सफल राजनीतिज्ञ ही नहीं कामयाब वकील भी थे बाबा साहब

 लेखकः मुस्ताक अली बोहरा| आजाद हिन्दुस्तान के संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। बाबा साहब को चाहे राजनीतिज्ञ के रूप देखा जाए या फिर समाजसेवी के रूप में या वकील के रूप में, हर किसी क्षेत्र में उनका योगदान इतना है, जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। वे एक जाने-माने वकील भी थे। बाबा साहब की वकालत न केवल अदालतों में बल्कि देश-दुनिया भर में शोषित.पीड़ित, मजदूर, जरूरतमंदों की आवाज बन गई है।

अगर बाबा साहब ने वकालत नहीं की होती तो भारतीय संविधान का यह स्वरूप नहीं होता जो आज दिख रहा है। उन्हें संविधान लिखने वाली कमेटी का अध्यक्ष भी इसलिए बनाया गया था क्योंकि वह पेशेवर वकील भी थे। डॉ. आम्बेडकर उत्कृष्ट बुद्धिजीवी, प्रकाण्ड विद्वान, सफल राजनीतिज्ञ, कानूनविद्, अर्थशास्त्री, लेखक, समाजसेवी और लोकप्रिय जननायक थे। वे शोषितों, महिलाओं और गरीबों के मुक्तिदाता और समाज सुधारक थे।

बाबा साहब आंबेडकर सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष के प्रतीक है। बाबा साहब ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सभी क्षेत्रों में लोकतंत्र की वकालत की। बाबा साहब ने जिस समाज का सपना देखा था वो समता, बंधुता और न्याय पर आधारित था। यूं तो बाबा साहब के बचपन से लेकर भारत और विलायत में उच्च शिक्षा हासिल करने तक उन्होंने कितना संघर्ष किया, कितना अपमान सहा इसकी जानकारी ज्यादातर लोगों को हैं, लेकिन ये कम ही लोग जानते हैं कि वो जितने कामयाब राजनीतिज्ञ थे उतने ही कामयाब वकील भी थे। उन्होंने कई देशों के संविधान की पढ़ाई करने में काफी समय व्यतीत किया।

डॉ. अंबेडकर को कानून के साथ ही कई विषयों में महारत हासिल थी। उन्होंने भारत और दुनिया के प्राचीन और आधुनिक कानूनों को रूचि के साथ पढ़ा। इसके बाद वो वक्त आया जब बाबा साहब कानून के तमाम पहलुओं के विशेषज्ञ बन गए। बाबा साहब की नजर से देखें तो अच्छा वकील बनने के लिए कुछ आधारभूत चीजें होना जरूरी है। अच्छे वकील को कानून के मौलिक सिद्धांतों की समझ होनी चाहिए। किसी विषय को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने की कला आनी चाहिए। संवाद और तर्कों में सत्यता होनी चाहिए। अपनी बात कहने या अभिव्यक्ति की क्षमता होनी चाहिए। अच्छे वकील को हाजिरजवाब होना चाहिए। साथ ही सोचने.समझने और तर्क करने की क्षमता होनी चाहिए।

कमजोर, शोषित वर्ग के साथ ही दलित समाज के हक के लिए संघर्ष करते हुए बाबा साहब को ये अहसास हुआ कि दलितों को उनका हक इतनी आसानी से नहीं मिलने वाला। उनसे जुड़े मसले गंभीर और जटिल हैं। इसलिए बाबा साहब ने ये फैसला किया कि उन्हें वकालत करना होगा। इसके बाद बाबा साहब कानून की डिग्री हासिल करने के लिए दोबारा लंदन गए।

