छत्तीसगढ़ में नक्सल हिंसा के खिलाफ शुरू किए गए सलवा जुडूम के दौरान बस्तर छोड़कर आंध्र प्रदेश में जा बसे आदिवासी परिवारों के अब वापस बस्तर आने की कवायद शुरू हुई है. घोर नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के 29 परिवार गुरुवार को वापस अपनी जमीन पर लौट रहे हैं. दावा किया जाता है कि सलाव जुडूम के दौरान नक्सलियों ने इनके घर जला दिए थे. इसके बाद वे दहशत में अपनी जमीन छोड़ पड़ोसी प्रांत आंध्र में निर्वासितों की तरह दिन गुजार रहे थे.
15 साल बाद गुरुवार को वे अपने गांव, अपने घर लौट रहे हैं. सुकमा जिले के एर्राबोर से 7 किमी दूर बसे गांव मरईगुड़ा से इन परिवारों के वापसी की शुरुआत हो रही है. बताया जा रहा है कि अपने गांव से करीब 75 किलोमीटर दूर आंध्रप्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के कन्नापुरम गांव में इन्होंने ठिकाना ढूंढ़ा और मिर्ची के खेतों में मजदूरी कर गुजर-बसर करने लगे. इन परिवारों को 15 साल तक आंध्र प्रदेश में न तो वोटर आईडी मिली, न वनभूमि का पट्टा.
इन परिवारों को वापस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे सामाजिक कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी मीडिया से चर्चा में कहा कि जिन लोगों ने गांव छोड़ा उनके नाम कभी सैकड़ों एकड़ जमीन थी. सैकड़ों एकड़ जमीन के मालिक जिनके खेतों में पहले मजदूर काम करते थे वो मजबूरी में दूसरे के खेतों में दिहाड़ी पर काम करने को मजबूर थे. अभी जो 29 परिवार लौट रहे है उनमें से 24 परिवार के नाम पर जमीन यहां मिल चुकी है.
साभार : न्यूज़ 18 हिंदी
read it also:- बदलती पत्रकारिता के दौर में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश की चुनाव रिपोर्टिंग की यादें

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।