बहनजी ड्राइवर के कहने पर पूरी पार्टी चला रही हैं, जबकि उस ड्राइवर को हमारे और बहनजी के मिशन से कोई मतलब नहीं है. उनको रास्ते पर लाने के लिए इस्तीफा दिया है. शायद बसपा परिवार के छोटे सदस्य की बातें समझ में आएंगी तो पार्टी बच जाएगी. बता दें, बहनजी ने सतीशचंद्र मिश्रा के भरोसे पूरी पार्टी सौंप दी है. हमारा इस्तीफा बहन जी को अलर्ट करने के लिए है.
कभी-कभी ड्राइवर की बात माननी पड़ती है, लेकिन बहनजी अब उस ड्राइवर के ही कहने पर चलने लगी हैं. ड्राइवर शॉर्ट कट रास्ता दिखाता तो बहनजी उधर ही चल देती हैं. ऐसे रास्ते और ऐसे लोगों से बच निकलने की जरूरत है. हां, कभी-कभी रास्ता दिखाने वालों पर ध्यान देने की आवश्यकता है. बहनजी को ये भी सोचना चाहिए कि रास्ता कौन सा है और कौन रास्ता दिखा रहा है.
हमारा इस्तीफा किसी खास मकसद या लालच से नहीं है, वरना विधानसभा चुनावों के पहले करते. इस वक्त करने का मकसद बहनजी को ये बताना है कि अब भी वक्त है हम 2019 जीत सकते हैं. मैं बसपा परिवार का अपने को छोटा बच्चा मानता हूं. हो सकता है कि मेरे इस्तीफे से बहन जी की आंखे खुल जाएं. बड़े जिम्मेदारों से सवाल पूछना चाहिए कि कमी कहां रही और क्या समस्या हुई कि लोग छोड़कर जा रहे हैं.
बहनजी के यहां 2 लोग हैं जो हम जैसे छोटे कार्यकर्ताओं को उनसे मिलने ही नहीं देते हैं. उन्हीं के लोगों ने पूरे बंगले में बहनजी के आस-पास पूरी तरह से घेरा बना लिया है. ये दो-तीन लोग पूरी तरह से मायावती को भ्रमित कर रहे हैं. वो किसी दलित-पिछड़े व्यक्ति को राजनीति में नहीं लाना चाहते हैं.
बहनजी के यहां छोटे लोगों को टारगेट किया जा रहा है. हमें बहनजी से मिलने के लिए हफ्तों का समय लगता है, उसपर भी कई बार मिल नहीं पाते. हो सकता है घर के छोटे बर्तन की आवाज से बहन जी हमारी तरफ भी ध्यान देंगी. शायद इससे उन्हें याद आएगा कि हमारा मिशन क्या था और किसके कहने पर चल रहे हैं. पेड़ पर जब ज्यादा बगुले बैठने लगते हैं, तो बाग का माली पूड़ों की छंटाई करता है, या फिर बगुलों का हटाता है. अब बहनजी को तय करना है कि बाग की छंटाई करनी है या बगुलों को हटाना है, क्योंकि ये बगुले बस मलाई चाटते हैं, जमीन पर काम हम करते हैं. फिलहाल बसपा में बगुलों की मौज है.
– गंगाराम अम्बेडकर पिछले काफी सालों से बसपा से जुड़े हुए हैं. बसपा प्रमुख मायावती के ओएसडी रह चुके हैं.

दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।
