लखनऊ। बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर युनिवर्सिटी, लखनऊ (BBAU) की एक पिछड़े वर्ग की छात्रा ने कुलपति से इतिहास विभाग के दो शिक्षकों पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है. शिकायत करने वाली छात्रा कुमकुम लता एम.ए इतिहास के दूसरे सेमेस्टर की छात्रा हैं. छात्रा ने इतिहास विभाग के ही असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रेनू पांडे और डॉ. एस.एस. राय (सिद्धार्थ शंकर राय) पर आरोप लगाया है. इसके बाद छात्रा ने 23 अप्रैल को बीबीएयू के कुलपति को आवेदन देकर इंसाफ की गुहार लगाई है.
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कुलपति के लिखे अपने आवेदन में छात्रा ने आरोप लगाया है कि पहले सेमेस्टर के परिणाम में उसके साथ जातीय भेदभाव किया गया है. छात्रा ने इतिहास विभाग के ही असि. प्रोफेसर डॉ. रेनू पांडे और डॉ. एस.एस राय पर भेदभाव के तहत कम नंबर देने का आरोप लगाया है. कुलपति को लिखे आवेदन में छात्रा ने पेपर DH-102, DH-103 और DH-104 में भेदभाव के तहत नंबर देने का आरोप लगाया है. साथ ही अपने रिजल्ट को फिर से जांच (Re Analysed) करने की मांग की है.
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दलित दस्तक से बातचीत करते हुए कुमकुम लता ने आरोपी शिक्षकों पर आरोप लगाया कि उन्हें शिक्षकों द्वारा कॉपी में कुछ और मार्क्स दिखाकर उनसे साइन करवा लिया, लेकिन जब कंप्यूटर के जरिए फाइनल मार्क्स सामने आया तो उसमें छात्रा के 8 नंबर कम थे. छात्रा का आरोप है कि उसे जो नंबर दिखाया गया उसके मुताबिक उन्हें 70 नंबर में 51 नंबर मिले थे, जिसे बाद में 42 नंबर कर दिया गया. छात्रा का कहना है कि वो हमेशा सिक्किम में रही हैं जहां उन्होंने इस तरह का कोई भेदभाव नहीं देखा है. अब ऐसा जातीय भेदभाव देखकर वह काफी आहत हैं. कुमकुम लता का कहना है कि ओबीसी वर्ग से होने के कारण न तो दलित स्टूडेंट उनकी मदद कर रहे हैं और जनरल स्टूडेंट का मदद करने का तो सवाल ही नहीं उठता.
इस बारे में दलित दस्तक ने इतिहास विभाग के ही असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रेनू पांडे और डॉ. एस.एस. राय (सिद्धार्थ शंकर राय) से बात करने की कोशिश की. डॉ. रेनू पांडे ने क्लास में होने की बात कह कर बात नहीं की. शिकायतकर्ता छात्रा को DH-103 और DH-104 पढ़ाने वाले डॉ. एस.एस. राय ने अपना पक्ष रखते हुए इस मामले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि ग्रेड ए या बी प्लस भी बड़ा ग्रेड है. जहां तक छात्रा का कॉपी दिखाकर साइन करवाने का आरोप है तो पहली चीज की कॉपी दिखाकर साइन नहीं करवाया जाता है. हम विद्यार्थियों को सिर्फ इसलिए कॉपी दिखाते हैं कि बच्चे सुधार कर सकें. नंबर कम कर देने की बात है तो हो सकता है कि उनको दूसरे का नंबर याद हो. उनका आरोप दुर्भाग्य पूर्ण है.
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