कालेधन पर लगाम के नाम पर मुद्रा परिवर्तन कितना सही?

आज सुबह घरों में काम करने वाली एक महिला ने बताया की 500 और 1000 रूपए के नोट बंद हो गये है. वो काफी परेशान लग रही थी, उसने आगे बताया की इस रविवार उसकी बी सी खुली थी जिसके 12000 रूपए (500 और 1000 नोट में) उसे मिले है. लेकिन आज ही मुहल्‍ले के किराना दुकान वाले ने 500 नोट के बदले किराना देने से इनकार कर दिया, वो बच्‍चे के दूध के लिए भटक रही थी. मैं इस खबर से हतप्रद हो गया सहसा मुझे यकीन नही हुआ लेकिन न्यूज़पेपर की हेड लाईन से उसके बातों पर यकीन हो गया.

मैने कहा की तुम बैंक में पैसे बदल सकती हो बहुत आसान है. तो उसने बताया की उसका बैंक में एकाउंट ही नहीं है. दरअसल यह समस्‍या लगभग हर मध्‍यम, निम्‍न मध्‍यम परिवार की है.  500 एवं 1000 रूपये के नोट 9 नवंबर 2016 की बीती रात से अवैध (बंद) कर दिये गये है. उनकी जगह 500 तथा 2000 के नये नोट जारी किये गये है. इसके पीछे आरबीआई का तर्क है जो आज के अधिकृत विज्ञापन में विस्‍तृत रूप से सामने आया है. वे इस प्रकार हैः-

1. काले धन पर लगाम, 2. भ्रष्‍टाचार पर लगाम 3. जाली नोट पर रोक 4. आतंकवाद का वित्‍तपोषण पर नकेल आदि.

सरकार के इस फैसले पर चारों ओर से प्रतिक्रिया आ रही है. कुछ इसे साहसी कदम बता रहे है तो कूछ लोग केवल सनसनी पैदा करने वाला कदम बता रहे है. कुछ लोग डॉ. अम्बेडकर के हवाले से भी इस तर्क का समर्थन कर रहे है.

डॉ. अम्बेडकर ने नहीं कहा की 10 वर्ष में नोट बदलने से भ्रष्‍टाचार में कमी आयेगी

हालांकि प्रख्‍यात अर्थशास्‍त्री एवं आरबीआई के जनक डॉं. अम्बेडकर के हवाले से ये खबर फैलाई जा रही है की वे प्रति 10 वर्ष में नोट बदले जाने के पक्ष में है. उनके निम्‍न उदाहरण जो उनकी प्रसिद्ध किताब (रूपए की समस्‍या) Problem of Rupee से लिया गया हैः-

“And as the Government chose to have legal-tender notes, the Legislature in its turn insisted on their being of higher denomination. At first it adhered to notes of Rs. 20 as the lowest denomination, though it later on yielded to bring it down to 10, which was the lowest limit it could tolerate in 1861. Not till ten years after that, did the legislature consent to the issue of Rs. 5 notes, and that, too, only when the Government had promised to give extra legal facilities for their encashment. ” यह उद्धहरण इस किताब में सर रिचर्ड टेम्‍पल के हवाले से लिया गया है इसका हिन्‍दी अनुवाद इस प्रकार है.

“सर्व प्रथम विधान मण्‍डल ने कम से कम मूल्‍य वर्ग के रूपए में 20 रूपए के नोट को जारी करने का बल दिया. परंतु बाद में वह इस मूल्‍य वर्ग को घटाकर दस रूपये के नोटों पर सहमत हो गए. इसके बाद  भी विधानमण्‍डल ने 5 रूपये के नोटों के जारी किये जाने की अनुमति नही दी. यह अनुमति तभी दी गई जब सरकार ने उनके भुनाने के लिए अतिरिक्‍त सुविधाएं देने का वचन दिया.”

वाल्‍यूम 12,  पृष्‍ठ 57,  रूपये की समस्‍या उद्धव और समाधान. बाबासाहेब डां अंबेडकर सम्‍पूर्ण वाडमय

गौरतलब है कि इस संदर्भ को डॉं. अम्बेडकर के नाम पर समाचारपत्र-पत्रिकाओं सोशल मीडिया में प्रसारित किया जा रहा है. ऐसा करने के पीछे क्‍या मकसद है. ये एक षड्यंत्र है या अज्ञानता यह एक जांच का विषय है. जबकि उक्‍त उदाहरण को ध्‍यान से पढ़ेंगे तो आप पायेंगे की इसमें कुछ और बात लिखी गई, 10 वर्ष में मुद्रा बदले जाने संबंध में यहां कोई बात नहीं की गई है.

यहां यह बताना जरूरी है की सरकार ने एक अच्‍छे मकसद से मुद्रा परिवर्तन का कदम उठाया है लेकिन नाम न बताने की शर्त पर एक व्‍यवसायी बताते हे कि विगत 5-6 दिनों से भारी मात्रा में कुछ धनिको द्वारा बैंक में धन जमा कराया जा रहा था. आशंका है की सरकार के इस निर्णय की भनक कुछ धनकुबेरो को लग गई थी.

