दलित ने रखी स्टाइलिश मूंछें तो मनुवादियों ने कर दी पिटाई

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गांधीनगर। कई जगह अब तक दलितों को सरकारी नल से पानी पीने से रोका जाता था, घर के सामने से निकलने से रोका था लेकिन अब गुजरात में हैरान करने वाली घटना सामने आई है. जहां कुछ सवर्णों ने एक 24 वर्षीय दलित से मारपीट की. ये मारपीट सिर्फ इसलिए हुई कि दलित युवक ने स्टाइलिश मूंछ रखी थी.

गांधीनगर के कालोल तालुका के लिंबोदरा गांव के रहने वाले 24 वर्षीय पीयूष परमार ने शिकायत की है कि 25 सितंबर को उसके साथ कुछ लोगों ने मूंछ को लेकर मारपीट की. पीयूष के मुताबिक, दरबार समुदाय के तीन लोगों को यह पसंद नहीं आया कि दलित समुदाय का युवक मूंछ बनवाए.

पुलिस ने एक ही गांव के रहने वाले तीनों आरोपी मयूर सिंह वाघेला, राहुल विक्रम सिंह सेराठिया और अजित सिंह वाघेला के खिलाफ 26 सितंबर को शिकायत दर्ज की. केस की जांच डेप्युटी एसपी लेवल का एक अधिकारी कर रहा है.

एफआईआर में उल्लेख किया गया है, ‘मामले में आरोपियों ने शिकायतकर्ता को गालियां दीं, पीटा और कहा कि वह मूंछ कैसे बनवा सकता है.’

एफआईआर के मुताबिक, गांधीनगर की एक निजी कंपनी में काम करने वाला परमार अपने चचेरे भाई दिगांत महेरिया के साथ गरबा देखकर लौट रहा था. रास्ते में कुछ लोगों ने उनको जातिसूचक गालियां दीं.

परमार ने टीओआई को बताया, ‘जब हम जा रहे थे तो गालियों की आवाज आई. अंधेरा होने के कारण हम उनको दूर से देख नहीं पाए थे. जब हम उस स्थान पर गए जहां से आवाज आ रही थी तो दरबार समुदाय के तीन लोग वहां थे. किसी तरह के झगड़े से बचने के लिए हमने उनको नजरअंदाज किया. जैसे ही हम घर पहुंचे, वे लोग हमारे घर पहुंच गए और फिर गालियां देने लगे. उनलोगों ने पहले मेरे चचेरे भाई दिगांत को पीटा और उसके बाद मुझे पीटने लगे. वे लोग बार-बार मुझे कह रहे थे कि निचले संप्रदाय से होने के बावजूद मैं मूंछ कैसे बनवा सकता हूं.’

सेना में होगी 47 लाख नागरिकों की भर्ती

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प्योंगयांग। उत्तर कोरिया के करीब 4.7 मिलियन लोग उत्तर कोरियाई सेना में शामिल होने के लिए स्वेच्छा से आगे आए हैं. राज्य मीडिया की तरफ से आई रिपोर्ट से ये खबर सामने आई है, जिसमें कहा गया है सेना में शामिल होने वालों में 1.22 मिलियन महिलाओं सहित छात्र-छात्राएं और श्रमिक शामिल हैं.

बताया जाता है कि उन्हें पिछले छह दिनों से कोरियाई पीपुल्स आर्मी की सेना रैंकों में शामिल होने के लिए कहा जा रहा था. उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-उन ने 22 सितंबर को एक बयान जारी कर अमेरिका के उस धमकी की कड़ी निंदा की थी जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र में उत्तरी कोरिया को पूरी तरह से नष्ट करने की धमकी दी थी.

दैनिक जागरण के मुताबिक इस दौरान किम ने ट्रम्प को मानसिक रूप से उकसाने वाला बताया और कहा कि प्योंगयांग अमेरिकी राष्ट्रपति के इस अपमान और धमकी का कड़े रुप से प्रतिक्रिया देगा. उत्तर कोरिया की तरफ से 3 सितंबर को सबसे शक्तिशाली परमाणु परीक्षण सहित निरंतर अन्य तरह के हथियार परीक्षण से कोरियाई प्रायद्वीप पर तनाव काफी बढ़ गया है. इसे लेकर ट्रंप ने मंगलवार को कहा कि उत्तर कोरिया के लिए किसी भी तरह की अमेरिकी सैन्य कार्रवाई विनाशकारी होगी.

सरकारी प्रपंचों ने घोटा एक और दलित का गला

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कौशांबी। डेरा सच्चा सौदा का 29 लाख रुपये का बिजली बिल बाकी था. महीनों से बिजली बिल बकाया होने के बावजूद राम रहीम की गिरफ्तारी से पहले यहां बे रोक टोक बिजली जलती रही. एक तरफ जहां देश के पीएम और प्रदेश के सीएम भले ही दलितों को लेकर भरे मंच पर दरियादिली दिखाते हैं वहीं दूसरी ओर बड़े बकायेदारों पर हाथ डालने के बजाय छोटे बकायेदारों को उनके दरवाजे पहुंच आए दिन धमकाते और परेशान करते हैं.

कौशांबी के कसिया पूर्व गांव की एक घटना आपको अंदर तक झकझोर कर रख देगी. चौखट पर अपने सर को कभी पटकती तो कभी दहाड़े मार कर चीखती और चिल्लाती दुखियारी दलित महिला सावित्री देवी का आरोप है कि उसके पति के मौत का जिम्मेदार बिजली विभाग का जेई और उसके ठेकेदार हैं. दलित महिला का कहना है कि इस विभाग के जेई और ठेकेदार ने उसके पूरे परिवार को बेसहारा बना दिया.

कोखराज थाना क्षेत्र के कसिया पूर्व गांव में यह दलित परिवार रहता है. बुधवार की शाम बकाया बिजली बिल की वसूली करने आए मूरतगंज उपकेन्द्र के जेई आशीष मौर्या व बिल रीडिंग ठेकेदार उत्तम शुक्ला ने उसके पति अजय को धमकाया था कि बिल का बकाया 56141 रुपया नहीं जमा किया तो उसे जेल भेज दिया जाएगा. बिजली का कनेक्शन अजय के पिता रामू के नाम है. रामू की तीन महीने पहले मौत हो चुकी है. अजय ने जेई से कुछ दिनों की मोहलत मांगी लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया. जेई की बात से अजय को इस कदर सदमा लगा कि उसे दिल का दौरा पड़ा और उसकी मौत हो गई.