वे सिंतबर 1920 में लंदन पहुंचे, लेकिन तब तक हिन्दुस्तान में बाबा साहब दलितों के सुधारक के तौर पर अपनी अलग और मजबूत पहचान बना चुके थे। लंदन में पहुंचकर बाबा साहब ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया। वकालत की पढ़ाई उन्होंने लंदन के ग्रेज इन फॉर लॉ से की। हालांकि, तब लंदन में ड्रामा, ओपेरा व थिएटर आदि आम था और लोग मंनोरंजन के लिए यहां जाया करते थे। लेकिन बाबा साहब का अधिकतर समय पुस्तकालय में बीतता था वो सुबह से लेकर देर शाम तक पढ़ते रहते थे। पैसे बचाने के लिए बाबा साहब लंदन में भी पैदल चलते थे। खाने में ज्यादा पैसे खर्च ना हो ये सोचकर तो कई बार वे भूखे ही रह जाते थे।

लंदन में बाबा साहब के रूममेट असनाडेकर उनसे कहते थे कि अरे आंबेडकर रात बहुत हो गई, कितनी देर तक पढ़ते रहोगे। कब तक जागते रहोगे अब सो जाओ। असनाडेकर की इस बात पर बाबा साहब का जबाव होता था कि मेरे पास खाने के लिए पैसे और सोने के लिए समय नहीं है। मुझे अपना कोर्स जल्द से जल्द पूरा करना है, और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। बाबा साहब की इस बात से पता चलता है कि उन्हें अपनी भूख-प्यास, नींद-आराम से ज्यादा इस बात की फ्रिक थी कि वे वकालत का कोर्स पूरा कर भारत आकर दलित और कमजोर वर्ग के लिए कानूनी तौर पर लड़ाई लड़ सकें।

वकालत की वजह से ही डॉ. आंबेडकर को पूरे महाराष्ट्र का दौरा करने का मौका मिला था। इस दौरान उन्होंने लोगों की बुनियादी समस्याओं और उनकी जरूरतों को करीब से समझा। लिहाजा जब वे संविधान सभा के प्रारूप समिति के प्रमुख बने तो उन्होंने संविधान में जरूरी चीजों का समावेश किया। सन 1936 में डॉ. आंबेडकर ने तत्कालीन बंबई के सरकारी लॉ कॉलेज में ब्रिटिश संविधान पर व्याख्यान दिया था। आज भी ये व्याख्यान हमारे देश के कानून को समझने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। कुछ साल बाद जब देश आजाद हुआ तो उन्होंने इस देश का संविधान लिखा।

एक साल में बन गए बैरिस्टर और डॉक्टर

वर्ष 1922 में कानून का कोर्स पूरा करने के बाद उन्हें ग्रेज इन में ही बार का सदस्य बनने के लिए न्यौता दिया गया और इस तरह से बाबा साहब बैरिस्टर बन गए। यहां ये बताना लाजमी होगा कि बाबा साहब ने एक ही समय में दो कोर्स पूरे किए थे। ग्रेज इन में कानून की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में उच्च अर्थशास्त्र की डिग्री भी हासिल की थी। इसके बाद सन 1923 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स ने उनकी थीसिस को मान्यता दी और उन्हें डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि से सम्मानित किया। एक ही वर्ष में वे डॉक्टर और बैरिस्टर बन गए थे।

सर्वोच्च न्यायालय ने मनाई थी सौंवी वर्षगांठ

यूं तो देश भर में लाखों वकील हैं, लेकिन ये जानकर आश्चर्य हो सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने बाबा साहब के वकील बनने पर सौंवी वर्षगांठ मनाई थी। बाबा साहब को शिक्षा हासिल करने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ा था। शीर्ष अदालत ने बाबा साहब के वकील बनने पर सौंवी वर्षगांठ मनाते हुए उनके संघर्ष और बलिदान का स्मरण किया और श्रद्धांजलि दी। वकालत पास करने के बाद भी उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। बहुमुखी प्रतिभा का धनी होने के बावजूद उन्होंने ही सबसे ज्यादा जातीय प्रताड़ना झेली।

