RBI ने घटाईं ब्याज दरें, सस्ता होगा कर्ज-घटेगी EMI

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अगस्त की मौद्रिक समीक्षा करते हुए केन्द्रीय रिजर्व बैंक ने देश में कारोबारी तेजी लाने के लिए रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती का ऐलान किया है. इस कटौती के बाद देश में कर्ज देने के लिए बेस रेट 6 फीसदी पर पहुंच गया है.

बाजार के जानकारों को रेपो रेट में हुई इस कटौती की उम्मीद थी. इससे पहले अक्टूबर 2016 में केन्द्रीय बैंक ने रेपो रेट में कटौती की थी. आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में दो दिन की मौद्रिक समीक्षा में यह फैसला लिया गया. केन्द्रीय बैंक के मुताबिक 6 सदस्यीय मौद्रीक समिति के 4 सदस्यों ने रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती करने की बात कही. वहीं एक सदस्य ने 50 बेसिस प्वाइंट कटौती करने के लिए अपना वोट दिया.

आरबीआई मौद्रिक नीति समीक्षा से ठीक पहले देश के अग्रणी उद्योग मंडल एसोचैम ने आरबीआई से ब्याज दरों में 25 आधार अंकों की कटौती करने का आग्रह किया है. एसोचैम ने हाल ही में सामने आए उन आंकड़ों के मद्देनजर आरबीआई से यह अनुरोध किया है, जिसके अनुसार देश की महंगाई दर पांच वर्षो के दौरान सबसे नीचे रही और फैक्टरी आउटपुट जबरदस्त रहा.

पटना मेडिकल कॉलेज ने कर्मचारियों से पूछा, क्या आप वर्जिन हैं?

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पटना। पटना के इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (IGIMS) ने अपने कर्मचारियों से घोषणा पत्र में बेहद अटपटे से सवाल किए हैं. मेडिकल कॉलेज में कर्मचारियों को भरने के लिए दिए गए घोषणा पत्र में मैरिटल स्टेटस के बारे में वर्जिनिटी से लेकर पत्नियों की संख्या जैसे निजी और आपत्तिजनक सवाल पूछे गए हैं.

कर्मचारियों से उनके मैरिटल स्टेटस में पूछा जा रहा है कि क्या वे वर्जिन/बैचलर/विडो हैं. इस फॉर्म में पत्नियों की संख्या भी पूछी गई है. इसी तरह घोषणा पत्र में कई आपत्तिजनक विकल्प दिए गए हैं जिसमें से एक है- ‘मैं शादीशुदा हूं और मेरी केवल एक जीवित पत्नी है.’

वहीं महिला कर्मचारियों को घोषणा पत्र में ‘मैं विवाहित हूं और मेरे अलावा मेरे पति की और कोई जीवित पत्नी नहीं है’ जैसे विकल्प दिए गए हैं. इस फॉर्म में एक अन्य विकल्प ‘मैं विवाहित हूं और मेरी एक से अधिक पत्नी है/ मैं ऐसे शख्स की विवाहिता हूं जिसकी मेरे अलावा एक और जीवित पत्नी है’ चुनने को दिया गया है.

फॉर्म में मैरिटल स्टेटस कॉलम में पूछे गए इस तरह के सवालों पर कर्मचारी हैरानी जता रहे हैं.

मोदी के गुजरात मे दलितों का सामूहिक बहिष्कार

वायब्रेंट गुजरात के आनंद जिले के खम्भात तालुके का एक गांव है फिणाव, जहां पर पिछले दो साल से 33 दलित बुनकर परिवारों का पूर्णत सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार जारी है, इस अमानवीय अन्याय के बारे में सत्ता, नौकरशाही और दलित नेता सब शर्मनाक ढंग से खामोश है. फिणाव में वैसे तो तीन दलित समुदाय निवास करते है, जिसमें बुनकर (वनकर) और वाल्मीकि शामिल है.

इन दलितों को वर्ष 1988-89 में ग्राम पंचायत ने राजकीय पाठशाला के कम्पाउंड के बाहर सड़क के पास 50 फिट जमीन देने का प्रस्ताव पारित किया और जमीन दलितों को सुपुर्द कर दी. इसी तरह की जमीन हर समुदाय को दी गई. जहां पर उक्त समुदायों ने अपने-अपने उपयोग के लिए सामुदायिक भवन बना लिये मगर दलित समुदाय के लोग वहां पर अर्थाभाव के चलते किसी प्रकार का निर्माण नहीं कर पाये. लेकिन गांव में सबको मालूम था कि यह जमीन का टुकड़ा दलित समुदाय का है. बस इतना किया गया कि दलितों ने जवाहर रोजगार योजना के पैसे से वहां पर एक चबूतरा बना लिया गया.

बाद में जब इस जमीन का कोई निरंतर उपयोग नहीं हुआ तो लोग वहां कचरा डालने लगे. इसके साथ ही यह भी हुआ कि सड़क का निर्माण के चलते यह जमीन नीचे चली गई तो चबूतरे को ऊंचा किया गया. साथ ही दलित समुदाय की सभी उपजाति के लोगों ने मिलकर तय किया कि एक अम्बेडकर हाल बनाया जाये और वहां पर बाबासाहेब अम्बेडकर की एक प्रतिमा अपने खर्च पर स्थापित की जाये. इस हेतु निर्माण स्वीकृति के लिए सितम्बर 2015 को ग्रामपंचायत और पटवारी को लिखित पत्र दिए गए. जब ग्राम पंचायत ने निर्माण स्वीकृति दे दी तो काम शुरू किया गया, जैसे ही गांव के बहुसंख्यक और वर्चस्व वाले पटेल समुदाय को यह पता चला कि दलित समुदाय के लोग डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा लगाने जा रहे है, उन्होंने खुलकर इसका विरोध शुरू कर दिया. लगभग 50 पटेल युवा मोटरसाईकलों पर सवार हो कर आये और उन्होंने दलितों को जातिगत गालियां दी और बाबासाहेब के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करने लगे, इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने काम भी बंद करवा दिया.

फिणाव के जागरूक दलितों ने इसकी शिकायत की. शिकायत करने में अग्रणी भूमिका में अशोक भाई वनकर थे. इसलिए वे पटेलों की निगाह में चढ़ गये. इस बीच 13-16 अक्तूबर 2015 को सुनवाई हुई. पंचायत ने कोर्ट में कहा कि यह जमीन दलितों को देने का प्रस्ताव ग्राम पंचायत में मौजूद है. इस तरह दलितों का पक्ष मजबूत हो गया और पटेलों को लगा कि वे कानून कमजोर पड़ रहे है. इसलिये उन्होंने अपनी संख्या और मजबूत होने का फायदा उठाते हुए गुंडई करने का निश्चय किया. 26 नवम्बर 2015 को अशोक भाई वनकर के परिवार पर हमला कर दिया. हमले में 70 वर्षीय इच्छा बेन, दक्षा बेन (38), प्रवीण भाई (35) और जिग्नेश (20) को गंभीर चोटें आई. अशोक भाई ने इस घटना का एट्रोसिटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवाया. जिसकी जांच हुई और चालान भी हुआ. इसके जवाब में पटेलों ने भी क्रोस केस किया, उसमें भी पुलिस ने कार्यवाईकी. एट्रोसिटी का मुकदमा अभी भी कोर्ट में है.

दलितों के इस तरह उठ खड़े होने और अन्याय का प्रतिकार करने का पटेलों ने बुरा माना. उन्हें लगा कि यह जो वर्षों से हमारे सामने हाथ जोड़े खड़े रहते हैं, वे कोर्ट कचहरी और हर सरकारी दफ्तर में उन्हें चुनौती दे रहे है. जोकि उनके लिए असहय हो गया. अंततः उन्होंने कबीलाई इंसाफ करने का निर्णय लिया.

