दो दिन दलित को थाने में पुलिस ने बर्बरता से पीटा, बाद में बताया निर्दोष

कोच्चि। सवर्णों को दलित अब इतने खटकने लगे है कि जुर्म कोई भी करें लेकिन आरोपी दलित को ही बनाएंगे. ऐसा ही एक मामला केरल के वेंदीपेरियार में हुआ. जहां की पुलिस ने पहले बेकसुर दलित को घर से उठाया और उसके बाद थाने में ले जाकर बर्बर अत्याचार किया. पुलिस ने दो दिन बाद दलित को छोड़ दिया और कहा कि हमने गलती से पकड़ लिया था. पीड़ित अब पेरंबवूर तालुक अस्पताल में भर्ती है.

पीड़ित मुरूकन के अनुसार, पुलिस ने उसे वेंदीपेरियारंद में रहने वाले उसके साले यहां से उठाया. रिश्तोंदारों के सामने ही उसे पुलिस ने मारापीटा और उसे नंगा किया. पुलिस स्टेशन ले जाते समय पुलिस ने बुरी तरह से पकड़ रखा था.

पुलिस स्टेशन पहुंचने पर सीनियर इंस्पेक्टर और अन्य पुलिस अधिकारी ने मुरूकन को निर्दयता के साथ मारा-पीटा. अगले दिन जब उसकी पत्नी और रिश्तेदार थाने में आए और पुलिस से पूछा कि कौन से केस मुरूकन को बंद किया है तो पुलिस ने कहा कि जिसे हम पकड़ रहे थे वो मुरूकन नहीं है और इसे गलती से पकड़ लाए.

अगले दिन दोपहर में मुरूकन को पुलिस ने छोड़ दिया. घर पहुंचने पर मुरूकन डरा-डरा और असहज महसूस कर रहा था. पुलिस ने उसकी बुरी तरह पिटाई की थी जिसके कारण उसके पूरे शरीर में दर्द हो रहा है. मुरूकन की पत्नी और रिश्तेदार उसे पेरंबवूर तालुक अस्पताल ले गए जहां वह भर्ती है.

पीड़ित मुरूकन ने कहा कि पुलिस ने उसे डराया और धमकाया भी है. पुलिस ने उसे धमकी दी है कि अगर वह इस घटना की जानकारी मीडिया को देता है तो पुलिस उसे किसी और केस में आरोपी बनाकर जेल में भेज देगी.

अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी और घुमंतू जातियां ज्ञान और शिक्षा से बहिष्कृत हैं

भारत के भाषा संसार में गणेश नारायण देवी की उपस्थिति मानीखेज़ है. गणेश देवी ने आरंभिक शिक्षा भारत में पायी. यहीं से बीए और एमए किया और पीएचडी करने के लिए लीड्स विश्वविद्यालय चले गए. वे आगे चलकर गुजरात के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर हुए.

वहां रहते हुए उन्होंने भारत के साहित्यिक इतिहास, भाषा और समाज एवं सत्ता में व्याप्त हिंसा की अंदरूनी तहों पर लिखा. उन्होंने इस बात पर लिखा कि भारत क्या-क्या और किस प्रकार भूलता है. उन्होंने भारतीय साहित्यिक चिंतन में विस्मृति के उन स्थलों की ओर सबका ध्यान दिलाया जहां पर औपनिवेशिक चिंतन जड़ जमाकर बैठ गया है.

अंग्रेजी साहित्य और व्याकरण की सुविधा और सुरुचिपूर्ण दुनिया से निकलकर गणेश देवी, महाश्वेता देवी और लक्ष्मण गायकवाड़ के साथ मिलकर पुरुलिया जिले के शबर आदिवासी बूधन की फरवरी 1998 में हिरासत में की गई हत्या के खिलाफ़ देशव्यापी अभियान चलाने निकल पड़े.

बूधन गरीब था और उसे चोर कहकर पुलिस थाने में पीटा गया था. पिटाई से उसकी मौत हो गयी. उन्होंने गुजरात के छहरा समुदाय के बच्चों के लिए उनके हिसाब से किताब और पाठ्यक्रम डिज़ाइन करने की पहलकदमी की और तेजगढ़ में आदिवासी अकादमी की स्थापना की.

उन्होंने अंडमान से लेकर लक्षद्वीप, कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक के क्षेत्रों का कई-कई बार दौरा किया. गणेश देवी ने अपने सहयोगियों के साथ भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण (पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे आफ़ इण्डिया) को अंजाम दिया.

आयरिश विद्वान जार्ज ग्रियर्सन के भाषा सर्वेक्षण के बाद आज़ाद भारत का यह पहला सर्वेक्षण है. इस भाषा सर्वेक्षण में बताया गया कि भारत 780 तरीके से बोलता है.

इस लेख का उद्देश्य उनके इसी सार्वजानिक जीवन से निकली एक किताब के बारे में बात करना है. इस किताब का नाम ‘द क्राइसिस विदिन : ऑन नॉलेज ऐंड एजुकेशन इन इण्डिया’ है. किताब में चार छोटे-छोटे अध्याय हैं जो ज्ञान के संकट, स्मृति और ज्ञान, स्मृति और विस्मृति, और स्मृतियोत्तर(पोस्ट मेमोरी)शिक्षा के बारे में बात करते हैं.

गणेश देवी का जीवन एक शिक्षा शास्त्री और कम्युनिकेटर का जीवन रहा है, इसलिए वे भाषा की भूमिका से अच्छी तरह से वाकिफ़ हैं. सरल अंग्रेज़ी भाषा में लिखी इस किताब के माध्यम से वे गैर अंग्रेज़ी भाषी समूहों तक पहुंचने में कामयाब रहते हैं.

द क्राइसिस विदइन: ऑन नॉलेज ऐंड एजुकेशन इन इंडिया, अलेफ़ बुक कंपनी, 2017, मूल्य 399 रुपये इस किताब में वे बताते हैं कि भारत में ज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में संकट कहां पर है और उससे कैसे निपटा जा सकता है. यह पतली सी किताब वास्तव में गणेश देवी की उस चिंतन को विस्तार देती है जिसमें भाषा, संस्कृति, रोजी-रोजगार के सवाल और बहिष्करण आपस में रस्सी की लट की तरह गुंथे हुए हैं.

यह किताब उपनिषदों से लेकर अभिनवगुप्त, मम्मट और धनञ्जय की सौन्दर्य दृष्टि पर बात करते हुए आगे बढ़ती है. तमिल, पालि और संस्कृत जैसी भारतीय भाषाओं ने अन्य नई उभरती भारतीय भाषाओं से अंतरक्रिया की और उसमें बहुत कुछ नया जोड़ा. ज्ञान की पहले से चली आ रही मौखिक विधियां लिखित विधियों में तब्दील होने लगीं.

कागज के प्रचलन से इसे बल मिला. इससे गणना, तर्क, दर्शन को लिखकर उस पर बात करना आसान हो गया. लेकिन यह ज्ञान केवल उन समुदायों का ही ज्ञान बन पाया जो पाठशालाओं में थे. पाठशालाओं के बाहर के लोग इन ज्ञान परंपराओं से बहिष्कृत हो गए. वे शिक्षा और ज्ञान के परिसरों से बाहर कर दिए गए.

धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों, घुमंतुओं के बारे में बताते हुए गणेश देवी इस बात की चर्चा करते हैं कि किस प्रकार ज्ञान और शिक्षा की दुनिया से बहिष्कृत कर दिए गए हैं और केवल पांच प्रतिशत भारतीय ‘वर्चस्वी मुख्यधारा’ का निर्माण करते हैं. यदि भारत को ज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में आगे जाना है तो वह इन समूहों को पीछे छोड़कर आगे नहीं जा सकता है.

