जानिए सच, दलित प्रेमी जोड़े को न्यूड कर पूरे गांव में घुमाया

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नई दिल्ली। इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है. इस वीडियो में दलित जोड़े को गांव के लोग नंगा घुमा रहे हैं और उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं. इस वीडियो में गुजरात मॉडल पर सवाल उठाते हुए पूछा गया है कि आखिर दलितों पर अत्याचार कब रुकेंगे. गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में गुजरात का बता कर इस वीडियो को शेयर करने वालों की कमी नहीं है

इस वीडियो में एक लड़के और लड़की को निर्वस्त्र कर न केवल घुमाया गया है, बल्कि पहले लड़की को लड़के के कंधे पर और फिर लड़की के कंधे पर लड़के को बैठने पर मजबूर किया गया है. पीछे शोर मचाकर उन्हें घुमाते हुए लोग ढोल पीट रहे हैं. गिर जाने पर इस जोड़े को पीटा भी जाता है. तमाशबीन बनी भीड़ में शामिल कुछ लोग वीडियो बना रहे हैं. हालांकि इस वीडियो की हकीकत कुछ और ही है

फेसबुक पर इस वीडियो को वायरल कर सवाल किया गया है कि आखिर दलितों पर अत्याचार कब रुकेगा. स्मरण रहे कि अगले साल के अंत में गुजरात में विधान सभा चुनाव है.इस वीडियो को अब तक 66000 से ज़्यादा बार देखा जा चुका है और 1100 से ज़्यादा बार शेयर किया जा चुका है.

इस घटना की जांच की गई तो पता चला कि यह वीडियो गुजरात नहीं बल्कि राजस्थान का है. बांसवाड़ा में 19 अप्रैल 2017 को यहां के शंभूपुरा गांव में एक आदिवासी लड़के और लड़की को निर्वस्त्र कर के गांव भर में घुमाया गया था और उनके साथ मारपीट भी हुई थी. मारपीट करने वालों में लड़के और लड़की के पिता, चाचा और दूसरे रिश्तेदार भी शामिल थे.

दिहाड़ी मजदूरी करने वाले इस आदिवासी प्रेमी जोड़े को प्यार करने की सजा दी गई. इस जोड़े को लगा कि उनके घर वाले शादी की अनुमति नहीं देंगे तो दोनों घर से भाग गए. बाद में इन्हे खोज कर गांव लाया गया. इनके रिश्ते को गांव की बेइज़्ज़ती समझ इन्हे प्रताड़ित किया गया. यह वीडियो जब पुलिस तक पहुंची तो पुलिस ने इस मामले में 18 लोगों को गिरफ्तार किया.

नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने दिया इस्तीफा

नई दिल्ली। नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया यानी NITI आयोग के वाइस चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. 31 अगस्त पनगढ़िया के कार्यकाल का आखिरी दिन होगा. अरविंद पनगढ़िया नीति आयोग के पहले वाइस चेयरमैन बनाए गए थे, नीति आयोग का गठन मोदी सरकार ने योजना आयोग की जगह पर किया है.

तात्‍कालिक रूप से शिक्षा क्षेत्र में लौटने की बात कहकर उन्‍होंने इस्‍तीफा दिया है. अरविंद पांच जनवरी, 2015 को नीति आयोग के उपाध्‍यक्ष बने थे. प्रसिद्ध अर्थशास्‍त्री पनगढ़िया आर्थिक उदारीकरण के पैरोकार माने जाते रहे हैं.

भारतीय-अमेरिकी अर्थशास्‍त्री अरविंद नीति आयोग के उपाध्‍यक्ष बनने से पहले कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे हैं. वह इससे पहले एशियाई विकास बैंक के मुख्‍य अर्थशास्‍त्री रहे हैं. इसके अलावा वह वर्ल्‍ड बैंक, अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष, विश्‍व व्‍यापार संगठन और अंकटाड में भी काम कर चुके हैं. उन्‍होंने प्रतिष्ठित प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ली है.

पनगढि़या ने तकरीबन 10 किताबें लिखी हैं. भारत के संदर्भ में उनकी किताब India: The Emerging Giant खासी चर्चित रही. यह पुस्‍तक 2008 में प्रकाशित हुई थी. 2012 में यूपीए सरकार के कार्यकाल में पद्मभूषण से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है.

नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने जब नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल की आलोचना की थी और उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने का विरोध किया था तो दुनिया के जो दो बड़े अर्थशास्त्री मोदी के बचाव में आगे आए वो थे प्रो जगदीश भगवती और अरविंद पनगढ़िया.

बेटे तैमूर के साथ सैफ और करीना की तसवीर हुई वायरल

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नई दिल्‍ली। बॉलीवुड अभिनेता सैफ अली खान, अभिनेत्री करीना कपूर के बेटे तैमूर के जन्‍म के कुछ समय बाद से ही अपनी पुरानी शेप में वापस आने के लिए जिम में पसीना बहा रही हैं, वहीं सैफ अपनी फिल्‍मों की शूटिंग में बिजी थे. लेकिन अब दोनों बिजी मम्‍मी-पापा नन्‍हे तैमूर को लेकर वेकेशन पर निकल चुके हैं. सैफ और करीना दोनों ही नन्‍हे तैमूर को लेकर स्विटजरलैंड रवाना हो गये है. बॉलीवुड का ये क्‍यूट कपल भले ही सोशल मीडिया पर नहीं है लेकिन इस वेकेशन की खूबसूरत तस्‍वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. इन तस्‍वीरों में तैमूर बेहद क्‍यूट लग रहे हैं. बता दें कि तैमूर का जन्‍म  साल 20 दिसंबर 2016 को हुआ था और इसके बाद से हीं तैमूर की कई खूबसूरत तस्‍वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी है.

करीना-सैफ और तैमूर एकसाथ नजर आ रहे हैं. करीना और सैफ 25 जुलाई को मुंबई से रवना हुए थे जिसकी कुछ तसवीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी. इन तस्‍वीरों में सैफ की गोद में तैमूर नजर आये थे. करीना ने एक इंटरव्‍यू में खुलासा किया था कि वो दोबारा काम शुरू करना चाहती हैं लेकिन बेटे से दूर जाने को लेकर थोड़ा परेशान भी हो जाती हैं. करीना ने बताया था कि तैमूर बहुत क्‍यूट है और वह हमेशा उन्‍हें देखना चाहती हैं. तैमूर को पसंद नहीं है कि वह उन्‍हें बार-बार किस करें लेकिन करीना एक दिन में उन्‍हें 20 हजार बार किस करती हैं.

करीना कपूर ने अपने एक बयान में कहा था कि, इसके अलावा उसके लुक्‍स के पीछे मेरे घी खाने का भी योगदान है. और सोचिए आपको लगता है कि घी सिर्फ फैट बढ़ाता है.’ करीना ने अपने एक और इंटरव्‍यू में कहा था कि उनका बेटा उनके इस दुनिया का सबसे खूबसूरत बच्‍चा है. करीना को तैमूर की तस्‍वीरें लेने से भी कोई दिक्‍कत नहीं है. करीना के अनुसार, “मुझे लगता है कि वक्त बदल रहा है और जहां भी हम जाते हैं, हमारी तस्वीरें ली जाती हैं, जो हमारी सामान्य जिंदगी का हिस्सा है. मैं जितना संभव हो सके तैमूर की सामान्य तरीके से परवरिश करना चाहती हूं, तो फिर उसके साथ अलग तरह से व्यवहार क्यों करना चहिए? मुझे मीडिया द्वारा उसकी तस्वीरें लेने से कोई दिक्कत नहीं है.

शादी करने पर मिलेगा स्मार्टफोन और 20 हजार रूपए

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश सरकार गरीब लड़कियों की शादी कराएगी. यूपी सरकार के खर्चे पर सामूहिक विवाह कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. इस तरह के आयोजनों में सांसद और विधायक के अलावा समाज के प्रतिष्ठित लोगों को भी बुलाया जाएगा. खास बात यह है कि अब तक इस योजना के तहत दी जाने वाली राशि बीस हजार रुपये में कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी और उसे कन्या के खाते में जमा कर दिया जाएगा. इसके साथ ही एक स्मार्ट फोन का उपहार भी उसे मिलेगा. समाज कल्याण विभाग ने इसका प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विवाह कराने की जिम्मेदारी डीएम के जिम्मे: मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना के पहले चरण में 71400 लड़कियों की शादी कराएगी. पांच से अधिक विवाह होने पर यह समारोह क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत, नगर निगम और नगरपालिका परिषद के स्तर पर आयोजित किया जाएगा. जिलाधिकारी एक विवाह कार्यक्रम समिति का गठन करेंगे.