रजिस्ट्रेशन फीस तक के नहीं थे पैसे

डॉक्टर आंबेडकर ने इंग्लैंड में 1916 में ही लॉ में नामांकन ले लिया था, लेकिन उनकी वकालत का कोर्स तब तक पूरा नहीं हुआ था क्योंकि बड़ौदा महाराज से मिले वजीफे की मियाद पूरी हो गयी थी। इस वजह से वे भारत लौट आए। यहां आने के बाद डॉ. आंबेडकर को सिडेनहम कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक की नौकरी भी मिल गई। चूंकि बाबा साहब वकालत करना चाहते थे, इसलिए वहां उन्होंने नौकरी के अलावा निजी रूप से पढ़ाना शुरू किया, जिससे कि पैसा बचाकर अपनी अधूरी पड़ी डिग्री को पूरा कर सकें। डॉ. आंबेडकर फिर से इंग्लैंड पहुंचे। 28 जून 1922 को डॉ. आंबेडकर बार.एट.लॉ बने। वर्ष 1923 में डॉ आंबेडकर ने लॉ की डिग्री हासिल की।

लंदन से लौटने के बाद उनके सामने अपने परिवार का भरण-पोषण करने की चुनौती थी। पत्नी, बच्चे, उनकी भाभी और भतीजे के भरे पूरे परिवार के भरण पोषण के लिए वो वकालत करना चाहते थे। इसके लिए उन्हें बॉम्बे उच्च न्यायालय में पंजीकृत होने की जरूरत थी। तब उनके पास रजिस्ट्रेशन फीस देने के पैसे तक नहीं थे। तब उनके दोस्त नवल भथेना ने ये 500 रुपये दिए। इसके बाद उन्होंने बार काउंसिल की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। 4 जुलाई 1923 को उन्हें सदस्यता मिली और अगले ही दिन 5 जुलाई से उन्होंने बॉम्बे बार काउंसिल में वकालत शुरू कर दी। उन्होंने बंबई उच्च न्यायालय के साथ.साथ ठाणे, नागपुर और औरंगाबाद की जिला अदालतों में वकालत की।

ठुकरा दी मुख्य न्यायाधीश की नौकरी

सन 1923 में ब्रिटिश सरकार ने डॉ. आंबेडकर को ढाई हजार रुपये महीने की पगार पर जिला न्यायाधीश की नौकरी का प्रस्ताव दिया, उनसे यह भी कहा गया कि अगले तीन वर्षों में उन्हें बंबई हाईकोर्ट में जज बना दिया जाएगा, लेकिन उन्होंने वकालत का पेशा ही चुना। कुछ दिनों के बाद हैदराबाद के निजाम ने उन्हें राज्य के मुख्य न्यायाधीश बनने की पेशकश की थी, लेकिन डॉ. आंबेडकर ने इन सभी प्रस्तावों को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि यह उनकी निजी आजादी को खत्म कर देगा। बाबा साहब ने बहिष्कृत भारत के अपने लेख और अपने भाषणों में जिक्र करते हुए कहा था कि वे दलितों के हितों के लिए काम करना चाहते थे इसलिए जिला न्यायाधीश सहित कोई सरकारी नौकरी स्वीकार नहीं की। वकालत करते हुए आजादी के साथ जो काम वो करना चाहते थे वो सरकारी नौकरी करते हुए नहीं कर सकते थे।

जातिगत भेदभाव का शिकार हुए बैरिस्टर आंबेडकर

डॉ. आंबेडकर अपना एक ऑफिस भी बनाना चाहते थे, लेकिन उनके पास पैसों की कमी थी लिहाजा दोस्तों की मदद से मुंबई में उन्होंने एक कमरा किराए पर लिया। लेकिन अछूत होने के कारण उनके पास केस नहीं आते थे। तब के दौर में वकालत के पेशे में ऊंची जातियों के लोग ही थे और ये बात जानते हुए भी बाबा साहब ने वकालत का रिस्क लिया। उस वक्त मोहनदास करमचंद गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना, दादाभाई नौरोजी, बदरूद्दीन तैयबजी, फिरोजशाह मेहता, एन. जी. चन्द्रावरकर, चित्तरंजन दास, सैय्यद हसन इमाम, मियां मोहम्मद शफी जैसे लोग दिग्गज वकीलों में शुमार किए जाते थे। जातिगत भेदभाव, दलित समाज, वकालत के नये पेशे सहित अन्य चुनौतियों के बावजूद बाबा साहब ने हिम्मत नहीं हारी और अदालतों में काम करते रहे।