फिणाव गांव के पटेलवासी में एकजुट हुए पटेलों ने वाल्मीकि और वनकर समुदाय के दलितों को वहां पेश होने का फरमान सुनाया. वाल्मीकि जाति के लोग वहां गये, उन्हें स्पष्ट चेतावनी दी गई अगर वे वनकर समुदाय का साथ देंगे तो गांव से उन्हें बहिष्कृत कर दिया जायेगा, खेतों पर काम भी नहीं दिया जायेगा. भूमिहीन खेतिहर मजदूर इन दलित समुदायों ने पटेलों के साथ रहने में ही अपनी भलाई समझी. मगर वनकर समुदाय के 33 परिवार ने एकमुश्त सर्वसम्मति से फैसला किया कि वे पटेलों के जुल्मों के सामने झुकेंगे नहीं. ना ही उनके गैरसंवैधानिक तरीके से लगाये गए इस मजमें में पेश होंगे. इसलिए वनकर नहीं गए. इससे जले भुने पटेलों ने वनकर समुदाय का सामूहिक रूप से सामाजिक बहिष्कार कर दिया.

पटेलवास की गैर कानूनी भीड़ ने यह अन्यायकारी निर्णय लिया कि अब से कोई भी पटेल किसी भी वनकर को अपने खेत में नहीं आने देगा. ना ही घास लेने देगा, ना दूध देगा, ना सब्जी बेचेगा, ना ही ट्रेक्टर किराये देगा. यहां तक कि कोई भी पटेल समाज का व्यक्ति वनकर समाज के व्यक्ति से बात भी नहीं करेगा,अगर कोई ऐसा करता हुआ पाया गया तो उससे 5000 रूपये जुरमाना दंड स्वरुप वसूला जायेगा . नतीजा यह हुआ कि बेहद सख्ती से यह बहिष्कार की पालना की जाने लगी .

फिणाव के 33 वनकर परिवारों में से अधिकांश सिर्फ खेत मजदूरी पर ही आश्रित थे. उनकी पीढ़ियां पटेलों के खेतों में बटाईदारी करते बीत गई थी. वो उनके खेतों में ही रोजगार करते थे. वहीँ से चारा अपने पशुओं के लिए लाते थे. एक तरह से वो अपनी आजीविका के लिए सम्पूर्ण रूप से पटेलों पर निर्भर करते थे. इसकी बहुत ही जायज वजह यह है कि गुजरात में ज्यादातर दलितों के पास खेती के लिए एक इंच भी जमीन नहीं है. यह भूमिहीनता उनको अन्य जातियों पर निर्भर होने को मजबूर कर देता है. वनकर समाज का जैसे ही बहिष्कार हुआ ,वे भी मुसीबत में फंस गए उनके सारे काम छिन गये, बटाई खत्म हो गई. उनको अपने पशुओं के लिए चारा तक पास के गांवों से खरीदना पड़ा और रोजगार के लिए इधर-उधर भटकना शुरू करना पड़ा मगर उन्होंने झुकने से इंकार कर दिया.

बहिष्कृत वनकर समुदाय ने अपने साथ हो रहे इस अन्याय के बारे में सरपंच, पटवारी, टीडीओ, डीडीओ, एसडीएम, एसपी और जिला कलेक्टर सबको लिखित आवेदनों के ज़रिये बताना शुरू किया. उन्होंने गुजरात के गृहमंत्री और अनुसूचित आयोग को भी सूचित किया. जिला कलेक्टर ध्रुव पटेल ने दिखावे के अन्य जिलाधिकारियों के साथ एक दिन फिणाव का दौरा भी किया. दोनों समुदाय के लोगों को बुलाया और समझाने की कोशिश की. इसके बाद वे लौट गए. बहिष्कार तो ख़त्म नहीं हुआ लेकिन बहिष्कार ख़त्म होने की खबर जरुर मीडिया में छपवा दी. मगर जब बहिष्कार जारी रहा तो दो-तीन बार वनकर समुदाय के लोग फिर से जिला कलेक्टर से मिलने गये. कलेक्टर जो कि स्वयं भी पटेल समुदाय से आते है, उनका रवैया भी जल्द ही बदल गया और उन्होंने दलितों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वे एट्रोसिटी का केस वापस ले ले तो सामाजिक आर्थिक बहिष्कार ख़त्म करवा सकते है.

फिणाव के 33 वनकर दलित परिवारों ने किसी भी दबाव में आने से इंकार कर दिया. उन्होंने कहा कि दलितों ने कुछ भी गलत नहीं किया. अपनी ही जमीन में बाबासाहेब की मूर्ति अपने ही खर्चे पर लगाना चाह रहे हैं. अन्याय हुआ तो कानून मुकदमा दर्ज करवाया और बहिष्कार भी झेला है. लेकिन अन्याय के सामने घुटने नहीं टेकेंगे. आज भी यहां के वनकर परिवार पूरे स्वाभिमान के साथ सर ऊंचा करके पटेलों से जंग लड़ रहे हैं. उनका कहना है कि मरना मंजूर है मगर दब कर रहना गवारा नहीं है.

आने वाले नवम्बर में उनके सामूहिक बहिष्कार को दो साल पूरे हो जायेंगे. इससे निजात पाने के लिए वनकर समाज के लोगों ने हर संभव प्रयास किया है. वे सरपंच से मुख्यमंत्री तक और पटवारी से मुख्य सचिव तक जा चुके है. अनुसूचित जाति आयोग के भी दरवाजे खटखटा चुके है. प्रधानमन्त्री तक को लिख चुके है और गुजरात के उभरते दलित नेता जिग्नेश मेवानी के पास भी जा चुके है ,मगर किसी भी स्तर पर कोई भी सुनवाई नहीं होने से यहाँ के वनकर समाज के संघर्षशील लोग नाराज है.

फिणाव के दलित तो अपनी पूरी ताकत से अन्याय के विरुद्ध लड़ रहे हैं. मगर प्रशासन और समाजसेवा के नाम पर नेतागिरी चमकाने वाले लोग कहां है? पूरी दुनिया में गुजरात मॉडल का ढोल पीटने वालों को इस गर्वी गुजरात में हो रहे दलितों का सोशल बॉयकाट क्यों नजर नहीं आ रहा है? मोदी जी, शाह जी और रुपाणी जी थोड़ी फुर्सत और संवेदना है आपके पास फिणाव के वनकरों के लिये?

अगर है तो इस अन्यायकारी अमानवीय सामाजिक आर्थिक बहिष्कार को ख़त्म करवाइए. नहीं करवा सकते है तो उनके रोजी रोटी का सम्मानजनक प्रबंध कीजिए, कोई गुनाह नहीं किया है. इन्होने बाबासाहेब की प्रतिमा लगाने की बात करना कोई गुनाह नहीं है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता है)

जयंती विशेष: रेलवे गार्ड रह चुके पिंगली वेंकैया ने बनाया था तिरंगा झंडा

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देश को तिरंगा देने वाले पिंगली वेंकैया का जन्म 2 अगस्त 1876 को वर्तमान आंध्र प्रदेश में हुआ था. मछलीपत्तनम से हाई स्कूल उत्तीर्ण करने के बाद वो अपने वरिष्ठ कैम्ब्रिज को पूरा करने के लिए कोलंबो चले गए. भारत लौटने पर उन्होंने एक रेलवे गार्ड के रूप में और फिर बेल्लारी में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में काम किया.

बाद में वो एंग्लो वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी भाषा का अध्ययन करने लाहौर चले गए. 19 साल की उम्र में ब्रिटिश इंडियन आर्मी से जुड़े और अफ्रीका में एंग्लो-बोएर जंग में हिस्सा लिया. वहीं उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई थी. उर्दू और जापानी समेत कई तरह की भाषाओं का उन्हें अच्छा ज्ञान था. वो जियोलॉजी में डॉक्ट्रेट थे. हीरे के खनन में भी उन्हें विशेषज्ञता हासिल थी. इसी वजह से उन्हें डायमंड वैंकय्या नाम दिया गया था. 1906 से लेकर 1911 तक वे कपास की फसल की अलग-अलग किस्मों के तुलनात्मक अध्ययन में व्यस्त रहे थे.

उन्होंने बॉम्वोलार्ट कंबोडिया कपास पर एक अध्ययन भी प्रकाशित किया था. इसके बाद उनका नाम पट्टी वैंकैया पड़ गया था. साल 1921 में पिंगाली ने केसरिया और हरा झंडा सामने रखा था. फिर जालंधर के लाला हंसराज ने इसमें चर्खा जोड़ा और गांधीजी ने सफेद पट्टी जोड़ने का सुझाव दिया था. पिंगाली का निधन 4 जुलाई 1963 को हुआ था.