इसे हम घुमंतू और विमुक्त समुदायों के मामले से समझ सकते हैं. गणेश देवी ने यह बात अपनी कई किताबों और सार्वजानिक व्याख्यानों में लगातार कही है कि भारत में लगभग सात करोड़ घुमंतू और विमुक्त समुदायों के लोगों की दशा चिंताजनक है.

ऐसे लगभग 190 समुदाय हैं जिन्हें 1871 में ब्रिटिश शासन ने क्रिमिनल ट्राइब एक्ट के तहत अपराधी जनजाति घोषित कर दिया था. वास्तव में पूर्व आधुनिक भारत में प्रभुत्वशाली तबकों और राज्य ने आपस में एक गठजोड़ कर लिया था. इस गठजोड़ में पुलिस और इलाके के जमींदारों ने घुमंतू और विमुक्त समुदायों को चोर और अविश्सनीय कहकर प्रताड़ित किया.

इन समुदायों पर बहुत हिंसा ढाई गयी और उनका सम्मान छीन लिया गया. उन्हें इतिहास से बेदखल कर दिया गया. इन समुदायों को पुलिस थाने में जाकर अपना पंजीकरण करवाना होता था. वे पुलिस की अनुमति के बिना जिले से बाहर नहीं जा सकते थे. उनके लिए स्पेशल रिफार्म कैंप की भी व्यवस्था की गयी जिसमें उन्हें सुधारा जाना होता था.

इसका एक प्रभाव यह पड़ा कि घुमंतू लोग गांवों के बाहर की ऊसर-बंजर जमीनों, सड़क के किनारे, श्मशानों के किनारे या परित्यक्त बागों में बसने लगे. वे जहां बसे भी उस बस्ती को पुलिस की सीधी नजर में लाया गया. इस प्रकार 1871 के एक्ट से एक हीनतर सामाजिक सांस्कृतिक स्पेस की रचना की गयी.

एक समय के बाद इन समुदायों के सदस्य खुद को चोर और अपराधी मानने लगे और उन्होंने औपनिवेशिक कानूनों एवं वर्चस्वी ताकतों के अपने प्रति सांस्कृतिक दृष्टिकोण का आत्मसातीकरण कर लिया.

भारत में शैक्षिक और सामाजिक स्पेस से दलितों और आदिवासियों की अनुपस्थिति ने देश को आगे बढ़ने से रोका है. दलित समूहों के पास डॉक्टर भीमराव आंबेडकर जैसे लीडर होने के कारण वे अपनी आवाज़ को कुछ दूर तक ले जाने में सफल हो पाए हैं.

आंबेडकर के बारे में बात करते हुए यह किताब बताती है कि आंबेडकर ने इस बात पर जोर दिया कि ज्ञान के द्वारा ही एक आधुनिक और मानवीय गुणों से पूर्ण समाज बनाया जा सकता है. लेकिन इस ज्ञान परंपरा तब तक अधूरी है जब तक उन समुदायों की याददाश्त की परंपराओं को महत्व न दिया जाए जिन्हें जिसे भारतीय ज्ञान परंपरा ने अब तक उपेक्षित कर रखा है.

गणेश देवी इस किताब में पड़ताल करते हैं कि औपनिवेशिक ज्ञानकाण्ड ने भारत की ज्ञान परंपराओं को उसके सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय वातावरण से काट दिया और एक ऐसे समाज की रचना की जिसकी याददाश्त ही छीन ली गयी हो. वे यहीं नही रुकते. स्वयं भारत के अंदर मुद्रण तकनीक ने उन ज्ञान परंपराओं को हेय नज़रिये से देखा जो दलितों, आदिवासियों और घुमंतू समुदायों के बीच सांस ले रही थीं.

दुनिया गोल है: यह लगभग सबको पता चल गया है लेकिन इस दुनिया पर क़ब्ज़ा ज़माने के लिए सबसे पहले ज्ञान पर क़ब्ज़ा जमाना जरूरी हो जाता है. इसके लिए पहले से मौजूद ज्ञान परंपरा और उसके केंद्रों को नष्ट करना आवश्यक हो जाता है.

अफ्रीका और एशिया में इसे बड़े पैमाने पर किया गया. बेबिलोन और सुमेर के लोगों ने जिस ज्ञान की संरचना की, उसे हीन और कलंकित किया गया. पूरी दुनिया में ज्ञान के क्षितिज का विस्तार हुआ. भारत में भी ऐसा हुआ.

यहां पर तो उपनिषद, बौद्ध और जैन स्रोत, दर्शन के विभिन्न स्कूल और संस्कृत भाषा के सौन्दर्यशास्त्री ज्ञान के बारे में उत्कृष्ट चिंतन करते रहे हैं. इन पर विचार करने के साथ गणेश देवी ज्ञान की साभ्यातिक आलोचना विकसित करते हैं.

अमूमन देखा जाता है कि इस प्रक्रिया में भारतीय विद्वान अपना संतुलन खो देते हैं. वे घबराकर और कभी-कभार शिकायती स्वर में इसका दोष वैश्वीकरण को देने लगते हैं. मनुस्मृति और डाक्टर आंबेडकर के लेखन को पाठक के सामने रखकर यह किताब बताती है कि जाति के विभेदकारी भौतिक तत्वों को दार्शनिकता की आड़ में कितने लंबे समय से बनाए रखा गया है. लगभग दो हजार सालों का संतप्त इतिहास इस किताब में बहुत शिद्दत से मौजूद है.

महात्मा गांधी को इस बात का श्रेय जाता है कि शक्तिशाली अंग्रेज़ी साम्राज्य से घबराये नहीं. उन्होंने बहुत ही शाइश्तगी से इसकी बनावट को देखा और पाया कि यदि उन आधारों को ख़त्म कर दिया जाय जिससे अंग्रेज़ी साम्राज्य बना है तो वह भरभरा कर गिर जाएगा. हुआ भी ऐसा.

उन्होंने अंग्रेज़ी शिक्षा में गुलामी के बीज देखे जिससे भारत अगली कई सदियों तक मुक्त नहीं होने वाला था. उन्होंने साबरमती आश्रम और गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की. 1920 में गुजरात विद्यापीठ ने अस्पृश्यता के खिलाफ़ प्रस्ताव पास किया.

इस विद्यापीठ का उद्देश्य सत्य और अहिंसा, श्रम की गरिमा, सभी पंथों की बराबरी और भाषाओं को सम्मान देना था. इसी तरह इस दौर के सम्मानित कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की. इन संस्थानों ने सवाल पूछने का ज़बरदस्त वातावरण उपलब्ध कराया.

यह सब आज़ादी की लड़ाई के वर्षों में हो रहा था. अगर भारत ज्ञान के क्षेत्र में कुछ बनना चाहता है अब ऐसा क्यों नहीं हो सकता है? यह किताब अपने पाठकों के समक्ष इस सवाल को भी रखती है.

यह किताब एक अपील के साथ ख़त्म होती है कि अब समय आ गया है कि भारत में उन घावों को भरा जाय जो वर्ण व्यवस्था और औपनिवेशिक शासन ने दिए हैं. वास्तव में भारत की दुर्दशा के लिए विभिन्न राजनीतिक दल और विद्वत्जगत अपनी सुविधानुसार दुश्मन का चुनाव करते हैं.

कुछ का कहना होता है कि प्राचीनकाल में सब कुछ सही था, भारत की यह दशा मुगलों ने की तो कुछ इसका सारा दोष भारत में ब्रिटिश शासन को देते हैं कि जिसने भारत की पूर्व आधुनिक ज्ञान परंपरा, समाज और संस्कृति को नष्ट कर दिया.

हालांकि दलित विद्वानों का एक बड़ा हिस्सा भारत में अंग्रेजों की भूमिका को मुक्तिकारी मनाता रहा है लेकिन यह किताब हमें यह भूलने से रोक देती है कि क्रिमिनल ट्राइब एक्ट के तहत कई दलित जातियों को औपनिवेशिक अपराधशास्त्र का पहला निशाना बनाया गया.