क्‍या काले धन पर लगाम लगेगा?

जैसा की आरबीआई ने कालाधन, जाली नोट, आतंकवाद पर रोक लगाने की बात कही है. चूंकि बड़े नोट बंद नहीं हुये हैं इसलिए इन समस्‍याओं पर क्षणिक असर तो पड़ेगा लेकिन बाद में समस्‍या जस की तस रहेगी. क्‍योंकि काले धन का कैश ट्रांजेक्‍सन आसान होता है.

आईये जाने की कालाधन कहां जमा है किन पर कार्यवाई की जरूरत हैः-

1) भूमि पति- कालाधन का सबसे आसान निवेश है जमीन खरीदी. भारत में भूमि सीलिंग एक्‍ट लागू है यानि कोई भी व्‍यकित 10 एकड़ से ज्‍यादा सिंचित भूमि नहीं रख सकता. लेकिन इस नियम को या तो सीथील कर दिया गया या इसकी धज्‍जीयां उड़ा दी गई. आज एक ओर एक व्‍यक्ति के पास सर छिपाने को न छत है न जमीन, तो दूसरी तरफ एक-एक व्‍यक्ति के पास 100 से 1000 एकड़ भूमि के मालिकों की संख्‍या लगातार बढ़ती जा रही है. आजादी के बाद कालेधन का सबसे ज्‍यादा निवेश भूमि में हुआ है. अत: सीलिंग अधिनियम को और मजबूत बनाने की जरूरत है साथ ही जरूरत है उसे कड़ाई से लागू करवाने की.

2) स्‍वर्ण खरीदी- डॉं. अम्बेडकर अपनी किताब रूपये की समस्‍या में बताते है की सोवियत रूस समेत कुछ विकसित देश में स्‍वर्ण की खरीदी की सीमा बांधी गई है. भारत में काला धन निवेश की दूसरी सबसे पसंदीदा जगह स्‍वर्ण खरीदी है. अत: स्‍वर्ण खरीदी पर अंकुश लगाया जाना चाहिए और घरों में जमा सोना का घोषणा पत्र लिया जाना चाहिए.

3) राजनीतिक पार्टियों को चंदा- चूंकि राजनीति पार्टी को दिया जाने वाला चंदा आरटीआई के अंतर्गत नहीं आता इसलिए यहां निवेश अत्‍यंत अच्‍छा माना जाता है बड़े ओद्यौगिक घराने वे इसके सहारे संविधान में संशोधन अपने व्‍यवसायिक लाभ को बढ़ाने के लिए करते रहे हैं.

4) धार्मिक स्‍थल को दिया जाने वाला धन- भारत एक धार्मिक देश है लोग अपनी आत्‍म संतुष्टि के लिए चंदा देते है. वहीं दूसरी तरफ, गुप्‍त धन के रूप में काला धन भी खूब दिया जाता है. उसी प्रकार काला धन को सफेद बानने का गोरखधंधा भी किया जाता है. पिछले दिनों ऐसा ही मामला सामने आया. एक संत कालेधन को सफेद करने की कोशिश वाला मामला मीडिया की सुर्खियों में था.

5)शेयर एवं महंगी चल संपत्ति- इसके बाद कालाधन का निवेश शेयर बाजार तथा महंगी चल सम्‍पत्ति में किया जा रहा है.

यदि वास्‍तव में कालेधन, आतंकवाद जाली और नोट में अंकुश लगाना है तो इन 5 बिन्‍दुओ पर गौर करना आवश्‍यक है. क्‍योंकि कालाधन की खपत की गुंजाइश जिस देश में ज्‍यादा होगी वहां भ्रष्‍टाचार, आतंकवाद और जाली नोट का बजार फलेगा फूलेगा.

अत: सबसे पहले आज़ादी के बाद काला धन जमा कररने वाले लोगों पर कड़ी कार्यवाई की जानी चाहिए. मुद्रा बदलने की प्रक्रिया को काला धन पर प्रहार के रूप में देखा जाना उचित नहीं है क्‍योकि 1946 और 1978 में भी इस प्रकार मुद्रा की वापसी या परिवर्तन हुआ था. किन्‍तु कालाधन पर कितना अं‍कुश लगा ये बात किसी से छि‍पी नहीं है. बहरहाल सरकार के फैसले का स्‍वागत है. देखना है कि इन पांच बिन्‍दुओ पर कठोर कदम कब उठाया जायेगा या मुद्रा (वापसी) परिवर्तन ग़रीबों की परेशानी का सबब बनकर रह जायेगा.

For such extra facilities, and measures adopted to materialise them, Cf. the interesting speech of the Hon. Sir Richard Temple on the Paper Currency Bill dated January 13, 1871, S.L.C.P., Vol. X, pp. 22-25

संजीव खुदशाह बहुचर्चित दलित लेखक हैं. इनसे sanjeevkhudshah@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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