शिवराज ने पी. वेंकैया की जयंती को बताया पुण्यतिथि, सोशल मीडिया पर उड़ा मजाक

भोपाल। राष्ट्र प्रेम के दावे करने में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का शायद ही कोई मुकाबला कर सके. लेकिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बुधवार (दो अगस्त) को सोशल मीडिया पर तब किरकिरी हो गई जब उन्होंने भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा की सबसे पहले परिकल्पना करने वाले पी. वेंकैया की जंयती को उनकी पुण्यतिथि बता दिया.

हालांकि यूजर्स के तीखे कमेंट के बाद सीएम शिवराज को इस गलती का अहसास हुआ और उन्होंने पुण्यतिथि का कमेंट डिलीट करके जयंती वाला कमेंट किया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी पिंगली वेंकैया की जयंती पर उन्हें नमन किया है.

शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट किया था, “पिंगली वेंकैया के पुण्यतिथि पर उनका स्मरण. वो न केवल एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थी बल्कि एक कलाकार भी थे जिसने हमें राष्ट्रीय ध्वज दिया.”

वरिष्ठ पत्रकार और समाजशास्त्री अभय दुबे ने ट्विटर पर लिखा, “चौहान जी जन्मदिन के दिन को मरण का दिन मना दिया आप ने, क्या इसे भी अब लोकतंत्र की हत्या समझा जाये.” एक अन्य यूजर ने शिवराज के ट्वीट पर कमेंट करते हुए कहा दिया कि इसीलिए आपको शिवराज कहते हैं.

 

भारत-श्रीलंका के बीच दूसरा टेस्ट कल से, सीरीज़ पर होगी टीम इंडिया की निगाहें

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नई दिल्ली। भारत और श्रीलंका के बीच तीन टेस्ट मैचों की सीरीज़ का दूसरा मैच गुरुवार से कोलंबो में खेला जाएगा. पहले टेस्ट मैच में शानदार जीत से उत्साहित टीम इंडिया दूसरे मैच में भी शानदार प्रदर्शन के दम पर सीरीज़ पर कब्जा जमाना चाहेगी. इन सबके बीच कप्तान विराट कोहली के सामने सलामी जोड़ी के चयन की दुविधा जरूर होगी. सलामी बल्लेबाज केएल राहुल वायरल की चपेट में आने के कारण पहला टेस्ट नहीं खेल सके थे. उनकी गैर मौजूदगी का हालांकि टीम के प्रदर्शन पर असर नहीं पड़ा और भारत ने 304 रन से पहला टेस्ट जीतकर तीन मैचों की सीरीज में 1-0 की बढ़त हासिल की.

राहुल अब बुखार से उबर चुके हैं और अपनी फिटनेस भी साबित कर दी है. दूसरे सलामी बल्लेबाज के लिए मुकाबला शिखर धवन और अभिनव मुकुंद के बीच होगा. धवन ने गॉल में पांचवां टेस्ट शतक जमाते हुए 168 गेंद में शानदार 190 रन बनाए थे. इससे भारत पहले ही दिन मज़बूत स्थिति में पहुंच गया था. मुकुंद ने दूसरी पारी में अर्धशतक जमाया, लेकिन शायद तब तक बहुत देर हो चुकी थी. राहुल के फिट होने पर मुकुंद को बाहर रहना पड़ सकता है. पिछली बार भी यहां खेलते वक्त भारत को सलामी जोड़ी की इस दुविधा का सामना करना पड़ा था. उस समय धवन और मुरली विजय दोनों बाहर थे और राहुल ने चेतेश्वर पुजारा के साथ पारी का आगाज किया था.

मेजबान टीम के लिए भारत की चुनौती काफी कठिन है. भारत टेस्ट रैंकिंग में पहले और श्रीलंका सातवें स्थान पर है. इससे फासले का पता चलता है. गॉल टेस्ट के बाद यह फासला और बढ़ गया है. एक साल पहले श्रीलंका ने ऑस्ट्रेलिया को 3- 0 से हराया था, लेकिन अब हालात एकदम बदल चुके हैं. उस समय पिचें भी अलग थी और श्रीलंकाई आक्रमण भी धारदार था.

सुशांत सिंह राजपूत कि नई फिल्म ‘चंदा मामा दूर के’

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नई दिल्ली। बॉलीवुड स्टार सुशांत सिंह राजपूत कि नई फिल्म ‘चंदा मामा दूर के’ इंडिया की पहली स्पेस एडवेंचरस फिल्म होगी, जिसमें सुशांत सिंह राजपूत एक्टिंग करते नजर आएंगे.

सुशांत सिंह राजपूत इन दिनों ‘नासा’ के स्पेस कैंप में स्पेस पर चलने की स्पेशल ट्रेनिंग ले रहे हैं. सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इन तस्वीरों को देख कर ऐसा हीं लग रहा है. अपनी अप-कमिंग फिल्म ‘चंदा मामा दूर के’ के लिए सुशांत सिंह राजपूत खासा मेहनत करते दिखाई दे रहे हैं. इसके चलते अब वह फिल्म में खुद को परफेक्ट दिखाने के लिए नासा के पास जा पहुंचे.

सुशांत सिंह राजपूत धर्मा प्रोडक्शन की फिल्म ड्राइव में भी अगले साल नजर आएंगे. वहीं ‘चंदा मामा दूर के’ इंडिया की पहली स्पेस एडवेंचरस फिल्म होगी, जिसमें सुशांत सिंह राजपूत एक्टिंग करते नजर आएंगे. इस फिल्म के लिए उन्होंने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं. इसके चलते उनकी कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. इन तस्वीरों को काफी पसंद किया जा रहा है, वहीं तस्वीरों को लेकर दर्शकों में खासा उत्साह भी है. तस्वीरों में सुशांत पूरी तरह से स्पेस में जाने को तैयार हैं. उनका यह लुक काफी इंटरस्टिंग नजर आ रहा है. पिक्चर्स में सुशांत सिंह राजपूत अपने फिल्म के कैरेक्टर में रच-बसने के लिए कड़ी मेहनत करते दिख रहे हैं.

बता दें, अगले साल रिलीज होने वाली सुशांत सिंह राजपूत और जैकलीन फर्नांडिस की फिल्म ‘ड्राइव’ का पहला पोस्टर जारी किया गया था.यह फिल्म करण जौहर के प्रोडक्शन की अपकमिंग फिल्म है. इसमें सुशांत सिंह राजपूत और जैकलीन फर्नांडिस नजर आएंगे.

इस साल की शुरुआत में प्रोजेक्ट की घोषणा फिल्म निर्माता ने की थी. इसके बारे में ज्यादा जानकारी दिए बगैर करण ने कहा था कि यह फिल्म नए एक्शन सीरिज की पहली फिल्म होगी. इसके बाद सामने आया कि फिल्म में जैकी का किरदार एक स्ट्रीट रेसर का होगा. अब इस फिल्म को लेकर लेटेस्ट डेवलेपमेंट सामने आया है. करण जौहर के इस प्रोजेक्ट की रिलीज डेट सामने आई है. यह फिल्म 2 मार्च को रिलीज होगी.

यूपी में मुसलमानों के लिए भी हुआ शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य

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लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता हुई कैबिनेट बैठक में कई फैसले लिए गए. इसी क्रम में कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) नियमावली-2017 को मंजूरी दी है. इस फैसले के लागू होने पर अब सभी वर्गो को विवाह का पंजीकरण कराना जरूरी होगा. अब मुस्लिम दंपती को भी निकाह का पंजीकरण कराना होगा.

