डॉ. अम्‍बेडकर का जीवन दर्शन

जिन लोगों ने नवभारत की तकदीर लिखी, उन लोगों में डॉ. अम्‍बेडकर खास सख्‍शियत हैं. उन्‍होंने अपने कार्य से समाज, अर्थ और राजनीति ही नहीं बल्कि धर्म के क्षेत्र में भी अद्वितीय स्‍थापनाएं दी. आज बाबासाहेब डॉ. अम्‍बेडकर एक प्रमुख प्रेरक शक्ति हैं, जिनसे ऊर्जा लेकर लाखों लोगों के जीवन में क्रांति आई है और उनका जीवन सुखमय हो गया है. स्‍वतंत्रता, समानता और बंधुत्‍व (भाईचारा) को उनके आंदोलन का केन्‍द्रीय तत्‍व माना जाता है. यही वे तत्व हैं जिन्‍होंने फ्रांस में क्रांति को जन्‍म दिया था, कतिपय अमेरिका की क्रांति में भी यदि प्रमुख नहीं तो एक महत्‍वपूर्ण भूमिका इन तत्त्‍वों की रही थी. डॉ. अम्‍बेडकर अपने भाषणों और लेखों में फ्रांस की क्रांति का खूब उदाहरण देते थे. इसलिए यह मान लिया गया है कि ये तीन प्रेरक तत्‍व डॉ. अम्‍बेडकर ने फ्रांस की क्रांति से लिये हैं. लेकिन ऐसी सूचना को मान लेना गलत होगा. क्‍योंकि 3 अक्‍तूबर 1954 को बाबासाहेब ने आकाशवाणी दिल्‍ली से जारी अपने पांच मिनट्स के वक्‍तव्‍य में कहा था, ‘मेरा जीवन सम्‍बन्‍धी दर्शन तीन शब्‍दों में समाहित है- स्‍वतंत्रता, समानता और बंधुत्‍व (भाईचारा) लेकिन किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि मैंने अपने जीवन-दर्शन को फ्रांस की क्रांति से लिया है. मैंने वैसा नहीं किया है, इस बात को मैं बड़े यकीन के साथ कहता हूं. मेरे दर्शन की बुनियाद राजनीति में नहीं है, बल्कि धर्म में है. मैंने अपने आदर्श तथागत बुद्ध की शिक्षा से इस दर्शन को अपनाया है.”

बाबासाहेब डॉ. अम्‍बेडकर अपने जीवन दर्शन में स्‍वतंत्रता को कट्टरता के साथ नहीं अपनाते हैं, वे मानते हैं कि असीमित स्‍वतंत्रता समानता को नुकसान पहुंचाती है. इसलिए वे स्‍वतंत्रता का बेहद व्‍यावहारिक पक्ष ही मान्‍य करते हैं. समानता के मूल्‍य को भी उन्‍होंने कट्टरता से मुक्‍त करके स्‍वीकार किया है. जब हम सभी लोगों को एक समान समानता प्रदान करते हैं, तब हमारी आंखें खुली होनी चाहिए. अनेक अवसरों पर समानता स्‍वतंत्रता को भारी हानि पहुंचाती है. हमें देखना यह है कि एक पेड़ पर चढ़ने के लिए यदि बं‍दर, घोड़ा, हाथी, कच्‍छुआ आदि को समानता का अधिकार देते हुए प्रतियोगिता में शामिल किया जाता है तो यह वास्‍तविक समानता नहीं होगी.

स्‍वतंत्रता से समानता के अतिक्रमण के खतरे को वे समझते थे, इसलिए डॉ. अम्‍बेडकर इन्‍हें कानूनी रूप से स्‍वीकार करते थे. इतना होने पर भी उन्‍होंने नहीं माना कि स्‍वतंत्रता के द्वारा समानता के अतिक्रमण और समानता के द्वारा स्‍वतंत्रता के अतिक्रमण से कोई कानून बचाव कर पाएगा. इसलिए समाज को बंधुत्व ही बचा पाएगा, ऐसा उनका मानना था. बिना बंधुभाव के (भाईचारा) समाज अतिक्रमण के खतरों से मुक्‍त नहीं हो सकता. इसलिए उनके दर्शन में इन तीन मूल्‍यों को विशेष योगदान था.

इन तीन मूल्‍यों के अतिरिक्‍त डॉ. अम्‍बेडकर ने अपने जीवन पर तीन बातों को विशेष रूप से अपनाया था. अम्‍बेडकरवादियों को इन्‍हें जानना जरूरी है. ये तीन बातें बाबासाहेब ने 28 अक्‍तूबर 1954 को मुम्‍बई के पुरन्‍दरे स्‍टेडियम में कही थी जो 6 नवम्‍बर 1954 को साप्‍ताहिक ‘जनता’ में प्रकाशित हुई थी. ये तीन मूल्‍यवान चीजें हैं, पहली- शिक्षा, दूसरी- आत्‍मसम्‍मान और तीसरी- शील.