शिवसेना के सामना ने किया भाजपा की बत्ती गुल

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मुंबई। शिवसेना ने एक बार फिर अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में मोदी सरकार पर हमला बोला है. सामना ने संपादकीय में लिखा है कि “गुजरात के विकास का क्या हुआ? ‘ये पुछते ही विकास पागल हो गया है’ ऐसा खुद गुजरात की जनता कह रही है”. सिर्फ गुजरात ही क्यों पूरे देश में विकास पागल हो गया है कि तस्वीर खुद भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सामने ला रहे हैं.

सामना ने आगे लिखा है कि राहुल गांधी ने बड़ी समझदारी भारी टिप्पणी की है कि विकास के बारे में कुछ लोगों ने बड़ी गप हांकी इसलिए विकास पागल हो गया होगा. ईवीएम मशीन में घोटाला करके तथा पैसों का इस्तेमाल करके चुनाव जीत लिया तो विकास हो गया ऐसा कुछ लोगों को लगता है, लेकिन विकास की अवस्था विकट हो गई है.

मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम जैसे वित्त विशेषज्ञों ने कल तक जब यही कहने की कोशिश की तब उन्हें पागल कहने की कोशिश की गई, लेकिन अब तो खुद बीजेपी के ही पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने ही विकास की हवा निकाल दी है. देश की विकास दर 5.7 प्रतिशत होने की बात कही जा रही है जबकि असल में यह 3.7 फीसदी है. ये दावा करने के बाद यशवंत सिंहा भी बेइमान या राष्ट्रद्रोही ठहराए जा सकते हैं. रशिया में स्टॅलिन राज के खिलाफ बोलने वाले एक-एक रात में गायब हो जाते हैं. यशवंत सिन्हा को सच बोलने की क्या सजा मिलती है ये देखना होगा.

पूर्व वित्तमंत्री अगर गलत हैं तो सिद्ध करो कि उनके द्वारा लगाए गए आरोप झूठे हैं. बीजेपी के भी कई लोगों में गिरती अर्थव्यवस्था के प्रति नाराजगी है, लेकिन अनजाने भय के चलते कोई बोलने को तैयार नहीं है. देश का बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है.

यशवंत सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वित्तमंत्री थे इसलिए उनका बयान सिर्फ सोशल मीडिया पर नियुक्त किए गए वेतनधारी प्रचारकों की फौज झुठा साबित नहीं कर सकती. संपादकीय में दावा किया गया है कि ये सब हमने साल भर पहले कह दिया था तब हम देशद्रोही ठहराए गए थे. अब यशवंत सिन्हा ठहराए जाएंगे.

भाषा की राजनीति और पिछड़ता भारत!

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हमें ये सोचना चाहिए कि हमारे देश में 22 ऑफिशियल भाषाओं के होने बावजूद भी हम हर मामले में पीछे क्यों हैं? या कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत इसिलए पीछे है क्योंकि यहां इतनी ऑफीशियल भाषाएं हैं?

क्योंकि सवाल ये है कि अगर इतनी सारी ऑफीशियल भाषाओं से ही किसी देश की तरक्की होती तो अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश की एक भी ऑफीशियल भाषा क्यों नहीं है? क्यों अमेरिका की सिर्फ एक De facto (वास्तविक) भाषा अंग्रेजी है? बोलने को अमेरिका जैसे देश भी हमारी तरह बहुभाषिय हैं. लेकिन ऑफीशियल भाषा के मामले में अमेरिका ने सिर्फ अंग्रेजी को ही क्यों रखा? क्यों नहीं भारत की तरह वहां भी भाषाओं का वर्गीकरण हुआ? क्यों इंग्लैण्ड ने सिर्फ अंग्रेजी को ही अपनी ऑफीशियल भाषा रखा?

कैसे अपनी जेपैनीज भाषा का इस्तेमाल कर जापान वाले आज विश्व की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देश में शुमार हो गए हैं? कैसे चाईना वाले सिर्फ चाइनीज भाषा का प्रयोग कर आगे बढ़ रहे हैं? क्यों सभी विकासशील देशों में ऑफीशियल भाषा 2 या 4 से ज्यादा नहीं? क्योंकि उन्हें लगता है कि भाषा संवाद का माध्यम है. जहां एक भाषा होगी वहां आमजन में आपसी संवाद भी आसानी से होगा. कोई क्रान्ति भी करनी हो तो आसानी से होगी. हमारी तरह क्षेत्रीय भाषाओं में उलझकर सिर्फ एक क्षेत्र तक सीमित रहकर कमजोर नहीं नहीं पड़ जाएगी. क्रांति सबसे पहले आपसी संवाद खोजती है. और ये संवाद न होने देना ही भाषीय राजनीति है.

इस देश को अगर तरक्की पर ले जाना है तो सरकार को यह तय करना चाहिए भारत की “मेन स्ट्रीम” यानी मुख्य धारा में कौन सी भाषा होनी चाहिए. अब वो अंग्रेजी हो, हिंदी हो या अन्य कोई भी.

दअरसल भाषा के मामले भारत का लगभग हर क्षेत्र तीन नावों की सवारी कर रहा है. पहला तो उस क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा, फिर अंग्रेजी और भूले बिसरे इस देश में 40% जनसंख्या द्वारा बोले जाने वाली “हिंदी भाषा.

और इन दो-तीन नावों की सवारी के चक्कर सबसे ज्यादा किसी का घाटा होता है, तो वो है इस देश की 70 फीसदी आबादी जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं. भारत के सरकारी स्कूलों की जर्जर हालत से शायद ही कोई अंजान हो. और शायद यही वजह है कि लोग अपने बच्चे को उच्च शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूलों की तरफ रुख करते हैं अपने. वो प्राइवेट स्कूल जहां आधुनिकता है, जहां सब कुछ डिसिप्लीन आर्डर में है, जहां प्रयोगशालाएं हैं और अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता भी है.

