प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 70 साल के हो चुके हैं। 17 सितंबर को उन्होंने जीवन के 71वें वर्ष में प्रवेश किया। इस मौके पर भाजपा कार्यकर्ता जब देश भर में उनके जन्मदिन के लड्डू बांट रहे थे, देश का आम युवा इस दिन को बेरोजगारी दिवस के रूप में मना रहा था। पीएम मोदी के जन्मदिन के मौके पर भारत में रात 12 बजे से ही #HappyBdayNaMo, #PrimeMinister #NarendraModiBirthday सोशल मीडिया पर ट्रेंड होने लगा। लेकिन दिन चढ़ते ही इसी के साथ दो और हैशटैग ट्विटर पर टॉप ट्रेंड में शामिल हो गया। वह था अंग्रेजी में #NationalUnemploymentDay और हिन्दी में #राष्ट्रीय_बेरोजगार_दिवस।
पंद्रह दिन के भीतर यह लगातार दूसरी बार है, जब पीएम मोदी की देश के युवाओं ने बैंड बजा दी है। इससे पहले मोदी के मन की बात को लाखों युवाओं ने डिसलाइक कर अपना विरोध जताया था। दरअसल पीएम मोदी को लेकर यह गुस्सा युवाओं के बीच बढ़ती बेरोजगारी और देश के बदतर होते आर्थिक हालात की वजह से है।
सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आँकड़ों के अनुसार छह सितंबर वाले सप्ताह में भारत की शहरी बेरोज़गारी दर 8.32 फ़ीसदी के स्तर पर चली गई।
लॉकडाउन और आर्थिक सुस्ती की वजह से बड़ी संख्या में रोजगार ठप्प हो गए। इस दौरान लाखों लोगों की नौकरियां चली गई। सेंटर फ़ॉर इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आकड़ों के मुताबिक़, लॉकडाउन लगने के एक महीने के बाद से क़रीब 12 करोड़ लोगों की नौकरी जा चुकी है। CMIE सीएमआईई के आंकलन के मुताबिक़, वेतन पर काम करने वाले संगठित क्षेत्र में 1.9 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरियां गंवा दी।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और एशियन डेवलपमेंट बैंक की एक अन्य रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया है कि 30 की उम्र के नीचे के क़रीब चालीस लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी नौकरियाँ या तो सरकार की उदासीनता या कोविड की वजह से गंवाई हैं। 15 से 24 साल के लोगों पर सबसे अधिक असर पड़ा है। गुस्से की वजह यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आने के लिए युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था, लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है।
दूसरी ओर भारत की अर्थव्यवस्था भी भारी संकट का सामना कर रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुसार इस साल अप्रैल से जून की तिमाही में देश की जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। पिछले 40 वर्षों में यह सबसे भारी गिरावट रही।
आर्थिक सुस्ती और बेरोज़गारी की ऊंची दर के बीच भारतीय युवा सरकार के प्रति अपनी नाराज़गी लगातार ज़ाहिर कर रहे हैं। इस नाराज़गी का असर भारतीय सोशल मीडिया पर साफ़ देखने को मिल रहा है।
छात्रों-युवाओं के गुस्से की वजह बेरोज़गारी के साथ-साथ एसएससी जैसी परीक्षाएँ तय समय पर न होने और नौकरियों के लिए तय समय पर नियुक्ति न होना भी है। बीते सालों में कई विभागों में सरकार ने तमाम विभागों में कई पदों को खत्म कर दिया, जिससे लाखों युवाओं की इन पदों पर नौकरी की उम्मीद खत्म हो गई। सरकार द्वारा निजीकरण के तरह अंबानी-अडाणी को फायदा पहुंचान से भी देश का मध्यम वर्ग काफी नाराज है। नाराजगी का आलम ऐसा था कि पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में युवाओं ने अपना मुंह काला कर मोदी का विरोध किया।
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों की मांग है कि जो वैकेंसी निकाली जाए उनकी परीक्षाएं जल्द हों और उनके परिणाम जल्दी आएं। इसके अलावा कई संस्थानों में बेतहाशा फ़ीस वृद्धि से भी छात्र परेशान हैं और सरकार से गुहार लगा रहे हैं। लेकिन युवाओं की इन मांगों को लेकर सरकार की उदासीनता ने मोदी सरकार के खिलाफ युवाओं का गुस्सा और बढ़ा दिया है। यही वजह रही कि बीते नौ सितंबर को देश के तमाम राज्यों में युवाओं ने रात नौ बजकर नौ मिनट पर टॉर्च, मोबाइल फ़्लैश और दिए जलाकर सांकेतिक रूप से अपना विरोध ज़ाहिर किया था और रोजगार की मांग की थी।
हालाँकि भाजपा की आईटी सेल इसके पीछे काँग्रेस की साज़िश बता रहे हैं, लेकिन साफ है कि यह किसी राजनैतिक दल का विरोध नहीं, बल्कि आम देश के आम युवाओं का विरोध है, जिसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ही संघ और भाजपा की धड़कन बढ़ा दी है। तो क्या नरेन्द्र मोदी की अलटी गिनती शुरू हो गई है? क्या आगामी चुनाव में मोदी और भाजपा की नौका किनारे आने से चूक जाएगी, या फिर सिर्फ राम मंदिर के बूते देश के लोगों को धर्म का अफीम चटा वह फिर से शासन में आने में सफल होगी। सवाल कई हैं, उम्मीद है कि 2024 के पहले इसी साल बिहार और फिर 2022 में उत्तर प्रदेश के चुनाव में इसका जवाब मिल जाएगा।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।