साभार- द वायर, रमाशंकर सिंह की रिपोर्ट

आदिवासी हितों पर काम करने वाले अधिकारियों को नक्सली बता रही है रमन सरकार

बस्तर। निलंबित दिनेश ध्रुव गोंड आदिवासी समुदाय से आते हैं. छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिला स्थित जेल में अधीक्षक के पद पर है. इन्हें आदिवासियों के समर्थन, हित व मुद्दे पर लिखने के कारण रायपुर के डीजी द्वारा निलंबन का फरमान मिला है. डीजी ने दिनेश ध्रुव को नक्सली समर्थक बताया और निलंबित करने का आदेश दे दिया.

दिनेश ध्रुव की बलौदा बाजार में सबसे ईमानदार अफसरों में गिनती होती है. दिनेश ध्रुव के आने बाद जेल में काफी सुधार हुआ. इनकी ईमानदारी जग जाहिर है. इसी ईमानदारी के वजह से सोशल मीडिया में अपने आदिवासी समुदाय के हित, मुद्दे एवं चुनौतियों को भी लगातार लिखते हैं.

बस्तर के रहनेवाले दिनेश ध्रुव अपने अनुभवों को भी सोशल मीडिया से सांझा करते हैं. इस तरह से दिनेश ध्रुव कापर लिखना भाजपा शासित रमन सरकार की आंख को खटका तो तुरंत ही इनके आला अफसरों ने उन्हें नक्सली समर्थक बताकर निलंबित कर दिया. आदिवासियों के हित व मुद्दे लिखना आज महंगा पड़ गया इसकी सजा निलंबन से मिली.

इससे पहले रायपुर केंद्रीय जेल सहायक अधीक्षक राजेन्द्र गायकवाड़ और वर्षा डोंगरे जोकि दोनों दलित समुदाय से आते है. दोनों को निलंबित कर दिया गया है, वर्षा डोंगरे को नक्सली समर्थक बताकर निलंबित कर दिया गया. दोनों की बेहद काबिल अफसरों में गिनती होती है. रायपुर जेल को सुधारने में इन दोनों अफसरों की बड़ी भूमिका मानी जाती है.

छत्तीसगढ़ में वर्तमान समय में आदिवासी हित, मुद्दे समर्थन में लिखना का मतलब भाजपा के रमन सरकार के लिए नक्सल समर्थक हो जाना है. खासकर आप दलित, आदिवासी समुदाय से तो आपको नक्सली समर्थन का प्रमाण पत्र के साथ ही निलंबन का प्रमाण पत्र भी पकड़ा दिया जाता है. फिर आप लड़ते रहिए कोई सुनने वाला नहीं है. इस तरह से भाजपा सरकार में आदिवासियों पर लिखने का मतलब आप नक्सली समर्थक है. दलितों व अल्पसंख्यकों पर लिखने का मतलब आप देशद्रोही, आतंकवादी घोषित कर देंगे. अभिव्यक्ति की आजादी भारत में पूर्णत: खत्म हो चुकी है.

नरेश कुमार साहू की रिपोर्ट

राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ का दूसरा महाअधिवेशन का आयोजन दिल्ली में

 

नई दिल्ली। राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ भारत देश में ओबीसी समाज के लिए कार्यरत सभी ओबीसी संघटनाओं का एक महासंघ है. इस महासंघ का पहला अधिवेशन नागपुर में 7 अगस्त 2016 को आयोजित किया गया था. इस सफल अधिवेशन के कारण इस सत्र में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय ओबीसी मागासवर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की पहल की है.

महाराष्ट्र सरकार को नॉन क्रिमिलेयर की मर्यादा 4.5 लाख से 6 लाख करने का अध्यादेश जारी करने हेतू बाध्य होना पडा. इस महासंघ ने 27 नवंबर को पहली ओबीसी महिला अधिवेशन का आयोजन किया था. 8 दिसंबर 2016 को शीतकालीन नागपुर अधिवेशन में एक लाख से अधिक सर्वसमावेशी ओबीसी समाज के लोगों का मोर्चा निकाला गया था. देश के सारे ओबीसी संवर्ग एकजुट होने के परिणामस्वरूप महाराष्ट्र राज्य में पहली बार सरकार को ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए ओबीसी मंत्रालय का गठन करना पड़ा और इसी के साथ केंद्र सरकार ने पहली बार नागपुर में 500 ओबीसी छात्रों के लिए छात्रावास बनाने की मंजूरी दी.

आजादी के पूर्व भारत में अंग्रेजों के शासनकाल में सन 1871 से 1931 तक प्रत्येक 10 वर्ष के पश्चात ओबीसी संवर्ग की जनगणना की जाती थी. इस आधार पर देश की कुल आबादी का 52 प्रतिशत ओबीसी थे. देश में ओबीसी समाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़ा वर्ग था. महाराष्ट्र में कोल्हापुर संस्थान में सन 1902 के कालखंड में छत्रपती शाहु महाराज के शासनकाल में ओबीसी वर्ग को 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया था, जिसका उल्लेख्र महात्मा ज्योतिराव फुले ने भी अपने ग्रंथ ‘‘शेतकऱ्यांचे आसुड‘‘ में किया था.

सामाजिक न्यायिक एवं समता के भाव से दिए जाने वाला आरक्षण देश की आजादी प्राप्त होने तक जारी रहा. देश की स्वतंत्रता के पश्चात संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर एवं देश के प्रथम कृषि मंत्री डॉ. पंजाबराव देशमुख की कड़ी मेहनत से संविधान की धारा 340 के अनुसार ओबीसी के सभी संवर्ग को आरक्षण का प्रावधान किया गया था. संविधान की धारा 341 के अनुसार एस.सी.वर्ग एवं धारा 342 के तहत एस.टी. संवर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था. एस.सी. वर्ग की पूरी जाती की सूची तैयार होने के कारण उनको शेड्युल के साथ जोड़ा गया था शेड्युल-1. उसी तरह ही एस.टी. वर्ग को पूरी जाती की सूची तैयार होने के कारण उनकी सूची साथ में जोड़ी गई शेड्युल-2. लेकिन ओबीसी वर्ग के जाती की सूची न होने से ओबीसी की अनुसूची तैयार नही हो सकी इसी कारण संविधान की धारा 340 के क्रियान्वयन के लिए पहली लोकसभा में आयोग गठित कर ओबीसी के सभी वर्ग के जातियों की सूची बनाकर अनुसूची तैयार करने का सुझाव दिया गया था. अनुसूचित जाति और जनजाति के अनुसूची तैयार होने से इन दोनो प्रवर्गों को आजाद भारत में क्रमशः15 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत आरक्षण शिक्षा व नौकरी में लागू किया गया. लेकीन ओबीसी संवर्गकी सूची तैयार नहीं होने के कारण ओबीसी संवर्ग को आरक्षण लागू नही किया गया.

सन 1929 से मद्रास प्रांत में शुरू पिछडा वर्गीय आरक्षण को 1950 मे संविधान लागू होने के बाद मा. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार रद्द किया गया था. परंतु ओबीसी नेता पेरियार रामास्वामीजी ने इसके विरूद्ध मद्रास प्रांत में तीव्र आंदोलन छेड़ दिया और इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप पहली बार संविधान में ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया. फलतः आज भी तमिलनाड़ु राज्य में ओबीसी का 50 प्रतिशत आरक्षण कायम है.