नकदी के साथ बर्तन और कपड़े भी मिलेंगे: समिति ही टेंट, विवाह संस्कार, पेयजल आदि की व्यवस्था कराएगी. पहले जहां इस योजना के तहत लाभार्थी को 20 हजार रुपये का अनुदान दिया जाता था, वहीं अब सरकार 35 हजार रुपये खर्च करेगी. इसमें बीस हजार कन्या के खाते में, दस हजार से कपड़े, बिछिया, पायल, सात बर्तन, एक जोड़ी वस्त्र और स्मार्ट फोन खरीदा जाएगा. पांच हजार रुपये पंडाल आदि आदि के लिए अधिकृत निकायों को दिया जाएगा.

योजना का लाभ 15 फीसदी अल्पसंख्यकों को भी समारोह में सामान्य व्यक्ति व संस्थाएं भी उपहार दे सकेंगी. यदि कोई ऐसा करना चाहेगा तो पहले इसकी सूचना देनी होगी. साथ ही उपहार देने वाले का नाम, संख्या और अनुमानित मूल्य सूची बद्ध करके सूचना पटल पर प्रदर्शित भी करना होगा. इस योजना में अनसूचित जाति-जनजाति 30 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग 35, सामान्य वर्ग 20 और अल्पसंख्यक वर्ग की 15 प्रतिशत भागीदारी होगी.

नीतीश कुमार ने तोड़ा महागठबंधन और जनता का विश्वासः शरद यादव

पटना। बिहार में राजनीतिक उथल-पुथल पर जनता दल-यूनाइटेड (जेडीयू) के वरिष्ठ नेता शरद यादव ने पांच दिन औपचारिक रूप से असंतोष जताया तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने झट से उसपर अपनी प्रतिक्रिया दे दी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ शब्दों में कहा, जिनके मन में भी जो सवाल हैं वे पार्टी फोरम में उठाएं.

बिहार में एनडीए की सरकार बनने के बाद जदयू की पहली कार्यकारिणी की बैठक 19 अगस्त को पटना में होगी. सीएम नीतीश ने कहा कि वे कोई भी फैसला लेने से पहले ये जरूर सोचते हैं कि पार्टी हित में क्या है. उन्होंने ये भी कहा कि लालू यादव के साथ गठबंधन तोड़ने और बीजेपी के साथ सरकार बनाने से पहले सारी बातें शरद यादव को बता दिया गया था. पिछले साल 70 वर्षीय शरद यादव को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाकर नीतीश कुमार को दे दी गई थी.

शरद यादव की नाराजगी पर नीतीश कुमार ने कहा कि उम्मीद है कि चीजें अपने आप दुरुस्त हो जाएंगी. जदयू की बिहार इकाई महत्वपूर्ण है और यह निर्णय मेरी उपस्थिति में लिया गया. यदि किसी को तकलीफ है तो पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपनी बात रख सकता है. माना जाता है कि नीतीश कुमार ने इशारों-इशारों में पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद यादव को यह जताने की कोशिश की है शरद यादव की सोच और फैसले से उन्हें बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.

शरद के साथ विपक्षी नेता सीपीआई के राज्यसभा सांसद डी राजा भी कह चुके हैं कि बिहार में जिस तरह से नई सरकार का गठन हुआ उससे शरद यादव नाखुश हैं. इसके अलावा लालू प्रसाद यादव भी बीजेपी के खिलाफ लड़ने के लिए शरद यादव को नेतृत्व के लिए आमंत्रित कर चुके हैं.

गौरतलब है कि शरद यादव ने सोमवार को संसद भवन परिसर में मीडिया से बातचीत में कहा कि बिहार में महागठबंधन टूटने से मुझे काफी तकलीफ हुई है. महागठबंधन बनाने के लिए नीतीश, लालू और मैंने काफी मेहनत की थी. जनता का विश्वास किसी भी सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है.

भारत की शिक्षा व्यवस्था और वर्ण-माफिया

भारत में आजादी के बाद इंजीनियरिंग, विज्ञान, मेडिसिन, मेनेजमेंट या दर्शन मानिविकी और समाज विज्ञान की पढ़ाई करने वाले तबके पर और उसकी समाज-देश के प्रति नजरिये पर गौर करना जरुरी है. भारत के इस सुदीर्घ दुर्भाग्य और हालिया “गोबर और गौमूत्र” के विराट दलदल को समझने के लिए हमें इस पीढ़ी के मन को और “वर्ण माफिया” के काम करने के तरीके को समझना होगा.

आजादी के बाद पहली पीढ़ी के ये तकनीकी बाबू और सामाजिक विज्ञानी या साहित्यकार और दार्शनिक भी अधिकांशसवर्ण परिवारों से आये हैं जिन्हें समाज मे बदलाव की कोई जरूरत महसूस नहीं होती. उन्हें अपने परिवार, रिश्तेदारों या समुदाय के बाहर किसी के जीने मरने या शोषण से कोई सहानुभूति नहीं होती इसलिए वे यथास्थितिवादी बनकर उभरे हैं. उन्होंने विज्ञान, तकनीक, मैनेजमेंट और मेडिसिन सहित समाज विज्ञान और दर्शन और स्वयं तर्कशास्त्र आदि की पढ़ाई को इतना मेकेनिकल बना दिया है कि उसमें आलोचनात्मक विश्लेषण और क्रिटिकल थिंकिंग का कोई स्कोप ही नहीं रह गया है.

सवाल ये है कि भारत में इंजीनियरिंग मेडिसिन और विज्ञान पढ़ने वालों के सामाजिक सरोकार कैसे कम से कमतर होते जा रहे हैं. क्यों ये लोग पैसा कूटने की मशीन बनकर अपने ही अन्धविश्वासी अनपढ़ और गरीब लोगों का शोषण करते हैं? क्यों इनमें सामान्य सी मनुष्यता और सामाजिक हितचिन्तना पैदा नहीं होती?

स्कूल-कॉलेज के शिक्षा जगत का उदाहरण लिया जा सकता है. उसके जरिये समझना आसान होगा कि कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर शिक्षा का जैसा व्यवसायीकरण और अपराधीकरण हुआ है वह चौंकाने वाला है.

पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मिडिल ईस्ट और अफ्रीका में या इटली में जिस तरह से कबीलाई परिवारवाद और वंश आधारित माफिया चलता है उसी तरह भारत में “वर्ण माफिया” चलता है. इसे अकादमिक जगत में न्यायपालिका, प्रशासन और राजनीति में काम करते हुए आसानी से देखा जा सकता है. अन्य देशों का माफिया स्वयं को अपराधी महसूस करता है. उसमें एक ख़ास किस्म का आत्मग्लानि का भाव भी होता है कि वे गलत कर रहे हैं. लेकिन भारत का “वर्ण माफिया” शास्त्र और धर्म के गर्भ से जन्मा है. उसमें किसी तरह का कोई अपराध भाव या आत्मग्लानि नहीं होती इसीलिए इस माफिया को समझ पाना और इसे उखाड़ फेंकना एक असंभव सा काम बन गया है.

इस माफिया को समझने के लिए एक प्रयोग कीजिए अपने किसी मित्र से पूछिए कि भारत में सफल या समृद्ध लोगों की कल्पना करते हुए उनके सरनेम या जातिनाम बताये. आपको आश्चर्य होगा कि आपको ये सभी सरनेम ‘सवर्ण द्विजों’ के हीमिलेंगे. ये सरनेम आपको न्यायपालिका, सरकार, व्यापार, शिक्षा और प्रशासन इत्यादि के सभी आयामों में दबदबा बनाये हुए नजर आयेंगे. इसका क्या मतलब हुआ?

इसका ये मतलब हुआ कि समाज को ज़िंदा रहने के लिए भी जितने जरुरी विभाग-आयाम हैं उन सब पर “वर्ण माफिया” बैठा हुआ है. आप अनाज मंडियों और व्यापार में झांककर देखिये आपको “वैश्य वर्ण माफिया” बैठा मिलेगा. उस माफिया से बचकर कोई दूसरी जाति या सरनेम वाला व्यक्ति या समूह व्यापार या उद्यमिता नहीं कर सकता. न्यायपालिका और शासन, सरकार सहित धर्म में देखिये वहां “ब्राह्मण वर्ण माफिया” जमा हुआ है. वे कभी भी भारत में अपने वर्ण के दबदबे को कम नहीं होने देना चाहते, उनका न्यायबोध शासन बोध या शासन-प्रशासन का तरीका असल में आत्मरक्षण और यथास्थिति के रक्षण को समर्पित होता है. इसी तरह शिक्षा जगत को देखिये वहां भी “सवर्ण माफिया” ही मिलेगा.