लेकिन ये “लोग” हैं कौन? याद रहे ये “लोग” उस 70 फीसदी आबादी का हिस्सा नहीं हैं. फिर खुद सोचिए कि उन 70 फीसदी बच्चों का क्या होता होगा भविष्य में जो सरकारी स्कूल से पढ़ कर निकलते हैं? क्या उनमें वो आत्मविश्वास होगा जो एक प्राइवेट स्कूल के विद्यार्थी में होगा? मेरा अपना मत है कि बिल्कुल भी नहीं. और चलिए अगर हम मान भी लें कि दोनों के पास बराबर का ज्ञान है. और दोनों किसी नौकरी के बराबर के हकदार हैं. लेकिन क्या ये दोनों तब भी उतने ही बराबर के माने जाएंगे जब नौकरी की अनिवार्यता में अंग्रेजी भाषा की निपुणता को सर्वोपरि रखा जाएगा?

नहीं बिल्कुल नहीं. तब सरकारी स्कूल वाले छंट जाएंगे. फिर वो इंग्लिश स्पोकेन का कोर्स करेंगे, कोचिंग करेंगे इंग्लिश की और सालों साल फॉर्म भरते रहेंगे और छंटते रहेंगे और अंत में जाकर कहीं नौकरी ले पाएंगे कोई. लेकिन यहां भी गौर करने वाली बात ये है कि ये सब करने के लिए जिसके पास पैसे होंगे वही ये सब कर पाएंगे. जिनके पास पैसे नहीं वो घर गृहस्ती में लग जाएंगे. और रोजी रोटी के लिए मजदूरी से लेकर फैक्टरी या ठीकेदारी या और भी छोटे मोटे कामों में लग जाएंगे. और लड़कियों को तो कोई इतना वक़्त भी नहीं देता कि वो अपने पैरों पर खड़ी हो सकें. इसलिए 70 फीसदी में 10 फीसदी और जोड़कर कहें तो 80 फीसदी इस देश की लड़कियां अपने बल बूते जीने से पहले ही ब्याह दी जातीं हैं.

ये सिलसिला क्रमवार यूं ही चलता रहता है और भारत की आर्थिक और सामाजिक स्थिति यूं ही कमजोर होती चली जाती है. जाहिर सी बात है कि जिस देश की 70-75 प्रतिशत जनसंख्या विकसित नहीं होगी वो देश भला किस सर्वे के हिसाब से विकसित माना जाएगा?

भारत सरकार और राज्य सरकारों को ये निश्चित करना चाहिए कि आखिर सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था कैसे प्राइवेट स्कूलों की गुणवत्ता से लैश हो. और सरकारों को ये भी सोचना चाहिए कि वो जिस भाषा में अपने छात्र छात्राओं को पढ़ाते हैं, क्या उस भाषा में आगे चलकर उन्हें नौकरी पाने में दिक्कत होगी या नहीं?

जैसा कि हम जानते हैं कि उत्तर भारत के स्कूलों में अंग्रेजी की कोई अनिवार्यता नहीं है, सारे विषयों की पढ़ाई हिंदी में होती है, तो सरकार को ऐसे में सुनिश्चित करना चाहिए कि क्या ये सरकारी स्कूल के बच्चे जब कल को नौकरी लिए तैयार होंगे तो क्या उन्हें अंग्रेजी की वजह से दिक्कत आयेगी या नहीं?

ऐसी हर उस बिंदु पर हमें पहल करने की जरूरत है जिसकी वजह से भारत की आबादी 1.3 बिलियन तो बढ़कर दुनिया की सबसे घनी आबादी वाले देशों में से एक तो हो गया मगर आर्थिक और सामाजिक मामले पिछड़ा का पिछड़ा हुआ है.

– दामिनी वर्षा, बक्सर (बिहार)

सरकारी हैंडपंप से पानी भरने पर दलित लड़की पर हमला

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जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक जातिवादी महिला ने दलित लड़की को लहूलुहान कर दिया. लड़की का जुर्म सिर्फ इतना था कि वह सरकारी हैंडपंप से पानी भरकर ला रही थी.

दरअसल, जयपुर के चाकसू तहसील के सावलिया गांव में रहने वाली 13 साल की दलित लड़की आरती बैरवा सरकारी हैंडपंप से पानी भर कर ला रही थी. तभी कालू गुर्जर की पत्नी विनोदी गुर्जर ने उसे रोक लिया. जातिसूचक गाली दी. लड़की से कहा कि तूने हैंडपंप से पानी कैसे भरा. हैंडपंप को अपवित्र कर दिया. इतना कुछ बोलने के बाद भी विनोदी गुर्जर ने दलित लड़की पर हथौड़ी से हमला कर दिया. जिससे लड़की लहूलुहान हो गई.

लड़की के पिता को जब घटना का पता चला तो वो विनोदी गुर्जर का विरोध करने पहुंचा और थाने में शिकायत करने की धमकी दी. लेकिन विनोदी गुर्जर और उसके पति सहित गुर्जर समुदाय के लोगों ने उसे धमका कर भगा दिया और थाने में शिकायत ने करने की चेतावनी भी दी.

लड़की के पिता कल्याण बैरवा किसी की धमकी से नहीं डरा और पुलिस स्टेशन शिकायत दर्ज कराने पहुंचे, लेकिन पुलिस ने भी रिपोर्ट लिखने में आनाकानी करी. लेकिन 20 सितंबर को पुलिस ने शिकायत तो दर्ज कर लिया. लेकिन आरोपी अब भी बाहर घूम रहे हैं. पीड़ित परिवार को केस वापस लेने के लिए धमका रहे हैं.

पुलिस ने आरोपियों पर एससी/एसटी एक्ट के अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 341, 323 और 34 के तहत मामला दर्ज किया गया. लेकिन आरोपी पूरी तरह से आजाद घूम रहे हैं. पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिल रहा है.