संविधान की धारा 340 के तहत ओबीसी संवर्ग को सुविधाएं देने के लिए आयोग की सिफारिश को लागू करने के लिए डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर एवं डॉ.पंजाबराव देशमुख सहित अन्य नेताओं के प्रयासों के बावजूद तत्कालीन सरकार ने ओबीसी के हितों को दरकिनार कर देने की वजह से खफा होकर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 27 सितंबर 1951 को ओबीसी संवर्ग की हितों की रक्षा हेतु अपना मंत्री पद त्याग दिया. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा उठाए गए इस कदम से घबराई सरकार ने 29 जनवरी 1953 को सांसद काका कालेलकर की अध्यक्षता में ओबीसी आयोग की स्थापना की. इस आयोग की रिपोर्ट 30 मार्च 1955 को लोकसभा में प्रस्तुत की गई. इस आयोग की रिपोर्ट में ओबीसी को शिक्षा तथा नौकरी में आरक्षण की सिफारिस की गई थी. परंतु आयोग के अध्यक्ष ने अपने अधिकार का दुरूपयोग कर आयोग द्वारा दी गई रिपोर्ट से अपनी असहमति होने का पत्र राष्ट्रपतिजी को सौंपा. परिणामस्वरूप 25 वर्षों तक इस रिपोर्ट को लोकसभा के पटल पर चर्चा एवं निर्णय हेतु रखा ही नहीं गया.

सन 1978 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार बनी. ओबीसी नेताओं ने फिर से कालेलकर आयोग का मुद्दा उठाया. लेकिन इस सरकार ने बिना चर्चा किए कालेलकर आयोग की रिपोर्ट को रद्द कर, 20 सितंबर 1978 को सांसद श्री बी.पी.मंडल की अध्यक्षता में नये आयोग का गठन किया. इस आयोग ने भी दो वर्षों तक अध्ययन कर संपूर्ण रिपोर्ट महामहिम राष्ट्रपति को सौंपी. उल्लेखनीय है कि इस रिपोर्ट में भी कालेलकर आयोग की ही सिफारिशों पर मुहर लगा दी गई थी. इसके बावजूद भी यह रिपोर्ट भी 10 वर्षों तक लोकसभा के पटल पर पेश नहीं की गई.

परिणाम स्वरूप, ओबीसी को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा गया, दिसंबर 1989 को प्रधानमंत्री वीपी सिंह के सरकार से मंडल आयोग मान्य करने की मांग होने लगी. वीपी सिंह ने इस रिपोर्ट की सिफारिशों का अध्ययन करने के पश्चात इस पर सहमति दर्शायी. अंततः 7 अगस्त 1990 को लोकसभा में मंडल आयोग की सिफारिसों को मंजूरी प्रदान कर लागू करने की घोषणा की गई. प्रधानमंत्री व्ही.पी.सिंग द्वारा इस ऐतिहासिक निर्णय लिया गया. वीपी सिंह यदि चाहते तो मंडल आयोग को नामंजूर कर 5 वर्षों तक प्रधानमंत्री पद पर बने रहते. इसी कारण वीपी सिंह एकमात्र बहुजनवादी प्रधानमंत्री साबित हुए.

वीपी सिंह के बहुजनवादी भूमिका के कारण आरक्षण विरोधियों ने उन्हें रावण करार देते हुए दशहरे के दिन उनका पुतला जलाया. 7 अगस्त 1990 को मंडल आयोग की सिफारिश से भयभीत आरक्षण विरोधी सर्वोच्च न्यायालय में गए. आखिरकार 1992 को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में सकल 50 प्रतिशत आरक्षण सन 1992 को लागू किया गया. सकल 50 प्रतिशत आरक्षण मे एस.सी.15 प्रतिशत तथा एस.टी 7.5 प्रतिशत लागू था. 50 प्रतिशत में से 22.5 प्रतिशत घटाने के बाद 27.5 प्रतिशत बाकी रहा था! इसी कारण सन 1992 से ओबीसी कों 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया एवं उसी के साथ नॉन-क्रिमीलेयर की शर्तें भी लगा दी गई. जो सुविधा ओबीसी को 1952 से मिलनी चाहिए थी वह 40 वर्षों तक ओबीसी समाज को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया. कुल आबादी के 52 प्रतिशत वर्ग को नाममात्र 27 प्रतिशत आरक्षण लागू हुआ जिसे महाराष्ट्र जैसे पुरागामी राज्य में सन 2003 तक आरक्षण से वंचित रखा गया.

छत्रपति शाहू, महात्मा जोतिबा फुले एवं डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर इन महान विभूतियों क विचारों से चलने वाले अन्याय किया गया. इतना ही नही शत प्रतिशत दिए जाने वाली छात्रवृत्ति पांच वर्ष के पश्चात घटाकर 50 प्रतिशत कर दी गई. इसके पश्चात कुल पाठ्यक्रम से 250 पाठ्यक्रम निकाल दिए गए. अजतक ओबीसी छात्रों के लिए एक भी छात्रावास नही बनाया गया. ओबीसी को पदोन्नति में आरक्षण नही, ओबीसी का स्वतंत्र मंत्रालय नही ओबीसी पिछड़ावर्गीय होने के पश्चात भी एट्रॉसिटी कानून में समावेश नहीं किया गया, किसानों को पेंशन नही दी जा रही है. देश आजाद होने के बाद आज की कुल आबादी का 60 प्रतिशत से 65 प्रतिशत हिस्सा ओबीसी समाज का होने पर भी यह अन्याय हो रहा है.

उपरोक्त सभी मांगों की ओर केंद्र एवं सभी राज्य सरकारों का ध्यान आकर्षित करने के लिए तथा अन्य सभी मांगे पूर्ण करने हेतू राष्ट्रीय ओबीसी महासंघद्वारा देशभर में आंदोलन चलाया जा रहा है. महाअधिवेशन स्थल राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ द्वितीय राष्ट्रीय महाअधिवेशन कॉन्स्टीट्युशनल क्लब ऑफ इंडीया, दिनांक 7 अगस्त 2017

सीवर साफ कर रहे 3 कर्मचारियों की मौत, जल बोर्ड ने कहा नहीं दी थी अनुमति

नई दिल्ली। दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के लाजपत नगर में रविवार को सीवर की सफाई करने उतरे तीन मजदूरों की मौत हो गई. मीडिया की खबरों के मुताबिक यह तीनों बिना किसी सुरक्षा उपकरण के सीवर लाइन साफ करने उतरे थे. वहीं दूसरी तरफ दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों ने कहा है कि उन्होंने किसी भी कमर्चारी को सीवर लाइन साफ करने के लिए नहीं कहा था. इसे मामले में एक जांच बैठा दी गई जो कि यह पता लगाएगी क्यों ये कर्मचारी एक ऐसे सीवर को साफ करने उतरे जो गंदगी से पूरी तरह भरा हुआ था. बता दें कि इससे पहले 15 जुलाई को साउथ दिल्ली के घिटोरनी में भी इसी तरह से टैंक की सफाई करने उतरे चार मजदूरों की मौत हो गई थी.

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार चश्मदीदों के मुताबिक तीनों कर्मचारी एक के बाद एक सीवर लाइन में उतरे थे जब पहले कर्मचारी ने उतरन के बाद कोई जवाब नहीं दिया तब उसके बाक दोनों कर्मचारी नीचे उतरे. चौथा कर्मचारी को सीवर से बचा लिया गया. पुलिस के मुताबिक मतृकों की पहचान जोगिंदर, अनू और अजय के तौर पर हुई है और तीनों ही खिचड़ीपुर के रहने वाले हैं. जिस कर्मचारी को बचा लिया गया उसकी पहचान राजेश के तौर पर हुई है. सड़क से गुजरते एक शख्स ने राजेश की आवाज सुनी और करीब 1.30 बजे पुलिस को फोन किया. डीसीपी साऊथ ईस्ट रोमिल बानिया के मुताबिक आईपीसी की धाराओं 304, 308 और 34 के तहत अज्ञात लोगों को के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है.