एक अगस्त को लोकभवन में राज्य सरकार के प्रवक्ता और स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार ने संविधान के अनुरूप विवाह पंजीकरण नियमावली बनाई है. यह उत्तर प्रदेश और नगालैंड को छोड़कर पूरे देश में लागू है. कैबिनेट ने इस नियमावली को मंजूरी देते हुए यूपी में इसे लागू करने का फैसला किया है. इसके लिए महिला बाल विकास विभाग को जिम्मेदारी दी गई है. स्टांप और निबंधन विभाग इसका क्रियान्वयन कराएगा. ऑनलाइन पोर्टल में इसकी व्यवस्था रहेगी. सभी को विवाह का पंजीकरण अनिवार्य होगा. इसमें पति-पत्नी की तस्वीर लगेगी. मंत्री ने बताया कि जल्द ही इसका शासनादेश जारी कर दिया जाएगा जिसमें तारीख और अन्य विवरण स्पष्ट रहेंगे. एक वर्ष के भीतर पंजीकरण कराने पर दस रुपये का शुल्क लगेगा जबकि एक वर्ष से अधिक पर 50 रुपये शुल्क देना होगा.

यदि किसी व्यक्ति की दूसरी, तीसरी या चौथी शादी है तो भी उसे पंजीकरण कराना होगा. प्रमुख सचिव महिला कल्याण रेणुका कुमार के अनुसार, फार्म में भी यह स्पष्ट कॉलम है कि क्या यह आपकी पहली शादी है. विवाह पंजीकरण का एक उद्देश्य स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करना भी है. कुछ हिंदू भी दूसरी शादी करते हैं तो उन्हें भी पंजीकरण कराना होगा.

नियमावली के प्रारंभ होने के बाद संपन्न विवाह या पुनर्विवाह में पति या पत्नी में कोई एक यूपी का स्थायी निवासी हो या उनका विवाह यूपी की सीमा में संपन्न हुआ हो, का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा. आवेदन पत्र में पति-पत्नी का आधार नंबर भरा जाना अनिवार्य होगा. ऑनलाइन आवेदन होगा और अभिलेखों के सत्यापन के बाद विवाह पंजीकरण स्वत: ही जेनरेट हो जाएगा.

सिद्धार्थनाथ सिंह का कहना था कि यह फैसला लागू करने के लिए सभी धर्म के लोगों से बातचीत की गई. इस दौरान यह आपत्ति आई कि निकाह के समय फोटो नहीं लगती है. सरकार ने तर्क दिया कि आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और पैन कार्ड में अगर आप लोग फोटो लगा सकते हैं तो विवाह पंजीकरण में क्यों नहीं. उनका कहना था कि इसके बाद लोग मान गए. यह व्यवस्था सभी के लिए अनिवार्य कर दी गई है.

मुस्लिम संगठनों ने इस व्यवस्था का विरोध किया था जिसके चलते समाजवादी सरकार ने इसे लागू नहीं किया. केंद्र सरकार द्वारा यह व्यवस्था लागू करने के बाद समाजवादी सरकार ने भी इसे यूपी में लागू करने का फैसला किया. नियमावली बनकर तैयार हो गई थी लेकिन, तभी कुछ मुस्लिम धर्मगुरुओं ने अखिलेश यादव से मिलकर अपना विरोध दर्ज किया था. इसके बाद ही यह नियमावली लागू करने से रोक दी गई थी.

सलमान खान और शाहरुख खान के बीच फिर एक बार टक्कर

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नई दिल्ली। मंगलवार को सामने आईं रिपोर्ट्स के अनुसार स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला शाहरुख खान का नया शो टेड टॉक्स: नई सोच सलमान खान के कलर्स पर आने वाले बिग बॉस सीजन 11 से टकराएगा. जहां एक तरफ सलमान वीकेंड पर दर्शकों के सामने बिग बॉस के कंटेस्टेंट्स की परफॉर्मेंस को लेकर सामने आएंगे. वहीं उसी समय शाहरुख खान लोगों को अपनी बातों से प्रभावित करने के लिए उसी समय पर राइवल चैनल पर नजर आएंगे.

इस क्लैश के बारे में बात करते हुए एक सूत्र ने इंडियन एक्सप्रेस डॉट कॉम को बताया- हम अभी भी समय को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं और अभी आधिकारिक घोषणा होना बाकी है. अगर दोनों शोज का प्रसारण रात के 9 बजे होगा तो यह क्लैश टल नहीं पाएगा. लेकिन दोनों ही शोज के अलग-अलग कॉन्सेप्ट हैं इसलिए यह अपने दर्शकों को खुद जुटा लेंगे. बिग बॉस पहले से ही मशहूर शो है और उसके पास ईमानदार दर्शकों की संख्या मौजूद है. ऐसे में यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि क्या शाहरुख खान के लिए फैंस सलमान खान को धोखा देंगे या नहीं.

शाहरुख खान का टेड टॉक्स: एक गैर-पक्षपाती और गैर-लाभकारी शो है जिसका मकसद लोगों के बीच छोटे लेकिन प्रभावशाली विचारों को प्रसारित करने का है. टेड टॉक्स: की शुरुआत 1984 में एक कॉन्फ्रेंस के तौर पर हुई थी जिसमें तकनीक, मनोरंजन और डिजायन को कवर किया जाता था. मगर आज इसमें हर टॉपिक पर बात होती है. जिसमें विज्ञान से लेकर व्यवसाय और वैश्विक मुद्दे तक शामिल हैं. यह शो 110 से ज्यादा भाषाओं में प्रसारित होता है. टेड टॉक्स: नई सोच 18 मिनट के फॉर्मेट में लेकिन हिंदी वर्जन में प्रसारित होगा.

शाहरुख खान इस समय अपनी अपकमिंग फिल्म जब हैरी मेट सेजल के प्रमोशन में बिजी हैं वो जल्द हीं इस शो के लिए शूटिंग शुरू करेंगे. टेड टॉक्स: इंडिया 14 एपिसोड में अक्टूबर से प्रसारित किया जाएगा. यह माना जा रहा है कि टेड शोज हफ्ते में एक बार केवल रविवार को प्रसारित होगा. इससे पहले टेड टॉक्स के बारे में बात करते हुए शाहरुख खान ने कहा था- लोग समाज में हुए बदलाव की कहानियों को साझा करेंगे. चाहे फिर वो मौसम, खतरनाक बीमारियों और महिला शक्तिकरण की मदद करने को लेकर हो.

नीतीश सरकार में 75 फीसदी दागी मंत्री, 29 में से 22 पर गंभीर केस

पटना। भ्रष्टाचार के आधार पर लालू प्रसाद यादव के साथ महागठबंधन तोड़ भाजपा के साथ बिहार में दोबारा सरकार बनाने वाले नीतीश कुमार की नई नवेली कैबिनेट की छवि भी कुछ खास साफ-सुथरी नहीं है. जिस नई कैबिनेट के साथ नीतीश कुमार बिहार में सुशासन लाने का दावा कर रहे हैं वह निसंदेह नीतीश कुमार की कथित अंतरआत्मा के अनुरूप तो नहीं हो सकती है.

नीतीश कुमार की कैबिनेट में तीन चौथाई मंत्रियों पर आपराधिक मामले हैं, यह मामले पिछली महागठबंधन की सरकार से अधिक हैं. एडीआर रिपोर्ट के मुताबिक 29 में से 22 मंत्रियों पर आपराधिक मामले हैं, जबकि पिछली कैबिनेट में 28 में से 19 मंत्रियों पर आपराधिक मामले थे.

एडीआर की यह रिपोर्ट 29 मंत्रियों द्वारा खुद से दिए गए एफिडेविट के आधार पर तैयार की गई है, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हैं. इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि 22 मंत्रियों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जिसमें से 9 मंत्रियों ने अपने खिलाफ गंभीर अपराध के मामले एफिडेविट में घोषित किए हैं.

वहीं अन्य मंत्रियों की लिस्ट पर नजर डालें तो 9 ऐसे मंत्री हैं जिनका शैक्षणिक स्तर कक्षा 8 से 12 के बीच का है, जबकि 18 मंत्री ऐसे हैं जो या तो स्नातक हैं या उससे अधिक शिक्षित हैं. इसके साथ ही नीतीश की कैबिनेट में सिर्फ एक महिला मंत्री है, जबकि पिछली कैबिनेट में दो महिला मंत्री थीं.