बच्चों ने पेश की मिसाल, महिलाओं के नाम कर रहे हैं पौधारोपण

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गोपालगंज। मजाक में ही सही लेकिन कभी-कभी लोग कहते हैं कि बच्चे बड़ों से ज्यादा समझदार होते हैं. यही समझदारी कुछ बच्चे दिखा रहे हैं. इन बच्चों ने ‘द क्राईंग अर्थ’ नाम से एक संस्था बनाई है. कुछ अलग है न?

नाम से आप समझ गए होंगे की यह नाम किसके रोने की बात कर रहा है. 27 सितंबर को इन बच्चों ने एक मुहीम की शुरूआत की. यह शुरूआत बिहार के गोपालगंज जिले के बसडिला ग्राम पंचायत से हुई, जहां बच्चों ने पौधारोपण का काम किया. लेकिन ऐसे-वैसे नहीं इनकी एक नई सोच के साथ. अलग सोच यह थी कि यह पौधारोपण का काम वहां होगा जहां नारी होगी. और जब वह नारी पौधारोपण कर देगी तब उस पौधे का नाम भी नारी के नाम पर हो जाएगा. और उस पौधे की जिम्मेदारी उस नारी की हो जाएगी.

बच्चे कहते हैं कि आज हमारी धरती धीरे-धीरे विनाश की ओर अग्रसर होती जा रही है तो हमें अपनी धरती को बचाने के लिए कुछ काम करना होगा. क्योंकि आज हमारी धरती रो रही है. ये बच्चे गोपालगंज केंद्रीय विद्यालय के छात्र है. यह बच्चे विडियो बना कर लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करते हैं. इन बच्चों में केंद्रीय विद्यालय के छात्र गौरव प्रियदर्शी, सिद्धार्थ गौतम, टिंकू केडिया, सौरव प्रियदर्शी, शौरव राज, आदित्य प्रकाश, अमृत राज आदि छात्र भी है. छात्रों ने वेदांत और रंजय को भी धन्यवाद कहा. वेदांत और रंजय दोनों ने इन छात्रों का मार्गदर्शन भी किया और मदद भी की.

रिपोर्ट -सिद्धार्थ गौतम

दिल्ली सरकार की सहमति से बढ़ा दिल्ली मेट्रों का किराया

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नई दिल्ली। दिल्ली मेट्रो 3 अक्टूबर से मेट्रो का किराया बढ़ाने जा रहा है. किराया बढ़ने के बाद मेट्रो का अधिकत्तम किराया 60 रूपए हो जाएगा. दिल्ली की जनता इससे नाराज है. दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी इस पर नाराजगी जाताई और ट्वीट कर कहा कि मेट्रो किराए में बढ़ोतरी को जनविरोधी बताया है. दिल्ली के ट्रांसपोर्ट मंत्री कैलाश गहलोत को आदेश दिए हैं कि एक हफ्ते में किराया बढ़ोतरी को रोकने के उपाय निकालें. साथ ही एक महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा है.

लेकिन केजरीवाल दिल्ली की जनता से धोखा कर रहे हैं. क्योंकि मेट्रो के किराए बढ़ोतरी पर दिल्ली सरकार ने ही मोहर लगाई थी और उस वक्त इस बढ़ोतरी का विरोध नहीं किया था. मई महीने में मेट्रो किराए को लेकर बनाई गई उच्चस्तरीय किराया निर्धारण समिति ने मेट्रो के किराए में बढ़ोतरी की थी. ये किराए 10 मई से ही बढ़ा दिए गए थे.

समिति ने यह भी घोषणा की थी कि मेट्रो के किराए एक बार और अक्टूबर माह में बढ़ाए जाएंगे. जिसके बाद माना जा रहा है कि अगले माह 10 तारीख से पांच किलोमीटर से ऊपर मेट्रो के किराए में 10 रुपये की बढ़ोतरी हो जाएगी. असल में मेट्रो के दोनों बार किराए बढ़ाने पर दिल्ली सरकार ने रजामंदी जताई थी और उस वक्त इसका विरोध नहीं किया था.

मेट्रो सूत्रों के अनुसार इस समिति का गठन केंद्र सरकार करती है, जिसकी अध्यक्षता रिटायर जज करते हैं. कमिटी में केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के सचिव और दिल्ली सरकार के चीफ सेक्रेटरी सदस्य होते हैं और इनकी अनुशंसा के आधार पर ही मेट्रो के किराए बढ़ा गए थे.

मेट्रो सूत्रों के अनुसार मेट्रो के किराए में दखल देने का अधिकार दिल्ली सरकार के पास नहीं है. न वह किराए बढ़ा सकती है और न घटा सकती है. अगर सरकार को किराए घटाने थे तो उच्चस्तरीय कमिटी की बैठक में दिल्ली सरकार के प्रतिनिधि चीफ सेक्रेटरी को विरोध दर्ज कराना था, लेकिन उन्होंने नहीं करवाया.

मेट्रो के एक अधिकारी से यह पूछे जाने पर कि क्या दिल्ली सरकार बिजली की तरह राहत देने के लिए मेट्रो को भी सब्सिडी दे सकती है ताकि यात्रियों पर किराए का बोझ न बढ़े, उनका कहना था कि इस मामले में लीगल ओपिनियन चेक की जाएगी, उसी के बाद कुछ कहा जा सकता है.

गुर्जरों ने दलितों के घरों पर किया पथराव, वाहनों में की तोड़फोड़

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मेरठ

मेरठ। मेरठ के टीपी नगर के पूठा गांव में दलितों और गुर्जरों के टकराव हो गया. गुर्जरों ने दलितों के घरों पर पथराव किया. दलितों के वाहनों में तोड़फोड़ भी की. दोनों पक्षों में टकराव के बाद गांव में भय का माहौल बना हुआ है. हालांकि गांव में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है.

दरअसल रिठानी गांव के रहने वाला दलित युवक लक्की की 26 सितंबर को पूठा गांव के गुर्जर युवक अनिकेत से हाथापाई हगो गई थी. लेकिन गांव के बड़े लोगों ने झगड़ा शांत करवा दिया था. झगड़े की खबर पाकर पुलिस आई तो ग्रामीणों पुलिस को भी वापस भेज दिया.

