मोदी सरकार का नया बजट: विचित्र ‘चुनाव नीति’ और जनविरोधी ‘कबाड़ नीति’

साल 2021-2022 के लिए आम बजट एक फरवरी को पेश हो गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट पेश करने के बाद से ही इसकी व्याख्या की जा रही है। बीजेपी सरकार द्वारा घोषित बजट में साफ नजर आ रहा है कि सरकार को पूरे भारत के आम नागरिकों, किसानों, मजदूरों और महिलाओं की फिक्र नहीं है। ठीक से कहें तो यह एक यह एक ‘चुनावी बजट’ है। आने वाले चंद महीनों में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल सहित पुद्दुचेरी में चुनाव होने वाले हैं। इन्हीं राज्यों के लिए इस बजट में कई सारे लोक-लुभावन प्रावधान किये गए हैं।
इन प्रावधानों के जरिए इन राज्यों की जनता का मन मोहकर चुनाव जीतने की रणनीति बीजेपी सरकार के इस बजट में साफ नजर आ रही है। इन चुनावी राज्यों में बड़े पैमाने पर सड़क निर्माण या चाय बाग़ानों के श्रमिकों के कल्याण जैसी योजनाएं लाई जा रही हैं। अधिकांश आर्थिक एवं राजनीति विश्लेषक यह कह रहे हैं कि सिर्फ चुनावी राज्यों में निर्माण एवं कल्याण की योजनाओं की घोषणा करने का असल मकसद सिर्फ चुनाव जीतना है। इस प्रकार यह बजट आम जनता के फायदे के लिए नहीं बल्कि बीजेपी की चुनावी राजनीति के फायदे के लिए बनाया गया है।
इस बजट में चार पहिया वाहनों के लिए एक नई और विचित्र कबाड़ नीति भी लाई जा रही है। इस नीति के अनुसार निजी चार पहिया वाहन 20 साल तक और व्यावसायिक वाहन 15 साल तक ही इस्तेमाल किये जा सकेंगे और इस अवधि के बाद इन्हे कबाड़ में शामिल करना होगा। असल में यह फैसला भी आम जनता की जेब पर बोझ डालकर उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया है। नोटबंदी, जीएसटी एवं तालाबंदी के बाद अर्थव्यवस्था में जो मंदी आई है उसे औटोमोबाइल उद्योग को इस तरह के नकली सहारा देकर ठीक करने की कोशिश की जा रही है।

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