विदेशी धरती पर अंबेडकर जयंती की धूम, भारतीय मीडिया में चुप्पी

खबर चलाने वाले खबर खा ले रहे हैं और डकार भी नहीं ले रहे। भारतीय मीडिया टीवी में दिनभर बैठ कर यह बात करता है कि अमेरिका जैसा एक दिन भारत होगा। लेकिन वही मीडिया, भारत के सबसे बड़े राष्ट्रनिर्माता के गौरव को छिपा रहा है। अमेरिका के वॉशिंगटन स्टेट ने Dalit History Month की घोषणा की है, तो अमेरिका के ही मिशिगन स्टेट में Social Eqyity Week की घोषणा की गई है, जो की 9– 15 अप्रैल के बीच में मनाया जाएगा। ये मीडिया डॉ. आंबेडकर की बात सिर्फ नाम भर के लिए लेती है, बाकी उनसे जुड़ी खबरें पचा जाती है।

 वहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गौतम बुद्ध का नाम पुरी दुनिया भर में जपते हैं “कि मैं बुद्ध के देश से आया हूं”, पर जब भारत आते हैं; तब उनके लिए इस देश के मायने कुछ और हो जाते हैं। सिंपल भाषा में कहें तो ये देश बुद्ध का देश नहीं रहता, भगवान चेंज हो जाते हैं। यह बात साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे देशों से संबंध बनाने के लिए भगवान बुद्ध को इस्तेमाल करते हैं। कई बार इसमें उनका स्वार्थ और मौका परस्ती भी झलक जाती है। जब विदेश में कुछ बड़ा होता है, तब यही मीडिया  पीछे–पीछे तक विदेश चला जाएगा। वहां से जाकर रिपोर्टिंग करेगा। रशिया और यूक्रेन की लड़ाई में यूक्रेन तक चला जाएगा, जिसमें उसका टीआरपी छोड़ कोई राष्ट्र परस्त भाव दिखता नहीं है। लेकिन जब देश के सबसे बड़े राष्ट्र निर्माता को दुनिया भर में तवज्जो दी जा रही है, तब भारतीय मीडिया गूंगी हो गई है। क्यों गूंगी हो गई है, यह बड़ा सवाल है?

क्या यह देश के लिए गर्व का विषय नहीं है कि वॉशिंगटन शहर में दलित हिस्ट्री मंथ घोषित किया गया? यह खबर भारत राष्ट्र के संविधान निर्माता से जुड़ी है। भारत से जुड़ी है। तो क्या देश के लोगों को इस बात पर गर्व नहीं होना चाहिए? पीएम मोदी को भी इससे सीख लेकर भारत में दलित हिस्ट्री मंथ घोषित नहीं करनी चाहिए। आश्चर्य तो यह है कि भारतीय मीडिया में यह खबर गायब है। दरअसल यही भारतीय मीडिया का असली चेहरा है। वो ना जाने ऐसी कितनी ख़बरों को हर रोज अनदेखा करते या दबा देते हैं, जो दलित समाज से ताल्लुक रखते हैं। उसे इससे ज्यादा दो हजार के नोट में चिप की झूठी खबर महत्वपूर्ण लगती है। इससे यह भी पता चलता है कि भारतीय मीडिया आंबेडकर विरोधी है, दलित विरोधी है और मनुवादी है, जिसे बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा रचा गया इतिहास फूटे आंख नहीं सुहाता।

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