ग्रामीणों के अनुसार मंगलवार दोपहर लक्की पूठा गांव में अपने समुदाय के एक व्यक्ति के यहां आया था. तभी गुर्जर समुदाय के कुछ युवकों ने उसकी पिटाई कर दी. जिसके विरोध में कुछ देर बाद जीवनपुरी रिठानी में कुछ दलित युवकों ने बाइक से गांव जा रहे पूठा निवासी अर्चित को पीट दिया.

अर्चित से मारपीट का पता चलते ही गुर्जर बिरादरी के दर्जनों युवक एकत्रित हो गए. दलित पक्ष का आरोप है कि गुर्जर युवकों ने उनके घर लाठी-डंडों से धावा बोल लिया. घरों पर पथराव किया. महिलाओं से बदसलूकी की. दरवाजे बंद कर लिए तो उन पर डंडे मारे. आंगन में खड़ी गोल्डी, नरेश और चंदर की बाइक और चीनू की कार में तोड़फोड़ की.

हिंसा की सूचना पर पहुंची टीपी नगर पुलिस को दलित महिलाओं ने घेर लिया. पूछा कि गुर्जर युवकों का झगड़ा जीवनपुरी के युवक से हुआ तो हमारे घरों पर हमला क्यों किया. दलित पक्ष की ओर से 18 नामजद लोगों के खिलाफ तहरीर दी गयी.

एसपी सिटी मान सिंह चौहान के अनुसार दो युवकों में मारपीट के बाद दो पक्षों में गलतफहमी पैदा हो गई. कुछ युवकों की नासमझी से माहौल गर्म हुआ. गांव के दोनों बिरादरी के बुजुर्ग इस विवाद को बढ़ाना नहीं चाहते. वे लोग आपस में पंचायत कर समस्या का हल निकाल रहे हैं.

गांव में पहुंचे विधायक सोमेंद्र तोमर, एसपी सिटी मान सिंह चौहान ने गलियों में घूमकर दलित महिलाओं का दर्द सुना. महिलाओं ने आरोप लगाते हुए बताया कि हमने घर के दरवाजे बंद किए तो गुर्जर पक्ष के युवकों ने दरवाजों पर डंडे बरसाए. अमित नाम के दलित दिव्यांग को भी युवकों ने डंडे मारे.

पनामा पेपर्स मामले में अमिताभ को समन भेज सकता है ईडी

अमिताभ बच्चन और उनके परिवार ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को पनामा पेपर्स मामले में भेजे गए नोटिस का जवाब सौंप दिया है. केंद्रीय एजेंसी के अधिकारियों ने कहा कि इस मामले में शीघ्र ही उन्हें समन भेजा जा सकता है.

मनी लांड्रिंग विरोधी एजेंसी के अधिकारियों ने कहा कि कुछ समय पहले बच्चन परिवार को नोटिस जारी किया गया था. उनसे आरबीआइ के लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (एलआरएस) के तहत अपने विदेशी रेमिटेंस के बारे में बताने के लिए कहा गया था.

अधिकारियों ने बताया कि ईडी को विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत भेजे गए नोटिस का जवाब मिल गया है. जांच के तहत शीघ्र ही समन भेजा जा सकता है. पनामा पेपर्स मामले में अमिताभ बच्चन का नाम आया था. आयकर विभाग भी उनके खिलाफ जांच कर रहा है.

Indian Air Force में निकली वैकेंसी, एेसे करें एप्‍लाई

इंडियन एयर फोर्स ने नोटिफिकेशन जारी कर कई पदों के लिए आवेदन मांगा है. ये वैकेंसी अविवाहित पुरुषों के लिए है. जानें वैकेंसी से जुड़ी सारी डिटेल्‍स- पद का नाम : Airman Group X (Technical) Airman Group Y (Non-Technical) Trades पात्रता : Airman Group X: 12वीं या इससे समतुल्‍य एग्‍जाम पास किया हो. साथ में 50 प्रतिशत अंक हों. या सरकार द्वारा मान्‍यता प्राप्‍त पोलीटेक्टिन इंस्‍टीट्यूट से तीन साल का डिप्‍लोमा कोर्स किया हो. साथ में 50 फीसदी अंक हों. Airman Group Y: 12वीं या इससे समतुल्‍य एग्‍जाम पास किया हो. साथ में 50 प्रतिशत अंक हों. पे स्‍केल : Airman Group X: 33,100 रुपए प्रतिमाह सैलरी दी जाएगी. Airman Group Y: 26,900 रुपए प्रतिमाह की सैलरी दी जाएगी. सेलेक्‍शन प्रक्रिया : लिखित परीक्षा, एडेप्टिबिलिटी टेस्‍ट-1,2, फिजिकल टेस्‍ट और मेडिकल एग्‍जाम के आधार पर चयन किया जाएगा. कैसे एप्‍लाई करें : सभी डॉक्‍यूमेंट्स के साथ आवेदक 4 नवंबर को सुबह 10 बजे इस पते पर पहुंचे- Rajiv Gandhi Government Polytechnic, Itanagar, Arunachal Pradesh.

