नज़रियाः 10 साल पहले वाल्मीकि समुदाय के बारे में क्या कह गए थे मोदी?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अक्टूबर की सुबह ट्वीट किया, ”वाल्मीकि जयंती की शुभकामनाएं, एक महान संत और साहित्यिक व्यक्ति के उच्च आदर्श और कार्य कई पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती हैं.”
मोदी की इन शुभकामनाओं में महान संत, बड़े साहित्यिक, उच्च आदर्शों और कार्यों वाले व्यक्ति जैसे शब्द प्रयोग किए गए. ये सभी शब्द उस व्यक्ति के लिए लिखे गए, जिन्होंने दुनिया के एक महान ग्रंथ रामायण की रचना की.

लेकिन वे उन लोगों की भावनाओं को छूने में नाकाम रहे जो ख़ुद को वाल्मीकि का अनुयायी मानते हैं, जो सफाईकर्मी हैं, जो देश का सबसे ज़्यादा उपेक्षित समुदाय है, जो भारत की जाति व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर मौजूद है.

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वाल्मीकि समुदाय पर मोदी के विचार
वाल्मीकि समुदाय कई पीढ़ियों से छुआछूत का सामना कर रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने वाल्मीकि जयंती के अवसर पर एक शब्द भी वाल्मीकि समुदाय के लिए क्यों नहीं बोला?

साल 2007 की बात है. उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने प्रदेश के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मिलकर कर्मयोगी शिविरों में भाषण दिए थे. ‘कर्मयोगी’ नाम की एक किताब में इन भाषणों को प्रकाशित किया गया था.
इस किताब की पांच हज़ार प्रतियां छपवाई गई लेकिन उन्हें वितरित नहीं किया गया. इसका कारण था दिसंबर 2007 में गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव और राज्य में जारी आचार संहिता.
इस किताब को छपवाने के लिए गुजरात की एक बड़ी पीएसयू कंपनी गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन ने भी पैसा लगाया था. इस रंगीन किताब के 48वें और 49वें पन्ने पर कई खूबसूरत तस्वीरें थी.
इस किताब के मुताबिक, मोदी ने वाल्मीकि समुदाय के सदियों से चले आ रहे पेशे, जैसे दूसरों की गंदगी साफ करने को ‘आध्यात्मिक अनुभव’ जैसा बताया था.

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सफाईकर्मी का काम आध्यात्मिक संतुष्टि
किताब में मोदी ने लिखा था, ”मुझे नहीं लगता कि ये लोग सिर्फ़ अपना जीवनयापन करने के लिए यह काम करते हैं, अगर ऐसा होता तो शायद वे पीढ़ी दर पीढ़ी इसे जारी नहीं रखते.”

मोदी के हवाले से किताब में आगे लिखा गया, ”किसी एक मौके पर किसी न किसी को तो यह आभास हुआ होगा कि यह काम उन्हें (वाल्मीकि समाज) पूरे समाज और ईश्वर की खुशी के लिए करना है. उन्हें यह समझना होगा कि यह काम उन्हें ईश्वर ने दिया है और सफाई के इस काम को उन्हें अपनी आंतरिक आध्यात्मिक संतुष्टि के लिए सदियों तक जारी रखना होगा. इस बात पर विश्वास करना बहुत मुश्किल है कि उनके पूर्वजों के पास कोई दूसरा काम करने का विकल्प नहीं था.”

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24 नवंबर 2007 को ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के अहमदाबाद संस्करण में मेरा एक लेख छपा था, जिसका शीर्षक था, ‘जाति के आधार पर कर्मयोगी, वाल्मीकियों के लिए सफाई का काम अध्यात्मिक अनुभव’

गटर की सफाई आध्यात्मिक काम कैसे?

