नई दिल्ली। मायावती के राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद उनका पूरा ध्यान अब पार्टी को मजबूत करने पर है. 23 जुलाई को दिल्ली में मायावती इसके लिए पार्टी के सभी दिग्गज नेताओं और पदाधिकारियों के साथ बैठक भी कर चुकी हैं. इस बैठक में बहन जी ने अपना महाप्लान तैयार कर लिया है.
मायावती 18 सितंबर से प्रदेश भर के दौरे पर निकलने जा रही हैं. इस दौरान वह पार्टी के कार्यकर्ताओं और सभी छोटे-बड़े पदाधिकारियों से मिलेंगी. बहुजन समाज पार्टी की मुखिया ने राज्यसभा से 18 जुलाई को इस्तीफा दिया था, इसलिए भी 18 तारीख को चुना गया है. इस कार्यकर्ता सम्मेलन को ‘जनचेतना और सत्ता प्राप्त करो’ मंडल स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन का नाम दिया गया है.
असल में बसपा सुप्रीमो मायावती के राज्यसभा से इस्तीफे के बाद से उत्तर प्रदेश की राजनीति में फिर से गर्माहट आ गयी है. तो मायावती के प्रदेश भर के दौरे की घोषणा के बाद कार्यकर्ताओं और समर्थकों में भी भारी उत्साह है. बसपा कार्यकर्ता काफी पहले से बहनजी से पार्टी के छोटे-बड़े कार्यकर्ता के बीच जाने की मांग कर रहे थे. मायावती का यह दौरा प्रदेश में पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं में उत्साह फूंकने के लिए है. 18 सितंबर को मायावती मेरठ से अपने दौरे की शुरुआत करेंगी. हम महीने में दो मंडलों को मिलाकर एक सम्मेलन होगा, इस तरह कार्यकर्ता सम्मेलन का यह सिलसिला लगातार नौ महीने तक चलेगा. मायावती के महाप्लॉन का एजेंडा कुछ यूं है-
कार्यकर्ता सम्मेलन का आगाज मेरठ औऱ सहारनपुर मंडल की संयुक्त बैठक से होगा. यह सम्मेलन मेरठ में होगा.
दूसरे चरण में 18 अक्टूबर को मायावती वाराणसी-आजमगढ़ मंडल की बैठक लेंगी. यह वाराणसी में होगा.
18 नवंबर को तीसरे चरण में आगरा-अलीगढ़ मंडल की बैठक आगरा में होगी.
चौथा सम्मेलन 18 दिसंबर को फैजाबाद-देवीपाटन मंडल को लेकर किया जाएगा. यह बैठक फैजाबाद के अयोध्या में बुलाई गई है.
पांचवे चरण में बहनजी 18 जनवरी, 2018 को झांसी और चित्रकूट मंडल की बैठक लेंगी. यह झांसी में बुलाई गई है.
6वें चरण में मायावती 18 फऱवरी को इलाहाबाद-मिर्जापुर मंडल के कार्यकर्ताओं और नेताओं से मिलेंगी. यह बैठक इलाहाबाद में होगी.
सातवीं बैठक मुरादाबाद-बरेली मंडल को लेकर बरेली में 18 मार्च, आठवीं बैठक गोरखपुर-बस्ती मंडल को लेकर 18 अप्रैल को गोरखपुर में जबकि नौवां और आखिरी कार्यकर्ता सम्मेलन लखनऊ-कानपुर मंडल को लेकर होगा. यह सम्मेलन लखनऊ में होगा.
असल में 2019 में लोकसभा का चुनाव मायावती और बसपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है. 2014 में लोकसभा में कोई भी सीट नहीं जीत पाने की वजह से पार्टी का ग्राफ काफी तेजी से गिरा था तो विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद कार्यकर्ता भी निराश होने लगे थे. ऐसे में 2019 में बसपा प्रमुख और पार्टी के सभी दिग्गज नेताओं के सामने पार्टी के खोए हुए सम्मान को वापस लाने की चुनौती होगी. साथ ही उन तमाम पुराने सहयोगियों को करारा जवाब भी देना होगा, जो पार्टी के बुरे वक्त में पार्टी का साथ छोड़कर चले गए थे.

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