इज्जत बचाने उतरेगी ऑस्ट्रेलिया, देखिए टीम का ले-आउट

बेंगलुरु। वनडे क्रिकेट में नंबर एक बन चुकी टीम इंडिया गुरुवार को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बारिश की आशंका के बीच जब चौथे वनडे में उतरेगी, तो उसका लक्ष्य अपने वनडे इतिहास में परफेक्ट 10 का रिकॉर्ड बनाना होगा. भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज में 3-0 की अपराजेय बढ़त बना कर सीरीज अपने नाम करने के साथ वनडे में नंबर-1 भी बन चुकी है. भारत ने इंदौर में पिछला मैच जीत कर वनडे क्रिकेट में अपने सबसे लंबे विजय क्रम की बराबरी कर ली थी. भारत की ये लगातार नौंवीं वनडे जीत थी. भारत ने इस साल जुलाई से सितंबर तक लगातार नौ वनडे मैच जीते हैं, जबकि इससे पहले उसने नवंबर 2008 से फरवरी 2009 तक लगातार नौ वनडे जीते थे. बेंगलुरु में भारत का ये 926वां वनडे मैच होगा. इसके अलावा अगर विराट की कप्तानी में भारत लगातार 10वां वनडे जीतता है, तो वो महेंद्र सिंह धौनी और राहुल द्रविड़ का रिकॉर्ड तोड़ देंगे. धौनी की कप्तानी में भारत लगातार नौ वनडे जीत चुका है. टीमें इस प्रकार हैं- भारत विराट कोहली (कप्तान), रोहित शर्मा, अजिंक्य रहाणे, मनीष पांडे, केदार जाधवन, महेंद्र सिंह धौनी, हार्दिक पंड्या, भुवनेश्वर कुमार, कुलदीप यादव, युजवेंद्र चहल, जसप्रीत बुमरा, उमेश यादव, मोहम्मद शमी, रवींद्र जडेजा और लोकेश राहुल. ऑस्ट्रेलिया स्टीवन स्मिथ (कप्तान), डेविड वार्नर, हिल्टन कार्टराइट, ट्रेविस हेड, ग्लेन मैक्सवेल, मार्कस स्टोइनिस, मैथ्यू वेड, एशटन एगर, केन रिचर्डसन, पैट कमिंस, नाथन कूल्टर नाइल, आरोन फिंच, पीटर हैंड्सकोंब, जेम्स फॉकनर और एडम जंपा.

अब पेट्रोल-डीजल भी मिलेंगे ऑनलाइन

नई दिल्ली। केंद्र सरकार की कोशिश है कि ग्राहक पेट्रोल और डीजल को ऑनलाइन ऑर्डर करे और उसे घर पर ही इसकी आपूर्ति हो सके. बुधवार को पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इंडिया मोबाइल कांग्रेस में इस बात की जानकारी दी.

प्रधान ने भरोसा जताया कि सूचना तकनीकी और संचार क्षेत्र मे जिस तरह की प्रगति हुई है, उसके आधार पर ग्राहकों को सीधे घर पर पेट्रोल और डीजल की आपूर्ति संभव हो सकेगी. बाद में उन्होंने ट्वीट करके भी इस जानकारी को साझा किया. होम डिलीवरी के लिए ई-कॉमर्स कंपनियों वाले फॉर्मेट का इस्तेमाल किया जा सकता है.

माना जा रहा है कि तेल कंपनियों ने पेट्रोल पंपों से पेट्रोल और डीजल को ग्राहकों के घर पर पहुंचाने के लिए एक फूल-प्रूफ ढांचा विकसित कर लिया है. पहले भी सरकारी पेट्रोलियम कंपनियों ने कहा था कि वे बेहद सुरक्षित टैंकर बनाकर उसका इस्तेमाल ग्राहकों के घर पर डिलीवरी के लिए कर सकती हैं. यह एक तरह का मोबाइल पेट्रोल टैंकर होगा.

अगर सरकार यह सेवा शुरू करती है तो इसका सबसे बड़ा फायदा ग्राहकों के साथ ही कंपनियों को भी होगा. साथ ही पेट्रोल पंपों पर भीड़ खत्म की जा सकेगी. लेकिन इसके लिए केंद्र सरकार को कुछ कानूनी संशोधन भी करने होंगे. इसकी वजह यह है कि मौजूदा कानून के मुताबिक घर पर पेट्रोल व डीजल जैसे ज्वलनशीन पदार्थों की आपूर्ति नहीं की जा सकती. इससे सार्वजनिक संपत्ति और जान को खतरा उत्पन्न हो सकता है.

तेल मंत्रालय के तहत ही काम करने वाले पेट्रोलियम एंड सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन (पीएसओ) ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था. सूत्रों का कहना है कि देश की दिग्गज पेट्रोलियम मार्केटिंग कंपनी इंडियन ऑइल ने इस बारे में पीएसओ से बात की है. कंपनी ने सुरक्षा चिंताओं को काफी हद तक दूर कर लिया है. हो सकता है कि शुरुआत में सिर्फ डीजल की आपूर्ति की जाए, क्योंकि यह पेट्रोल के मुकाबले कम ज्वलनशील होता है.

बलात्कार के आरोप में एक और बाबा गिरफ्तार

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सियाराम बाबा

सीतापुर। बलात्कारी बाबा रामरहीम और फालाहारी बाबा के अब एक और बाबा पुलिस के शिकंजे में आया. यूपी के सीतापुर से पुलिस ने बाबा को गिरफ्तार किया है. बाबा पिछले 8 महीने से युवती को बंधक बनाकर बलात्कार कर रहा था.

बाबा का नाम सियारामदास है और वो उदासीन अखाड़े का महंत और इंटर कॉलेज का अध्यक्ष है. नौकरी दिलाने के बहाने एक युवती ने बाबा पर रेप का आरोप लगाया है. महंत ने न सिर्फ युवती का रेप किया बल्कि कॉलेज प्रबंधिका और दूसरे लोगों से भी उसका शारीरिक शोषण करवाया. लड़की ने बाबा पर कई महीनों तक बंधक बनाकर उसके साथ रेप करने आरोप लगाया है. उसी दौरान आरोपी ने पीड़िता की अश्लील वीडियो भी बनाई थी. फिलहाल पुलिस ने आरोपी के खिलाफ केस दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया है.

पीड़िता ने बताया उसे नौकरी की जरूरत थी. उसके दो परिचित नौकरी दिलाने के बहाने आरोपी बाबा की शिष्या मिंटू सिंह को 50 हजार रुपयों में बेच दिया. इसके बाद वह पीड़िता को अपने साथ सीतापुर आश्रम ले गई. वहां बाब सियाराम ने रात में पीड़िता के साथ रेप कर उसकी अश्लील वीडियो बनाई. अगली सुबह पीड़िता को आगरा के आश्रम में भेज दिया गया. वहां उसे 8 महीनों तक बंधक बनाकर उसके साथ रोज रेप किया जाता रहा. बीते दिन पीड़िता को वापस सीतापुर आश्रम लाया गया.

