में चक्कर लगा रही है. निजी स्कूलों में पढ़ाने की उसकी हैसियत नहीं है.
प्रधानाध्यापक का कहना है कि अपने स्कूल में वे दलितों का दाखिला नहीं लेते. बुइया देवी ने खंड शिक्षा अधिकारी और एसडीएम को भी अर्जी दी थी. यहां तक कि विधायक के कहने पर भी प्रधानाध्यापक ने दलित बच्चे को दाखिला नहीं दिया.
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