वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाला है। जिसमें वह कहते हैं-
“राजनीति में जिनको अपनी औकात से अधिक, केवल किसी का बेटा बेटी होने के नाते मिल जाता है, उनमें धैर्य बहुत कम होता है। वे केवल मौके की ताक में रहते हैं। अवसरवाद उनकी असली विचारधारा बन जाता है। ऐसे लोग जहां रहते हैं, जमीनी नेताओं का हक ही मारते हैं। लेकिन राजनीतिक इतिहास में इनका वैसा ही उल्लेख होता है जैसा बारिश के दौरान बुलबुले का होता है। इतिहास काम करने वालों का बनता है, उछलकूद करने वालों का नहीं।”
अरविंद सिंह ने सालों तक राजनीतिक पत्रकारिता की है, इस नाते राजनीति की अपनी उनकी एक समझ है। अपने इस पोस्ट में उन्होंने किसी नेता का नाम नहीं लिखा है, लेकिन संभवतः उनका इशारा सचिन पायलट की ओर है।
सचिन पायलट, जो सुबह तक अपने साथ कांग्रेस के 30 विधायक होने का दावा कर रहे थे, उनके दावे की कलई खुल गई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने निवास पर 100 से ज्यादा विधायकों को जुटा कर साफ कर दिया कि बाजी सचिन पायलट के साथ से निकल चुकी है।
राजस्थान विधानसभा में कुल 200 सदस्य हैं। मौजूदा समय में कांग्रेस के 107 विधायक हैं। इसके अलावा उनके पास निर्दलीय और कुछ अन्य छोटे दलों के विधायकों का समर्थन मिलाकर यह नंबर 123 तक पहुंचता है। बहुमत के लिए 101 की जरूरत होती है। यानी की गहलोत के पास बहुमत के लिए विधायक हैं।
तो क्या राजस्थान का सियासी ड्रामा खत्म हो गया है, जी नहीं। कांग्रेस पार्टी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचेत हैं और बैठक के बाद गहलोत सभी विधायकों को लेकर रिजार्ट पहुंच गए हैं। कांग्रेस पार्टी और अशोक गहलोत ऐसा कोई मौका नहीं आने देना चाहते हैं, जैसा कि मध्यप्रदेश में हुआ था।
तो वहीं कांग्रेस पार्टी बहुमत लायक विधायक जुटाने के बावजूद सचिन पायलट को मनाने में जुटे हैं। राहुल और प्रियंका गांधी ने खुद पायलट से बात की है। तो सचिन पायलट के खेमे से खबर आ रही है कि उन्होंने अपने करीबियों के लिए गृह और वित्त विभाग मांगा है, साथ ही खुद को फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनाए रखने की मांग की है।
हालांकि इस बार इस पूरे सियासी खेल में भाजपा पहले की तरह खुल कर सामने नहीं आई। हाल ही में भाजपा में गए पुराने कांग्रेसी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ रविवार को सचिन पायलट की मुलाकात के बाद सरगर्मी बढ़ गई। समझा जा रहा था कि राजस्थान में भी मध्यप्रदेश जैसा कुछ होगा। लेकिन भाजपा ने इस बार हड़बड़ी नहीं दिखाई। संभवतः भाजपा पहले यह देख लेना चाहती थी कि सचिन पायलट जो दावा कर रहे हैं, वह कितना ठीक है। और भाजपा ने इसके लिए कांग्रेस की बैठक तक इंतजार किया।
लेकिन क्या भाजपा बिल्कुल खामोश रही। जी नहीं, राजस्थान में सियासी संकट के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबियों पर आयकर विभाग का शिकंजा कसना शुरू हो गया. विधायकों की बैठक के पहले ही आयकर विभाग के 200 से अधिक अधिकारियों और कर्मचारियों ने दिल्ली और राजस्थान के कई जगहों पर छापेमारी की। यह छापेमारी अशोक गहलोत के करीबी धर्मेंद्र राठौड़ और राजीव अरोड़ा के ठिकानों पर की गई है। मजेदार यह था कि आयकर की टीम स्थानीय पुलिस की बजाय केंद्रीय रिजर्व पुलिस के सहारे यह छापेमारी कर रही है।
कांग्रेस पार्टी ने पायलट परिवार को काफी तवज्जो दी। राजेश पायलट की कहानी जगजाहिर है। तो वहीं सचिन पायलट की मां और राजेश पायलट की पत्नी रमा पायलट कांग्रेस के टिकट पर सांसद रही हैं और विधायक भी। राजस्थान में आगे क्या होगा और सचिन पायलट क्या रुख अपनाते हैं, यह आने वाले एक दो दिनों में साफ हो जाएगा। हालांकि सचिन पायलट ने कांग्रेस को दुबारा सत्ता में लाने में जिस तरह पसीना बहाया है, उससे कोई भी इंकार नहीं कर रहा। प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने पार्टी को जमीन पर मजबूत किया। सचिन पायलट को उम्मीद थी कि कांग्रेस आलाकमन उन्हें मुख्यमंत्री बनाएगी, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री पद दिया। तब कहा गया कि पायलट अभी युवा हैं और उनके लिए और मौके आएंगे।
लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या अगर सचिन पायलट भाजपा में शामिल हो जाते हैं तो क्या भाजपा उन्हें कांग्रेस से ज्यादा तव्वजो देगी? क्या भाजपा में शामिल होने के बाद पायलट राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने का सपना देख पाएंगे? क्या भाजपा के दूसरे नेता और वसुंधरा राजे इस पद से अपना दावा छोड़ देंगे। क्या भाजपा में रहते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बन पाएंगे। शायद नहीं। ऐसे में कांग्रेस को कमजोर कर पहले सिंधिया और अब सचिन पायलट क्या सिर्फ खुन्नस में अपनी उसी पार्टी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं, जिसने उनको उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद तक पहुंचाया?

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।