पूजा और लाठीचार्ज के बीच एक देवी, एक मनुष्य और एक शरीर

बीएचयू में धरना चल रहा था. छात्राओं की स्टोरी चल रही थी. न्यूज़ एजेंसी की माइक पर लड़कियां बता रहीं थीं छेड़ख़ानी की शिकायत के बारे में. एक लड़का भी साउंड बाइट देने आया. वो लड़कियों की सुरक्षा से शुरू करके मुद्दा हॉस्टल में मिलने वाले खाने तक ले गया. एक लड़की ने विरोध में अपना सर मुंडवा लिया था. ये सब हो रहा था एक बड़े से द्वार के सामने. किसी ने बताया कि ये बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का गेट है. लंका कहलाता है इलाक़ा. थोड़ी देर के लिए मन एक संयोग बिठाने में भटका कि लंका में महिला सुरक्षा के लिए आवाज़ उठाई जा रही है. बनारस के बारे में फिर से लगा कि ये शहर नई दृष्टि देता है. पर फिर वापस उन दृश्यों पर वापस गया. छात्र भी दिखे थे छात्राओं के समर्थन में. छात्राओं का कहना था कि उनके साथ विश्वविद्यालय में छेड़ख़ानी आम है. इस बार की घटना के बारे में बताया कि एक छात्रा के कपड़े में हाथ डालने की कोशिश की गई. छात्राओं की शिकायतों की फ़ेहरिस्त आ गई ढेरों रिपोर्टों में. छात्राओं के हॉस्टल के सामने लड़कों द्वारा छेड़ख़ानी, हस्तमैथुन या लिंग दिखाने का ज़िक्र हो रहा था.

एक रिपोर्ट ने कहा कि छेड़ख़ानी की घटना के बारे में यूनिवर्सिटी गार्ड को बताने पर गार्ड हंस रहा था, कि छह बजे शाम के बाद निकलने पर ऐसा ही होता है. फिर वाइस चांसलर को सुना कि गार्ड को हटा दिया गया है. वीसी ने ये भी बताया कि बीएचयू में गार्ड केवल एक्स आर्मी वाले होते हैं. अचरज और बढ़ गया. वीसी ने ये भी कहा कि बाहर वालों ने हंगामा किया. फिर एक ये भी बयान आया कि आठ बजे रात के बाद दो लड़कियां कैंपस से बाहर निकलती हैं वही प्रोटेस्ट में बैठी हैं. बाहर निकलने वाली लड़की और विरोध में संबंध स्थापित किया गया. इस संबंध की मियाद भी बताई गई. आठ बजे रात के बाद वाली लड़कियां. आठ बजे से पहले निकलने वाली छात्राएं चुप रहती हैं.

कैंपस की छात्राओं कि पिटी हुई तस्वीरें भी आईं. वीसी के बयान वाली इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट भी ट्रेंड कर रही थी कि हर लड़की का सुनने लगे को चल गई यूनिवर्सिटी. पर क्विंट की रिपोर्ट बता रही थी कि कैसे शिक्षिकाएं भी असुरक्षित हैं. उन्हें भी नहीं छोड़ा जाता. अब उस कैंपस पर दया आने लगती है जहां मैं कभी गया भी नहीं. ये शहर मन के बहुत क़रीब है. बचपन में शहर की गलियों में ख़ूब घूमा था. मेरे जानने वाले बीएचयू में पढ़ाई के क़िस्से सुनाते थे. फिर अचानक वीडियो देखता हूं जो शायद किसी छात्र ने तब ली थी जब पुलिस वालों द्वारा छात्र-छात्राओं को खदेड़ा था. दौड़ने की आवाज़ थी. आपाधापी थी. गुस्सा था. प्रशासन के ख़िलाफ़. गालियां थीं. कुछ ऐसी गालियां जो सभी नॉर्थ इंडियन समझ पाएं, कुछ लोकल वाली थीं पर सभी गालियां मां-बहन वाली गालियां थीं और ये छात्राओं के समर्थन में जुटे छात्र थे शायद.

बनारस से ही सूत्र जुड़ा एक और ख़बर का. उसी शहर की पृष्ठभूमि पर बनी एक फ़िल्म थी. रांझना. हीरो अपनी कलाई काट लेता है, हिरोइन को पाने के लिए. हिरोइन की ना उसे बर्दाश्त नहीं. वहीं पिंक फ़िल्म में प्रशस्ति की गई थी, नो मीन्स नो. एक फ़ैसला भी आया रेप के मामले में. लड़की अगर मंद आवाज़ में ना बोले तो क्या उसे ना माना जाएगा? रेप के आरोप से फ़िल्म डाइरेक्टर बरी हो गया.

दिल्ली के एक प्रोफ़ेसर को सस्पेंड किया गया. प्रोफ़ेसर ने मां दुर्गा के ख़िलाफ़ फ़ेसबुक टिप्पणी की थी. भावनाएं आहत हुईं. टिप्पणी धर्म पर नहीं थी. किसी मिथक पर भी नहीं. किसी सोच, किसी प्रथा पर भी नहीं थी. प्रोफ़ेसर की टिप्पणी शरीर पर थी. देवी या महिला नहीं, सिर्फ़ शरीर पर. महिला एक शरीर है. एक जिस्म है. उतना ही दिखता है. उतना ही देख पाते हैं वो.

क्रांति संभव NDTV इंडिया में एडिटर ऑटो और एंकर हैं…

साभार-एनडीटीवी

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