शिक्षा जगत को गौर से देखिये वहां कौन से सरनेम या जातिनाम वाले लोग विभागाध्यक्ष, प्रोफेसर, डीन, चांसलर या वाइस चांसलर हैं? निश्चित ही सब के सब निर्विवाद रूप से ‘सवर्ण द्विज हिन्दू’ हैं. अब आगे देखिये कि शिक्षा, शिक्षण, प्रशिक्षण और ज्ञान विज्ञान, तकनीक सहित मानविकी, समाज विज्ञान आदि विषयों में भारत में रिसर्च और नवाचार क्यों इतना कमजोर और फटेहाल है? किन लोगों पर इसकी जिम्मेदारी डाली जानी चाहिए? दलितों आदिवासियों और उनके आरक्षण पर देश को कमजोर करने का आरोप लगता है लेकिन उनकी कुल जमा संख्या इन अकादमिक संस्थानों में दो प्रतिशत भी नहीं हैं.

भारत में 90 से 95 प्रतिशत पद सभी अकादमिक संस्थानों, स्कूलों कॉलेजों विश्वविद्यालयों में सवर्ण द्विज हिन्दुओं द्वारा भरे हुए हैं. अगर भारत सामूहिक रूप से शिक्षा जगत में फिसड्डी बना हुआ है तो ये सवर्ण द्विज हिन्दुओं की सोची समझी साजिश है, ये कहना गलत होगा कि ये उनकी कमजोरी के कारण हुआ है. मैं ये कहना चाहुंगा कि ये उनकी सफलता है वे जो चाहते हैं, वैसा कर रहे हैं. वे भारत को कमजोर गुलाम अशिक्षित और पिछड़ा बनाये रखना चाहते हैं इसके लिए वे जानते हैं क्या करना है और कैसे करना है. ये काम वे हजारों साल से कर रहे हैं. वे बहुत कुशल और सफल लोग हैं उन्हें मूढ़ या कमजोर कहना स्वयं में मूढ़ता होगी.

मैं इसे सोची-समझी साजिश क्यों कह रहा हूँ? ये बहुत गहरी और जरुरी बात है आइये इसे सरल भाषा में समझते हैं.

शिक्षा का अर्थ सिर्फ अक्षर ज्ञान और कमाकर खाना सीखना नहीं होता है. शिक्षा का अर्थ होता है एक मनुष्य होने के नाते अपने विशिष्ट व्यक्तित्व और अपने जमीर को पहचानते हुए अपने और अपने समाज के बारे में निर्णय लेकर उस पर अमल करने की ताकत हासिल करना. शिक्षा को इंसान बनने का या निर्णय लेने की ताकत हासिल करने का जरिया भी कहा जा सकता है. ऐसी शिक्षा का मतलब होगा कि व्यक्ति या समाज अपनी जिन्दगी, समाज की जिन्दगी और देश की जिन्दगी के बारे में तटस्थ और वैज्ञानिक ढंग से सोच सके और उसे बेहतर बनाने के लिए जमीनी कदम उठा सके.

अगर भारत की जनता में इस तरह की सोच पैदा होगी तो लोग सवाल उठाएंगे कि औरतों को बराबरी का हक क्यों नहीं है? क्यों उन्हें सैकड़ों साल तक शिक्षा, सम्मान और प्रेम से वंचित रखा गया? क्यों लाखों करोड़ों औरतों को उनके पतियों की लाशों पर ज़िंदा जलाया जाता रहा है? क्यों दलितों और स्त्रियों को एकजैसा घृणित समझते हुए हजारों साल तक शिक्षा और राजनीतिक सामाजिक प्रतिनिधित्व और अधिकारों से वंचित रखा गया है? क्यों भारत की रक्षा का एकमुश्त ठेका क्षत्रियों को देने के बावजूद (या शायद इसी कारण) भारत दो हजार साल तक युद्धों में हारता रहा है और कम से कम एक हजार साल गुलाम रहा है? क्यों शिक्षा का एकमुश्त ठेका ब्राह्मणों को देने के बावजूद (या शायद इसी कारण) भारत अनपढ़ और अन्धविश्वासी बना हुआ है? क्यों व्यापार का एकमुश्त ठेका वैश्यों को देने के बावजूद (या शायद इसी कारण) भारत इतना गरीब और बेरोजगार क्यों बना हुआ है?

भारत में अगर शिक्षा सच में ही फ़ैल जाए और दलितों, बहुजनों आदिवासियों की अधिकतम जनसंख्या तक पहुंच जाए तो फिर इतनी बड़ी संख्या पर हजारों साल से नियन्त्रण रखने वाले, इनका खून चूसने वाले धर्म और समाज व्यवस्था का क्या होगा? कौन फिर भगवान् से डरेगा? कौन जात-पात को मानते हुए बिना शर्त बेगार या गुलामी करेगा? कौन फिर लोकतंत्र में एक बोतल एक नोट के बदले चुपचाप वोट देकर पांच साल के लिए सो जायेगा? कौन फिर मंदिर मस्जिद के नाम पर दंगा करेगा? कौन होगा जो नसबंदी या नोटबंदी पर सवाल न उठाएगा? फिर कौन आंख कान बंद करके भक्ति करेगा? ये वास्तविक प्रश्न हैं जो भारत में शिक्षा के लिए जिम्मेदार लोग शिक्षा के संबंध में कुछ भी नया करने से पहले अपने आपसे जरुर पूछते हैं.

वे जब ये सवाल अपने आपसे पूछते हैं तो उन्हें उनकी “अंतरात्मा” से एक बड़ा भयानक उत्तर मिलता है. उन्हें उत्तर मिलता है कि वाकई अगर भारत की जनता शिक्षित हो गयी तो उनका “वर्ण माफिया” दस साल के भीतर मिट्टी में मिल जाएगा. इसीलिये वे अपने मुट्ठी भर लोगों को सत्ता बनाये रखने के लिए भारत की अस्सी प्रतिशत जनता को और स्वयं भारत को अज्ञान और अंधविश्वास के दलदल में फसाए रखते हैं. इसीलिये वे बहुत सोचे-विचारे ढंग से स्कूलों-कॉलेजों सहित पूरे शिक्षातंत्र को निकम्मा और बेकार बनाये रखते हैं.

भारत के स्कूलों-कॉलेजों की व्यवस्था देखिए. वहां विज्ञान, समाज विज्ञान, साहित्य, भाषा आदि किस ढंग से और क्यों पढ़ाया जाता है. विज्ञान को तोता रटंत की तरह पढ़ाने का असल कारण क्या है? समाज विज्ञान में लोकतांत्रिक चेतना और मानवाधिकार सहित समता और बंधुत्व की आदर्शों की बात को गायब करने का क्या कारण है? पहली कक्षा से बारहवी कक्षा तक अम्बेडकर, फुले, पेरियार, अछूतानन्द, गोरख, कबीर और नानक को शिक्षा से गायब कर देने का क्या कारण है? इन सवालों के साथ फिर ये भी सोचिए कि जिस वर्ण के कर्मकांडी और अन्धविश्वासी लोगों का समाज और शिक्षा व्यवस्था पर कब्जा है. उनका विज्ञान से या यूरोपीय वैज्ञानिक चेतना से या यहां गिनाये गए अम्बेडकर, कबीर जैसे नामों से क्या रिश्ता है? क्या वे सच में भारतीयों को विज्ञान या अम्बेडकर, पेरियार या कबीर सिखाने के हक में हैं? क्या बच्चों को सही अर्थ में विज्ञान सिखाने के बाद या कबीर पढ़ाने के बाद उन्हें अन्धविश्वासी देवी देवताओं गुरुओं आदि की भक्ति में झोंका जा सकता है? क्या वास्तव में विज्ञान सिखाने के बाद गुरुपूर्णिमा पर अंधविश्वास का चरणामृत उन्ही छात्रों को पिलाया जा सकता है? इन सबका एक ही उत्तर है – नहीं!