बाबा साहब के मुवक्किलों की माली हालत भी खस्ता हुआ करती थी। उनके मुवक्किल गरीब, खेतिहर या दिहाड़ी मजदूर हुआ करते थे। बाबा साहब इन लोगों को न्याय दिलाने की कोशिश करते थे। उन्होंने कभी भी न्याय की आस में आने वाले लोगों के साथ सामाजिक अथवा आर्थिक तौर पर भेदभाव नहीं किया। बाबा साहब को काम की तलाश में मुफस्सिल कोर्ट की तरफ भी जाने के लिए मजबूर होना पड़ता था। सामाजिक.आर्थिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि का वकालत में क्या महत्व होता है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जिस दिन मोहम्मद अली जिन्ना दो लाख 57 हजार रुपए के दिवालियापन का मुकदमा लड़ रहे थे उसी दिन डॉ. आंबेडकर उसी कोर्ट में एक सेवानिवृत्त मुसलमान शिक्षक का अविश्वास तोड़ने का 24 रुपए का मुकदमा लड़ रहे थे, जिसमें उन्हें जीत मिली थी।

गरीब मुवक्किलों से नहीं लेते थे फीस

वकालत के शुरूआती दिनों में बाबा साहब को किसी तरह एक महार समाज के ही व्यक्ति का केस मिला। लोकमान्य तिलक के भतीजे ने भी उनकी सहायता की। बाबा साहब के पास उच्च वर्ग के हिन्दु अपना केस लेकर नहीं आते थे। इसके अलावा सवर्ण लोग ब्रिटिश वकीलों को अपना केस देते थे। डॉ. बीआर आंबेडकर एक अनुशासित और प्रखर विद्वान होते हुए भी अपने मुवक्किलों के साथ बहुत सहज रहते थे। वे कई बार अपने मुवक्किलों के साथ अपना खाना तक साझा करते थे। गरीब, दलित लोग कानूनी मदद की आस में उनके पास आने लगे। वे गरीबों का केस मुफ्त में लड़ते थे। कई बार तो गरीब मुवक्किल बिना झिझक बाबा साहब के घर पहुंच जाया करते थे।

एक दिन उनकी पत्नी रमाबाई जब घर में नहीं थीं तो दो मुवक्किल आए। डॉ, आंबेडकर ने ना केवल उनकी परेशानी सुनी बल्कि उन्हें दिन का खाना खिलाया। इतना ही नहीं रात में उन्होंने खुद खाना बनाया और उन्हें परोसा। बाबा साहब ने कॉरपोरेट घरानों की वकालत करने को प्राथमिकता नहीं दी बल्कि मजदूरों के वकील के रूप में काम करना शुरू किया। एक वकील के रूप में उन्होंने राजनीतिक, समुदायों के बीच के आंतरिक मामले, मजदूरों-गरीबों से जुड़े हुए मामले और संविधान के मूल भावना से जुड़े मामलों को तरजीह दी। हालांकि, इसके अलावा वह और मामलों में भी वकालत करते थे।

जज भी बन गए थे उनके मुरीद

अपनी काबलियत के बूते बाबा साहब एक वकील के रूप में प्रसिद्ध हो गए। बाबा साहब की काबलियत, अदालत में उनके तर्क और कानून में उनकी पकड़ देखकर उन्हें केस मिलने लगे थे और जब बाबा साहब अदालत में पेश होने जाते थे। बहुत सारे लोग उन्हें देखने के लिए ही जमा हो जाते। वकालत के शुरूआती दौर में बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जॉन न्यूमोंट उन्हें ब्रिटिश वकीलों की तरह काबिल नहीं मानते थे, लेकिन बाद वह उनके मुरीद बन गए। अटॉर्नी.एट.लॉ एनएच पांडिया और बीजी खेर, जो बॉम्बे लॉ जर्नल के संपादक थे, उन्होंने बाबा साहब को पत्रिका के संपादकीय बोर्ड का सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया। वर्ष 1927-28 में वे बॉम्बे लॉ जर्नल की सलाहकार और संपादकीय समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य बनाए गए। हालांकि, अक्टूबर 1928 में उन्होंने समिति छोड़ दी क्योंकि वो दलित समाज के हित के लिए काम करते हुए व्यस्त हो गए थे।

