4000+ बच्चों को करवाई सरकारी नौकरी की तैयारी, फीस के बदले करवाते हैं 18 पौधारोपण!
अक्सर हमारे यहां कोई जन्मदिन हो या फिर विवाह समारोह हो, तो अपनी साख ऊँची रखने के लिए हम महंगे से महंगा तोहफ़ा लेकर जाते हैं. किसी बड़ी शख्सियत से मिलना हो या फिर कहीं मंच पर किसी को सम्मानित करना हो तो फूलों का शानदार गुलदस्ता देना हमारी आदत है. लेकिन ये महंगे गिफ्ट्स बहुत बार सिर्फ़ शो-पीस बनकर रह जाते हैं और गुलदस्ते दो दिन में ही मुरझा जाते हैं.
इसलिए बिहार के राजेश कुमार सुमन जब भी ऐसे किसी समारोह में जाते हैं तो दिखावटी चीज़ों की जगह पौधे उपहारस्वरूप देते हैं. नीम का पौधा, आम का पौधा, अमरुद का पौधा आदि उनके द्वारा दी जाने वाली साधारण भेंटे हैं. इतना ही नहीं, जब भी उन्हें पता चलता है कि उनके आस-पास के किसी इलाके में शादी हो रही है तो वे बिन बुलाये मेहमान की तरह पहुँच जाते हैं. लेकिन कुछ खाने-पीने नहीं, बल्कि वहां पर मौजूद लोगों को मुफ़्त में पौधे बाँटने और उन्हें पर्यावरण के प्रति सजग बनाने के लिए.
31 वर्षीय राजेश कुमार सुमन जब 6 साल के थे, तब से पौधारोपण कर रहे हैं. और यह गुण उन्होंने अपने पिता से सीखा. उनके पिताजी उनसे हर जन्मदिन पर पौधारोपण करवाते थे और उन्हें हमेशा पर्यावरण को सहेजने के लिए प्रेरित करते.
समस्तीपुर जिले के रोसड़ा प्रखंड/ब्लॉक के ढरहा गाँव के रहने वाले राजेश कुमार सुमन अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी में लग गये. उन्हें उनकी पहली नौकरी राजस्थान में मिली थी. पर बिहार के प्रति उनका प्रेम और आदर कुछ इस प्रकार था कि जैसे ही उन्हें मौका मिला वे बिहार वापिस आ गये.
“पर्यावरण के प्रति तो मन में प्रेम और करुणा थी ही, लेकिन एक और बात थी जो हमें खलती थी कि हमारी कोई बहन नहीं है. हम जब भी दूसरे परिवारों को अपनी बेटियों की पढ़ाई, शादी-ब्याह में खर्च करते देखते तो लगता कि हम तो इस सुख से वंचित ही हैं. इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न समाज में गरीब तबके की बेटियों की पढ़ाई को बढ़ावा दिया जाये,”
साल 2008 में गरीब तबके के बच्चों के उत्थान के उद्देश्य से उन्होंने बिनोद स्मृति स्टडी क्लब (बी.एस.एस क्लब) की शुरुआत की. क्लब का नाम उन्होंने अपने मामाजी के नाम पर रखा. “बचपन में जब घर के आर्थिक हालात थोड़े ठीक नहीं थे, तो मामाजी ने हमारा काफ़ी सहयोग किया. लेकिन बहुत ही कम उम्र में वे दुनिया से चले गये. इसलिए जब हम समाज के लिए कुछ करना चाहते थे, तो हमने उनके नाम से ही शुरुआत करने की सोची.”
इस क्लब के अंतर्गत उन्होंने पौधरोपण और ज़रूरतमंद बच्चों को मुफ़्त में शिक्षा देने की मुहीम छेड़ी. दसवीं कक्षा पास कर चुके बच्चों को वे सरकारी नौकरियों की परीक्षा के लिए तैयार करते हैं.
अपनी इस पाठशाला को उन्होंने ग्रीन पाठशाला का नाम दिया है. महात्मा गाँधी और स्वामी विवेकानन्द को अपना आदर्श मानने वाले राजेश कहते हैं, “मेरा उद्देश्य समाज के अंतिम तबके के अंतिम बच्चे तक शिक्षा पहुँचाना है. 11वीं-12वीं कक्षा से भी अगर ये बच्चे छोटी-मोटी सरकारी नौकरी की तैयारी करें, तो भी निजी इंस्टिट्यूट वाले लाखों में फीस ले लेते हैं. और घर की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल होने के करण बहुत से बच्चे चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते.”
पर ग्रीन पाठशाला में बिना किसी फीस के बच्चों को हर रोज़ सुबह-शाम कोचिंग दी जाती है. राजेश की टीम में उनकी पत्नी सहित 5 अन्य अध्यापक हैं, जो इस कार्य में उनका साथ देते हैं. हर सुबह 6 बजे से 8 बजे तक और शाम में 4 से 6 बजे तक कुल 100 बच्चे पढ़ने आते हैं.
