बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद सुश्री मायावती जी एक बार फिर साफ तौर पर यह स्पष्ट कर देना चाहती है कि उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में कांग्रेस पार्टी से हमारा किसी भी प्रकार का कोई तालमेल व गठबंधन आदि बिल्कुल भी नहीं है। हमारे लोग कांग्रेस पार्टी द्वारा आये दिन फैलाये जा रहे, इनके किस्म-किस्म के हथकण्डों के भ्रम में कतई भी ना आयें.
कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में भी पूरी तरह से स्वतंत्र है कि वह यहाँ की सभी 80 लोकसभा की सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करके अकेले यह चुनाव लड़े. और वैसे भी हमारा यहाँ बना गठबंधन अकेले बीजेपी को पराजित करने में पूरी तरह से सक्षम है. इसलिए कांग्रेस पार्टी जबर्दस्ती यूपी में गठबंधन हेतु 7 सीटें छोड़ने की भ्रान्ति ना फैलायें.
यह बहुजन समाज पार्ट की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती का बयान है, जो उन्होंने 18 मार्च को मीडिया को जारी किया है. मायावती ने अपने इस बयान को ट्विट भी किया था.
इससे पहले 12 मार्च को बसपा द्वारा जारी एक बयान में बसपा अध्यक्ष के हवाले से यह कहा गया था कि बीएसपी किसी भी राज्य में कांग्रेस पार्टी के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी चुनावी समझौता या तालमेल आदि करके यह चुनाव नहीं लड़ेगी. तमाम अखबारों और चैनलों ने बसपा प्रमुख के इस बयान को प्रमुखता से प्रकाशित किया.
अपने इन दो बयानों में मायावती ने कांग्रेस को आड़े हाथों लिया है. हालांकि यूपी के अलावा उत्तराखंड और मध्यप्रदेश में गठबंधन की उसकी सहयोगी समाजवादी पार्टी का रुख कांग्रेस को लेकर लचीला है. अखिलेश यादव कई बयानों में कांग्रेस को लेकर बात कर चुके हैं, लेकिन उन्होंने अपने हालिया बयानों से कांग्रेस से दुश्मनी नहीं दिखाई है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर मायावती कांग्रेस को लेकर इतनी हमलाकर क्यों हैं और बार-बार कांग्रेस पार्टी को निशाने पर क्यों ले रही हैं?
इसकी दो वजहें हो सकती हैं… विधानसभा चुनावों के दौरान पहले गुजरात, फिर मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन को लेकर बात हुई थी. लेकिन तब कांग्रेस पार्टी बसपा को सम्मानजनक सीटें देने को तैयार नहीं हुई थी. इसको लेकर मायावती काफी नाराज थीं.
दूसरी बात यह हो सकती है कि बसपा की रणनीति के मुताबिक इस बार उसका जोड़ दलित-पिछड़े गठबंधन के अलावा मुस्लिम और ब्राह्मण वोटों पर है. बसपा पहले भी इस गठजोड़ के भरोसे चुनाव में उतर चुकी है और सफल भी रही है. कांग्रेस पार्टी भी शुरू से ही ब्राह्मण-दलित और मुस्लिम गठबंधन के सहारे दशकों तक सत्ता में रही है. संभव है कि बहनजी को डर हो कि कहीं इस समुदाय का कुछ हिस्सा केंद्र में नेतृत्व बदलने के नाम पर कांग्रेस के साथ न हो जाए.
बीच में एक खबर यह भी आई थी कि कांग्रेस और बसपा के बीच अखिल भारतीय स्तर पर गठबंधन को लेकर बात चल रही है. हालांकि किसी पार्टी ने इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं कि लेकिन इसको लेकर काफी चर्चा रही. फिर खबर आई कि आखिरी वक्त में यह फार्मूला सफल नहीं हो सका. इसके पीछे कांग्रेस पार्टी के अड़ियल रुख की बात कही गई. दरअसल जिन राज्यों में कांग्रेस मजबूत है, वहां वह बसपा के लिए सीटें छोड़ने को तैयार नहीं होती है. और जिस उत्तर प्रदेश में वह कमजोर है वहां वह बसपा से गठबंधन की चाहत रखती है. इसलिए यह गठबंधन नहीं हो पाता. संभव है कि कांग्रेस पार्टी के इसी अड़ियल रुख से बहनजी ने भाजपा के साथ कांग्रेस को भी लगातार निशाने पर लिया है.
अगर उत्तर प्रदेश से बाहर अन्य राज्यों की बात करें तो मध्य प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान, बिहार, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक में बसपा को न सिर्फ वोट मिले हैं बल्कि वह विधानसभा सीटें जीतने में भी कामयाब रही है. यूपी से बाहर बसपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 11 विधायकों तक का रहा है.
हालांकि गठबंधन के सवाल पर जिस तरह से बसपा प्रमुख लगातार कांग्रेस पर हमलावर हैं, वह समझ से परे है, क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने कभी भी बसपा और सपा के साथ गठबंधन की कोई बात नहीं की है. प्रदेश में सब जानते हैं कि बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन में बसपा शामिल नहीं है. इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी पर हमला करना संभव है मायावती की किसी चुनावी रणनीति का हिस्सा हो.
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अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
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Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.
