कांशीराम जी कहा करते थे कि बहुजन समाज को एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि जब कभी भी ”ब्राह्मण समाज” देश संकट में है ऐसा कह कर शोर मचाये तो आपको समझ जाना चाहिए कि ”ब्राह्मण” सामाजिक तौर पर अकेला पड़ गया है. ऐसी स्थिति में वह अपनी रक्षा के लिए 3% से 90% बनने के लिए हिन्दू राष्ट्रवाद का कवच या मुखौटा लगा लेता है. परन्तु जैसे ही उसके ऊपर से वह खतरा टल जाता है; वह फिर से जातिवाद का जहर घोलने मे लग जाता है. मौजूदा हालात को समझने के लिए कांशीराम जी का यह कथन अपने आप में पर्याप्त है.
इन दिनों जिन लोगों द्वारा राष्ट्रभक्ति का स्वांग रचा जा रहा है, और जो लोग विरोधी विचारधाराओं से जुड़े लोगों को देश का दुश्मन बताने चले हैं, असल में देश, तिरंगा और संविधान के प्रति उनकी सोच क्या है, यह छुपी हुई बात नहीं है. उन्हें आज तक देश की गरीबी पर गुस्सा नहीं आया, उन्हें हर रोज महिलाओं के साथ हो रहे बलात्कार पर गुस्सा नहीं आया, उन्हें जातिवाद पर गुस्सा नहीं आया. उन्हें उन पूंजिपतियों पर गुस्सा नहीं आया जो देश के करोड़ो रुपये डकार कर बैठे हैं. इन्हें गुस्सा सिर्फ तब आता है जब कश्मीर की बात होती है. इन्हें गुस्सा तब आता है जब मुसलमानों की बात होती है. इन्हें गुस्सा तब आता है जब इस देश के दलित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक और गरीब किसान अपने हक की बात करते हैं. असल में इन्होंने कश्मीर और मुसलमानों को अपनी राजनीति का हथियार बना रखा है और जब भी इनकी राजनीति भोथरी होती है, उसे चमकाने के लिए वो कश्मीर और मुसलमानों के बहाने देश का मुद्दा उठाना शुरू कर देते हैं. और जब इससे भी दाल नहीं गलती तो ये किसी विश्वविद्यालय के छात्र को भी जबरन इस्तेमाल करने से नहीं चूकते. जेएनयू के छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया के साथ इन्होंने यही किया है. असल में कन्हैया के बहाने ये रोहित वेमुला की चिता से उठी आग की लपटों को शांत करने में जुटे हैं.
ये सारी कहानी जनवरी की 17 तारीख को हैदराबाद विश्वविद्यालय से शुरू हुई, जब उन्होंने रोहित वेमुला को गले में रस्सी बांधकर झूलने को विवश कर दिया था. इसके विरोध में देश भर का सारा बहुजन समाज और इंसाफ पसंद लोग रोहित के पक्ष में आकर खड़े हो गए. देश भर के विश्वविद्यालयों से रोहित को इंसाफ दिलाने की मांग उठने लगी. जब रोहित के गले का फंदा चुनाव हारने के बावजूद ठसक से देश की शिक्षा मंत्री बन कर बैठी 12वीं पास स्मृति ईरानी के गले की फांस बनने लगा तो सरकार में कोहराम मच गया. दलितों को छेड़ कर यह सरकार फंस चुकी थी और उसे निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा था. लेकिन तभी जेएनयू में हुए एक प्रकरण ने देश की सत्ता में बैठे लोगों को मौका मुहैया करा दिया और संविधान को ना मानने वाले लोग कथित तौर पर देश को ना मानने वाले लोगों से भिड़ गए. इस भिड़ंत ने उन्हें देशभक्ति और राष्ट्रवाद के अपने पसंदीदा नारे को उछालने का भरपूर मौका दिया. हाथों में तख्तियां लिए रोहित वेमुला के लिए इंसाफ की मांग कर रहे युवाओं के हाथ में इन्होंने तिरंगा पकड़ाने की कोशिश की. एक वक्त ऐसा भी आया जब लगा कि इस शोरगुल में रोहित वेमुला के लिए न्याय की मांग धीमी पड़ने लगी है, लेकिन अब बहुजन समाज के युवाओं को कथित देशभक्तों की यह चाल समझ में आने लगी है.
बहुजनों को एक बार फिर रोहित वेमुला को इंसाफ दिलाने की अपनी मांग पर लौटना होगा, क्योंकि सिर्फ रोहित को फांसी पर झूलने के लिए मजबूर नहीं किया गया, बल्कि रोहित के साथ बहुजन समाज के उन हजारों-लाखों युवाओं में दहशत फैलाने की कोशिश की गई जो उच्च शिक्षा हासिल कर देश और समाज के लिए कुछ करने का सपना संजोते हैं. अप्पाराव, बंडारू दत्तात्रेय और स्मृति ईरानी जैसे लोगों ने यह खौफ पैदा करने का जिम्मा ले रखा है. फेसबुक, ट्विटर और इन जैसे तमाम सोशल साइट्स एक खास समाज और वर्ग के लोगों में भरे जहर को सामने ला रहा है. रोहित की मौत के बाद वो जिस तरह रोहित को गलत ठहराने में जुटे हैं वह हैरत में डालने वाला है. हर दलित की मौत के बाद होने वाले विरोध को राजनीति का हिस्सा बताया जाता है. मैं कहता हूं कि दलितों को ही क्यों मारा जाता है या फिर उन्हीं को मरने के लिए क्यों मजबूर किया जाता है? क्या पानी का मटका छूने पर किसी तथाकथित सवर्ण के हाथ काटे गए हैं? क्या अपनी शादी में घोड़ी पर चढ़ने की वजह से किसी सवर्ण के साथ मारपीट की गई है? क्या किसी सवर्ण आबादी की बस्तियों को रातों रात आग लगाई गई है? मिर्चपुर, खैरलांजी और भगाणा जैसी घटनाएं दलितों के साथ ही क्यों होती है?
रोहित की मौत के बाद उठा गुस्सा इन सभी घटनाओं के बाद दबे हुए गुस्से का परिणाम है. और यह महज दलितों का ही गुस्सा नहीं है, बल्कि यह विरोध समाज के हर उस सभ्य व्यक्ति की ओर से हो रहा है; जो सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखता है. और अगर समाज नहीं संभला तो इस विरोध की गूंज बढ़ती जाएगी. एक खास किस्म के देशभक्तों और राष्ट्रवादियों से मेरे दो सवाल हैं. अगर तुम इतने बड़े देशभक्त हो तो सबसे पहले नागपुर में भगवे के ऊपर तिरंगा फहरा कर दिखाओ. और अगर तुम्हें सच में इस देश के संविधान पर गर्व है तो जयपुर हाईकोर्ट में लगी मनु की उस मूर्ति को जमींदोज कर दो जो इस देश के संविधान को मुंह चिढ़ाता है. क्योंकि जब तुम लोगों के गिरेबां पकड़ कर उनसे देशभक्ति का सबूत मांग रहे हो तो सबूत मांगने का हक हमें भी है.

अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
——————————————————————————————————————————
Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.