“जो भी बच्चे मेरे पास आते हैं, उनसे मैं फीस की जगह 18 पौधे लगाने का संकल्प करवाता हूँ. हर एक बच्चे को अपने घर, घर के बाहर या फिर खेतों पर, जहाँ भी वे चाहें, 18 पौधे लगाने होते हैं और फिर लगातार 3-4 सालों तक उनकी देखभाल करनी होती है. इसके पीछे मेरा इरादा सिर्फ़ इतना है कि हमारा ग्रीन कवर बढ़े और किसी भी बहाने आने वाली पीढ़ी पौधारोपण का महत्व समझे.”
पूरे समस्तीपुर में और आस-पास के इलाकों में राजेश कुमार को ‘पौधे वाले गुरु जी’ के नाम से जाना जाता है. अब तक ग्रीन पाठशाला के माध्यम से वे लगभग 4, 000 बच्चों शिक्षा दे चुके हैं और इनमें से 350 से भी ज़्यादा बच्चों को अलग-अलग विभागों में सरकारी नौकरियाँ प्राप्त हुई हैं. बाकी बच्चे भी इस काबिल बनें हैं कि वे प्राइवेट संस्थानों में काम करके अपना निर्वाह कर सकें.
ग्रीन पाठशाला की छात्रा रहीं ममता कुमारी आज गवर्नमेंट रेल पुलिस में कार्यरत हैं और उनका कहना है कि अगर राजेश कुमार ने उनकी और उनके जैसे अन्य गरीब बच्चों की शिक्षा का ज़िम्मा न उठाया होता तो वे शायद यहाँ तक न पहुँच पाती. “गाँव में लोग कहते थे कि लड़की हो, क्या करोगी इतना पढ़-लिख कर. पर राजेश सर हमेशा हौसला बढाते और कहते कि किसी की बातों पर ध्यान मत दो और अपनी ज़िंदगी का फ़ैसला खुद करो. उनकी बदौलत आज बहुत से गरीब बच्चे अपने पैरों पर खड़े हैं,” ममता ने बताया.
राजेश के नेतृत्व में युवाओं की एक टोली गाँव-गाँव जाकर भी लोगों को वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करती है. समस्तीपुर के अलावा उनका यह नेक अभियान दरभंगा, खगड़िया और बेगुसराय जिले तक भी पहुँच चूका है. जगह-जगह लोग पेड़ लगाते हैं और अपने पेड़ के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं. पौधारोपण के साथ उनका जोर पौधों की देखभाल पर भी रहता है. इसलिए वे हर एक व्यक्ति से गुज़ारिश करते हैं कि वे अपने पौधों की लगभग 3 साल तक लगातार देखभाल करें क्योंकि 3-4 साल में कोई भी पेड़ प्राकृतिक रूप से निर्वाह करने के लायक हो जाता है.
इस पूरे अभियान में वे अपनी कमाई का लगभग 60% हिस्सा खर्च कर देते हैं. उन्हें चाहे बच्चों से वृक्षारोपण करवाना हो, कहीं समारोह में जाकर पौधे भेंट करने हो, या फिर गरीब बच्चों के लिए प्रतियोगिता की किताबों का बंदोबस्त करना हो, वे अपने वेतन से ही करते हैं. उन्होंने अपने संगठन को कोई एनजीओ या संस्था नहीं बनने दिया है, जो कि दुसरों से मिलने वाले फण्ड से चले. उन्होंने जो बीड़ा उठाया है उसकी पूरी ज़िम्मेदारी भी उन्होंने खुद पर ही ली है. अब तक वे 80, 000 से भी ज़्यादा पेड़-पौधे लगवा चुके हैं.
अपने इस कार्य में आने वाली चुनौतियों के बारे में राजेश कहते हैं कि पर्यावरण को सहेजने का काम लगातार चलने वाला काम है. इस काम के लिए आप किसी से जबरदस्ती नहीं कर सकते. जब तक लोग पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझेंगें, वे इसे कभी बचा भी नहीं पायेंगें.
वे अक्सर अपने साथियों के साथ किसी भी शादी समारोह में बिन बुलाये मेहमान के तौर पर चले जाते हैं. बहुत बार वहां पर उन्हें दुत्कारा जाता है कि क्या पेड़-पेड़ लगा रखा है, शादी की रस्में रुक गयीं और ज़रूर इसमें उनका कोई फायदा होगा आदि. “लेकिन जहाँ अपमान मिलता है, वहीं समाज में ऐसे लोग हैं जो ख़ास तौर पर अपने यहाँ शादियों में, समारोह में हमें बुलाते हैं और हमारे साथ मिलकर पौधारोपण करते हैं.”
शादी के निमंत्रण पत्रों पर भी लोग पेड़ लगाने और पेड़ बचाने की गुहार करते हुए स्लोगन लिखवाते हैं, जैसी कि “सांसे हो रही हैं कम, आओं पेड़ लगायें हम.”
अंत में राजेश सिर्फ़ इतना ही कहते हैं कि पर्यावरण का संरक्षण सही मायनों में तब होगा, जब हम इसे अपने जीवन, अपनी संस्कृति का हिस्सा बनायेंगें. पेड़ों की, नदियों की पूजा से पहले पेड़ लगाना और नदियों का बचाना हमारे रिवाज़ में होना चाहिए. यदि आप चाहते हैं कि आने वाले समय में धरती पर जीवन बचे तो आपको खुद ज़िम्मेदारी लेनी होगी.
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