नई दिल्ली के विज्ञान भवन में ‘ संघ के नजरिए से भारत का भविष्य’ तीन दिवसीय मंथन शिविर को संबोधित करते हुए मोहनभागवत ने कुछ आदर्श वाक्य बोले हैं, जिसका निहितार्थ यह निकाला जा रहा है कि सभी भारतीय बिना किसी भेदभाव के समान हैं और संघ उनको अपना मानता है. उनके इस भाषण ने मेरे मन में कुछ प्रश्न पैदा किए-
1- पहला प्रश्न यह है कि क्या मोहनभागवत और संघ वर्ण-व्यवस्था, जाति व्यवस्था और महिलाओं को पुरूषों की अधीनता में रखने के विचार का समर्थन करने वाले वेदों, स्मृतियों, पुराणों, रामायण, गीता और रामचरित मानस को खारिज करते हैं और अब संघ इन ग्रंथों को महान ग्रंथ नहीं मानेगा. क्या संघ डॉ. आंबेडकर, पेरियार और रामस्वरूप वर्मा द्वारा इन ग्रंथों को जलाने जाने का समर्थन करता है?
2- दूसरा प्रश्न यह कि क्या संघ और मोहनभागवत हेडगेवार, गोलवरकर, दीनदयाल उपाध्याय और अभी-अभी जल्दी ही स्वर्ग सिधारे अटल बिहारी बाजपेयी जैसे अपने आदर्श नायको को खारिज करता है, जो वर्ण- जाति व्यस्वस्था और स्त्रियों पर पुरूषों के नियंत्रण का समर्थन करते थे और मनुस्मृति को महान ग्रंथ मानते.
3- क्या संघ और मोहनभागवत सावरकर की इन बात के लिए निंदा करते हैं कि उन्होंने मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार को हिंदुओं के लिए वीरतापूर्ण कार्य माना था. क्या अब सावरकर को अपना नायक नहीं मानेगे.
4- क्या संघ और मोहनभागवत राम को ईश्वर या आदर्श व्यक्तित्व अब नहीं मानेगे, जिन्होंने वर्ण व्यवस्था की रक्षा के लिए शंबूक का बध किया और स्त्रियों पर पुरूषों के नियंत्रण के लिेए सीता की अग्नि परीक्षा ली और बाद उनको घर से निकाल दिया या जिन्होंने साफ-साफ कहा कि द्विज ( सवर्ण) ही मुझे सबसे प्रिय हैं.
5- क्या संंघ बाबरी मस्जिद विध्वंस, गुजरात नरसंहार और हाल के मुजफ्फपुर दंगों कि लिए शर्मिंदा है?
6- क्या संघ अब किसी भी ऐसे व्यक्ति को संघ में शामिल नहीं करेगा, जो वर्ण-जाति व्यवस्था में विश्वास रखता हो और वर्णवादी-जातिवादी आचरण करता हो.
7-क्या संघ अपनी शाखाओं में स्त्री-पुरूषों को समान रूप से एक साथ शामिल होने की इजाजत देगा.
8-क्या संघ कार्पोेरेट घरानों और सरकारों के उस गठजोड़ के खिलाफ खड़ा होगा, जो इसे देश मूल निवासी 10 करोड़ आदिवासियों को उजाड़ रहे हैं, उनके जल, जंगल और जमीन पर कब्जा कर रहे हैं. उन्हें उनके निवास स्थानों से खदेड़ रहे है, प्रतिरोध और विरोध करने पर जेलों में ठूस रहे और उनकी हत्याएं कर रहे है.
9- क्या संघ मुट्ठीभर उच्च जातीय कार्पोरेरट घरानों के हाथों में देश की सारी संपदा केंद्रित होते जाने के खिलाफ है? संघ को यह भी बताना चाहिए कि वह कार्पोरेट के साथ खड़ा है या 90 प्रतिशत भारत के बहुजन के साथ?
10- क्या मोहनभागवत फुले, डॉ. आंबेडकर और पेरियार की इस बात का समर्थन करता है कि ब्राह्मणवाद, हिंदुत्व और वर्ण-जाति व्यस्था एक दूसरे के पर्याय हैं. तीनों का खात्मा एक साथ ही होगा?
रामू सिद्धार्थ
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लेखक पूर्वाग्रहों से ग्रसित है।उसे अध्ययन की आवश्यकता है।