मोदी के भाषणों वाली यह किताब आज तक जारी नहीं हुई है. लेकिन नरेंद्र मोदी ने वाल्मीकि समुदाय के काम को आध्यात्मिक अनुभव बताकर हलचल जरूर पैदा कर दी थी. मोदी की इस परिभाषा की कई दलित चिंतकों ने आलोचना की थी.
जाने-माने दलित कवि नीरव पटेल ने इसे दलितों का उत्पीड़न जारी रखने के लिए एक बड़ी साज़िश का हिस्सा बताया था, उन्होंने बहुत कड़े शब्दों में पूछा था, ”मोदी जिन कामों को आध्यात्मिक संतुष्टि वाला बता रहे हैं, ये सभी काम कभी उच्च जातियों ने क्यों नहीं किए?”
उपन्यासकार और कार्यकर्ता जोसेफ मैक्वान ने मोदी के इन शब्दों को ब्राह्मणवादी सोच का आईना बताया था.

उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा था, ”गटर से गंदगी साफ करने को कोई आधात्यमिक काम कैसे बोल सकता है?”

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ख़ैर उस समय गुजरात में मेरे उस लेख पर किसी ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया, कांग्रेसी नेता चुनावों में व्यस्त थे और उनके पास मेरे लेख को देखने का समय नहीं था.
कुछ दिन बाद जिस अधिकारी ने मुझे ‘कर्मयोगी’ नामक वह किताब दी थी, उसने मुझसे कहा, ”आपने वह लेख लिखकर क्या गज़ब कर दिया है.”
मैंने उनसे पूछा कि ”ऐसा भी क्या गज़ब हो गया, क्योंकि गुजरात में तो किसी ने भी मेरे लेख पर ध्यान नहीं दिया. तब उस अधिकारी ने बताया कि मेरा वह लेख तमिलनाडु में अनुवाद करके प्रकाशित किया गया, जिसके बाद दलितों ने नरेंद्र मोदी के पुतले जलाए.”

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वह अधिकारी मुझसे उस किताब को वापस लेना चाहता था. मैंने ऐसा कर भी दिया. बाद में मुझे मालूम चला कि गुजरात के सूचना विभाग ने मोदी के निर्देश पर उस किताब के वितरण पर रोक लगा दी थी. वह किताब आज भी गुजरात सूचना विभाग के गोदाम में धूल खा रही है.
हालांकि उस अधिकारी को किताब लौटाने से पहले मैंने किताब के विवादित पाठ की फोटोकॉपी करवा ली थी जिसमें आध्यात्मिकता की बातें लिखी गई थीं.

राज्यसभा में मोदी को बताया दलित विरोधी
एक साल बाद किताब के उस विवादित पाठ की प्रति, कांग्रेस नेता प्रवीण राष्ट्रपाल के हाथ लग गई. दलित कार्यकर्ता से राजनेता बने प्रवीण ने मोदी को दलित विरोधी बताकर यह मुद्दा राज्यसभा में उठाया.

राज्य सभा में यह मुद्दा उठने के बाद कई कांग्रेसी नेताओं ने मुझसे उस किताब की प्रति के लिए संपर्क किया. पिछले साल तक भी कई कार्यकर्ता, राजनेता यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने भी मुझसे उस किताब की प्रति के लिए संपर्क किया. जिसे मैंने शालीनता से कहा कि मेरे पास वो किताब नहीं है.

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मैं आज तक समझ नहीं पाया कि आखिर मोदी ने क्या सोचकर वाल्मीकि समुदाय के काम को अध्यात्म से जोड़ा था? हालांकि मोदी उन्हें कर्मयोगी कहकर वाल्मीकि समुदाय के प्रति अपना प्रेम जताना चाह रहे थे. विशेष तौर पर सरकारी कर्मचारियों के प्रति.

कर्मयोग नामक उस किताब में मुख्यतौर पर सरकारी कर्मचारियों के काम करने संबंधी बातें लिखी गई थी, जिसमें यह समझाया गया था कि सरकारी कर्मचारियों को फल की चिंता किए बिना निष्ठापूर्वक अपना काम करना चाहिए जिससे उन्हें आध्यात्मिक शांति मिल सके.

राजीव शाह, वरिष्ठ पत्रकार, अहमदाबाद से

बीबीसी हिन्दी से साभार

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