पुलिस के मुताबिक, पीड़िता के बयान के आधार पर आरोपी के खिलाफ रेप का केस दर्ज उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. पुलिस आरोपी से पूछताछ कर मामले की जांच कर रही है. वहीं दूसरी तरफ, आरोपी बाबा सियाराम ने इन आरोपों को गलत बताया है. उसने कहा कि यह सब उसे फंसाने की साजिश है. वह तो पीड़िता को जानता भी नहीं है.

दिल्ली के 15,000 गेस्ट टीचर्स होंगे परमानेंट

मनीष सिसोदिया

नई दिल्ली। दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे 15 हजार गेस्ट टीचर नियमित होंगे. इस बाबत दिल्ली कैबिनेट ने बिल तैयार किया है. अब इसे पास करने के लिए 4 अक्टूबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है. शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने प्रेस वार्ता कर इस बात की जानकारी दी है.

दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि सरकार जल्‍द ही दिल्‍ली के गेस्ट टीचर्स को परमानेंट करेगी. जल्‍द ही इस बिल को विधानसभा में पास कराया जाएगा. इसके लिए अगले सप्‍ताह 4 अक्टूबर को विशेष सत्र बुलाने की भी योजना है.

यहां पर याद दिला दें कि इससे पहले दिल्ली सरकार ने 17 हजार गेस्ट टीचरों का वेतन 90 फीसदी तक बढ़ाया था. इस फैसले का फायदा सेंट्रल टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (सीटीईटी) पास करने वाले टीचरों को मिल रहा है. यहां पर बता दें कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 17000 गेस्ट टीचर हैं, जिनमें से 2000 टीचर नॉन-सीटीईटी हैं.

दिल्ली में गेस्ट टीचर्स को रखने का सिलसिला 2009 मे उस वक्त शुरू हुआ जब कोर्ट ने राइट टू एजुकेशन लागू कर दिया और उसके बाद दिल्ली के सरकारी स्कूलों मे टीचर्स की भर्ती करना सरकार के लिए अनिवार्य हो गया. सरकार अगर परमानेंट टीचर रखती तो करीब एक टीचर को 35 से 40 हजार रूपए देने पड़ते. लेकिन 2009 में इन टीचर्स को 7 से 12 हजार रुपए देकर रख लिया गया. फिलहाल प्रतिदिन इन गेस्ट टीचर्स को करीब 700 से 900 रूपए दिए जाते है. लेकिन सिर्फ उतने दिन का, जितने दिन वो पढ़ाने आते हैं, हफ्ते की छुट्टी का भी कोई पैसा नहीं दिया जाता.

खबरों के मुताबिक, दिल्ली में करीब 15 हजार गेस्ट टीचर्स हैं. समय-समय पर ये लोग प्रदर्शन कर खुद को परमानेंट करने की मांग करते रहे हैं. इनका कहना है कि केजरीवाल सरकार ने चुनाव से पहले इनसे वादा किया था कि सभी गेस्ट टीचर्स को परमानेंट कर देंगे. गेस्ट टीचर्स की सैलरी भी बढ़ाएंगे. इस साल दिल्ली सरकार गेस्ट टीचर की सैलरी तो बढ़ा चुकी है पर परमानेंट करने का इंतजार है.

स्त्रियों को कब मिलेगा ‘ना’ कहने का हक?

women rights

हाल ही में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में नौवीं में पढ़ने वाली एक छात्रा को एक मनचले लड़के ने सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि उसने उसके प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. ये सिर्फ इस बात का संकेत है कि पुरुष अपने वर्चस्व पर आघात कैसे सह सकता है.

अगर हम अलग-अलग देशों में शीर्ष दस महिलाओं के लिए असुरक्षित देशों की बात करें तो उसमें नम्बर एक पर कोलम्बिया आएगा. यहां सबसे ज्यादा एसिड अटैक की घटनाए होती है. खास यह कि इनमें से ज्यादातर को न्याय नहीं मिल पाता. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में यहां लगभग 45,000 केस घरेलू हिंसा के दर्ज किए गए थे. दूसरे नंबर पर अफगानिस्तान का नाम आता है जहां लगभग 87 फीसदी लड़कियों की शादी 15 से 19 वर्ष के बीच कर दी जाती है. घरेलू हिंसा की दर यहां सबसे ज्यादा है. इसके साथ ही प्रसव के समय मृत्यु की दर प्रति एक लाख में 400 की है. तीसरे नंबर पर हमारा देश भारत आता है, जहां सामूहिक बलात्कार, घरेलू हिंसा, कन्या भ्रूण हत्या, मानव तस्करी की दर सबसे ज्यादा है.

आंकड़ों की बात करें तो बीते 30 साल में पचास मिलियन (5 करोड़) से ज्यादा महिलाओं के गर्भपात के केस सामने आए हैं. चौथे नंबर पर जिस देश का नाम है; वह है- द डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो. एक शोध के मुताबित कांगो में सबसे ज्यादा लिंग आधारित हिंसा होती है. लगभग 1.150 औरतें प्रतिदिन बलात्कार की शिकार होती हैं जो 4 लाख 20 हजार तक प्रतिवर्ष दर्ज की जाती है. औरतों के स्वास्थ्य की हालत सबसे ज्यादा खराब इसी देश में है. यहां की 51 प्रतिशत औरतें गर्भावस्था में रक्त-अल्पता (एनीमिया) से जूझती हैं. पांचवे नम्बर पर सोमालिया है; जहां कानून एवं व्यवस्था की भारी कमी है. वहां सेक्सुअल हरासमेंट को बहुत ही सामान्य तरीके से देखा जाता है. यहां प्रसव कालीन मौत की दर काफी ज्यादा है तथा बाल विवाह तथा औरतों के खतना जैसी बातें रोजमर्रा की है. छठे नम्बर पर पाकिस्तान है जहां औरतों को कम उम्र में जबरदस्ती की शादी, एसिड अटैक, पत्थर से मारने की सजा जैसी घटनाओं से आए दिन गुजरना पड़ता है.