अगर धनवानों की लिस्ट पर नजर डालें तो नीतीश की कैबिनेट मे 21 मंत्री करोड़पति हैं, 29 मंत्रियों की औसत आय 2.46 करोड़ रुपए है, हालांकि पिछली कैबिनेट में 22 करोड़पति मंत्री शामिल थे.

गटर में डूबती जिंदगी…

दिल्ली की एक बस्ती में तीस-बत्तीस वर्षीय युवा स्त्री रो रही थी. आस-पास बैठी महिलाएं उसे ढांढस बंधाने की नाकाम कोशिश कर रही थीं. जब हमारी फैक्ट फाइंडिंग टीम वहां पहुंची तो हमने देखा कि वहां 8 और 6 साल के दो बच्चे सहमे से यह सब देख रहे थे. उनके पिता की सीवर की सफाई के दौरान मृत्यु हो गई थी. दिल्ली की झुग्गी-बस्ती में रहने वाले इस परिवार में इन बच्चों का पिता ही एकमात्र कमाने वाला था. बच्चों की बूढ़ी दादी भी उनके साथ रहती थीं. दादा जी गुजर चुके थे. इन मासूम बच्चों के सिर से उनके पिता का साया उठ गया. पिता के जाने के बाद पूरा परिवार बेसहारा हो गया है.

सीवर सिस्टम को शहर की लाइफ-लाईन कह सकते हैं. वहीं जहां सीवर सिस्टम नहीं है वहां सेप्टिक टैंक लोगों ने अपनी दैनिक निवृत्ति के लिए बना रखे हैं. जाहिर है समय समय पर इनकी सफाई की भी आवश्यकता होती है. और इन्हीं सीवर/सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान साफ करने वाले जहरीली गैसे से मर जाते हैं.

सीवर सिस्टम को शहर की लाइफ-लाईन कह सकते हैं. वहीं जहां सीवर सिस्टम नहीं है वहां सेप्टिक टैंक लोगों ने अपनी दैनिक निवृत्ति के लिए बना रखे हैं. जाहिर है समय समय पर इनकी सफाई की भी आवश्यकता होती है. इन सीवर और सेप्टिक टैंकों से जहरीली गैसें भी निकलती है. कई बार सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान साफ करने वाले जहरीली गैसों से मर जाते हैं.

सफाई कर्मचारी आन्दोलन इन दिनों सीवर में होने वाली मौतों पर संज्ञान ले रहा है. और सरकार से इस गंभीर विषय पर संसद में चर्चा करने की बात उठा रहा है. इसके अलावा सरकार से इस प्रकार की व्यवस्था यानी तकनीक को लाने की बात कर रहा है जिससे किसी भी इंसान की जान सीवर की सफाई करते हुए न जाए. इस के लिए सभी सासंदों को ज्ञापन दिया जा रहा है कि वे इस विषय को संसद में उठाएं.

सफाई कर्मचारी के एक सर्वे के दौरान पिछले 100 दिनों में सीवर में 35 व्यक्तियों की मौत हो चुकी है. भले ही सरकार ने मैला सफाई के रोजगार का निषेध और सफाई करने वालों के पुनर्वास का अधिनियम 2013 बनाया है. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने 27 मार्च 2014 के आदेश में यह स्पष्ट उल्लेख किया है कि किसी भी हालत में किसी भी व्यक्ति को मानव मल की सफाई के कार्य में न उतारा जाए. किसी को भी सीवर या सेप्टिक टैंक में न उतारा जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि यदि आपातकालीन स्थिति में किसी भी व्यक्ति को सीवर/सेप्टिक टैंक में उतारा भी जाता है तो उसके पास सभी सुरक्षा उपकरण हों. विशेष सुरक्षा सूट हो. ऑक्सीजन सिलेंडर हो. हैंडग्लोब हों. बूट हों. ताकि उसकी जान को किसी भी प्रकार का खतरा न हो. परन्तु दुखद है कि इसमें व्यवस्था तंत्र या कहें सरकारी मशीनरी पूरी तरह नाकाम है.

सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई करने वाले व्यक्ति 90 प्रतिशत से अधिक दलित समुदाय से होते हैं. सरकार की जातिवादी मानसिकता का ही परिणाम है कि सरकार इस बारे में गंभीर नहीं है. सरकार में बैठे नौकरशाहों को लगता है कि ये तो इस जाति के लोगों का ही काम है. सफाई का काम इस व्यवस्था ने सदियों से जाति विशेष के कुछ समुदायों पर थोप दिया है. दुख की बात यह है कि आज के समय में जिसे तकनीक का समय कहा जाता है. भारत मंगलयान तक भेज चुका है. ऐसे समय में भी सीवर/सेप्टिक टैंक साफ करने के लिए समुचित तकनीक का विकास नहीं किया गया है या सरकार तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर रही है. आज जब हर दूसरे-तीसरे दिन सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई करते लोगों के मरने की खबरें आ रही हैं- ऐसे में सरकार की नियत पर शंका होना लाजिमी है.

यहां ध्यान देने की बात यह भी है कि सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मरने वालों की उम्र 20 से 40 वर्ष के लोगों की होती है. इनकी जान तो जाती ही है इसके साथ ही इनका पूरा परिवार भी अनाथ हो जाता है. आमदनी का स्रोत खत्म हो जाता है. मासूम बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ दो वक्त के खाने की भी परेशानी हो जाती है. बूढ़े माता-पिता का सहारा छिन जाता है. कह सकते हैं कि पूरा परिवार बेसहारा हो जाता है. इन पर क्या बीतती है यह तो भुक्तभोगी ही जानता है.

सुप्रीम कोर्ट ने सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मरने वालों के निर्भरों के लिए दस लाख मुआवजे का प्रावधान भी किया है. वह भी इन्हें नहीं मिल पाता. क्योंकि परिवार वालों को इसकी जानकारी नहीं होती. तंत्र इतना संवेदनशील नहीं है कि स्वयं मुआवजा प्रदान करें. इस प्रकार सीवर में सिर्फ एक व्यक्ति की ही मौत नहीं होती बल्कि उसका पूरा परिवार जीते जी मर जाता है.

यहां सवाल सभ्य कहे जाने वाले इस समाज पर भी उठता है कि वह जानबूझ कर भी चुप क्यों रहता है? धूमिल की कविता में जब वह कहते हैं कि ‘…यह तीसरा आदमी कौन है? मेरे देश की संसद मौन है?’ यहां तो संसद ही नहीं सभ्य समाज भी मौन है. देश का जब भी कोई जवान सरहद पर मरता है तो देश और समाज उसे शहीद का दर्जा देता है. सम्मान व्यक्त करता है. उसके परिवार को सुविधाएं देता है. क्योंकि वह सरहद पर हमारे देश की रक्षा करता है. पर हमारे ही मलमूत्र, औद्योगिक विषैले प्रदूषण से जाम हुए सीवर को साफ कर बीमारियों से हमारी रक्षा करने वाला जब सीवर की सफाई के दौरान मर जाता है तो उसे शहीद नहीं कहा जाता. क्या वह इस देश का नागरिक नहीं होता? क्या उसे सम्मान के साथ जीने का हक नहीं होता? हम उसे सीवर रूपी मौत के कुएं में उतरते हुए देख रहे हैं. हम उसे मरते हुए देख रहे हैं. हम उसके जीवन की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं कर रहे है. कहां गईं हमारी संवेदनाएं? कहां गई हमारी सभ्यता?

यह लेख राज वाल्मीकि ने लिखा है.

सलमान और मौनी की तस्वीरें सोशल मीडिया पे वायरल

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नई दिल्ली। कलर्स का चर्चित रियलिटी शो बिग बॉस जल्द छोटे पर्दे पर वापसी करने वाले हैं. इसे लेकर तैयारियां भी जोरों से चल रही हैं. सलमान खान भी ‘टाइगर जिंदा है’ की शूटिंग खत्म कर बिग बॉस के प्रोमो शूट  के लिए देश लौट आए हैं.