डॉ. अम्‍बेडकर ने कहा कि ‘ब्राह्मणों ने आज तक हम लोगों को पढ़ने नहीं दिया. धर्म के कानून हमारे रास्‍ते में पत्‍थर की तरह आड़े आ गए और हमें ज्ञान से, पढ़ने-लिखने से दूर रखा गया. हमारे लोग पत्‍थर को ही शिक्षा मानते थे. इसलिए हमारी धार्मिक मान्‍यताएं अपवित्र हुई है. बाबासाहेब को पढ़ने का इतना शौक था कि दिल्‍ली निवास पर उनकी निजी लाईब्रेरी में 20 हजार से अधिक पुस्‍तकें थी. जब वे दिल्‍ली में थे तब वे अक्‍सर ठाकूर एण्‍ड कंपनी से किताबें खरीदते थे, जिनके हजार रुपये के बिल बाबासाहेब की ओर रुके रहते थे. एक दो बार ऐसा भी हुआ कि पुस्‍तकों के उधार को वे चुकता नहीं कर पाए. लेकिन पुस्‍तकें लेने के लिए वे अपनी गाड़ी तक दुकान के सामने लगा देते थे. शिक्षा के प्रति उनके प्रेम को उनकी इस बात से भी जाना जा सकता है, वे कहते हैं- जिस प्रकार मनुष्‍य को जीने के लिए भोजन की जरूरत होती है, उसी प्रकार ज्ञान की भी जरूरत होती है. शिक्षा के बिना कोई भी आदमी कुछ नहीं कर सकता है.

डॉ. अम्‍बेडकर ने दूसरी महत्‍वपूर्ण चीज़ ‘आत्‍म-सम्‍मान को माना है. उनका आत्‍म-सम्‍मान, किसी के आगे हाथ फैलाने से रोकता है. लेकिन उनके आत्‍म-सम्‍मान के भाव में निजित्‍व नहीं है, उसमें गहरी सामाजिकता है. वे अपने समय में अर्थशास्‍त्र की उतनी ऊंची डिग्री लिये हुए थे. उतनी ऊंची डिग्री उस समय पूरे भारत में किसी के पास नहीं थी. जब वे भारत आये तो डॉ. परांजये ने एक‍ महाविद्यालय में अर्थशास्‍त्र का प्रोफेसर नियुक्‍त करना चाहा. डॉ. अम्‍बेडकर से तेरह लेक्‍चर देने के लिए कहा गया लेकिन उन्‍होंने केवल चार लेक्‍चर देना ही स्‍वीकार किया. ऐसा क्‍यों किया गया? ऐसा इसलिए किया गया कि वास्‍तव में वे नौकरी नहीं करना चाहते थे. वे अपने लोगों के लिए काम करना चाहते थे. असल कारण था कि आजीविका के लिए वे किसी पर निर्भर नहीं होना चाहते थे. इसलिए आत्‍म-सम्‍मान के साथ समाज के लिए काम के लिए उन्‍होंने नौकरी करनी पड़ी थी. बाबासाहेब कहते हैं- ””मैंने किसी के भी सामने हाथ नहीं फैलाया कि आप मुझे कोई पद दीजिए. हां, दूसरों के लिए कुछ किया होगा, लेकिन स्‍वयं के लिए मैंने एक अंगुल भर चिट्ठी भी लिखी हो तो कोई बताए.”” डॉ. अम्‍बेडकर को कई बार जज की नौकरी का ऑफर मिला. वे एक बार कौंसिलर बने, वे मंत्री भी रहे लेकिन अपने आत्‍म-सम्‍मान को छोड़ वे अवसरवादी नहीं बने. वे किसी भी रूप में दीनता के भाव को स्‍वीकार नहीं करते हैं. एक बार उन्‍होंने कहा- ””मेरा स्‍वाभिमान इतना गहरा है कि मैं ईश्‍वर को भी अपने से छोटा मानता हूं.””

तीसरी महत्‍वपूर्ण चीज डॉ. अम्‍बेडकर के जीवन में ”शील” था. बाबासाहेब ने किसी के साथ दगाबाजी नहीं की और न ही कभी धोखा दिया. वे अपने विचार और आचरण में ईमानदार बने रहे. वे कई बार यूरोप गए, यूरोप में शराब और सिगरेट का आम प्रचलन है, लेकिन उन्‍होंने कभी भी इन निरर्थक चीज़ों का सेवन नहीं किया. डॉ. अम्‍बेडकर का जीवन दर्शन तीन मूल्‍य स्‍वतंत्रता, समानता और सहभाव तथा तीन बातें शिक्षा, स्‍वाभिमान और शील में देखा जा सकता है जो उन्‍होंने अपने जीवन में अपनाया.

यहां एक और अति महत्‍वपूर्ण बात पर ध्‍यान देना जरूरी है, जिसपर ध्‍यान दिये बिना बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्‍बेडकर के जीवन दर्शन की बात अधूरी रह जायेगी. बाबासाहेब कहते हैं- ””आज भारत का आदमी दो अलग-अलग ध्‍येयवाद से नियन्त्रित है. संविधान की प्रस्‍तावना में समाया ध्‍येयवाद और धर्म में समाया ध्‍येयवाद. …अपने जीवन दर्शन पर मेरा पूरा भरोसा है, इसलिए आज जो बहुसंख्‍य भारतीय लोगों का जो राजकीय ध्‍येयवाद है, वह सभी का सामाजिक ध्‍येयवाद हो, इस बात की मुझे उम्‍मीद है.””

ध्‍येयवाद किसी व्‍यक्ति के जीवन का चरम लक्ष्‍य होता है, जिससे किसी व्‍यक्ति के जीवन की दिशा तय होती है. अम्‍बेडकरवादी होने का मतलब डा. अम्‍बेडकर के ध्‍येयवाद को अपनाना और उसे हासिल करना है. इसलिए आज के दलित आंदोलन के सामने संविधान की प्रस्‍तावना में दिए सामाजिक ध्‍येयवाद के लिए काम करने के सिवाय कोई दूसरा काम नहीं है. इसलिए अब ब्राह्मणों को कोसना छोड़कर बाबासाहेब के इशारे पर संविधान में दिये ध्‍येयवाद को प्राप्‍त करने के लिए एक-निष्‍ठ संघर्ष करना जरूरी है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.