वहां हर साल लगभग एक हजार लड़कियां ऑनर किलिंग की भेंट चढ़ जाती हैं. सातवें नम्बर पर केन्या आता है, जहां एड्स औरतों के लिए आम समस्या है. तथा उन्हें अपनी निजी जिंदगी में कोई भी फैसला लेने का अधिकार नहीं है. ब्राजील का नम्बर आठवां है. शोध के मुताबित हर पंद्रहवां सेकेंड यहां औरतों के साथ यौन उत्पीड़न होता है तथा प्रत्येक 2 घंटे में एक औरत का कत्ल हो जाता है. बच्चा जन्म देने या ना देने का फैसला लेने का अधिकार भी औरतों को नहीं है. अगर वो अपनी मर्जी से गर्भपात कराती हैं तो उन्हें 3 वर्ष की जेल होती है. 9वें नम्बर पर इजिप्ट आता है. यौन उत्पीड़न इस देश में इतना ज्यादा है कि यहां आए टूरिस्टों को भी इसका सामना करना पड़ता है. औरतों को शादी करने, बच्चे की कस्टडी, तलाक या कोई अन्य निर्णय लेने की आजादी नहीं है. दसवे नम्बर पर मैक्सिको आता है जहां 2011-12 में 4000 केस महिलाओं के लापता होने के दर्ज हुई हैं. ये तो बस चंद देशों में महिलाओं की स्थिति की झलकियां है. कमोबेश ज्यादातर देशों में यही स्थिति है. तमाम देशों में औरतों को उनका जायज हक नहीं मिलता. उनके साथ शारीरिक, मानसिक, कानूनी दुर्व्यवहार होते हैं. हम दिनों दिन तरक्की कर रहे हैं मगर औरतों की सुरक्षा पर अभी भी सवालिया निगाह है. शायद यही वजह है कि दिल्ली में लड़कियों ने रात को सड़क पर घूमकर ‘रात को सड़कों पर घूमने का हक’ मांगा और देश के बड़े शहरों में यह मुहिम बनती जा रही है.

– लेखिका शिक्षिका हैं. महिला मुद्दों पर लिखती हैं. उनसे संपर्क raipuja16@gmail.com पर किया जा सकता है.

जब बसपा के एक दिग्गज नेता पार्टी छोड़ गए तो कांशीराम जी ने कहा…

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Kanshiram

बहुजन समाज पार्टी के लिए पिछले कुछ साल ठीक नहीं रहे हैं. उसे पहले लोकसभा चुनाव में हार मिली, फिर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी जीत नहीं सकी. पार्टी से जुड़े कुछ पुराने नेता भी पार्टी छोड़ कर चले गए. उन्होंने बसपा पर तमाम आरोप भी लगाएं. पार्टी छोड़ कर गए नेता बसपा में रहने के दौरान अम्बेडकरवाद की कसमें खाते थे और खुद को मान्यवर कांशीराम का अनुयायी बताते थे.

लेकिन जब वो बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर दूसरे दलों में चले गए तो उनका चोला ही बदल चुका है.

बात करते हैं बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम से जुड़े एक और किस्से की. और आपको बताते हैं कि जब कांशीराम जी के समय में कोई नेता पार्टी छोड़ जाता था तो मान्यवर क्या कहते थे?

बात उन दिनों की है, जब मान्यवर कांशीराम बहुजन समाज पार्टी को देश भर में बढ़ाने में लगे हुए थे. उस दौरान एक बार एक बड़ा आदिवासी चेहरा अरविन्द नेताम पार्टी से अलग हो गए. नेताम बसपा छोड़कर कांग्रेस में चले गए. आमतौर पर किसी बड़े चेहरे के पार्टी से अलग हो जाने के बाद कुछ दिनों तक पार्टी में हलचल रहती है. लेकिन नेताम के कांग्रेस से अलग हो जाने के बावजूद भी कांशीराम जी को कोई फर्क नहीं पड़ा. पार्टी में भी सबकुछ सामान्य तौर पर चलता रहा. पत्रकार जो इसे मुद्दा बनाने में लगे थे, उन्हें बड़ी निराशा हुई. उन्हें चटपटी खबरें बनाने को नहीं मिल रही थी, क्योंकि कांशीराम जी उस नेता पर कोई भड़ास नहीं निकाल रहे थे.

पत्रकारों से नहीं रहा गया. कांशीराम जी से पत्रकारों ने पूछा- साहब आपकी पार्टी का दिग्गज नेता पार्टी छोड़कर चला गया, लेकिन आपको चिंता ही नहीं है. आप उसको मना क्यों नहीं लेते? साहब ने जवाब में कहा- भाई पहली बात तो वो माना हुआ होता तो पार्टी छोड़ता ही नहीं. दूसरी बात अब आप लोगों ने उसको दिग्गज़ बना दिया तो अब उसको मनाने की रेट भी दिग्गज़ हो गयी है जो कि मेरे पास है नहीं. इसीलिए मैं इसके जाने की विदाई पार्टी देता हूं ताकि किसी दूसरी पार्टी में रहकर मेरी सिखाई बातों पर थोड़ा बहुत तो अमल करेगा. वो भी मेरे मिशन का ही हिस्सा है.

कांशीराम जी ने कहा कि बसपा में किसी को लालची रस्सी से बांधकर नहीं रखा जाता और ना ही किसी नेता को नोट की कोर दिखाकर बुलाया जाता है. इसीलिए जिस किसी को बसपा समझ में आये वो यहां काम करे. यहां आने जाने वालों के लिए दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं.

असल में कांशीराम हमेशा इस बात पर जोर देते थे कि बहुजन समाज पार्टी एक मिशन है और मिशन में किसी को जबरदस्ती बांध कर नहीं रखा जा सकता. बहुजन समाज पार्टी के बनने से लेकर अब तक तमाम नेता पार्टी छोड़ कर गए तमाम नेताओं को निकाल दिया गया, लेकिन यह राजनैतिक आंदोलन आज भी चल रहा है. क्योंकि मान्यवर कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी को ऐसे तैयार किया था कि इसमें बहुजन समाज हमेशा सबसे ऊपर रहे.

शायद यही वजह है कि नेता बदलते रहते हैं और राजनैतिक दल चलता रहता है. मान्यवर कांशीराम यह भी कहा करते थे कि कोई किसी को नेता बना नहीं सकता, नेता खुद अपनी प्रतिभा से सामने आता है.