Monday, August 25, 2025
Homeओपीनियनतथ्यों को लेकर झूठ और ग़लत बोलने के रिकार्डधारी हैं पीएम मोदी-...

तथ्यों को लेकर झूठ और ग़लत बोलने के रिकार्डधारी हैं पीएम मोदी- रवीश कुमार

प्रधानमंत्री इतिहास को लेकर झूठ बोलते रहे हैं। ग़लत भी बोलते रहे हैं। आधा सच और आधा झूठ बोल कर उलझाते भी रहे हैं। अगर झूठ और ग़लत बोलने में उनकी सरकार को भी शामिल कर लें तो ऐसी कई रिपोर्ट आपको मिल जाएँगी जिसमें उनकी ग़लतबयानियों का पर्दाफ़ाश किया गया है। इस रिकार्ड की पृष्ठभूमि में बांग्लादेश की आज़ादी के लिए सत्याग्रह और जेल जाने की बात को सोशल मीडिया पर मज़ाक़ उड़ जाना स्वाभाविक था। प्रधानमंत्री ने कर्नाटक के बीदर में बोल दिया कि जब भगत सिंह जेल में थे तब उनसे मिलने कांग्रेस का कोई नेता नहीं गया। तुरंत ही तथ्यों से इसे ग़लत साबित किया गया और आज तक प्रधानमंत्री ने उस पर कोई सफ़ाई नहीं दी।

गुजरात चुनाव के दौरान मोदी ने कह दिया कि मणि़शंकर अय्यर के घर एक बैठक हुई थी जिसमें मनमोहन सिंह, हामिद अंसारी मौजूद थे। इस बैठक में पाकिस्तान के उच्चायुक्त और पूर्व विदेश मंत्री आए थे। मोदी ने बेहद चालाकी से इसे गुजरात चुनाव से जोड़ा और कहा कि पाकिस्तान कांग्रेस की मदद कर रहा है और अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाना चाहता है। इस बैठक में पूर्व सेनाध्यक्ष दीपक कपूर भी थे, मोदी ने इसकी भी परवाह नहीं की कि भारतीय सेना के पूर्व प्रमुख दीपक कपूर पाकिस्तान के साथ मिल कर किसी साज़िश में शामिल नहीं हो सकते। दीपक कपूर ने कहा था कि उस मुलाक़ात में गुजरात चुनाव पर कोई बात नहीं हुई। ख़ैर इस झूठ पर प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में माफ़ी माँगी थी।

तक्षशिला बिहार में है। यह ग़लतबयानी थी। वाजपेयी मेट्रो में सवारी करने वाले पहले भारतीय थे। यह भी ग़लत तथ्य साबित हुआ। कर्नाटक की रैली में मोदी बोल गए कि उन्होंने खातों में सीधे पैसे भेजने की सेवा शुरू की जबकि इसकी शुरुआत 2013 में हो चुकी थी। यूपी के चुनाव प्रचार में मोदी ने कह दिया कि रमज़ान में बिजली तो आती थी दीवाली में भी आनी चाहिए थी। बाद में तथ्यों से पता चला कि यह ग़लत है। कानपुर में रेल दुर्घटना हुई थी तो आई एस आई से जोड़ दिया जिसे यूपी के पुलिस प्रमुख ने ख़ारिज किया था। इसकी रिपोर्ट आ गई है आप खुद सर्च करें।

ऐसे अनेक उदाहरण आपको ऑल्ट न्यूज़ से लेकर तमाम मीडिया रिपोर्ट में मिलेंगे। यहाँ तक कि पंद्रह अगस्त के भाषणों में भी तथ्यों की विसंगतियाँ उजागर की जाती रही हैं। ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रिकार्ड है। ऐसे में बांग्लादेश की आज़ादी के समर्थन में सत्याग्रह करने और जेल जाने की बात का मज़ाक़ उड़ना कोई आश्चर्य की बात नहीं है और न ही पत्रकारिता की नाकामी है। पहले भी इसी पत्रकारिता ने उनके झूठ और ग़लतबयानी को पकड़ा है जिस पर कोई जवाब नहीं आया और उन कामों को भी मोदी विरोध के खाँचे में फ़िट कर किनारे कर दिया गया। इस चालाकी को भी समझा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री के राजनीति नेतृत्व के नीचे इतिहास का क्या हाल किया गया है और नेहरू के इतिहास को किस तरह कलंकित किया गया है बताने की ज़रूरत नहीं। मोदी के राज में पत्रकारिता का क्या हाल हुआ है? उनके लिए पत्रकारिता के नाम पर छूट माँगने से पहले इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।

