Friday, May 2, 2025
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कचरा बीनने वाले के बेटे का बड़ा कारनामा, जानें क्यों देशभर में है चर्चा

काबिलियत किस तरह गरीबी को पछाड़ कर सफलता हासिल करती है। इसकी जीवंत मिसाल हैं मध्यप्रदेश के देवास जिले के आशाराम चौधरी। आशाराम चौधरी एक कचरा बीनने वाले कामगार के बेटे हैं। और उन्होंने भयंकर गरीबी से जूझते हुए अपने पहले ही प्रयास में एम्स की परीक्षा पास की है। इस परीक्षा में उनकी ओबीसी वर्ग में 141वीं रैंक आई थी। अब उनका चयन जोधपुर के एम्स में हो गया है। यहां वह एमबीबीएस की पढ़ाई करेंगे।

आसाराम की सफलता की कहानी सुनने के पहले उनके संघर्ष को जानने की कोशिश करते हैं। देवास जिले के विजयागंज मंडी गांव में आशाराम के पिता की घास-फूस की एक झोपड़ी है, जिसमें न तो शौचालय है और न ही बिजली का कनेक्शन। उनकी मां ममता बाई गृहिणी हैं। छोटा भाई सीताराम नवोदय विद्यालय में 12 वीं की पढ़ाई कर रहा है। और उनकी बहन नर्मदा भी नौवीं कक्षा में पढ़ रही है।

घर में कमाई का श्रोत सिर्फ आशाराम के पिता है। ऐसे में गरीबी के इस दबाव का सामना करते हुए आशाराम की सफलता कई लोगों के लिए प्रेरणा का केंद्र बन गई है। उन्होंने अपनी सफलता पर खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए एम्स में चयनित होने पर मैं इतना खुश हूं कि मैं अपनी खुशी को शब्दों में प्रकट नहीं कर सकता हूं। मेरा अगला सपना है कि मैं न्यूरोसर्जन बनूं।’

4/ 6 आशाराम ने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा, ‘मेरी इच्छा है कि एमबीबीएस के बाद मैं न्यूरोलॉजी में मास्टर ऑफ सर्जरी करूं।’ आशाराम ने कहा, ‘मैं पढ़ाई करने के लिए विदेश नहीं जाऊंगा और न ही वहां जाकर बसूंगा। मैं अपनी पढ़ाई खत्म होने के बाद अपने गांव आकर अपना पूरा जीवन व्यतीत करूंगा।’ उनका कहना है, ‘अपनी पढ़ाई खत्म होने के बाद मैं देवास जिले के अपने गांव विजयागंज मंडी वापस आऊंगा और वहां एक अस्पताल खोलूंगा। ताकि वहां कोई भी व्यक्ति स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित न रहे।’  आशाराम ने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा, ‘मेरी इच्छा है कि एमबीबीएस के बाद मैं न्यूरोलॉजी में मास्टर ऑफ सर्जरी करूं।’ आशाराम ने कहा, ‘मैं पढ़ाई करने के लिए विदेश नहीं जाऊंगा और न ही वहां जाकर बसूंगा। मैं अपनी पढ़ाई खत्म होने के बाद अपने गांव आकर अपना पूरा जीवन व्यतीत करूंगा।’ उनका कहना है, ‘अपनी पढ़ाई खत्म होने के बाद मैं देवास जिले के अपने गांव विजयागंज मंडी वापस आऊंगा और वहां एक अस्पताल खोलूंगा। ताकि वहां कोई भी व्यक्ति स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित न रहे।’

आशाराम ने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा, ‘मेरी इच्छा है कि एमबीबीएस के बाद मैं न्यूरोलॉजी में मास्टर ऑफ सर्जरी करूं।’ आशाराम ने कहा, ‘मैं पढ़ाई करने के लिए विदेश नहीं जाऊंगा और न ही वहां जाकर बसूंगा। मैं अपनी पढ़ाई खत्म होने के बाद अपने गांव आकर अपना पूरा जीवन व्यतीत करूंगा।’ उनका कहना है, ‘अपनी पढ़ाई खत्म होने के बाद मैं देवास जिले के अपने गांव विजयागंज मंडी वापस आऊंगा और वहां एक अस्पताल खोलूंगा। ताकि वहां कोई भी व्यक्ति स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित न रहे।’

आशाराम ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव के एक सरकारी स्कूल में हासिल की है। इसके आगे की पढाई उन्होंने देवास जिले के एक स्कूल से की। गरीबी से जूझने के बावजूद एम्स की परीक्षा पास करने वाले आशाराम ने अपने गरीबी के दिनों से जुड़ी भयावह यादें साझा की। उन्होंने कहा, ‘मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं है। मेरे पिताजी (रणजीत चौधरी) ने पन्नियां, खाली बोतलें और कचरा बीनकर घर का खर्च चलाया और मुझे और मेरे भाई-बहन को पढ़ाया। लेकिन जब मेरा चयन एम्स के लिए हो गया, तो मैंने उनसे कहा कि अब कचरा बीनने का काम मत करो। हम उनके लिए एक छोटी सी सब्जी की दुकान खोलने की योजना बना रहे हैं।’

आशाराम की इस सफलता पर शासन और प्रशासन भी उनकी सहायता कर रहा है। आशाराम का कहना है कि जोधपुर जाने के लिए टिकट का इंतजाम देवास के कलेक्टर ने किया है। उन्होंने एक अधिकारी भी भेजा है जो आशाराम को जोधपुर तक ले जाएगा। आशाराम ने उनका आभार जताया है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी आशाराम को बधाई दी है।

(साभार-न्यूज18)

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