अगर भारत में सही तरीके की शिक्षा फ़ैल जाए तो न तो सवर्ण द्विज माफिया को कोई छात्र/छात्रा चरण स्पर्श करेगा, न पोंगा पंडित बाबाओं धर्मगुरुओं की गुलामी करेगा, न ही इनके फैलाए दंगों में लड़ने के लिए तैयार होगा. अब सवाल ये है कि भारत की शिक्षा और समाज पर नियन्त्रण रखने वाले लोग क्या ये सब होने देना चाहते हैं? अगर वे ये होने देना चाहते हैं तो उन्हें पिछले सत्तर सालों में या उसके भी पहले ज्ञात दो हजार साल के इतिहास में किसने रोका था? बात एकदम साफ़ है कि ये वर्ण माफिया जान बूझकर समाज को शिक्षा से वंचित बनाता आया है ताकि इसका एकाधिकार इस देश पर बना रहे.

कल्पना कीजिये अगर सच में ही यूरोपीय ढंग की वैज्ञानिक शिक्षा भारत में फ़ैल गयी तो शिक्षा, न्यायपालिका, शासन-प्रशासन आदि में मलाई खा रहे इस “वर्ण माफिया” के पास भारत की ऐतिहासिक रूप से लंबी गुलामी, कमजोरी, कायरता और धर्मान्धता सहित वर्तमान में जारी करोड़ों-करोड़ों गरीबों के शोषण और दमन से जुड़े सवालों के क्या जवाब होंगे? किसानों की आत्महत्या या मजदूरों के पलायन के सवालों के इनके पास क्या उत्तर हैं? ये वे सबसे गंभीर सवाल हैं जो भारत के सवर्ण द्विज हिन्दू शासक हजारों साल से टालते रहे हैं. ये सवाल अगर दलितों, आदिवासियों, बहुजनों और स्त्रीयों के मन में आ गया तो वे इस वर्ण माफिया को उखाड़ फेकेंगे.

इसका सीधा अर्थ ये निकलता है कि इस सवाल को उभरने से बचाने के लिए इस देश की शिक्षा व्यवस्था को लूला-लंगड़ा और अंधा-बहरा बनाये रखना जरुरी है. अभी वर्ण माफिया के “दैवीय आधिपत्य” को ही धर्म समझने वालों ने शिक्षा के साथ जो व्यवहार करना शुरू किया है उसे भी देखा जाना चाहिए. वे यूरोपीय ढंग की वैज्ञानिक और क्रिटिकल थिंकिंग पैदा करने वाली शिक्षा से भयानक ढंग से डरे हुए हैं. उन्हें पता है कि जैसे यूरोप में इस शिक्षा ने पुनर्जागरण लाकर धर्म और भगवान को उखाड़ फेंका है उसी तरह उनके धर्म और भगवन को भी ये शिक्षा उखाड़ फेंकेगी. इसीलिए भारत का वर्ण-माफिया हजारों साल से शिक्षा को बर्बाद करने का संगठित षड्यंत्र चलाता आया है.

भारत की अस्सी प्रतिशत बहुजन आबादी को और कुल जनसंख्या की पचास प्रतिशत स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखने वाले शास्त्र रचना कोई सामान्य बात नहीं है. ये वर्ण-माफिया को बनाये रखने की धर्मसम्मत और शास्त्रसम्मत रणनीति रही है. ये आज भी जारी है. इसी राजनीति ने भारत को अनपढ़, विभाजित, कमजोर, डरपोक और गरीब बनाया है.

सोचिये अगर भारत के अस्सी प्रतिशत दलित और शूद्र शिक्षित हो सकते, शस्त्र और शास्त्र उठा सकते तो मुट्ठी भर मंगोल, शक, हूण, यूनानी या ब्रिटिश भारत को जीत सकते थे? भारत बार बार हारा क्योंकि अस्सी प्रतिशत जनता न किताब उठा सकती थी न तलवार उठा सकती थी. आज भी इन अस्सी प्रतिशत को दबाने और सताने में ही भारत की कुल जमा समझदारी और ताकत खर्च हो रही है इसीलिये भारत किसी भी क्षेत्र में अपने समकक्ष देशों या यूरोप अमेरिका से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है.

जिस घर में मुखिया अपने ही परिवार के शोषण और दमन में अपनी सारी ताकत खर्च किये दे रहा हो उसका पड़ोसियों से बार बार हार जाना एकदम स्वाभाविक सी बात है. भारत का सवर्ण माफिया अपने ही अस्सी प्रतिशत जनसंख्या के खिलाफ षड्यंत्र और अपराध करता रहता है इसलिए उन्हें दुनिया के अन्य सभ्य देशों के बराबर खड़े होने की तैयारी का समय ही नहीं मिलता. घर के भीतर घमासान मचा हुआ है, भारत के अंदर महाभारत और राष्ट्र के भीतर महाराष्ट्र का दबदबा बना हुआ है, ऐसे में पडौसियों से हारने और पिटने से कौन बच सकता है? यही भारत का कुल जमा इतिहास है.

शिक्षा और नवजागरण को रोके रखने के लिए भारत का वर्ण-माफिया बहुत बड़ी कीमत चुकाता आया है. भारत की गुलामी से बड़ी कीमत क्या हो सकती है? इस पर मजा देखिये कि जिन लोगों ने भारत को अशिक्षित कमजोर और विभाजित रखकर इसे गुलाम बनने और हारने पर मजबूर किया वे आज हमें राष्ट्रवाद सिखा रहे हैं. और शिक्षा सहित शिक्षा के पूरे तंत्र को बर्बाद करने का सबसे बड़ा प्रयास भी आरंभ कर चुके हैं.

जयंती विशेषः इस दलित साहित्यकार ने सिर्फ एक दिन स्कूल जाकर लिख डाला 34 उपन्यास

अपने छात्र जीवन में मैं साहित्य का छात्र नहीं रहा. बाद के दिनों में भी कविताओं से कम ही लगाव रहा. इसके बावजूद मुझे रविंद्रनाथ टैगोर का नाम पता है, हिंदी-अंग्रेजी के नामचीन कथाकारों-साहित्यकारों के बारे में जानता हूं. फिर आखिर अण्णाभाऊ जैसा महान साहित्यकार कैसे छूट सकता है. कुछ मराठी मित्रों से उनके बारे में काफी कुछ जानने को मिला तो यह भी साफ हो गया कि आखिर मैं उनके बारे में बहुत क्यों नहीं जान पाया. वजह उनका दलित होना है. वाल्मीकि से लेकर रैदास और फिर डॉ. अम्बेडकर तक दलित समाज के महापुरुषों के विचारों को दबाया जाता रहा है. ब्राह्मणवादी समाज की यह कोशिश रही है कि न तो इनके विचार दलित समाज तक पहुंचे और न ही नई पीढ़ी अपने इन महापुरुषों के बारे में जान पाए.

अन्नाभाऊ साठे का जन्म 1 अगस्त 1920 में हुआ. उनका पूरा नाम तुकाराम भाऊ साठे था लेकिन वह अण्णाभाऊ साठे के नाम से विख्यात हैं. वह विश्वविख्यात साहित्यकार हैं. वह महाराष्ट्र के दलित परिवार में जन्मे. महज एक दिन के लिए स्कूल गए. लेकिन इसी एक दिन की सीख ने उन्हें सामाजिक प्रताड़ना की अवहेलना सहने की दीक्षा दे दी. उन्होंने ठान लिया कि जिस व्यवस्था ने उन्हें प्रताड़ित किया है, अपनी प्रतिभा से एक दिन उसके मुंह पर तमाचा जरूर मारेंगे. जिस स्कूल में उन्हें अपमानित होना पड़ा था उन्होंने दुबारा कभी उसका मुंह तक नहीं देखा. मुंबई में साईन बोर्ड के अक्षरों को देखकर और उन्हें बोर्ड पर रंगकर उन्होंने पढ़ना और लिखना सीखा. और मनुवादी व्यवस्था से जूझते हुए खुद को साबित भी किया.

