पांच साल… आसान नहीं होता है किसी मैगजीन को पांच साल तक निकालते रहना. मेरे लिए भी आसान नहीं रहा है. मैंने जोश में ही शुरू कर दिया था. असल में आंदोलन नया-नया समझ में आया था, सोचा था कि मैगजीन निकालने के लिए बस लिखना भर ही तो पड़ता है, पत्रकार हूं सो यह यकीन था कि लिख लूंगा.
लेकिन जब शुरू कर दिया तब जाकर पता चला कि बाप रे…. लिखना तो सबसे छोटा काम है, उससे बड़ी चुनौती तो दूसरी चीजों की है. यहां तो पोस्टिंग भी खुद ही करनी पर रही थी, टिकट भी खुद ही चिपकाना था, और सबसे बड़ा काम था हर महीने हजारों रुपये जुटाने का. बाकी सारे काम मैं ज्यादा मेहनत कर के कर लेता था लेकिन जब पैसे जुटाने की बात आती थी तो समझ में ही नहीं आता था कि वो कैसे किया जाए. मैं माथा पकड़ के बैठ जाता था.
तब मैं उम्र के जिस दौर में था, उस उम्र में जोश ज्यादा होता है… समझदारी कम. लेकिन ये अच्छी बात रही क्योंकि अगर मैं समझदार रहता तो शायद दलित दस्तक शुरू न करता. आज मैं खुश हूं कि मैं तब नासमझ था. और मैं पूरी जिंदगी नासमझ रहना चाहता हूं.
लेकिन इन पांच सालों में जो भी हो पाया, कोई तभी कर पाता है, जब पीछे कुछ लोग खड़े होते हैं. जैसे बच्चा जब पहली बार चलने के लिए उठ कर खड़ा होता है तो वह चलने की हिम्मत इसलिए कर पाता है क्योंकि पीछे उसका पिता खड़ा होता है. जब मैंने शुरू किया तो मुझे भी पता था कि मेरे पीछे कोई खड़ा है, लड़खड़ा गया तो वो गिरने नहीं देंगे. मेरा यकीन सही साबित हुआ, उन्होंने मुझे गिरने नहीं दिया. मैं कई बार लड़खड़ाया कभी आनंद सर ने थामा, कभी विवेक सर ने, कभी देवमणि जी ने थामा, कभी आर.के देव सर ने, कभी आदर्श सर ने थामा तो कभी राकेश पटेल और ओमप्रकाश राजभर जी ने. कभी संकोचवश इनसे नहीं कह पाया तो फेसबुक पर लिख दिया, आप पाठकों ने आगे बढ़कर मदद की. आज जब मैं यहां खड़ा हूं तो आप सबकी वजह से ही यहां खड़ा हूं.
मैंने चौथी मंजिल के अपने दो कमरों के मकान से इसे शुरू किया था. तब दलित दस्तक के पास अपना कोई ऑफिस तक नहीं था. तीन साल तक किताबों के बीच सोया हूं और किताबों से निकाला भी इसी समाज ने. आदर्श सर और आर.के देव सर ने मिलकर एक साल तक ऑफिस का किराया दिया, मेरठ के देवमणि जी ने फर्नीचर दिया, देहरादून के अनिल जी और हरिदास जी ने शीशे का दरवाजा लगाया और इस तरह दलित दस्तक का पहला ऑफिस खुला.
मेरे पास जर्नलिज्म के अलावा कुछ नहीं है. मुझे बस काम करना आता है. मेरे पास पैसे नहीं है. हां, मेरे पास ओ.पी. राजभर, राकेश पटेल, रवि भूषण, पूजा और देवेन्द्र जैसे दोस्त हैं. मेरे पास आर.के. देव, राजकुमार और संजीव कुमार और पटना के वीरेन्द्र जी जैसे बड़े भाई हैं. अनिल, प्रवीण, नांगिया साहब, पटना के सुशील जी, जगदीश गौतम और गजेन्द्र जैसे साथी हैं. विवेक सर, आनंद सर, आदर्श सर, शांति स्वरूप बौद्ध सर, जैसे गार्जियन हैं. हमने जब दलित दस्तक शुरू किया था तो मेरे पास सिर्फ 50 हजार रुपये थे. उन पचास हजार रुपयों से ही हमने पांच साल का अपना सफर तय किया है.