सलमान की प्रोमो शूट की खबर एक वायरल तस्वीर के जरिए सामने आई है. इस तस्वीर में सलमान के साथ मौनी रॉय भी नजर आ रही हैं. शूटिंग के दौरान की ये तस्वीर सलमान के फैन क्लब पर शेयर की गई है. दोनों की ये तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. इस तस्वीर में सभी लोग इंडियन क्रिकेट टीम की जर्सी पहने नजर आ रहे हैं.

बता दें कि बिग बॉस का ग्यारहवां सीजन एक नए ट्विस्ट के साथ नजर आ रहा है. कहा जा रहा है कि इस बार इस शो के लिए फैमिली कंटेस्टेंट यानी कि एक परिवार की जोड़ियों को ढूंढा जा रहा है जैसे कि भाई-बहन, बहन-बहन या मां-बेटी की जोड़ी.अब ये तो शो के प्रोमो की शुरुआत से ही साफ होगा कि आखिरकार ये नया सीजन क्या नया लेकर आने वाला है.

ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद के बीच फंसी देशभक्ति

बुरहानपुर जिले के मोहद गांव के 15 लड़कों पर से राजद्रोह का मुकदमा हटाकर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का मुकदमा कायम किया जाना यह बताता है कि इस घटना के गंभीर सियासी निहितार्थ हैं. हिन्दुस्तान के बंटवारे के बाद से ही हिंदुत्व लगातार इस बात को प्रचारित और प्रसारित करता रहा है कि यहां के मुसलमानों की सहानुभूति और प्रतिबद्धता पाकिस्तान के साथ है. संघ परिवार गोएबल्स की उस रणनीति पर शुरू से काम कर रहा है कि अगर एक झूठ को सौ बार बोला जाए तो जनता उसे सच मान लेती है. इसी प्रयोग को उसनें बड़ी चतुराई के साथ भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैच के दरम्यान भी इस्तेमाल किया है.

मध्य प्रदेश के एक गांव मोहद की घटना इस मायने में अलग है कि पहली बार खुद राज्य हिंदुत्व के इस तर्क को कि देश के मुसलमानों की सहानुभूति पाकिस्तान के साथ है, को वैधता प्रदान कर रहा है. यह घटना जाहिर करती है कि भारतीय राज्य के अंदर मुसलमानों को देशद्रोही बताने को लेकर कितना ज्यादा उतावलापन है. मोहद की घटना से पहले तक मुसलमानों को देशद्रोही कहने के लिए आतंकवाद के मामले में फंसाया जाता था, लेकिन पहली बार राज्य के द्वारा क्रिकेट के बहाने मुसलमानों को देशद्रोही बताया जा रहा है.

हिन्दुत्व की इन साज़िशों का पर्दाफाश भी हो चुका है. जब कर्नाटका के बीजापुर के पास श्रीराम सेना के कुछ कार्यकर्ताओं को पुलिस ने पाकिस्तानी झण्डा फहराने के जुर्म में पकड़ा था. पहले तो श्रीराम सेना के कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान का झण्डा फहराया और घटना के अगले दिन आरोपियों की गिरफ्तारी न होने के चलते प्रशासन के खिलाफ धरना भी दिया. जब पुलिस ने इस घटना में संलिप्त श्रीराम सेना के 6 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया तो श्रीराम सेना के प्रमुख प्रमोद मुतालिक ने बयान दिया कि इस घटना में हमारे कार्यकर्ताओं की कोई भूमिका नहीं है, बल्कि इस साजिश में आरएसएस के लोग शामिल हैं.

पिछले कुछ सालों में कई ऐसी घटनाएं हुईं हैं जिसमें कश्मीर के उन मुस्लिम विद्यार्थियों को निशाना बनाया गया, जो कश्मीर से बाहर रहकर पढ़ रहे हैं. 23 फरवरी 2014 को भारत पाकिस्तान मैच के दौरान पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने के आरोप में मेरठ के स्वामी विवेकानन्द सुभारती यूनिवर्सिटी के 67 कश्मीरी छात्रों को पहले सस्पैंड किया गया और फिर उन पर राजद्रोह का मुकदमा कायम किया गया. हालांकि बाद में सबूतों के अभाव में राजद्रोह का मुकदमा हटा लिया गया. इन कश्मीरी लड़कों के कमरों में पत्थरबाजी की गयी. घटना के कुछ समय के बाद कई सारे लड़के कॉलेज छोड़कर वापस कश्मीर लौट गए. इस घटना के बिलकुल आस-पास इसी आरोप के चलते ग्रेटर नोएडा के शारदा युनिवर्सिटी के 4 कश्मीरी लड़कों को हॉस्टल से निकाला गया. हरियाणा में तो भारत पाकिस्तान मैच के दौरान कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जब संगठित हिन्दुत्व ने कश्मीरी छात्रों पर हमला किया है. दरअसल हिन्दुत्व के लिए कश्मीर के लोगों को पाकिस्तान के साथ जोड़ना बहुत मुश्किल नहीं है लेकिन पिछले कुछ एक सालों में हिन्दुत्व ने अपनी इस रणनीति का विस्तार कश्मीर से इतर देश के दूसरे हिस्सों में भी किया है.

भोजपुर (बिहार) जिले के पीरो में 12 अक्तूबर 2016 को सांप्रदायिक हिंसा को अंजाम दिया गया. मुसलमानों के ताजिया जुलूस पर होने वाली पत्थरबाजी को वैधता देने के लिए पाकिस्तान के समर्थन में होने वाली नारेबाजी का तर्क गढ़ा गया. इस हिंसा में मुसलमानों की कई दुकानों को जलाया गया, कई सारे लोग घायल हुए. (इस घटना को विस्तार से देखने के लिए ‘बिहार: पूर्वनियोजित थी पीरो में हुई सांप्रदायिक हिंसा– शरद जायसवाल व लक्ष्मण प्रसाद की रिपोर्ट’ को जनराजनीती.कॉम पर देखा जा सकता है.)

मोहद की तर्ज पर ही 20 जून 2017 को चैम्पियन्स ट्रॉफी के फ़ाइनल मैच में पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाजी करने के जुर्म में तीन नाबालिग लड़कों को उत्तराखंड के मंसूरी से गिरफ्तार किया गया था. दरअसल यह गिरफ्तारी हिंदुत्ववादी संगठनों के द्वारा थाने में दी गयी तहरीर के आधार पर हुई थी. ठीक इसी आरोप के चलते तीन लड़कों की गिरफ्तारी उज्जैन जिले के खमरिया गांव से भी हुई थी. हिंदुत्व का यह प्रयोग सिर्फ हिंदी भाषी राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि अखिल भारतीय स्तर पर इसे अमल में लाया जा रहा है.

चैंपियन्स ट्राफी के मैच के दरम्यान कई गिरफ्तारियां उन राज्यों में भी हुईं, जहां पर गैर भाजपाई सरकारें हैं. मसलन दक्षिणी कर्नाटका के कोडागु के होसाकोटे गांव से 4 लड़कों को, कुर्ग पुलिस ने 3 लड़कों को, केरल में बड़िया डुक्का पुलिस ने 23 लोगों को व केरल में ही कसरगोड के पास चक्कूडल कुंबदाजे से 20 लोगों को गिरफ्तार किया गया. मजेदार बात यह है कि इन सारी गिरफ्तारियों के पीछे हिंदुत्ववादी संगठनों का दबाव काम कर रहा था. इन गिरफ्तारियों के लिए बाकायदा धरना प्रदर्शन व सम्बंधित थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया गया था. अब हिन्दुत्व के लिए यह जरूरी नहीं रह गया है कि इस तरह की साज़िशों को वहीं रचा जाएगा, जहां पर उनकी अपनी सरकार है. इसलिए हमें हिन्दुत्व और बीजेपी के बीच के रिश्तों और फर्क की भी ईमानदारी से पड़ताल करनी होगी. बहुसंख्यक समाज के बीच में सांप्रदायिक विचारधारा की जड़ें इस कदर पैठ कर गयी हैं कि एक सेकुलर सरकार को भी हिन्दुत्व के सामने नतमस्तक होना ही होगा या एक सेकुलर सरकार की सेकुलरिज्म को लेकर कमजोर प्रतिबद्धता के रूप में भी इसे देखा जा सकता है.