मूलरूप से मराठी में लिखने वाले अण्णाभाऊ के कलम की ताकत इतनी थी कि विश्व के 27 भाषाओं में उनकी रचनाओं का अनुवाद किया गया. वह दलित-जीवन का सशक्त चित्रण करनेवाले पहले बड़े लेखक थे. उन्होंने विविध कहानियां लिखी. उनकी रचना में समाज के निम्न स्तर के शोषितों, पीड़ितों के जीवन का संसार दिखाई देता है. उन्होंने जो जीवन जिया उसी का चित्रण किया. उसमें कल्पना का अंश नहीं था. उनके पात्रों को रोटी-कपड़ा-मकान की मूलभूत जरूरतों के लिए खून-पसीना एक करना पड़ता था और सामाजिक अवमानना को भी झेलना पड़ता था. इसी परिवेश में विद्रोह के बीज बोए जाते हैं. आनेवाले परिवर्तन की आहट इन कथाओं में सुनी जा सकती है.

साठेजी प्रतिबद्ध रचनाकार थे और बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर के आंदोलन से भी प्रभावित थे. वे शोषण के और धर्म-पाखंड के विरोधी थे.उनकी कहानियों के चर्चित होने का एक और कारण अपनी रचनाओं द्वारा दलितों के उन्मुक्त जीवन का चित्रण भी था. साथ ही उन पर आदर्शवाद का भी प्रभाव था. उनके समानांतर दलित युवा रचनाकारों को अभिव्यक्ति के खतरे उठाने का अनुकूल वातावरण मिल गया. दलित साहित्य के आंदोलन के रूप में मराठी की साहित्यिक संस्कृति में एक तूफान-सा आ गया.

अण्णाभाऊ ने लिखा ‘जग बदल घालूनू घाव गेले मला सांगूनी भीमराव’ (इस दुनिया को बदलना है. मुझे भीमराव ने यहीं सीखाया है). यह माना जा सकता है कि बाबासाहेब द्वारा शुरु किए गए आंदोलन का साहित्य की दुनिया में सही मायने में प्रतिनिधित्व अण्णाभाऊ ने ही किया. उनकी रचनाओं में संघर्ष एवं वर्णवर्चस्ववादी व्यवस्था के प्रति तथा उसमें पीसने वालों के प्रति कड़वी टिपण्णीयां हैं जो पाठकों को समाज से जोड़े रखती है. यह आज भी होता है इसीलिए अण्णाभाऊ आज भी मराठी साहित्य के महानतम लेखकों मे से एक है.

अण्णाभाऊ ने 34 उपन्यास, 13 नाटक, कई पोवाडा गीत, 14 वगनाटिकाएं और एक प्रवास वर्णन लिखा. उनकी लेखनी किस स्तर की होगी यह इसी से समझा जा सकता है कि उनकी तकरीबन सभी रचनाओं का अनुवाद दुनिया भर की 27 भाषाओं मे किया गया. मराठी साहित्य जगत के शायद ही किसी लेखक को यह सम्मान मिला हो. वहीं अगर भारत देश की बात करें तो भी ऐसे लेखक विरले ही मिलेंगे. लेकिन जहां एक के बाद एक अद्भुत रचना करते हुए उन्होंने अपने साहित्य का अंबार लगा दिया तो दूसरी ओर साहित्य के इस दमकते सितारे की चमक को कम करने की हर संभव कोशिश की जाती रही.

विदेशों में भारत की पहचान को बुलंद करने वाले इस साहित्याकर को अपने ही देश में तमाम उपेक्षाओं का शिकार होना पड़ा. कहने को इनके नाम पर डाक टिकट भी जारी हुआ. महाराष्ट्र में कुछ जगहों पर मूर्तियां भी बनीं. लेकिन जितनी प्रसिद्धी पर इनका हक था, वह उन्हें नहीं मिल सका. मराठी साहित्यकारों की दुनिया ने इस महान साहित्यकार को हमेशा उपेक्षित रखा गया. विदेशों में उन्हें सबसे अधिक सम्मान रशिया में मिला. कहा जाता है कि वह रशिया में इतने प्रसिद्ध थे कि एक वक्त था जब रशिया ने अण्णा के नाम को देखते हुए और उनके भारतीय होने के कारण भारत को बड़ी मदद की थी. लेकिन विदेशों में मान्यता और सम्मान मिलने के बावजूद वह अपने ही देश में आज तक उचित सम्मान नहीं पा सके. 18 जुलाई 1969 को उनका महापरिनिर्वाण हो गया.

14 साल के बच्चे की मौत का कारण बना ऑनलाइन गेम ‘द ब्लू व्हेल’

खूनी इंटरनेट गेम ‘ब्लू व्हेल’ ने मुंबई में एक 14 साल के बच्चे की जान ले ली है. अंधेरी ईस्ट में रहने वाले इस बच्चे ने शनिवार को सातवीं मंजिल से छलांग लगा ली, इस बच्चे को ऑनलाइन सुसाइड गेम का शिकार बताया जा रहा है. अभी तक इस खूनी खेल ने रूस में 130 लोगों की जान ले ली है। मुंबई की घटना में सुसाइड वाली बात का पता मनप्रीत सिंह साहनी के दोस्त के व्हाट्सऐप ग्रुप से चला. मनप्रीत ने पिछले हफ्ते अपने दोस्तों से कहा था कि वह अब सोमवार से स्कूल नहीं आएगा.

आइए जानते हैं क्या है ये खेल, और कैसे ले लेता है टीनएजर्स की जान-

द ब्लू व्हेल गेम’ या ‘द ब्लू व्हेल चैलेंज’ रूस में बना इंटरनेट गेम है. इस गेम में एक-एक कर सारे टास्क पूरे करते रहने पर आखिरी में सुसाइड के लिए उकसाया जाता है. साथ ही हर टास्क पूरा होने के साथ प्लेयर को अपने हाथ पर एक कट लगाने के लिए कहा जाता है. आखिरी में कट के निशान से व्हेल की आकृति उभर कर आती है।

 इस गेम के तहत 50 दिनों का चैलेंज यानि कि खास तरह का टॉस्क का मैसेज सोशल मीडिया पर सर्कुलेट किया जाता है। इस चैलेंज में प्लेयर को हर दिन चैलेंज पूरा करने के लिए उकसाया जाता है। चैलेंज को पूरा करने के बाद इस खूनी खेल के खिलाड़ी को एक प्राइवेट ग्रुप में अपनी सेल्फी पोस्ट करनी होती है, जिसके जरिए उसे बताना होता है कि उसने चैलेंज पूरा कर लिया है। इस गेम का आखिरी चैलेंज आत्महत्या है। यह गेम टीनएजर्स में ज्यादा पापुलर है और उन्हीं की जाने गई है।

किसने शुरू किया यह खूनी खेल

यह गेम रूसी नागरिक फिलिप बुडेकिन ने 2013 में बनाया था. रूस में पहला सुसाइड 2015 में सामने आया था. इसके बाद फिलिप को गिरफ्तार कर लिया गया और उस पर केस चला. सुनवाई के दौरान फिलिप ने बताया कि उनके गेम का मकसद समाज की सफाई करना है. जिन लोगों ने गेम खेलते हुए आत्महत्या की है, फिलिप की नजर में वे ‘बयोलॉजिकल वेस्ट’ थे.

बता दें कि बीते शनिवार को साहनी अपनी बिल्डिंग के सातवें फ्लोर की छत पर चढ़ गया. आस पास रहने वालों ने उसे आवाज दी, लेकिन जब तक वह कुछ कर पाते मनप्रीत अपनी छत से छलांग लगा चुका था.

भारी हंगामे के बीच राज्यसभा में पास हुआ ‘राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग’ बिल

नई दिल्ली। राज्यसभा में नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास बिल भारी हंगामे के बीच पास हुआ. 31 जुलाई की शाम को इस बिल पर राज्यसभा में वोटिंग शुरू हुई, तो विपक्ष ने संशोधन पेश करने शुरू कर दिए. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत के जवाब के बाद विपक्षी दलों ने अपना संशोधन वापस ले लिया, लेकिन जब बिल के प्रावधानों पर वोटिंग शुरू हुई, तो कांग्रेस के नेता संशोधन पर अड़ गए.

बाद में इस बिल का तीसरे क्लॉज के बिना ही पास करना पड़ा, क्योंकि तब सदन में सत्ता पक्ष के ज्यादातर सदस्य नदारद थे. ये 123वां संविधान संशोधन विधेयक है, जिसके तहत पिछड़ा वर्ग आयोग को भी संवैधानिक दर्जा मिल जाएगा. सूत्रों का कहना है कि राज्यसभा में सदस्यों की गैरहाजिरी से सरकार की किरकिरी से प्रधानमंत्री मोदी नाराज हैं. मंगलवार को भाजपा संसदीय दल की बैठक है, जिसमें इस मामले पर भाजपा के राज्यसभा सदस्यों की क्लास भी लग सकती है. बैठक में इस पर सांसदों को जवाब देना होगा कि आखिर क्यों वो सदन में मौजूद नहीं थे. संसदीय कार्य मंत्री ने इस पूरे मसले पर अनुपस्थित सांसदों से कारण बताने को कहा है.

