सम्राट अशोक के इस बौद्ध मंदिर की शानदार कहानी, राजेंद्र प्रसाद सिंह की जुबानी

बुद्ध ने दुनिया को अपने अहिंसा और करुणा के प्रकाश से आलोकित किया था। उनकी विचारधारा को सबसे अधिक महान सम्राट असोक ने फैलाया। आज भी विश्व के कई हिस्से में सम्राट असोक के कार्यों की निशानियां मौजूद हैं। भारत भर में इसके प्रमाण असोक स्तंभों के रूप में देखने को मिल जाता है। इसके अलावा अनेक मठ और बौद्ध विहार भी हैं, जिनका निर्माण असोक ने कराया था।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि सम्राट असोक के नाम पर भी एक बौद्ध मंदिर है जो कि असोक के महान कार्यों की निशानी है? जाहिर तौर पर यह जानकारी बहुत खास है और बहुजनों के लिए गौरवशाली है।

एक ऐसे ही निशानी की बात प्रसिद्ध बौद्ध धर्म विशेषज्ञ व भाषा वैज्ञानिक राजेंद्र प्रसाद सिंह ने साझा की है। उन्होंने चीन के झेजियांग प्रांत के निंग्बो में भारत के महान सम्राट असोक के मंदिर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी है। उनके अनुसार, यह खूबसूरत मंदिर ईसा की तीसरी सदी है।

राजेंद्र प्रसाद सिंह बताते हैं कि इस मंदिर पर सम्राट असोक का नाम चीन के सम्राट लियांग वुडी ( 502-549 ई. ) ने लिखवाया था। उनके मुताबिक, लियांग वुडी को चीन का ” सम्राट असोक ” कहा जाता है।

इसके पीछे की वजह बताते हुए राजेंद्र प्रसाद सिंह लिखते हैं कि ऐसा इसलिए कि लियांग वुडी ने सम्राट असोक के मार्ग को अपनाया था। सम्राट असोक की तरह ही लियांग वुडी ने चीन में बौद्ध मठ बनवाए, बौद्ध संघ में शामिल हुए और बुद्धिज्म पर व्याख्यान दिए।

यहां तक कि सम्राट असोक के मार्ग पर चलते हुए लियांग वुडी ने चीन में पशु – बलि रोक दिया, मृत्युदंड खत्म किए और “बोधिसत्व राजा” कहलाए। राजेंद्र प्रसाद सिंह के अनुसार,  भारत के इतिहास में सम्राट असोक पहले राजा हैं, जिनके मार्ग पर चलने के लिए दुनिया के अनेक राजा लालायित हुए, जिनमें एक नाम बर्मा के राजा धम्मचेती का भी है।

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