
पटना। बिहार के दरभंगा जिला की पहचान पोखर (तालाब) व मछली से होती है लेकिन मिथिला अब अपनी पहचान खोता दिख रहा है. हालांकि सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि सरकार ने इनको बचाने के लिए करीब पांच करोड़ रुपए खर्च किए लेकिन मौजूदा तस्वीर तालाबों की बदहाली बयां कर रही है. मछलियां पानी में मरने को विवश हैं.
दरभंगा जिला के जाने माने रंगकर्मी व फिल्मकार प्रकाश बंधु बताते हैं कि पग-पग पोखर,माछ-मखान जो मिथिला की पहचान हुआ करता था. जहाँ तालाब जीवन का श्रोत हुआ करता था, आज उन्ही तालाबों का पानी पूरी तरह दूषित हो चुका है जिसके कारण मछलियाँ मर रही हैं. ये परिस्थिति कमोवेश मिथिला के तमाम पोखरों की है. इसे मिथिला का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा की यहाँ के लोग अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ भी संरक्षित नहीं रखना चाहते. अगर हम आज अपने तालाबों को नहीं बचा पाएं तो आने वाले 4-5 वर्षों में दरभंगा को जबरदस्त जल संकट का सामना करना पड़ेगा और इसके ज़िम्मेवार यहाँ के निवासी ही होंगे.
आरटीआई का खुलासा
यह जानकर हैरानी होगी कि बिहार सरकार ने दरभंगा के तीन बड़े तालाब दिग्घी, हराही व गंगा सागर के विकास के लिए 474.55 लाख रुपए आवंटित किए थे. लेकिन इन पैसों का खर्च कहां किया गया है इसको पता लगाना मुश्किल है. स्थानीय लोग बताते हैं कि पोखरों की दुर्दशा ऐसी है कि लोगों को नाक बंदकर आना जाना पड़ता है. पोखरों में कचरा भरा पड़ा है. आजतक किसी प्रकार की दवाई आदि का छिड़काव नहीं किया गया और ना ही कोई अधिकारी काम करते दिखा.
विलुप्त हो रहे तालाब
इंडिया वाटर पोर्टल की मानें तो पटना से 157 किलोमीटर दूर दरभंगा शहर में महज 25 वर्ष पहले लगभग 213 तालाब थे जो आज घट कर लगभग 84 तालाब रह गए हैं. बिहार सरकार के आँकड़ों के मुताबिक पूरे राज्य में लगभग 67 हजार से अधिक निजी तालाब महज बीस साल के समय में विलुप्त हो गए. सरकारी तालाबों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. उनके चारों तरफ घर बन गए हैं और अक्सर नगर पालिका या नगर निगम के लोग उसमें कचरा डम्प कराते रहतें हैं. दरभंगा शहर का दिग्घी तालाब जो काफी बडा है लगातार इस तरह के अतिक्रमण का आये दिन शिकार हो रहा है. उसके साथ ही गंगा सागर, हराही और मिर्जा खां तालाब जैसे झीलनुमा बड़े तालाबों को भरे जाने की साजिश चलती रहती है.
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