नई दिल्ली। देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय इन दिनों एक बार फिर विवादों में घिरा हुआ है. इस बार विवादों से नाता स्टूडेंट्स का नहीं बल्कि खुद प्रोफेसर का है. दरअसल दलित और पिछड़े वर्ग के प्रोफेसरों का कहना है कि कुलपति उनके साथ भेदभाव कर रहे हैं.
टेलीग्राफ़ की ख़बर के मुताबिक़ लगभग 50 प्रोफेसरों ने एक साथ मिलकर कुलपति को एक ज्ञापन सौंपा है. जिसमें कहा गया है कि विश्वविद्यालय से संबंधित फ़ैसले लेने वाली सबसे ऊंची कार्यकारी परिषद ने उनसे भेदभाव किया. प्रोफेसरों की शिकायत है कि विश्वविद्यालय ने एक एससी-एसटी प्रोफसर का प्रमोशन इसलिए नहीं किया कि उसने किसी पीएचडी स्कॉलर को गाइड नहीं किया था. जबकि ऐसा कोई नियम नहीं है जिससे प्रमोशन को रोका जा सके.
वहीं एक अनुसूचित जाति के एक अध्यापक ने कुलपति पर आरोप लगाया है कि सबसे वरिष्ठ होने के बावजूद भी उन्हें नैनो साइंसेज़ विभाग का अध्यक्ष नहीं बनाया गया. जबकि हाल में जेएनयू प्रशासन ने कई ऐसे अध्यापकों की नौकरियां स्थायी कर दी हैं जिनकी नियुक्तियों को लेकर भी कोर्ट में केस चल रहे हैं. यानि दलित अध्यापकों के साथ जिस तरह से विश्वविद्यालय प्रशासन भेदभाव कर रही है इससे यूनिवर्सिटी कैंपस के अंदर शिक्षा का माहौल और दिन पर दिन गिरता चला जाएगा.

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