करवा चौथः महिलाओं की भूख से पति को मिलेगी अमरता!

जम्बूद्वीप में दीर्घकाल तक रामराज्य स्थापित रहा, जहां पर पुरूषों को शक करने ,पत्नियों की अग्नि परीक्षा लेने तथा गर्भावस्था में भी उन्हें त्याग देने जैसे विशेषाधिकार प्राप्त थे. रामजी की कृपा से तब पुरूष शक्ति का आज जैसा क्षरण नहीं हुआ था. तब तक पति को परमेश्वर का दर्जा मिला हुआ था. उनके निधन पर महान स्त्रियां अग्नि स्नान करके सती हो जाती थी. फिर उनके मंदिर बनते, सुबह शाम पूजा की जाती. सती स्त्री बहुत सशक्त हो जाती थी, सब कोई उसके समक्ष नत मस्तक हो जाते थे, क्या स्त्री और क्या पुरूष.

मर्दानगी की मर्यादा बनाई रखने के कारण ही दशरथनंदन को जम्बूद्वीप का सर्वोत्कृट पितृ पुरस्कार “पुरूषोत्तम” प्रदान किया गया. इससे प्रेरणा प्राप्त कर आर्यपुत्रों ने पत्नियों को त्यागने तथा उनकी अग्निपरीक्षा लेने का आदर्श कार्य शुरू किया. सतयुग, द्वापर, त्रेता एवं कलि काल तक यह व्यवस्था निर्बाध जारी रही.

जम्बूद्वीप के अंतिम आर्य सम्राट ने भी रामराज्य के अनुसरण में अपनी विवाहिता को त्याग कर कहीं छुपा दिया. बरसों बाद कुछ राष्ट्रद्रोही नारदों ने युक्तिपूर्वक उक्त आर्यपुत्री को खोज निकाला. पहले तो सम्राट नें माना ही नहीं कि कभी उन्होंने आग के चारो तरफ सात फेरे लिये थे, फिर उनकी स्मृति लौटी तो उन्हें अपने जीवन की वो पहली स्त्री याद हो आई और अंतत: उन्होंने स्वीकार लिया कि उनका विवाह हो चुका है. यह सुनते ही भक्तगणों में भारी निराशा फैल गई.

खैर, राष्ट्रीय निराशा से उबरने में देश को कुछ वक्त जरूर लगा, मगर शीघ्र ही सबके अच्छे दिन आए. पति देव कहलाने लगे और पत्नियां देवी के पद पर नियुक्त हुई. अंतत: पुरूषत्व के पर्व को दैवीय और शास्त्रीय शास्वत मान्यता मिली. इस के लिये मिट्टी के लौटे में जल भर कर चन्द्र दर्शन की व्यवस्था की गई. मिट्टी के लोटे को रामराज में  “करवा” कहा जाता था.

लंका हादसे के मुताबिक बिछड़े हुये युगल के लिये करवे में पानी भर कर चतुर्थी के दिन चन्द्र को जल अर्पित करने से पुनर्मिलन की आस जगती है और मिले हुये दम्पत्तियों के बिछुड़ने के आसार लगभग क्षीण हो जाते है.

चन्द्रमा जिसने गौतम की पत्नि के साथ इन्द्र द्वारा किये गये बलात्संग में सह अभियुक्त की भूमिका निभाई थी, उसे पुरूष होने का लाभ मिला. उसका कुछ नही बिगड़ा. आज भी दागदार चन्द्रमा पूरी शान और अकड़ के साथ निकलेगा, जिसे देख कर दिन भर की भूखी प्यासी व्रता विवाहिताएं उसे जल का अर्ध्य देगी और करवा चौथ का व्रत खोलेंगी.

…और इस तरह सम्पूर्ण स्वदेशी भारतीय पति पर्व “करवाचौथ” सानंद सम्पन्न होगा. पुरूषों की उम्र स्त्रियों की भूख की कीमत पर द्रोपदी के चीर की तरह अतीव लम्बी हो जायेगी. पहले से ही कुपोषण की शिकार एनेमिक भारतीय महिलाएं और अधिक एनेमिक हो जायेंगी. खुशी की बात सिर्फ यह होगी कि परराष्ट्रीय पुरूष आज से अल्पजीवी हो जायेंगे, “करवाचौथ” के अभाव में उनकी औसत उम्र अत्यल्प होने से पूरे पृथ्वी लोक में हाहाकार मच जायेगा.

दूसरी तरफ आज रात में चांद फिर मुस्करायेगा तथा भारतीय आर्य पतियों को अमरता मिल जायेगी और नासा को भारतीय पत्निव्रता स्त्रियों द्वारा आज चढ़ाया गया सारा जल कल चांद पर मिल जायेगा.

भूमण्डल के जम्बूद्वीप पर “करवाचौथ माई” की जय जय कार होने लगेगी… और इस तरह ” राष्ट्रीय पति दिवस ” सानंद सम्पन्न हो जायेगा.

जै हो करवा वाली चौथ की

पतियों की कभी ना होने वाली मौत की..!!

लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.