नई दिल्ली। आज सामजिक क्रांति की मशाल जलाने वाले कबीर साहब का जन्मदिन है. उस समय में जब राजाओं से बख्शीस लेने के लिए कविजन उनकी तारीफों के पुल बांधने वाले छंद गाकर जेबें भर रहे थे, तब कबीर समाज की बुराइयों जैसे- जातिभेद, छुआछूत, साम्प्रदायिकता, अंधविश्वास, कर्मकांड, भेदभाव, हिंसा के विरुद्ध कमर कस के खड़े थे. कबीरदास जुलाहा जाति से थे और कपड़ा बुनने का काम करते थे. वे ना हिंदू थे और न मुसलमान. उन्होंने प्रेम, भाईचारा, हिन्दू-मुस्लिम एकता, मानवता, समानता और सद्भाव का संदेश दिया.
लेकिन ब्राह्मणों ने कबीर को भी हाईजैक कर लिया.
हिंदी साहित्य के मठाधीशों (विशेष रूप से रामचन्द्र शुक्ल, हज़ारीप्रसाद द्विवेदी, नामवर सिंह आदि) ने जमकर कबीर का हिन्दूकरण/हिन्दुआईज़ेशन किया और उन्हें पूरी तरह रामभक्त कवि साबित करके ही माने. इनके जन्म की भी कहानियाँ गढ़ कर उन्हें ब्राह्मण माता-पिता की संतान बताया, कबीर के काव्य में सोच-समझ के अनुसार जो भी बदलाव हुआ उन आयामों के साथ भी जमकर तोड़-मरोड़ हुई. पहले हिंदूकरण हुआ अब भगवाकरण हो रहा.
हालाँकि कबीर जब छंद कहते हैं तो किसी को नहीं छोड़ते. ब्राह्मणों को उन्होंने अपने स्पेशल होने की प्रिवेलेज पर जमकर फटकारा है-
“जो तूं बम्भन- बम्भनी का जाया, आ न बाट हवे क्यों न आया ” यानी अगर तू (ब्राह्मण) इतना ही महान है तो योनि की बजाय किसी और रास्ते क्यों पैदा नहीं हुआ.
“काहे को कीजै पंडे छूत विचार, छूत ही ते उपजा सब संसार.”
“हमरे कैसे लोहू तुमरे कैसे दूध, तुम कैसे बाम्भन पंडे, हम कैसे शुद.”
“एक बूँद ,एकै मल मुतर,एक चाम ,एक गुद.
एक जोती से सब उतपना,
कौ बामन कौ शुद.”
कर्मकांड करते लोगों को सुनाते हुए कहते हैं-
“लाडू लावन लापसी पूजा चढ़े अपार,पूजी पुजारी ले गया,मूरत के मुँह छार.”
“मुंड मुड़ाये हरि मिलें , तो सब कोई लेई मुड़ाय,बार -बार के मुड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय.”
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साहेब बंदगी…दलित दस्तक को बधाई, अभिनंदन। बहुत ही सराहनीय प्रयास है। साधुवाद…..
सदगुरु कबीर साहेब के मूल ज्ञान को प्राप्त करने के लिए कबीर पारख संस्थान, प्रीतम नगर, प्रयागराज के स्वरूपलीन सदगुरु अभिलाष साहेब जी की लिखित ग्रंथों को संदर्भ के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। क्योंकि आपने जो “कबीर को हाईजैक करने वाले ब्राह्मणों को नसीहत” में दोहों का इस्तेमाल किया है वह त्रुटि पूर्ण हैं। अतः आपसे निवेदन है की संदर्भ उचित होने चाहिए। बीजक,कबीर दर्शन को पढ़े।
धन्यवाद
डॉ.नंदकिशोर भगत