बुरहानपुर पुलिस के द्वारा 15 मुसलमानों की गिरफ्तारी, अगले दिन कोर्ट के अंदर ‘राष्ट्रवादी’ वकीलों के द्वारा यह कहना कि देश विरोधी लोगों का केस कोई नहीं लड़ेगा, कोर्ट के बाहर हिन्दुत्ववादी संगठनों का नारेबाजी करना और हर बार की तरह इस बार भी मीडिया के द्वारा उन पंद्रह लोगों को कटघरे में खड़ा करने की रणनीति यह बताती है कि एक घटना जिसकी स्क्रिप्ट पहले से तैयार थी. हिन्दुत्व ने अपने एजेंडे के लिए जो श्रम विभाजन किया, उसके अनुसार कहानी के सभी पात्रों ने पूरी मेहनत और लगन से अपनी-अपनी भूमिकाएं अदा कीं. सरकार, पुलिस, मीडिया, हिन्दुत्ववादी संगठन, न्यायपालिका सभी संगठित हिंदुत्व से पर्याप्त दिशा-निर्देश लेते हुए आगे बढ़ रहे थे और बुरहानपुर में सफलता मिलने ही वाली थी. लेकिन सुभाष कोली नाम के व्यक्ति ने संगठित हिंदुत्व के मंसूबों पर पानी फेर दिया. मोहद गाँव में रची गयी साजिश के केंद्र में प्रत्यक्ष तौर पर कोई हिन्दुत्ववादी संगठन शामिल नहीं था. बल्कि पुलिस की अगुवाई में यहां पर एक साजिश को अंजाम दिया गया था. हिन्दुत्ववादी पुलिस ने जिस व्यक्ति को इस घटना का प्रत्यक्षदर्शी व गवाह बताया, उसी सुभाष कोली ने पुलिस के द्वारा गढ़ी गयी कहानी पर सवाल खड़ा कर दिया. पुलिस की और ज्यादा किरकिरी होती इससे पहले ही घटना के मुख्य साजिशकर्ता टीआई संजय पाठक का तबादला कर दिया गया. इस तबादले के बाद भी बुरहानपुर के आला पुलिस अधिकारियों ने कहा कि टीआई संजय पाठक का तबादला मोहद की घटना की वजह से नहीं बल्कि किसी दूसरे मामले के चलते किया जा रहा है. स्क्रॉल.इन में छपी एक स्टोरी में भी भोपाल में बैठे पुलिस के उच्च अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि ‘टीआई पाठक को इसलिए सज़ा नहीं दी गई कि उन्होने कोई फर्जी केस गढ़ा है बल्कि इसलिए दी गई है कि उन्होने सही शिकायतकर्ता का चुनाव नहीं किया है. उनका ये गलत चुनाव ही पुलिस को महंगा पड़ा’.

इस पूरी घटना में टीआई संजय पाठक की भूमिका तब और संदिग्ध हो गयी, जब थाने में बंद 15 लड़कों में से एक लड़के ने ये कहा कि मोहद के स्थानीय बीजेपी नेता ने पाठक को दो हज़ार रूपये की तीन से चार गड्डी दी थी. इस संबंध में एक खबर हिन्दी के एक दैनिक अखबार में प्रकाशित हुई थी. यह भी कहा गया कि क्योंकि पाठक की पहुंच सीधे आरएसएस के बड़े नेताओं से है इसलिए पुलिस के बड़े आलाधिकारी भी उसके खिलाफ बोलने से कतरा रहे हैं.

सुभाष कोली के सामने आने के बाद इस घटना में कुछ भी छुपा नहीं रह गया था. और एक मात्र विपक्ष यानि कांग्रेस के लिए मैदान बिल्कुल साफ था. हमने जब नागरिक समाज के नुमाइंदों (खास तौर पर मुसलमानों) से इस बारे में जानने की कोशिश की कि घटना के बाद विपक्ष अथवा कांग्रेस की क्या भूमिका है? उन सभी का कहना था कि कांग्रेस हमें पीछे से सहयोग कर रही है. कांग्रेस का इस मुद्दे पर चोरी छिपे मुसलमानों के साथ खड़े होने का मतलब यही है कि एक सेकुलर पार्टी यह नहीं चाहती है कि इसकी तनिक भी भनक हिंदुओं को लगे. क्योंकि अगर हिंदुओं को गलती से भी मालूम पड़ गया कि इस मुद्दे पर कांग्रेस मुसलमानों का साथ दे रही है तो उसका हिन्दू वोट दूर जा सकता है. यह काफी मजेदार इसलिए है कि देश की सबसे बड़ी सेकुलर पार्टी अब चोरी छिपे सेकुलरिज्म को बचाए रखना चाहती है. जबकि सांप्रदायिक ताक़तें खुलकर नंगा नाच कर रही हैं.

इस पूरी घटना का सबसे दुखद पहलू यह है कि खुद मुस्लिम समाज के बड़े हिस्से में भी इस बात को लेकर एक आम सहमति बन चुकी है कि अगर हमने या कांग्रेस ने इस घटना (मोहद) को उठाया तो इसका फायदा भी बीजेपी को ही मिलेगा क्योंकि तब बीजेपी के लिए सांप्रदायिक आधार पर गोलबंदी करना ज्यादा आसान होगा. यह आम धारणा पूरे देश के पैमाने पर दिखती है. देश की सेकुलर पॉलिटिक्स ने मुसलमानों के बीच इस बात के लिए सहमति निर्मित कर ली है कि अगर हम आपके सवालों को उठाएंगे तो इसका फायदा बीजेपी को ही होगा.

इसे मॉब लिंचिंग की तमाम सारी घटनाओं में भी देखा जा सकता है. इसलिए देश के मुसलमानों के पास इस तंत्र पर या भाग्य पर भरोसा करने के सिवाय कोई अन्य विकलप नहीं है. खुद मुस्लिम समाज के द्वारा इस घटना के इर्द गिर्द होने वाली पूरी सियासत मेमोरंडम देने या कोर्ट में पीआईएल करने तक ही सीमित हो चुकी है.

मोहद गांव से पुलिस के द्वारा जिस तरह से 15 मुस्लिम लड़कों को गिरफ्तार किया गया व कुछ और नहीं बल्कि पुलिस के द्वारा गांव में घुसकर मुसलमानों पर किया गया हमला था. क्योंकि पुलिस उन्हें उनके घर से घसीटते और मारते-पीटते हुए थाने में लायी. कई सारे लड़कों को दाढ़ी और टोपी देखकर, बिना उनका नाम पूछे ही पुलिस उठा ले गयी. थाने में लाने के साथ एक बार फिर से उनकी बेरहमी से पिटाई की गयी. थाने में पुलिस ने जिस भाषा का प्रयोग इन 15 पीड़ितों के साथ किया कि ‘तुम्हारी कौम को ख़त्म कर दिया जाएगा’, ‘बीपीएल कार्ड को ख़त्म कर दिया जाएगा’, ‘एक रूपए का अनाज खाते-खाते मस्ती आ गयी है’, ‘तुम्हारी मां के साथ सोने के लिए पाकिस्तान से लोग आये थे’. यह भाषा सिर्फ पुलिस के सांप्रदायिक चरित्र को ही उजागर नहीं करती है बल्कि कल्याणकारी राज्य से लाभान्वित होने वाले तबके के प्रति उनके अन्दर व्याप्त नफरत को भी उजागर करती है. वो सारे नागरिक अधिकार, जिसे भारतीय राज्य ने बमुश्किल और काफी जद्दोजेहद के बाद इस देश की आम जनता को दिए थे.

अब वही चीज़ें देश के मध्यम वर्ग की आंख का कांटा बन चुकी हैं. लगभग इसी तरह की बहस उस समय भी हुई थी, जब जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में कथित तौर पर राष्ट्रविरोधी नारे लगाये गए थे. मीडिया के एक धड़े ने उस समय भी इसी बहस को चलाया था कि मध्यम वर्ग के द्वारा दिए गए टैक्स से ही कल्याणकारी योजनाओं को संचालित किया जाता है और उसी पैसे से संचालित सरकारी यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा देशविरोधी गतिविधियां संचालित होती हैं. इसलिए ऐसे संस्थानों को बंद कर दिया जाना चाहिए. नवउदारवाद ने पिछले तीन दशकों में एक ऐसी पीढ़ी को तैयार किया है जो न केवल कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से नफरत करता है बल्कि इन योजनाओं से लाभान्वित होने वाले वंचित समूह से भी बेपनाह नफरत करता है.