दरअसल राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के लिए एक क्लॉज पर संशोधन पेश करने पर राज्यसभा में दिलचस्प स्थिति पैदा हो गयी. विपक्ष की ओर से एक संशोधन के लिए बहुमत हो गया और सरकार के लिए फजीहत की स्थिति पैदा हो गयी. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सत्ता पक्ष के बहुत सारे सांसद सदन में मौजूद ही नहीं थे.

आपको बता दें कि इस विधेयक को पारित कराने के लिए 245 सदस्यीय सदन में मौजूद सांसदों में से दो तिहाई का इसके पक्ष में होना जरूरी था. लेकिन कई मंत्रियों की गैरहाजिरी ने सरकार की मुसीबत बढ़ा दी.विपक्ष का संशोधन 52 के मुकाबले 74 मतों से पारित हो गया. भाजपा के जदयू को मिलाकर सदन में 89 सदस्य हैं. विधेयक पारित नहीं होने पर पिछड़े वर्ग को निराशा को ध्यान में रखते हुए आखिर में नियम तीन को हटाकर जब विधेयक पर मतदान कराया , तो इसके समर्थन में 124 वोट पड़े. किसी ने भी इसके खिलाफ वोट नहीं दिया.

एनकाउंटर में मारा गया आतंकी अबु दुजाना

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा के हकरीपोरा गांव में सुरक्षा बलों ने एनकाउंटर में लश्कर के कमांडर अबु दुजाना और आरिफ को मार गिराया है.

इससे पहले के घटना क्रमों में पुलवामा के हकरीपोरा गांव में मंगलवार सुबह गोलियों के चलने की आवाजें सुनाई दी थीं. दरअसल यहां सुरक्षा बलों का सर्च ऑपरेशन चल रहा था. इसके बाद यहां गोलियां चलने की आवाज़ आई और आतंकियों के साथ सुरक्षा बलों के मुठभेड़ की ख़बर सामने आई थी. इसके बाद यहां सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच एनकाउंटर में सुरक्षा बलों ने 2-3 आतंकवादियों को घेरा हुआ था. बता दें कि अबु दुजाना लश्कर का खूंखार आतंकवादी था और उसके सिर पर लाखों रुपये का ईनाम था.

बीते रविवार को भी जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए एनकाउंटर में सुरक्षाबलों ने दो आतंकियों को मार गिराया था. यह एनकाउंटर पुलवामा के तहाब इलाके में हुआ था. इसके बाद से जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सुरक्षाबलों ने इलाके को घेर सर्च ऑपरेशन चलाया हुआ था.

जम्मू-कश्मीर के डीजीपी ने अबु दुजाना के पुलवामा एनकाउंटर पर कहा है कि अभी शवों की बरामदगी होना बाकी है. शवों की बरामदगी के बाद उनकी पहचान के बारे में बताया जाएगा. पुलवामा में हुए आंतकियों के साथ मुठभेड़ में दो आंतकियों की मौत के बाद इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है. आंतकियों के साथ मुठभेड़ के बाद इलाके में सुरक्षाबलों पर पत्थरबाज़ी की घटनाएं शुरु हो गई है. इस बीच सूत्रों के हवाले से ख़बर आ रही है कि मुठभेड़ में लश्कर कमांडर अबु दुजाना और आरिफ मारे गए हैं. हालांकि आधिकारिक बयान से इस ख़बर की पुष्टि होनी अभी बाकी है. सूत्रों की मानें तो एनकाउंटर के दौरान घर को बम धमाके से उड़ाने में दोनों आतंकियों की मौत हुई है.

बता दें कि पिछले कुछ समय से कश्मीर में घुसपैठ और मुठभेड़ की घटनाओं में काफी तेजी आई है. पुलिस की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक इस साल अब तक करीब 102 आंतकियों को सुरक्षाबलों ने मार गिराया है. प्रशासन द्वारा दिया यह आंकड़ा पिछले सात सालों में अब तक का सबसे बड़ी संख्या है. बता दें कि सेना को खबर मिली थी कि पुलवामा में तहाब इलाके के एक गांव में आतंकी छिपे हैं. जिसके बाद सुरक्षाबलों ने घर-घर तलाशी अभियान चलाया था और इसी अभियान के तहत एक घर में छिपे दोनों आतंकियों को घेर सुरक्षाबलों ने एनकाउंटर में दो आंतकवादियों को मार गिरा दिया था.

दूरदर्शन की ”लोगो” प्रतियोगिता, विजेता को 1 लाख का ईनाम

नई दिल्ली। बदलते जमाने के साथ-साथ दूरदर्शन भी बड़े बदलाव में जुट गया है. दूरदर्शन समाचार से लेकर, कार्यक्रमों के प्रस्तुतिकरण उसके कंटेंट को लेकर प्रसार भारती इन दिनों विशेषज्ञों के साथ जुटा है.

इस बीच, लंबे समय से दूरदर्शन की पहचान बन चुके उसके खास ‘लोगो’ को भी बदलने की कवायद शुरू कर दी गई है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि अपने सबसे पुराने दूरदर्शन चैनल के लिए लोगों का आकर्षण बढ़े इसके लिए ‘लोगो’ डिजाइन में जन-सहभागिता को अपनाया गया है.

पांच दशक से ज्यादा, 58 साल पुराने दूरदर्शन के इस खास चिन्ह में नयापन देने वाले और प्रतियोगिता में विजय होने वाले को बतौर पुरस्कार राशि एक लाख रुपए नगद रखी गई है. अब तक की यह सबसे बड़ी राशि मानी जा रही है. इससे पहले स्वच्छता अभियान के लोगो डिजाइन करने वाले प्रतियोगिता में विजय होने वाले कोल्हापुर के अनंत खसबरदर को प्रधानमंत्री ने 50 हजार रुपए का नगद ईनाम दिया था.

इस लिहाज से दूरदर्शन लोगो डिजाइन करने वाली प्रतियोगिता में विजेता को दोगुनी रकम बतौर पुरस्कार दी जाएगी. डीडी ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि दूरदर्शन के लोगो से सालों पुरानी यादें जुड़ी हैं. प्राइवेट चैनलों के कम्पटीशन के चलते युवाओं की एक नई पीढ़ी को इससे जुड़ने की जरूरत है.

इसीलिए भारत के युवा को डीडी से जोड़ने के लिए चैनल नया लोगो लाना चाहता है. डीडी ने आगे कहा है कहा है कि डीडी सभी भारतीयों को नए लोगो डिजाइन कम्पटीशन के लिए आमंत्रित करता है. कम्पटीशन में भाग लेने के लिए आपको 13 अगस्त 2017 तक आवेदन आप कर सकते है. किसी एक शख्स या फिर एक संस्थान के लिए एक ही एंट्री मान्य होगी.

गौरतलब है दूरदर्शन का लोगो लंबे समय से कई लोगों के जहन में बसा है. महाभारत, रामायण, मालगुडी डेज, शक्तिमान और न जाने कितने ही शोप-ओपेरा कार्यक्रमों से देशभर में कई लोगों की यादें डीडी चैनल से जुड़ी हैं.

शिवराज सरकार के खिलाफ ग्रामीणों ने किया ‘कफन सत्याग्रह’

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भोपाल। नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर बांध के डूब प्रभावितों के पुनर्वास का सोमवार को आखिरी दिन था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ाकर 8 अगस्त कर दिया है. उधर प्रभावितों ने सुबह नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं के साथ खंडवा-बड़ौदा हाईवे पर चक्काजाम कर सरकार के खिलाफ जमकर नारे लगाए. इसके पहले कारंजा चौक पर कफन सत्याग्रह किया गया. इसमें 10 महिला-पुरुषों को सड़क पर लेटाकर सफेद चादर (कफन) ओढ़ाई गई. वहीं कुछ लोग अभी भी पानी में डूबकर जल सत्याग्रह कर रहे हैं.