लाजपत नगर के जल विहार इलाके में कबीर राम मंदिर के पास यह घटना घटी. पास में ही पान की दुकान चलाने वाले हरि प्रसाद ने बताय कि ये लोग डीजीबी लाइन पर करीब आधे घंटे से काम कर रहे थे. इनमें से जोगिंदर पिट में दाखिल हुआ और बाकी उसे दिशा-निर्देश दे रहे थे लेकिन कुछ समय के बाद उसने कोई जवाब देना बंद कर दिया. प्रसाद ने बताया कि मेनहॉल में उतरने के करीब एक मिनट के बाद ही जोगिंदर ने जवाब देना बंद कर दिया था.

प्रसाद ने बताया कि 10 फीट गहरे गड्डे से जब जोगिंदर ने कोई जवाब नहीं दिया तो दूसरा कर्मचारी भी उसकी मदद के लिए नीचे उतरा लेकिन थोड़े समय के बाद उसने भी कोई प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया. तीसरे कर्मचारी ने ने नीचे उतरते वक्त पैर स्लिप हो गया और वह नीचे गिर गया. चौथा कर्मचारी जो कि रस्सी लेने चला गया वह भी मेनहॉल में उतरा और थोड़ी देर बाद ही मदद के लिए चिल्लाने लगा. फायर विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इन लोगों ने कोई भी सुरक्षा उपकरण नहीं पहने हुए थे. तीनों की बॉडी को करीब 2 बजे निकाल लिया गया. पुलिस टीम द्वारा बाद में पिट को कवर कर दिया गया.

एक डीजेबी के प्रवक्ता ने कहा, ‘हमने लाइन की सफाई के लिए कोई अनुबंध जारी नहीं किया है और न ही वहां आस-पास कोई ठेकेदार काम कर रहा था. हम जांच कर रहे हैं कि कैसे बिना परमिशन के इन लोगों न पिट में प्रवेश किया.

महंगी होगी लग्जरी कारें

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नई दिल्ली। एस.यू.वी. या लग्जरी सेडान कारें महंगी होने जा रही है. जी.एस.टी. काउंसिल लग्जरी गाडियों पर सेस को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत करने का विचार कर रही है. काउंसिल के इस फैसले से एस.यू.वी. या लग्जरी कारें महंगी हो जाएंगी. हालांकि अगर काउंसिल सेस बढ़ाने का फैसला कर भी लते है तो इससे अचानक दामों में बढ़ौतरी नहीं हो जाएगी. सेस बढ़ाने के बाद जी.एस.टी. कॉम्पेंसेशन लॉ में संशोधन की जरूरत पड़ेगी.

जी.एस.टी. काउंसिल की मीटिंग के बाद एक अधिकारी ने बताया कि काउंसिल ने जी.एस.टी. कानून में संशोधन को मंजूरी दी है, जिससे कॉम्पेंसेशन सेस में बढ़ोतरी होगी. एक अंग्रेजी अखबार की माने तो अधिकारी ने यह बी बताया कि काउंसिल का मत यह था कि महंगी गाडियों पर सेस की सीमा को बढ़ाया जाए.

आपको बताते चलें कि कारों को जी.एस.टी. के सबसे ऊंचे स्‍लैब (28 प्रतिशत) में रखा गया है. यह बात भी गौर करने वाली है कि जी.एस.टी. काउंसिल पहले ही सेस सहित इस पर अधिकतम टैक्स 40 फीसदी पहले ही तय कर चुकी है. 4 मीटर की लंबाई वाली छोटी पैट्रोल और 1,200 CC इंजन क्षमता वाली गाड़ियों पर 1 फीसदी सेस लगाया गया है, जबकि इसी लंबाई और 1,500 CC क्षमता वाली डीजल गाड़ियों पर 3 फीसदी सेस तय किया गया है. मध्‍यम आकार की बड़ी कारों या एस.यू.वी. पर सेस 15 फीसदी है, जिससे जी.एस.टी. लागू होने के बाद कुछ मॉडल के दाम में कमी आई थी.

सवा साल से नहीं की मां से बात, मिलने पहुंचा तो मिला मां का कंकाल

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मुंबई। शहर के लोखंडवाला इलाके की एक पॉश सोसाइटी के दसवीं मंजिल पर स्थित एक फ्लैट के अंदर से एक 63 वर्षीय महिला का कंकाल रिकवर हुआ है. महिला का बेटा अमेरिका में रहता था एक साल पहले उसकी लास्ट बार अपनी मां से बात हुई थी. रविवार को वह घर पहुंचा तो मां के फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद था. दरवाजा तोड़ने के बाद अंदर जाने पर उसने मां का कंकाल बेड पर देखा.

महिला का नाम आशा केदार साहनी है. उनके पति केदार साहनी की 2013 में डेथ हो चुकी है. उसका बेटा रितुराज साहनी अमेरिका में आईटी इंजिनियर हैं. वह परिवार के साथ अमेरिका में ही रहते हैं. फ्लैट में मां का कंकाल देख बेटे ने पुलिस को इसकी जानकारी दी. पुलिस ने कंकाल का पंचनामा कर उसे पोस्टमॉटर्म के लिए गोरेगांव स्थित सिद्धार्थ अस्पताल भेज दिया है. पुलिस के मुताबिक, आशा ने अप्रैल 2016 में आखिरी बार बेटे को फोन करके कहा था कि, वे अब अकेलेपन में नहीं रहना चाहतीं और किसी वृद्धाश्रम में चली जाएंगी. पुलिस को शक है कि, भूख और कमजोरी से उनकी मौत हो गई होगी. बता दे कि, महिला के नाम पर बेलस्कॉट टावर में करीब 5 से 6 करोड़ रुपये दो ‌फ्लैट हैं. जोन-9 के डीसीपी परमजीत सिंह दाहिया ने बताया कि आशा की संदिग्ध स्थिति में हुई मौत की गुत्थी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट व फॉरेंसिक रिपोर्ट, बेटे रितुराज के मोबाइल कॉल्स के विवरण (सीडीआर), सीसीटीवी और अन्य सबूतों व सुरागों की जांच से सुलझ सकती है.

वैकेंया नायडू बने देश के 15वें उपराष्ट्रपति, मिलें 516 वोट

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नई दिल्ली। वेकैंया नायडू देश के 15 उपराष्ट्रपति बने. वेकैंया नायडू को 516 वोट मिलें जबकि गोपालकृष्ण गांधी को 244 वोट मिले हैं. मुकाबला एनडीए कैंडिडेट एम. वेंकैया नायडू और यूपीए के गोपालकृष्ण गांधी के हुआ था. काउंटिंग शाम 6 बजे से शुरू हो गई थी. इस चुनाव में पहला वोट नरेंद्र मोदी ने डाला. दोनों सदनों के कुल 785 सांसदों में से 771 ने वोट डाला. इस दौरान 98.20% वोटिंग हुई. जीत के लिए 50% से एक ज्यादा वोट जरूरी है. एनडीए के पास लोकसभा में 338 और बीजेपी के राज्यसभा में 58 मेंबर हैं. मौजूदा उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का कार्यकाल 10 अगस्त को खत्म हो रहा है.

न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, 14 सांसदों ने वोट नहीं डाला. इनमें बीजेपी से 2, कांग्रेस से 2, आईयूएमएल से 2, टीएमसी से 4, एनसीपी से 1, पीएमके से 1 और 2 निर्दलीय सांसद शामिल हैं. इन सांसदों ने वोट नहीं डाला: विजय गोयल (बीजेपी) , सांवरलाल जाट (बीजेपी), मौसम नूर (कांग्रेस), रानी नारा (कांग्रेस), उदयनराजे भोसले (एनसीपी), अंबुमणि रामाडॉस (पीएमके) से हैं.

वहीं, कुणाल कुमार घोष, तापस पॉल, प्रोतिमा मंडल और अभिषेक बनर्जी टीएमसी से हैं. पीके कुल्हालीकुट्टी और अब्दुल वहाब आईयूएमएल के सांसद हैं. अनु आगा और एन के सारनिया निर्दलीय सांसद हैं. बीजेपी सांसद विजय गोयल और सांवर लाल जाट की तबियत ठीक नहीं है. दोनों सांसद हॉस्पिटल में एडमिट हैं.