मोहद की घटना देश भर में मुसलमानों के साथ हो रही सांप्रदायिक हिंसा कीएक कड़ी मात्र है. फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ पर हिन्दुत्व को डिफेंसिव होना पड़ा और वह भी सिर्फ सुभाष कोली के चलते. मोहद की घटना का असली नायक सुभाष कोली है. अगर सुभाष पुलिस की साजिश का भंडाफोड़ नहीं करते तो हिंदुत्व अपने प्लैंक पर कामयाब हो चुका था और इसके साथ ही उन 15 लड़कों का भविष्य भी दांव पर लग जाता. पुलिस की तरफ से मिलने वाली धमकियों के बावजूद वह अकेले उन पंद्रह लड़कों के पक्ष में खड़ा रहा. आज के समय में ऐसी मिसाल बहुत मुश्किल से नज़र आती है. यह घटना बताती है कि यदि बहुसंख्यक समाज का कोई व्यक्ति किसी घटना विशेष के सन्दर्भ में ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ सांप्रदायिक साजिशों के खिलाफ खड़ा होता है तो ये हिंदुत्व के लिए मुश्किल भरा हो सकता है.

सुभाष कोली को सलाम…

शरद जायसवाल, सहायक प्रोफेसर महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय ईमेल- sharadjaiswal2008@gmail॰com

शो में आने के पैसे नहीं मिलेंगे:बिग बॉस

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कलर्स पर प्रसारित होना वाला रियलिटी शो बिग बॉस का सीजन 11 जल्द ही शुरू होने वाला है. टीवी पर सबसे पॉपुलर ये शो फिर से एक बार चर्चा में है. इस बार के शो में एक नया ट्विस्ट भी जुड़ रहा है. आम जनता तो इस शो से जुड़ेगी पर उन्हें पैसे नहीं दिए जाएंगे.

बॉलीवुडलाइफ की रिपोर्ट के मुताबिक आम लोग जो इस शो में हिस्सा लेंगे उन्हें पैसा नहीं दिया जाएगा वो फ्री में बिग बॉस शो से जुड़ेगें. ये आम लोग बिग बॉस के घर में हुए टास्क और अच्छी टीआरपी के बदौलत ही स्पेशल बोनस से सिर्फ पैसा कमा पाएंगे.

आपको बता दें कि इस बार ऐसे कंटेस्टेंट की तलाश कर रहे हैं जो एक ही फैमिली से हों. ऐसे ही कुछ कंटेस्टेंट और उनकी फैमिली को सेलेक्ट भी कर लिया गया है जो बिग बॉस के घर में आपस में भिड़ते नजर आएंगे. आपको शो में मां-बेटी, पिता-बेटा और भाई-बहन की जोडि़यां दिख सकती हैं. अब शो का ये नया तड़का कितनी टीआरपी खींच पता है की नहीं.

मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को ले डूबा GST, सूचकांक 9 साल पुराने लेवल पर

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देश में जुलाई में माल एवं सेवा कर, जीएसटी लागू होने के बाद विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट आयी है. क्योंकि इस दौरान नये आर्डर और उत्पादन में कमी रही. पिछले साल दिसंबर के बाद इसमें पहली बार गिरावट आई है. पिछले साल नोटबंदी के बाद दिसंबर माह में विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई थी.

विनिर्माण क्षेत्र में आई इस गिरावट के बाद रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दर कम करने की मांग पर दबाव बढ़ गया है. रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा बैठक शुरू हो रही है. निक्की इंडिया मैन्युफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स पीएमआई जुलाई में 47.9 रहा है जबकि जून में यह 50.9 अंक पर था. फरवरी, 2009 के बाद यह विनिर्माण सूचकांक का सबसे निचला स्तर है. जुलाई का यह आंकड़ा 2017 में कारोबारी स्थिति में गड़बड़ी को दर्शाता है. पीएमआई सूचकांक के 50 अंक से ऊपर रहना विनिर्माण गतिविधि में तेजी को दर्शाता है जबकि इससे नीचे यदि यह रहता है तो यह सुस्ती को दर्शाता है.

आईएचएस मार्कटि में प्रधान अर्थशास्त्री और इस रिपोर्ट की लेखिका पोल्लीन्ना डी लीमा ने कहा, भारत में विनिर्माण वृद्धि जुलाई में थम गयी और इसका पीएमआई करीब साढे आठ साल में अपने सबसे निचले स्तर पर आ गया. इस तरह की रिपोर्ट है कि इस क्षेत्र पर माल एवं सेवा कर के क्रियान्वयन का बुरा असर पड़ा है. इस सर्वेक्षण के अनुसार जीएसटी के क्रियान्वयन का मांग पर असर पड़ा है. उत्पादन, नये आर्डर और खरीद गतिविधियां वर्ष 2009 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई. लीमा ने कहा, मांग में कमजोरी के रुख, अपेक्षाकृत निम्न लागत वाला मुद्रास्फीति दबाव तथा फैक्ट्री गेट पर अपेक्षाकृत रियायती शुल्क जैसी स्थिति से मौद्रिक नीति में ढील के लिये ताकतवर साधन उपलब्ध करा दिया है.

मौद्रिक नीति में नरमी से आर्थकि वृद्धि में सुधार की अच्छी संभावना है. रिजर्व बैंक ने सात जून को जारी अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में कोई बदलाव नहीं किया था. आरबीआई गवर्नर उर्जति पटेल ने तब कहा था कि बैंक मुद्रास्फीति के निम्न स्तर को लेकर पूरी तरह सुनिश्चित होना चाहता है. फैक्ट्री आर्डर में कमी आने से हातोत्साहित कंपनियों ने जुलाई में उत्पादन में कमी कर दी.

फ्लिपकार्ट ने किया ई बे इंडिया विलय का काम पूरा

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नई दिल्ली: ई वाणिज्य क्षेत्र की बड़ी कंपनी फ्लिपकार्ट ने आज कहा कि उसने ई बे इंडिया के परिचालन का विलय पूरा कर लिया है. इसी के साथ ई बे डॉट इन अब फ्लिपकार्ट समूह की कंपनी कहलाएगी. इस करार की घोषणा अप्रैल में की गई थी, जब फ्लिपकार्ट समूह ने प्रौद्योगिकी क्षेत्र की बड़ी वैश्विक कंपनियों ई बे, टेनसेंट और माइक्रोसॉफ्ट से 1.4 अरब डॉलर जुटाए थे.

फ्लिपकार्ट में इक्विटी हिस्सेदारी के बदले में ई बे ने 50 करोड़ डॉलर का नकद निवेश किया और अपना ई बे डॉट इन कारोबार फ्लिपकार्ट को बेच दिया. यह घोषणा ऐसे समय में हुई है जब एक दिन पहले ही छोटी प्रतिद्वंद्वी कंपनी स्नैपडील ने कहा था कि वह संभावित विलय संबंधी सभी बातचीत बंद कर रही है. स्नैपडील ने फ्लिपकार्ट का नाम तो नहीं लिया लेकिन इस बात की काफी चर्चा है कि दोनों ही पिछले पांच महीने से विलय पर बातचीत कर रही थी.

फ्लिपकार्ट ने एक बयान में कहा, ”तत्काल प्रभाव से ई बे डॉट इन का स्वामित्व और परिचालन फ्लिपकार्ट के पास होगा. लेकिन ई बे डॉट इन फ्लिपकार्ट के हिस्सा के तौर पर स्वतंत्र निकाय रहेगी.” बयान में कहा गया है कि इस विलय के फलस्वरुप फ्लिपकार्ट के ग्राहकों को ई बे पर मौजूद विविध वैश्विक वस्तुओं तक पहुंच होगी और ई बे के ग्राहकों को अनोखे भारतीय वस्तुओं तक पहुंच मिलेगी