पिछले 5 सालों में जिस तरह से बहुजन मीडिया ने ज़बरदस्त प्रगति की है वो वाकई प्रशंसनीय है. असल में ये समय की मांग भी थी क्यूंकि जिस तरह से मनुवादी ताकतों ने टीवी सैटलाइट मीडिया पर कब्ज़ा कर लिया है उससे पुरे अम्बेडकरवादी आन्दोलन के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गयीं हैं. जहाँ एक तरफ बहुजन मीडिया की पहुँच बढती जा रही है वहीं अभी भी इस बात को नकारा नहीं जा सकता की विमर्श और विचार को आज भी काफी हद तक टीवी मीडिया ही निर्धारित कर रहा है. लेकिन इस बात में दो राय नहीं की बहुजन मीडिया के सशक्त होने से समाज में नई जाग्रति आई है. टीवी मीडिया दो तरह से इस बहुजन आन्दोलन का नुक्सान करता था. एक तो वह जातीय उत्पीड़न और अत्याचार की ख़बरों को पूरी तरह दरकिनार करके उन्हें राष्ट्रीय प्रशन नहीं बनने देता था वहीँ दूसरी तरफ मनुवादी ताकतों को लाभ पहुंचाने के लिए सच को झूठ और झूठ को सच बना कर पेश करता था. बहुजन मीडिया के मोर्चा संभालने के बाद से इस समाज की निर्भरता टीवी न्यूज़ चैनल पर ख़त्म हो चुकी है. अत्याचार, उत्पीड़न के मामले इन यूट्यूब और फेसबुक चैनलों की वजह से आज दबाये नहीं जा सकते और ये मुद्दे सरकार के सामने चुनौती बनकर उभरते हैं. दूसरा, बहुजन मीडिया के निरंतर प्रयासों के चलते इन वर्गों को ये समझ आ गया की टीवी किस तरह से इस बहुजन आन्दोलन को पटरी से उतारने में रात दिन लगा रहता था. समाज ने एक स्वर से इस बात का संकप लिया की टीवी न्यूज़ चैनल को बहिष्कार करने से समाज इस षड्यंत्र से बच सकता है. और ऐसा इसलिए भी होना चाहिए क्यूंकि मनुवादी मीडिया ने भी इन समाज के कार्यक्रमों, इनके मुद्दो और बहुजन राजनैतिक दलों का काफी हद तक बहिष्कार कर रखा है.
बहुजन मीडिया ने अपने कंधो पर बड़ी ज़िम्मेदारी ले रखी है. हालाकि अभी भी बहुजन मीडिया अपने शैशव काल में है और अभी असल ताकत का प्रदर्शन करना बाकी है. इस बात को नकारा नहीं जा सकता अभी भी हमारा बहुजन समाज का एक बड़ा वर्ग आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है और हर हाथ में अभी समार्टफ़ोन नहीं आया है. इन्टरनेट की उपलब्धता दूर दराज़ के इलाकों में उतनी सरल नहीं है. यूट्यूब, फेसबुक और ट्विटर के बारे में जानकारी का भी अभाव है. फिर भी इन सब चुनौतियों के बावजूद समाज के जागरूक और जुझारू युवाओं ने केवल अपने दम पर ये बीड़ा उठाया हुआ है. एक चैनल के संपादक के रूप में मैंआपको ये बता सकता हूँ की बहुजन मीडिया के सामने ज़बरदस्त आर्थिक चुनौतियां रहती है क्यूंकि जिनसे लोहा लेना है वो अरबो रूपये के साजोसमान और स्टूडियों में बैठकर काम करते हैं. समाज इस बात को और बहुजन मीडिया की अह्मियात को धीरे धीरे समझ रहा है.
आने वाला समय टीवी का नहीं, बल्कि स्मार्ट फ़ोन का है. अभी जैसे जैसे समय बीतता जायेगा और स्मार्ट फ़ोन हर हाथ की अनिवार्यता बनता जायेगा, इन्टरनेट और बेहतर होता जायेगा और जिस दिन 5जी अपनी असल स्पीड के साथ देश में शुरू हो जायेगा उस दिन टीवी मीडिया को पूरी टक्कर देगा बहुजन मीडिया. तब तक संगठित रहिये, शिक्षित बनिए और संघर्ष करिए. बहुजन मीडिया को समझिये और प्रत्येक बहुजन को समझाइये.
जय भीम जय भारत
वैभव कुमार, मुख्य संपादक
दलित न्यूज़ नेटवर्क
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