आज जब हम वेब चैनल लेकर आए हैं तो आप ये मत समझिएगा कि हमारे पास बहुत ज्यादा पैसे आ गए हैं. घरवालों और दोस्तों की मदद से कुछ लाख रुपये इकट्ठा कर के हमने इसमें भी हाथ डाल दिया है, औऱ मुझे उम्मीद है कि जिस तरह 50 हजार में दलित दस्तक ने पांच साल पूरे कर लिए हैं, उसी तरह दलित दस्तक का वेब चैनल भी लंबा सफर तय करेगा.
इन पांच सालों में दलित दस्तक के पास पैसे नहीं आए. हमने आपको जोड़ा है. दलित दस्तक आप सबका है. मैं बस माध्यम हूं. मैं जिस मोटर साईकिल पर घूमता हूं वो मेरे बड़े भाई ने मुझे दी थी, जिस कार पर घूमता हूं लखनऊ से ओ.पी. राजभर जी ने भेज दी, बोले कि ये धूप और बारिश से बचाएगी. किसी ने बैठने की कुर्सी भेजी तो कोई ऑफिस आकर काम करने के लिए कंप्यूटर दे गया. इस तरह दलित दस्तक के दफ्तर में एक छोटी सी दुनिया है, जिसमें दिल्ली भी है, यूपी भी है, बिहार भी है और उत्तराखंड की भी महक है. इसमें पंजाब और महाराष्ट्रा भी है. और आप सबके बूते ही हम इन पांच सालों में 4 हजार के गांधी शांति प्रतिष्ठान से निकलकर 45 हजार के मावलंकर हॉल में बैठ पाएं. मैं किसी को नहीं भूला.
मैं अपने सभी साथियों का आभार व्यक्त करना चाहूंगा जिन्होंने कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना योगदान दिया. साथी अनिल कुमार, गौतम जी, गजेन्द्र, रमेश, अंकुर, वीरेन्द्र, राहुल जी औऱ पूजा और मानवेन्द्र ही थे, जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए रात दिन एक कर दिया. आप सब के साथ होने से यह सफर आसान हो गया है. आप सबका धन्यवाद दोस्तों.
पांच साल का वक्त किसी को परखने के लिए काफी होता है. पांच साल में तो सरकारों का रिजल्ट निकल जाता है. अब ये आप तय करिए कि हम कहां हैं. एक कहावत है कि जब कोई व्यक्ति अपने पैर पीछे खिंचता है, गिव अप करता है तो तो यह उसके अकेले की विफलता नहीं होती. यह उन तमाम लोगों की हार होती है जो उस व्यक्ति के साथ खड़े होते हैं उसे सपोर्ट करते हैं. और मैं आप सब से वादा करता हूं कि मैं आप सबको हारने नहीं दूंगा. चाहे जितनी चुनौती आए मैं डटा रहूंगा. लेकिन आप सबको हमारे साथ खड़ा रहना होगा. पांचवे साल के कार्यक्रम में सैकड़ों लोगों की उपस्थिति इसलिए रही क्योंकि बहुजन मीडिया का सपना आपका भी सपना है. आप सब चाहते हैं कि बहुजनों का, वंचितों का अपना मीडिया हो. और अगर आप लोग साथ आते हैं तो हम ऐसा कर के दम लेंगे.
मेरा भी एक सपना है. हमने मैग्जीन से शुरू की, फिर वेब चैनल पर आएं. मैं इस वेब चैनल में से वेब निकाल कर फेंक देना चाहता हूं. हमें अब अपना चैनल खोलना होगा. अपना अखबार खोलना है. गांव में बैठे हुए अपने भाईयों के लिए रेडियो शुरू करना है. सोचना आपको है. सन् 1920 में बाबासाहेब ने मूकनायक शुरू किया था. वह दलित-बहुजन पत्रकारिता की शुरुआत थी. 2020 सामने है. हमें साथ आना होगा और बहुजन पत्रकारिता के इस सौंवे साल में बहुजनों का एक चैनल शुरू कर के बाबासाहेब को श्रद्धांजलि देनी होगी. देश भर के सक्षम लोगों से मेरा निवेदन है, मेरी अपील है कि आप साथ आइए. आप यकीन करिए, हम मिल कर यह कर सकते हैं.

अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
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Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.

Sir hame bhi yad kar lena.9911350843
Comment:
All Ambedkarwadi with you
I request to all Ambedkarwadi society support Dalitdastak
Mein tan man dhan se aapke saath hun.