भुखमरी और कुपोषण के दौर में परमाणु युद्ध की सोच!

भूख के ग्लोबल सूचकांक के ताजा आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में हर तीन बच्चे में से एक बच्चे का विकास बाधित है. इस देश में अब भी आबादी के पंद्रह फीसद लोग कुपोषण के शिकार है. दुनिया के जिन 118 देशों में भुखमरी सबसे बड़ी समस्या है, उनमें भारत का स्थान 97वां है. दुनियाभर में जिन सैंतालीस देशों में भूख का लेवल अत्यंत गंभीर है, उनमें भारत शामिल है. इनमें हमारा जानी दुश्मन पाकिस्तान भी शामिल है. इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीच्युट ने ये आंकडें जारी किये हैं.

इस वक्त भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के लिए दुनियाभर की ताकतें जुगत लगा रही हैं. युद्ध और हथियारों के काराबर का सारा दांव इस संभावित परमाणु युद्ध पर लगे हैं तो पाकिस्तान में फौजी हुकूमत पर फौज का भारी दबाव है. वह युद्ध का मौका बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है. दूसरी ओर, भारतीय फौज भरातीय मजहबी सियासत के मुताबिक केंद्र सरकार की कमान में है जिसपर काबिज सत्ता के राजनीतिक समीकरण इसी युद्धोन्माद के राष्ट्रवाद से बनते हैं.

विकास का जो फर्जीवाड़ा है और अच्छे दिनों के जो ख्वाब है, उसकी हकीकत यह है कि खेती चौपट करके जल-जंगल-जमीन से किसानों को बेदखल किया जा रहा है. अंधाधुंध औद्योगीकीकरण हो रहा है. हकीकत यह है कि पिछले दस सालों में औद्योगिक उत्पादन दर इस वित्तीय वर्ष में सबसे कम हुई है. जो लगातार कम होती जा रही है. मसलन औद्योगिक उत्पादन के आकंड़ों में लगातार दूसरे महीने यानी अगस्त में भी गिरावट आई. अगस्त में ये आर्थिक उत्पादन -0.7 फीसदी घटा. जुलाई में ये गिरावट -2.5 फीसदी रही थी. गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में इसमें 6.3 फीसदी की तेजी देखने को मिली थी. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) आंकड़ों में बताया गया है कि औद्योगिक उत्पादन में गिरावट का मुख्य कारण कारखाना क्षेत्र के उत्पादन में 0.3 फीसदी की गिरावट है. इस क्षेत्र की पूरे आईआईपी इंडेक्स में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है.

किसानों और खेती की तबाही से अनाज की पैदावर कम से कम होती जा रही है और भूख का भूगोल लगातार सीमाओं के आरपार विस्तृत होता जा रहा है और हमारा ध्यान उस पर जा ही नहीं रहा है. हालत यह है कि भुखमरी से निपटने में हम चीन से तो पीछे हैं ही, बल्कि हमारे पड़ोसी देश नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और बांग्लादेश भी हमसे कहीं आगे हैं. दक्षिण एशिया में भारत और पाकिस्तान में भुखमरी और कुपोषण संकट सबसे भारी है, जहां कश्मीर को लेकर हमेशा युद्ध का माहौल है. नेपाल और श्रीलंका में लगातार राजनीतिक उथल पुथल है. म्यांमार में भी फौजी हुकूमत है, तो बांग्लादेश भी लहूलुहान है. वहां भी आतंकवाद ने जड़ें गहरा जमा ली है और लोकतंत्र के लिए लगातार लड़ाई जारी है.

इन समस्याओं के बावजूद हमसे कम विकसित इन देशों में औद्योगीकीकरण और शहरीकरण अंधाधुंध नहीं हैं. ना ही यहां व्यापक पैमाने पर किसानों की बेदखली हुई है. यहां भुखमरी और कुपोषण से बेहतर ढंग से निपटने की तैयारी है. दूसरी ओेर, हमारे यहां विकास का मतलब किसानों की बेदखली और प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट है. दुनिया का तापमान करीब दो डिग्री सेल्सियस बढ़ने को हैं और हरियाली आहिस्ते-आहिस्ते खत्म होती जा रही है. ग्लेशियर भी पिघलने लगे हैं. नदियां सूखने लगी हैं और जंगलों का सफाया हो रहा है. समुद्रतटों को भी हमने रेडियोएक्टिव बना दिया है. ऐसे में बचे-खुचे खेत कब तक उपजाऊ रहेंगे, कहना मुश्किल है.

जल संसाधन नहीं रहेंगे तो हम फिर खेती के लिए मानसून के भरोसे होंगे. हमारे आधुनिक महानगरीय सभ्यता ने भूगर्भीय जल का भी काम तमाम कर दिया है. हिमालय से अबाध जलधारा को हम बांधकर बिजली बना रहे हैं. लेकिन हिमालय से पानी आना बंद हो गया तो बिजली पानी का क्या होगा, हमने अभी सोचा नहीं है. खेती चौपट करके प्राकृतिक संसाधनों को तबाह करके अंधाधुंध जो शहरीकरण हो रहा है, उसे भी बहुत जल्द बिजली पानी से मोहताज होना होगा. अनाज और सब्जियों की मंहगाई आसमान छूने लगी हैं. जिनके पास पैसे हैं वे खरीद पा रहे हैं. बहुत जल्द ऐसे दिन भी आने वाले हैं जब जेब में पैसे होंगे लेकिन बाजार में ऩ अनाज मिलने वाला है और न सब्जियां मिलने वाली है. न पीने को पानी होगा और न कंप्यूटर, टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन चलाने के लिए बिजली होगी. दूसरी तरफ, औद्योगिक उत्पादन भी लगातार घट रहा है. ये हमारे सबसे अच्छे दिन हैं.

जिस कश्मीर को लेकर यह हंगामा कायम है, उसकी जनता की परवाह न तो पाकिस्तान के हुक्मरानों को है और न ही भारत के हुक्मरानों को. लगातार डेढ़ महीने से कश्मीर में युद्ध के हालात है. लगातार डेढ़ महीने से कश्मीर में नागरिक और मानवाधिकारों पर अंकुश है. हालात यहां तक है कि कश्मीर में बहुसंख्य मुसलमान आबादी को मुहर्रम की आजादी भी नसीब नहीं है. ऐसा पाक फौजी हुकूमत की हरकतों की वजह से हो रहा है. तो भारत की सरकार और भारत की जनता को कश्मीर की जनता की रोजमर्रा की तकलीफों की कोई परवाह नहीं है. इन्हीं युद्ध परिस्थितियों में कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में भारत पाक सीमाएं सीलबंद हैं. सीमावर्ती तमाम गांवों से किसान जनता को उनके घर बार, खेती बाड़ी छोड़कर शरणार्थी बनने को मजबूर किया जा रहा है. पंजाब में खेती सबसे समृद्ध है. हम अपने अनाज के भंडार को युद्ध की आग में झोंकने पर अमादा हैं.

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