यह बात सही है कि बांग्लादेश के निर्माण को लेकर उस वक्त देश में एक माहौल था। उस समय की रणनीति और राजनीति को समग्र रूप से देना यहां संभव नहीं है और न सभी जानकारी है। जनसंघ ने बांग्लादेश को मान्यता देने के आंदोलन का समर्थन किया था। संघ ने भी। शेषाद्रीचारी ने ‘दि वायर’ में लिखा है और वायर ने छापा है। शेषाद्री चारी ने लिखा है कि बांग्लादेश का बनना संघ के अखंड भारत की सोच की जीत थी। इस लेख में भी सत्याग्रह का ज़िक्र नहीं है। हो सकता है लेखक से छूट गया हो या उन्होंने इसे महत्वपूर्ण न समझा हो। मगर चारी ने लिखा है कि उस समय संघ और जनसंघ ने कई बड़े प्रदर्शन और मार्च किए थे। मुमकिन है सत्याग्रह के बारे में अलग से ज़िक्र करने की ज़रूरत न हुई हो। अगर उन्हें मौजूदा प्रधानमंत्री के जेल जाने की बात का इल्म होता तो वे वाजपेयी की भूमिका के साथ मोदी के जेल जाने के संयोग का ज़रूर ज़िक्र करते। उस समय सोशलिस्ट पार्टी के नेता भी अमरीका का विरोध कर रहे थे। दोनों के प्रदर्शन एक दूसरे से घुले मिले हो सकते हैं।

प्रधानमंत्री के इस बयान के संदर्भ में तीन किताबों का ज़िक्र आया है। एक किताब आपातकाल पर है। उनकी ही लिखी हुई। जिसे बीजेपी समर्थक कोट करने लगे। इसे पढ़ने वालों ने तुरंत ही खंडन कर दिया कि इसमें एक लाइन सत्याग्रह पर नहीं है। फिर गुजरात की वरिष्ठ पत्रकार दीपल त्रिवेदी ने ट्विट किया कि andy marino मोदी के आधिकारिक जीवनीकार हैं। उनकी जीवनी में एक लाइन सत्याग्रह और जेल पर नहीं है। दीपल ने पहली दो किताबों के बारे में कहा है। मैंने दोनों किताब नहीं पढ़ी है। तीसरी किताब नीलांजन मुखोपाध्याय की है। यह किताब andy marino की जीवनी से पहले आई थी। यह भी जीवनी ही है। इस किताब में मोदी ने सत्याग्रह और जेल जाने की बात की है। उन्हीं का दावा है।इस प्रसंग के पैराग्राफ़ में मोदी कहते हैं कि अमरीकी दूतावास के सामने विरोध करने कई दलों के नेता गए थे। जॉर्ज फ़र्नांडिस भी थे। इसकी सत्यता के प्रमाण अभी तक किसी ने पेश नहीं किए हैं, प्रदर्शन हुआ होगा। दूतावास के सामने प्रदर्शन करने पर गिरफ़्तारी हो सकती है। भले ही आप भारत सरकार के समर्थन में ही करें। अब मोदी जेल गए या नहीं गए इसे लेकर मज़ाक़ उड़ रहा है तो कोई तिहाड़ जेल में आर टी आई लगा रहा है। यह भी अजीब है कि मोदी आधिकारिक जीवनी में सत्याग्रह की बात नहीं करते हैं। जेल की बात नहीं करते हैं। लेकिन दूसरी किताब में करते हैं। एक चौथी किताब लैंस प्राइस की है। इसे मैंने नहीं पढ़ी है। इसलिए कह नहीं सकता कि उसमें क्या है। न ही इस किताब को पढ़ने वाले किसी पत्रकार की बात मेरी नज़र से गुजरी है। आपकी नज़र से गुज़री हो तो बता दीजिए।

2015 का एक वीडियो बयान सोशल मीडिया पर चल रहा है जिसमें मोदी इस सत्याग्रह की बात कर रहे हैं। पत्रकार शेष नारायण सिंह ने लिखा है कि वाजपेयी के आह्वान पर जनसंघ ने बांग्लादेश के लिए सत्याग्रह किया था। जहां उनका आधार मज़बूत था वहाँ पर धरना प्रदर्शन हुआ था। उनके जानने वाले लोग भी यूपी से दिल्ली गए थे। प्रदर्शन में हिस्सा लेने। एसोसिएट प्रेस का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें पीले रंग का झंडा लिए लोग दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे हैं। शायद यह जनसंघ का झंडा था। पुलिस से धक्का मुक्की हो रही है। ज़ाहिर है इतने अंतर्विरोधों के बीच मज़ाक़ उड़ना और सवाल उठना लाज़िमी है। प्रधानमंत्री का कौन सा बयान झूठ है और कौन सा सच इसे लेकर सतर्क रहने की ज़रूरत है। मज़ाक़ उड़ाने से पहले भी और बाद में भी। क्योंकि झूठ बोल कर निकल जाने और कुछ ऐसा बोल देने जिसे लोग झूठ समझ लें दोनों ही खेल में नरेंद्र मोदी माहिर हैं।

रवीश कुमार की फेसबुक पोस्ट से साभार। सिर्फ हेडिंग में परिवर्तन किया गया है

लोकप्रिय

अन्य खबरें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Skip to content