राहुल की कार पर पथरावः BJP महामंत्री सहित 4 लोग हुए गिरफ्तार

अहमदाबाद। गुजरात में बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा करने पहुंचे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की कार पर पथराव का मुद्दा गरमा गया है. कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी और आरएसएस पर जमकर हमला बोला है. खुद राहुल गांधी ने इसके लिए संघ-बीजेपी को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि इन हमलों से वे डरने वाले नहीं और लोगों की आवाज उठाते रहेंगे. इस बीच पुलिस ने राहुल गांधी के काफिले पर हमला करने के मामले में बीजेपी नेता जयेश दर्जी को धनेरा से गिरफ्तार कर लिया है, जबकि 3 को हिरासत में लिया गया है. पुलिस ने कहा कि जयेश दर्जी मुख्य आरोपी हैं.

इस हमले की पीएम मोदी की ओर से निंदा नहीं होने पर प्रतिक्रिया देते हुए शनिवार को राहुल गांधी ने कहा कि जो लोग हमला कराते हैं वे उसकी निंदा क्यों करेंगे. राहुल गांधी ने कहा कि बीजेपी के वर्कर ने इतना बड़ा पत्थर मारा मेरी कार पर. मेरे पीएसओ को लगी. राहुल ने कहा कि यही पीएम मोदी और बीजेपी की राजनीति का तरीका है इसमें क्या कहा जा सकता है. वे लोगों की आवाज बुलंद करते रहेंगे. इन्हें जो करना है करने दीजिए.

कांग्रेस पार्टी ने गुजरात के बनासकांठा में राहुल गांधी की कार पर पत्थर मारने को सोची समझी साजिश ते तहत हमला करार दिया है. गुलाब नबी आजाद ने कहा- जो घटना गुजरात में घटी उस घटना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. कई हफ्तों से देश में और देश के कई हिस्सों में बाढ़ आई हुई है.

असम गुजरात राजस्थान विशेष रूप से प्रभावित हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी तीन-चार दिन के दौरे पर थे कि लोगों की समस्या समझें. आजतक के मुताबिक राहुल गांधी बनासकांठा गए जहां पर खुद मुख्यमंत्री 3 दिन बाद गए थे. जब वह दौरा कर रहे थे धनेरा में वही लाल चौक में 3 हजार लोग खड़े थे जो राहुल का स्वागत कर रहे थे. आजाद ने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार की तरफ से उस बैठक को बाधित करने की पूरी कोशिश की गई लेकिन राहुल गांधी बिल्कुल भी डिस्टर्ब नहीं हुए और अपना काम करते रहे.

जब लाल चौक से वह निकल गए थे तो RSS और BJP की सोची समझी साजिश के तहत एक मोड़ पर राहुल गांधी की गाड़ी पर हमला किया गया. राहुल की कार का कांच नीचे उतर आया था लेकिन पिछला कांच जहां पर पीएसओ बैठता है वहीं बहुत बड़ा बोल्डर पिछले कांच पर फेंका गया. कांच टूट के गाड़ी के अंदर गिर गया इस तरह का जानलेवा हमला राहुल गांधी पर किया गया जिसकी हम निंदा करते हैं.

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 1.536 अरब डॉलर बढ़कर 392.867 अरब डॉलर हो गया

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नई दिल्ली। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 28 जुलाई को समाप्त हुए हफ्ते में 1.536 अरब डॉलर बढ़कर 392.867 अरब डॉलर हो गया है. यह आंकड़ा 25,209 अरब रुपये के बराबर है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के मुताबिक इससे पहले के हफ्ते में यह भंडार 2.27 अरब डॉलर बढ़कर 391.33 अरब डॉलर पर पहुंचा गया था.

बीते शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ें के तहत विदेशी पूंजी भंडार का सबसे बढ़ा घटक विदेशी मुद्रा आस्तियां (FCA) आलोच्य हफ्ते में 160.99 करोड़ डॉलर बढ़कर 368.75 अरब डॉलर हो गई है. यह आंकड़ा 23651.4 अरब रुपये के बराबर है.

केंद्रीय बैंक के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार को डॉलर में व्यक्त किया जाता है. इस भंडार में मौजूद यूरो, पौंड, स्टर्लिंग, येन जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं के मूल्यों में होने वाले उतार चढ़ाव का सीधे तौर पर प्रभाव पड़ता है. आलोत्य अवधि में बारत का स्वर्ण भंडार 20.34 अरब डॉलर रहा है. यह आंकड़ा 1317.4 अरब रुपये के बराबर है. इस दौरान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में भारत के विशेष निकासी अधिकार (एसडीआर) का मूल्य 39 लाख डॉलर बढ़कर 1.49 अरब डॉलर हो गया है. यह 95.9 अरब रुपये के बराबर है. आईएमएफ में देश के मौजूदा भंडार का मूल्य 7.72 करोड़ डॉलर घटकर 2.26 अरब डॉलर दर्ज किया गया है. यह 145.2 अरब रुपये के बराबर है.

यूजीसी NET का नोटिफिकेशन जारी, आधार नंबर अनिवार्य

नई दिल्ली। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) के लिए नोटिफिकेशन जारी हो गया है. नेट के लिए आवेदन की प्रकिया 11 अगस्त से शुरू होगी. वहीं, आवेदन करने की अंतिम तारीख 11 सितंबर होगी. परीक्षा की फीस 12 सितंबर तक जमा कर सकेंगे. इस बार 5 नवंबर को यह परीक्षा होगी. इन सबमें सबसे जरूरी बात यह है कि इस बार इस फॉर्म में आधार नंबर को जरूरी बनाया गया है.

सीबीएसई ने यूजीसी नेट-2017 का कार्यक्रम जारी करते हुए बताया है कि बोर्ड ने इस परीक्षा को और ज्यादा पारदर्शी बनाने के लिए यह कदम उठाए है. सीबीएसई की तरफ से जारी नोटिफिकेशन में बताया गया है कि आधार को अनिवार्य किए जाने के बाद परीक्षा केंद्रों में सुविधाजनक और बिना परेशानी के आवेदकों की पहचान को सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी.

परीक्षा फॉर्म में आधार नंबर की अनिवार्यता जम्मू-कश्मीर, असम और मेघालय को छोड़कर सभी राज्यों में लागू होंगे. इन राज्यों के आवेदकों को फॉर्म भरते समय राशन कार्ड नंबर, बैंक अकाउंट नंबर, पासपोर्ट का नंबर या किसी अन्य सरकारी पहचान संख्या भरनी होगी. इन राज्यों के परीक्षार्थियों को अपना परीक्षा केंद्र का चयन भी वहीं करना होगा.

यूजीसी नेट की यह परीक्षा विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ाने वाले सहायक प्रोफेसर और जूनियर रिसर्च फेलोशिप के चयन के लिए आयोजित की जाती है. सीबीएसई ने पहली बार इस परीक्षा में आधार नंबर को अनिवार्य किया है.

सफाई अभियान के पोस्टर पर डॉ. अम्बेडकर क्यों? ब्रांड एम्बेस्डर तो शिल्पा शेट्टी है

बचपन में नाई द्वारा बाल काटने से मना किए जाने के साथ शुरू हुआ डॉ. भीम राव अम्बेडकर के अपमान का सिलसिला 1956 ई. में बौद्ध धर्म अपनाने के पूर्व तक चलता रहा. आज भारतीय स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी यह अनवरत जारी है. कभी आजम खान द्वारा, कभी मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के शिक्षकों द्वारा आदि. आधे से ज्यादा मामले तो समाचार पत्रों में आते भी नहीं.

