भीम आर्मी के समर्थन में नीला हुआ जंतर-मंतर

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सहारनपुर प्रकरण के विरोध के लिए सजा  जंतर मंतर देखने लायक था. ऊपर आसमान नीला था और धरती पर जंतर मंतर. जिधर देखो उधर ही नीला. हजारों की भीड़ और सबसे अहम बात उस भीड़ में 99 फीसदी युवा. सब के सब अम्बेडकरवादी. ‘जय भीम’ वाले. सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में ठाकुरों से लोहा लेने वाले भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर रावण के समर्थन के लिए देश भर से युवाओं का जत्था जंतर मंतर पर पहुंचा था. बल्कि सच कहें तो असल में युवाओं की यह भीड़ सिर्फ चंद्रशखर रावण को समर्थन देने नहीं पहुंची थी, बल्कि युवाओं का यह जत्था उस युवक और उस संगठन के लिए सामने आया था जिसने ठाकुरों के अत्याचार के आगे झुकने की बजाय उनसे पंगा लिया और खुद को ‘ग्रेट चमार’ कह कर संबोधित किया.

असल में आज का बहुजन युवा, खासकर दलित युवा राजनैतिक भागेदारी के लिए छटपटा रहा है. वह किसी ऐसे नेता को चाहता है जो उनके लिए लड़ने को खड़ा हो. जो दलित समाज का दुख समझे, दलितों पर होने वाले अत्याचार पर पलटवार करने की हिम्मत रखता हो और अपनी जाति पर शर्मिंदा होने की बजाय उस पर गर्व करे. सहारनपुर की घटना के बहाने युवाओं को चंद्रशेखर रावण में अपना हीरो दिखाई दिया है.

अपने ऊपर गर्व करने और राजनैतिक भागेदारी की छटपटाहट ही थी कि बिना किसी राजनैतिक संगठन के बुलाए ही युवा आंदोलन के लिए तय वक्त से पहले ही जुटना शुरू हो गए थे. विभिन्न जगहों से आए युवाओं में समानता थी तो बस ‘जय भीम’ की. तमाम लोग एक-दूसरे को जानते नहीं थे. लेकिन दलित समाज के सम्मान की खातिर सब एकजुट होकर एक छतरी के नीचे खड़े थे. हो सकता है कि यह आंदोलन ज्यादा दिन न टिक सके और जंतर मंतर से लौटे युवा फिर से अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाएं, लेकिन उन्होंने अपनी राजनैतिक भागेदारी की जरूरत को तो बता ही दिया है.

इस आंदोलन से दलित राजनीति का दंभ भरने वाले नेताओं ने कितनी सीख ली ये तो वक्त बताएगा, लेकिन बहुजन युवाओं ने उनके लिए अपना संदेश दे दिया है. उन्होंने बता दिया है कि वो संगठित होना चाहते हैं, बाबासाहेब और मान्यवर कांशीराम के सपनों का भारत ही उनका भारत है और उन्हें बस एक मौका चाहिए.

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