चिखल्दा में नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रमुख मेधा पाटकर उपवास पर बैठी हैं तो कुछ लोग अपना सामान समेट रहे हैं. गांव के गजानंद सेन नर्मदा नगर में विस्थापन की तैयारी करने में लगे दिखे. वे बेटियों के साथ सामान शिफ्ट करने के लिए लोडिंग वाहन में सामान रखवा रहे थे. उन्होंने बताया नर्मदा नगर में किराए पर मकान लिया है, ताकि डूब आने से पहले परिवार को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा सके. उधर, डूब प्रभावित सरकारी मदद की बजाय खुद विकल्प तलाशने में लगे हैं. 400 परिवारों ने स्वयं पुनर्वास की व्यवस्था करने का वचन पत्र दिया है.

डूब प्रभावितों का कहना है सरकार ने बसाहट केंद्र बना दिए, लेकिन बिजली, पानी, सड़क, नाली जैसी कोई सुविधाएं ही नहीं. प्राइवेट कॉलोनियों में सुविधाएं न देने पर कंस्ट्रक्शन एजेंसियों पर कानूनी दबाव बनाया जा रहा है. यह नियम सरकार खुद पर लागू क्यों नहीं कर रही है.

जल सत्याग्रह

शिकायत निवारण प्राधिकरण में 2000 से 2017 तक 25 हजार से ज्यादा मामलों में बसाहटों पर परेशानियों के मामले हैं. 4 हजार से ज्यादा बसाहटों पर समस्याओं से जुड़े मामले भी हैं. बड़वानी जिले में प्रशासन का दावा है कि 38 पुनर्वास स्थलों पर 700 से ज्यादा परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है. 2392 से ज्यादा परिवार हटने को तैयार नहीं.

उधर, राजघाट स्थित नर्मदा में 24 घंटे में आधा मीटर जल स्तर बढ़ा है. रविवार शाम 6 बजे 120.550 मीटर तक जलस्तर पहुंच गया. शनिवार शाम को 120.000 मीटर जल स्तर दर्ज किया गया था. एक सप्ताह में करीब 3 तीन मीटर पानी बढ़ा है. खतरे का निशान 123.280 मीटर पर है. खलघाट में जलस्तर 128.900 मीटर है.

सवर्ण से नहीं देखा गया दलित का विकास, कर दिया कत्ल

ललितपुर। दलितों की तरक्की लोगों को कभी हजम नहीं होती. शिक्षा हो या व्यापार हर क्षेत्र में दलितों से चिढ़न के सैकड़ो उदहारण है पर अभी ताजा मामला उत्तर प्रदेश के ललितपुर का है. जहां दुकान के सामने वाले व्यापारी ने दलित युवक का अच्छा कारोबार होने के कारण गुस्से में कत्ल कर दिया. गनेश निवासी ग्राम कुष्मांड थाना सौजना ने अपने भाई का शव मिलने की सूचना पुलिस को दी थी. इस संबंध में पुलिस ने मामले को धारा 302,201,120b IPC व 3(2)5 SC/st act में पंजिकृत कर विवेचना प्रारम्भ की. कत्ल का आरोप देव सिंह सहित 4 अज्ञात पर लगा. पुलिस की विवेचना में मुख्य आरोपी देवसिंह के साथ भगवानदास पुत्र प्यारेलाल, किसना पुत्र हरदेव तथा रमला पुत्र रल्ली अहिरवार को गिरफ्तार कर लिया गया. हत्या मे प्रयुक्त एक अदद तमंचा, एक जिंदा व एक खोखा कारतूस भी बरामदगी की गई.

बता दें की सौजना थाना, ग्राम गौना कुसमाड़ से चढरा की तरफ जाने वाली रोड़ के पास एक कुंआ है. उसमें ग्रामीण की लाश मिलने से क्षेत्र में सनसनी फैल गयी थी. सूचना पर सौजना पुलिस ने मौके पर जाकर शव को कुंआ से बाहर निकलवाकर देखा था तो मृतक के शरीर पर गोली का घाव बताया जा रहा था. मृतक की शिनाख्त उसके भाई और उसकी पत्नी काशी बाई ने थनुआ अहिरवार (52 वर्ष) पुत्र फुंदिया निवासी ग्राम कुसमाड के रूप में की थी. पुलिस शव को कब्जे में लेकर जिला मुख्यालय पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और मामले की जांच में जुट गयी. इस सम्बन्ध में ग्रामीणों से पूंछतांछ भी की गई थी. मृतक के भाई ने बताया कि हम सभी लोग अपने घर में बैठे हुए थे. तभी देर शाम लगभग आठ बजे गांव का ही एक व्यक्ति काशीराम पुत्र अजुद्दी उसे यह कहकर बुला ले गया कि तुम्हें भगवान दास ने बुलाया है.

उसके बाद जब वह देर रात तक नहीं आया तब उसकी तलाश की गई मगर अंधेरा होने के कारण उसके बारे में कुछ भी पता नहीं चला. सुबह सूचना मिली थी उसकी लाश गांव के बाहर जाने वाले एक सड़क के किनारे पड़ी हुई है. गांव के ही एक व्यक्ति शिशुपाल सिंह ने बताया कि जब रात्रि में उसे जिस जगह बुलाया गया तो वहां पर पहले से ही भगवान दास पुत्र प्यारेलाल कृष्णा, राजा पुत्र हरदेव देवी सिंह पुत्र गणेश जी तथा रमला के साथ कुछ और व्यक्ति मौजूद थे. वहीं पर इन लोगों के बीच कोई बात विवाद हुआ होगा और इसी बीच इन लोगों ने मिलकर उसकी हत्या कर दी. वारदात को छुपाने के लिए उसका सब पास बने एक कुएं में फेंक दिया. बताया गया है कि उसके सीने में एक सुराग था जो शरीर के आर पार था. जिससे अनुमान लगाया जा रहा है की उसे गोली मारी गई है.

ग्रामीणों के अनुसार थानुआ को बुलाकर उसकी हत्या कुछ चिन्हित लोगों ने की है मगर इस हत्या के पीछे का कारण कोई स्पष्ट रुप से नहीं बता पा रहा था. मगर जब इसके संबंध में पुलिस ने गांव की अलग-अलग व्यक्तियों से अलग-अलग पूछताछ की. तब हत्या का कारण स्पष्ट रुप से सामने आया. गांव वालों ने बताया कि दोनों ही व्यक्तियों की दुकानें आमने सामने थी. दुकानदारी को लेकर पहले भी कई विवाद हो चुके थे. जो गांव वालों की मदद से निपटाए गए थे.

अब स्नैपडील के 80% कर्मचारी हो जायेंगे बेरोजगार

नई दिल्ली। ई-कॉमर्स की मशहूर कंपनी स्नैपडील इस वक्त अपने बुरे दौर से गुजर रही है. स्नैपडील पर इस वक्त आर्थिक रुप से मंदी आ चुकी है. सोमवार को कंपनी ने खुलासा किया कि उसने एक प्रतिनिधिमंडल नियुक्त किया है जो 80 प्रतिशत कर्मचारियों की जल्द छंटनी कर देगा. स्नैपडील के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि प्रबंधन ने मौखिक रूप से सभी विभाग के हेड से छंटनी किए जाने वाले कर्मचारियों की लिस्ट बनाने को कहा है.

बता दें की AANI की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि स्नैपडील के मालिक ने फ्लिपकार्ट से बात-चीत खत्म कर दी है. इसकी बजाय कंपनी फ्री-चार्ज बेंचकर 50 मिलियन डॉलर और अपने करीब 1000 कर्मचारियों की छुट्टी करके आगे बढ़ने की योजना बनाएगी. पिछले साल जुलाई में कंपनी के पास 9 हजार कर्मचारी थे. इन्हें बिना किसी नोटिस के 1200 तक लाया गया. अब महज 200 लोगों के साथ कंपनी आगे काम करेगी.

स्नैपडील को खरीदने के लिए फ्लिपकार्ट ने 1750 मिलियन डॉलर का ऑफर दिया था. माना जा रहा है कि ई-कॉमर्स बाजार में यह अब तक का सबसे बड़ा ऑफर है. स्नैपडील के मालिक पिछले दो महीने से मर्जर डाल रहे थे और अंततः मना कर दिया. सूत्रों के मुताबिक पिछले गुरुवार की शाम को कुनाल बहल और रोहित बहल ने अपने सभी टीम हेड से साफ-तौर पर कहा है कि अपनी टीम में कटौती का सारा कागजी काम कर डालिए. बता दें की स्नैपडील के इस कदम से हजारों कर्मचारियों को बड़ा झटका लगने वाला है

 

22 करोड़ जनता को छल रही भाजपा सरकारः मायावती

Mayawati

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने केंद्र और यूपी सरकार पर निशाना साधा है. बसपा सुप्रीमों ने कहा कि भाजपा अपने झूठे वायदों और आश्वासनों के आधार पर सरकार चला रही है. उन्होंने आगे कहा कि भाजपा खासतौर से यूपी की 22 करोड़ जनता को छल रही है. भाजपा ऐसे कब तक जनता को छलती रहेगी.