ताजा मामला स्वच्छ भारत निर्माण कार्यक्रम की आड़ में भारत सरकार द्वारा जारी किये गए एक विज्ञापन का है. यह विज्ञापन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर लगाया गया है, जिसमें चार्ल्स डार्विन के मानव विकास सिद्धान्त को चित्रात्मक रूप में दिखाते हुए डॉ. अम्बेडकर को विकसित मनुष्य के रूप में एक कचरे के डब्बे में “आपके अंदर के बाबासाहेब को जागृत करें” इस नारे के साथ कूड़ा फेंकते हुए दिखाया गया है. वास्तव में यह विज्ञापन नहीं बल्कि विज्ञापन की आड़ में डॉ. अम्बेडकर को अपमानित करने और दलित समाज को नीचा दिखाने की सोची समझी साजिश है.

केंद्र में सत्ता प्राप्त करने के साथ ही नव निर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 2 अक्तूबर 2014 को गांधी जयंती के दिन से इस संकल्प के साथ कि “गांधी जी के 150वें जयंती अर्थात 2 अक्तूबर 2019 तक पूरे देश को साफ सुथरा बना देंगे” स्वच्छ भारत निर्माण कार्यक्रम की नींव डाली थी. थोड़े बहुत विरोध के बीच पूरे देश की जनता ने स्वच्छता जागरूकता लानेवाले इस कार्यक्रम की तारीफ भी की. उनके आलोचक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी ने भी इसी तर्ज पर अपने राज्य में स्वच्छ दिल्ली अभियान कार्यक्रम भी संचालित किया.

इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली जी ने 2015 में 0.5 प्रतिशत सेस (टैक्स) भी लगाने की घोषणा की थी. प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया के दौर में कोई भी सरकार किसी कार्यक्रम को सफल बनाने, इसे आम जनमानस में पहुंचाने के लिए बॉलीवुड, खेल, समाज सेवा की दुनिया के मशहूर हस्तियों का ‘ब्रांड एम्बेस्डर’ के रूप में चुनाव करती है. भारत सरकार ने ऐसा किया भी. फरवरी 2017 में बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी को स्वच्छ भारत मिशन कार्यक्रम का ‘ब्रांड एम्बेस्डर’ नियुक्त किया गया.

ऐसे में नियमानुसार डॉ. अम्बेडकर की जगह शिल्पा शेट्टी को कूड़ा बीनते हुए दिखाया जाना चाहिए था. लेकिन इस विज्ञापन को बनानेवाले ‘अंत्योदय ग्रुप’ और इसे अभिप्रमाणित करने वाले अधिकारी ने किया कुछ और ही. यदि डॉ. अम्बेडकर को ही स्वच्छ भारत मिशन कार्यक्रम का प्रेरणा स्त्रोत बनाना था तो शिल्पा शेट्टी को ‘ब्रांड एम्बेस्डर’ बनाने, इसपर लाखों-करोड़ों खर्च करने से मंत्रालय या सरकार को क्या लाभ हुआ?

सफाई अभियान में यें हस्तियां भी शामिल रही हैं.

भारतीय संविधान निर्माण से लेकर देश में समता मूलक समाज के निर्माण हेतु योगदान देने वाले डॉ. अम्बेडकर के प्रति विज्ञापन निर्माताओं की सोच के आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि ऐसे लोग कभी डॉ. अम्बेडकर के समाज सुधार के संबंध में पढ़ना तो दूर इनके उल्लेखनीय कार्यों के बारे में कभी सुना भी नहीं होगा. डॉ. अम्बेडकर के संबंध में पढ़ा होता तो पता चलता कि इस समाजसुधारक ने हाशिये पर स्थित समाज के एक बड़े हिस्से को नगर का कूड़ा, गंदगी बीनना नहीं बल्कि हजारों वर्षों से तथाकथित हिंदू समाज के उस गंदगी को साफ करने की बात सिखाई जो मानव-मानव में भेद-भाव को बढ़ावा दे रहा था.

हिंदू सहित भारतीय समाज की जिस गंदगी को मिटाने की बात वे करते थे, उसे समूल नष्ट करने के लिए आज फिलहाल कम से कम दस प्रतिशत लोग जागरूक हो चुके हैं. जिस दिन 25-30 प्रतिशत जनमानस में इस गंदगी को मिटाने की भावना जागृत हो गयी उस दिन से धर्म, जाति व्यवस्था के नाम पर फैली गंदगी के साथ-साथ डॉ. अम्बेडकर को कूड़ा बीननेवालों के रूप में रूप में प्रदर्शित करनेवालों के दिमाग में मौजूद कचरा, गंदगी भी खत्म हो जाएगी.

इस आलेख का तात्पर्य केवल इतना है कि डॉ. अम्बेडकर से ईर्ष्या रखनेवाले समाज के प्रबुद्ध वर्ग से अपील है कि आप पर किसी सत्ता, संस्था का कोई दवाब नहीं है भारतीय संविधान निर्माता, समाज सुधारक डॉ. भीम राव अम्बेडकर का जबरन सम्मान करने, नाम लेने, उनके विचारों को मानने का, लेकिन आपको कोई हक भी नहीं है उन्हें नीचा दिखाने या अपमानित करने का.

यह लेख साकेत बिहारी का है.

दिलीप कुमार की हालत में सुधार

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दिलीप कुमार के फैन्स के लिए राहत की खबर आ रही है, कहा जा रहा है कि धीमे धीमे उनकी हालत में सुधार दिख रहा है. बुधवार से मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती दिलीप साहब के किडनी में समस्या बढ़ने और हीमोग्लोबिन गिरने की खबरें आईं थी. इस‍के बाद से लगातार उनकी तबीयत में कोई सुधार नहीं हाने का अपडेट मिल रहा थी लेकिन हालिया जानकारी के मुताबिक दिलीप कुमार की तबीयत पहले से बेहतर हो रही है. हाल ही में दि‍लीप कुमार की भतीजी शाहीन ने उनकी तबीयत के बारे में अपडेट देते हुए कहा, ‘युसूफ अंकल को डिहाइड्रेशन की वजह से अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. उन्हें IV फ्लुइड दिया गया. उनका प्रोटीन लेवल हाई जिसको लेकर उम्मीद जताई जा रही है कि वह जल्द ही नीचे आएगा. उनकी उम्र के चलते ये प्रोसेस धीमा है लेकिन उनके सभी अंग ठीक से काम कर रहे हैं. यहां तक कि उन्होंने कुर्सी पर बैठकर लंच भी किया है. मुझे पूरी उम्मीद है कि वो जल्द ठी‍क हो जाएंगे.’ इसके अलावा शाहीन ने ट्वीट कर इस बात के लिए भी चेताया कि दिलीप कुमार फिलहाल लीलवती अस्पताल में हैं, उन लोगों की जानकारी पर विश्वास ना करें जो गलत जानकारी देकर पब्लिसिटी कमाना चाह रहे हैं.’

दलितों को प्रोमोशन नहीं दे रहा है राजस्थान आयकर विभाग, अनशन पर बैठे

जयपुर। राजस्थान के आयकर विभाग में घमासान मचा हुआ है. मामला विभागीय प्रोमोशन का है. इस दौरान अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के कर्मचारियों की अनदेखी को लेकर आरक्षित वर्ग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. लगातार अनदेखी से नाराज आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों का धैर्य तब टूट गया, जब 4 अगस्त को प्रोमोशन के लिए होने वाली DPC यानि डिपार्टमेंटल प्रोमोशन कमिटी की बैठक में एक बार फिर उनकी अनदेखी की तैयारी थी. इससे नाराज कर्मचारियों ने आमरण अनशन शुरू कर दिया है.

धरने पर बैठे कर्मचारियों का आरोप है कि आयकर विभाग राजस्थान में एससी/एसटी वर्ग के कर्मचारियों को नियमानुसार प्रोमोशन नहीं मिल रहा है. यहां यह भी साफ कर देना जरूरी है कि ये प्रोमोशन में रिजर्वेशन का मामला नहीं है, बल्कि यह विभागीय प्रोमोशन जिसमें नियमानुसार सीनियर कर्मचारियों का प्रोमोशन पहले होना चाहिए उससे जुड़ा मामला है. अनशनकारियों का आरोप है कि प्रशासन तमाम कायदे कानून को ताक पर रख कर सामान्य श्रेणी के जूनियर कर्मचारियों का प्रोमोशन पहले कर दे रहा है, जबकि एससी/एसटी वर्ग के सीनियर कर्मचारियों की अनदेखी की जा रही है. उनका आरोप है कि यह कर्मचारियों के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का हनन है.

इस मामले को इस तरह और बेहतर समझा जा सकता है. मान लिजिए कि किसी विभाग में 10 सबसे सीनियर कर्मचारियों का प्रोमोशन होना है. इसमें तीन कर्मचारी एससी/एसटी वर्ग के हैं. नियमानुसार उनका भी प्रोमोशन होना चाहिए. लेकिन राजस्थान का आयकर विभाग इन तीनों कर्मचारियों को प्रोमोशन नहीं देकर बाद के उनसे जूनियर कर्मचारियों को प्रोमोशन दे दे रहा है, जो विभागीय और संवैधानिक नियमों का खुल्लम- खुल्ला उल्लंघन है.

4 अगस्त से जयपुर में अपने विभाग में आमरण अनशन पर बैठे एससी/एसटी वर्ग के अधिकारी और कर्मचारी 24 घंटे के बाद भी विभाग के कैंपस में ही डटे हुए हैं. इस अनशन में सौ से ज्यादा कर्मचारी शामिल हैं. राजस्थान आयकर विभाग का यह मनमाना रवैया पिछले कई सालों से बना हुआ है, जिसके खिलाफ आखिरकार आरक्षित वर्ग के कर्मी आर-पार की लड़ाई के लिए उतर गए हैं. उनका कहना है कि बिना न्याय मिले वो अनशन से हटेंगे नहीं.

नियमानुसार दलित और आदिवासी वर्ग के कर्मचारियों का प्रोमोशन नहीं करना सीधे तौर पर राजस्थान आयकर विभाग के जातीय विद्वेष को दिखाता है. यहां यह भी ध्यान देना जरूरी है कि आयकर विभाग केंद्र सरकार के तहत आता है और केंद्र में फिलहाल भाजपा की सरकार है, जिसके बड़े नेता दलितों के घर घूम-घूम कर खाना खाने को तो तैयार हैं, लेकिन उन्हें उनका हक देने से कतरा रहे हैं.

जडेजा ने किया ऐसा काम, बन गए नंबर एक

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नई दिल्ली। भारत और श्रीलंका के खिलाफ कोलंबो में खेले जा रहे दूसरे टेस्ट मैच में टीम इंडिया मजबूत स्थिति में है और इसकी वजह है भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन. इस मैच में दुनिया के नंबर एक टेस्ट गेंदबाज़ रवींद्र जडेजा ने अपने नाम एक और रिकॉर्ड दर्ज कर लिया. इतने ही नहीं जडेजा ने ऐसी उपलब्धि अपने नाम कर ली, जिसे पाने में बड़े- बड़े दिग्गज गेंदबाज़ों के पसीन छूट जाते हैं.

रवींद्र जडेजा टेस्ट मैच में बाएं हाथ के गेंदबाज़ों में सबसे तेज़ 150 विकेट अपने नाम करने के मामले में पहले नंबर पर आ गए हैं. जडेजा ने सिर्फ 32 टेस्ट मैच खेले हैं और उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ कोलंबो टेस्ट में धनंजय डिसिल्वा को बोल्ड कर अपने नाम ये रिकॉर्ड दर्ज़ करवा लिया. जडेजा के लिए ये उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि उन्होंने ये कमाल करते हुए पाकिस्तान के पूर्व दिग्गज तेज़ गेंदबाज़ रहे वसीम अकरम, रंगना हेराथ और ऑस्ट्रेलियाई तेज़ गेंदबाज़ मिचेल जॉनसन को भी पीछे छोड़ दिया है.

BBAU में प्रोफेसर ने पढ़ाया- बाबासाहेब के अनेक महिलाओं से थे अवैध संबंध और बुद्ध थे अत्याचारी

लखनऊ। बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) प्रशासन और प्राध्यापक फिर से विवादों में घिर गए है. पिछले वर्ष विश्वविद्यालय प्रशासन ने जातिगत भेदभाव के आधार पर प्रशासन ने आठ दलित छात्रों को निकाल दिया था. काफी विरोध प्रदर्शन के बाद प्रशासन को अपना फैसला लेना पड़ा. बीबीएयू में एक बार फिर दलित वर्ग को टारगेट किया है.

बीबीएयू में समाजाशास्त्र की प्राध्यापिका जया श्रीवास्तव ने लेक्चर के दौरान विवादित और गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी की है. उन्होंने बाबासाहेब और तथागत बुद्ध के बारे में जो कहा है उसे लेकर छात्र विश्वविद्यालय प्रशासन से कार्रवाई की मांग पर अड़ गए हैं.

समाजशास्त्र विभाग की प्राध्यापिका जया श्रीवास्तव ने क्लास रूम में लेक्चर के दौरान पढ़ाया कि अम्बेडकर के अपनी पत्नी के अलावा अन्य महिलाओं के साथ अवैध संबंध थे. उनका अपनी पत्नी के साथ रिश्ता नहीं था. ये मनुवादी प्राध्यापिका यही नहीं रुकी. जया ने आगे कहा कि ज्ञान प्राप्ति की चाहत में बुद्ध ने अपनी पत्नी पर अत्याचार किए, उन्हें छोड़ दिया. ऐसे में उन्हें महिलाओ का हितैषी नहीं माना जा सकता. वह अत्याचारी थे.

बहुजन छात्रों ने जब इसको लिखित में देने के लिए कहा तो वह भड़क गईं. उन्होंने प्रोफेसर से बात करने की तमीज न होने का हवाला दिया. उन्होंने यहां तक कहा है कि तुम्हे मेरी कक्षा में आने की जरुरत नहीं है.

बहुजन छात्र शशिकांत भारती ने पूरे मुद्दे को लेकर एससी/एसटी सेल, कुलपति, समाजशास्त्र के विभागाध्यक्ष समेत कई विभागों को पत्र लिखकर एफआईआर करवाने की मांग की है. छात्रों का कहना है कि बहुजन छात्र-छात्राओं को अपमानित करने और उन्हें परेशान करने के लिए इस तरह की हरकत जया श्रीवास्तव करती रहती हैं.

बहुजन छात्र बताते हैं कि कभी अम्बेडकर का फोटो फड़वा दिया जाता है. कभी लेक्चर में बाबासाहेब को अपमानित करने वाली बात की जाती है. यह सबकुछ यहां का माहौल खराब करने के लिए साजिश के तहत मनुवादी व्यवस्था के लोग करवा रहे हैं. जया श्रीवास्तव खुद शिक्षिका हैं. वह महिलाओं को अम्बेडकर से अवैध संबंध बनाने वाली करार देकर सभी को अपमानित कर रही हैं. इसका कोई भी और कहीं भी प्रमाण नहीं है. बुद्ध को भी उन्होंने जिस तरह से अत्याचारी कहा है, उससे तो साफ है कि यह सुनियोजित तरीके से बुद्धिज्म पर हमला हो रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बीबीएयू में आए थे तो दो छात्रों ने उन्हें काले झंडे दिखाकर वापस जाओ के नारे लगाए थे. छात्र इसी मनुवादी व्यवस्था से पीड़ित हैं. हर कोई उन्हें वोटबैंक का मोहरा बनाना चाहता है, लेकिन अम्बेडकर को कोई नहीं मानता.