दरअसल, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने आज लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पार्टी और मोदी के मामूली कामों को उपलब्धि बताया. जिसका मायावती ने विरोध किया है. बसपा अध्यक्ष ने कहा केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी होने का लाभ यूपी की जनता को नहीं मिल रहा है. इसके विपरीत शिक्षा और रोजगार जुड़ी योजनाओं आदि पर केंद्रीय सहायता घटा दी गई.इतना ही नहीं जनहित व जनकल्याण की योजनाओं के संबंध में यूपी सरकार का योगदान अब तक लगभग ज़ीरो ही बना हुआ है.

मायावती ने कहा कि इसके अलावा अपराध-नियन्त्रण व कानून-व्यवस्था की स्थिति का तो काफी ज्यादा बुरा हाल है. यूपी में जंगलराज पनप रहा है. आज ही इलाहाबाद में प्रधानाचार्य पर कातिलाना हमला इस बात का प्रमाण है कि यूपी सरकार में अपराध ही अपराध बोल रहा है. प्रदेश की जनता आशंकित, भयभीत व आतंकित है. जनता सोच में पड़ गई है कि क्या बीजेपी के शासन में ऐसा ही कानून का राज होगा?

सेना के निशानेबाज सुशील घाले ने जीता गोल्ड

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नई दिल्ली। सेना के निशानेबाज सुशील घाले ने कुमार सुरेंद्र सिंह मेमोरियल निशानेबाजी चैम्पियनशिप (केएसएस) के तीसरे दिन शनिवार को 50 मीटर राइफल प्रोन कॉम्पिटिशन में स्वर्ण पदक जीता. सुशील ने शनिवार को डाक्टक कर्णी सिंह शूटिंग रेज में फाइनल में रेलवे के युवा खिलाड़ी स्वप्निल कुसाले को मात दी. सुशील ने फाइनल में 251.8 का स्कोर किया, जबकि स्वप्निल 247.4 का स्कोर कर दूसरे स्थान पर रहे. अन्य अनुभवी और ओलंपियन संजीव राजपूत ने 226.3 का स्कोर करके कांस्य पदक जीता. इससे पहले दूसरे दिन हरियाणा के युवा पिस्टल निशानेबाज अनीश ने पुरुषों और जूनियर वर्ग पुरुषों की 25 मीटर स्पर्धा में रैपिड फायर पिस्टल में दोहरी जीत हासिल की.

पुरुष फाइनल में अनीश ने ओलिंपिक रजत पदक विजेता विजय कुमार को 31-30 से हराया. सेना के ओलिंपियन गुरप्रीत सिंह 23 के स्कोर के साथ तीसरे स्थान पर रहे. 10 मीटर एयर राइफल का खिताब नौसेना का प्रतिनिधित्व कर रहे प्रतीक बोस ने जीता.

बता दें की केएसएस मेमोरियल निशानेबाजी चैंपियनशिप का समापन एक अगस्त को होगा, जिसके बाद राइफल और पिस्टल निशानेबाज साल की तीसरी और चौथी चयन प्रक्रिया में हिस्सा लेंगे. इससे इसी साल अक्टूबर-नवंबर में होने वाली राष्ट्रमंडल निशानेबाजी चैंपियनशिप के लिए भारतीय टीम का चयन करने में मदद मिलेगी. राष्ट्रमंडल निशानेबाजी चैंपियनशिप ऑस्ट्रेलिया में होगी जिसके लिए सुशील घाले का नाम पक्का माना जा रहा है.

राष्‍ट्रपति को तानाशाही शक्तियां देने का विरोध कर रहे 10 नागरिकों की मौत

वेनेजुएला में राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को असीमित शक्तियां देने के खिलाफ लंबे समय से प्रर्दशन चल रहा है. जिसके बाद अधिकतर लोगों ने मतदान से भी दूरी बना रखी है और बड़ी संख्या में लोग प्रदर्शन करने के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं. इस दौरान प्रदर्शनकारियों एवं बलों के बीच हुए संघर्ष में 10 लोगों की मौत हो गई. मतदान के जरिए सरकार वेनेजुएला पर पूर्ण राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करने की पूरी कोशिश कर रही है.

सरकार के इस कदम से अमेरिकी प्रतिबंध और नए सिरे से सड़कों पर दंगे होने की आशंका बढ़ गई है. अप्रैल से शुरू हुए इन संघर्षों में कम से कम 122 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 2,000 लोग घायल हुए हैं. हसा के कारण मतदान बुरी तरह प्रभावित हुए थे. प्रदर्शनकारियों ने मतदान केंद्रों पर हमला किया जिसके जवाब में सुरक्षा बलों ने गोलीबारी की. इस हिंसा में कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई.

अर्जेंटीना, कोलंबिया, पेरू, पनामा, और अमेरिका का कहना है कि वे इस मतदान को मान्यता नहीं देंगे. कनाडा और मैक्सिको ने भी चुनाव को अस्वीकार करने के संबंध में बयान जारी किया है. इस बीच, संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत निकी हेली ने एक ट्वीट में कहा,‘‘मादुरो का यह दिखावटी चुनाव तानाशाही की ओर एक और कदम है. हम अवैध सरकार को स्वीकार नहीं करेंगे. वेनेजुएला की जनता एवं लोकतंत्र की जीत होगी.’’राजधानी में करीब 20 लाख लोग हैं लेकिन दर्जनों मतदान केंद्र वस्तुत खाली रहे.

RJD का बड़ा खुलासा, वीडियो दिखाकर मांगा नीतीश का इस्तीफा

नई दिल्ली। बिहार की सत्ता से बेदखल होने के बाद से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) चुप बैठने के मूड में नहीं है. राजद नेता जगदानंद सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार पर हत्या का आरोप है. जगदानंद सिंह ने कहा है कि नीतीश कुमार बेदाग होने का दावा करते है लेकिन वो असल में हत्या के मामले में आरोपी हैं.

दर्ज प्राथमिकी में उनका नाम है. पीड़ित परिवार आज भी न्याय की मांग कर रहा है. इसलिए नीतीश कुमार को इस्तीफा देकर मामले में न्यायिक प्रक्रिया का सामना करना जाहिए. लालू यादव की पार्टी ने नीतीश कुमार से पूछा है कि आप हत्या के आरोपी हैं, सीएम पद पर कैसे बने रह सकते हैं.

सोमवार को राजद ने 1999 के सीताराम मर्डर केस का मुद्दा उठाते हुए नीतीश कुमार पर जोरदार हमला किया. आरजेडी मुख्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस केस के पीड़ित पक्ष का एक वीडियो टेप दिखाकर राजद नेताओं ने कहा कि नीतीश की बड़े अपराधियों से संबंध हैं और हत्या के आरोपी को सीएम के पद पर कैसे बने रह सकते हैं.

जगन्नाथ सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि नीतीश कुमार मर्डर केस और आर्म्स ऐक्ट में आरोपी हैं, इस केस में पीड़ित परिवार आज भी न्याय का इंतजार कर रहा है.

सिंह ने कहा कि बिहार में महागठबंधन किसी सिद्धांत या आदर्शवाद की वजह से नहीं टूटा. इसके पीछे सिर्फ एक शख्स है. नीतीश कुमार अपराध के सबसे बड़े पोषक और संरक्षक हैं. राज्य एक तरफ होता है और अपराधी दूसरी तरफ होता है. नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के पद पर बैठने का कोई हक नहीं है. बिहार की जनता को सच जानने का हक है.

जगदानंद सिंह राजद प्रदेश मुख्यालय में कहा कि सांप्रदायिकता से देश को बचाने के लिए महागठबंधन हुआ था. नीतीश कुमार ने जो आदर्श स्थापित करने की कोशिश की उसपर वह स्वयं खरा नहीं उतरे. वह भारत को खंडित होने के खतरे बढ़ाने वाली विचारधारा से समझौता कर चुके हैं. वहीं राज्य को खंडित होने से बचाना ही राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव का लक्ष्य है.