बाबा साहब ने वकालत करते हुए ये महसूस किया कि वो बतौर वकील उतना पैसा नहीं अर्जित कर पा रहे हैं, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण हो सके तो उन्होंने अध्यापन की ओर रूख किया। जून 1925 से सन 1929 तक उन्होंने बाटलीबोई अकाउंटेंसी इंस्टीट्यूट में अंशकालिक व्याख्याता के रूप में वाणिज्यिक कानून पढ़ाया। जून 1928 से करीब एक साल गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, बॉम्बे में पढ़ाया। फिर वह एक लॉ कॉलेज में प्रिसिंपल नियुक्त किए गए। मई 1938 में उन्होंने लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल के पद से इस्तीफा दे दिया।

ये सिर्फ बाबा साहब की कर सकते थे

बैरिस्टर के रूप में बाबा साहब आंबेडकर की काबलियत और उनके रसूख का अंदाजा लगाया जाना खासा मुश्किल है। बात है सन 1928 की। तब समाज में दलित समुदाय की स्थिति के बारे में ब्रिटिश सरकार के सामने पक्ष रखा जाना था। साइमन कमीशन के सामने गवाही देने के लिए डॉ. आंबेडकर को चुना गया था। जिस दिन उन्हें ये गवाही देनी थी। ठीक उसी दिन उन्हें एक महत्वपूर्ण मामले में ठाणे के जिला एवं सत्र न्यायाधीश के समक्ष अपने मुवक्किल का पक्ष भी रखना था। यदि डॉ. आंबेडकर उस मुकदमे में उपस्थित नहीं होते तो शायद उनके कुछ मुवक्किलों को फांसी की सजा मिलती और इसका मलाल उन्हें जिन्दगी भर रहता।

दूसरी ओर डॉ, आंबेडकर यदि साइमन आयोग के सामने गवाही देने के लिए नहीं जाते तो देश के करोड़ों लोगों की पीड़ा को दुनिया के सामने रखने का मौका निकल जाता। बाबा साहब के सामने इस तरह की दुविधा थी वे क्या करें क्या ना करें। लेकिन ऐसे में उन्होंने न्यायाधीश से अनुरोध किया कि अभियुक्तों के बचाव को अभियोजन पक्ष के समक्ष प्रस्तुत करने की अनुमति पहले दी जाए। अमूमन होता यह है कि अभियोजन पक्ष अपना तर्क पहले रखता है, लेकिन डॉ, आंबेडकर की स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्हें अपना पक्ष पहले रखने की अनुमति दी गई। बचाव के लिए दिए गए तर्कों को देखते हुए उन मामलों में अधिकांश अभियुक्तों को बरी कर दिया गया था। हालांकि जब न्यायाधीश ये फैसला सुना रहे थे तब डॉ, आंबेडकर साइमन कमीशन के सामने देश के दलितों की स्थिति पर अपना पक्ष रख रहे थे।

हमेशा होता रहेगा उनके लड़े मुकदमों का जिक्र

डॉ, आंबेडकर ने सन 1923 से सन 1952 तक अपने लंबे करियर के दौरान कई मुकदमे लड़े। बतौर वकील बाबा साहब ने कई केस ऐसे लड़े जिनकी चर्चा बरसों तक होती रहेगी। मसलन, आरडी कर्वे और समाज स्वास्थ्य पत्रिका का मुकदमा। डॉ. आरडी कर्वे समाज सुधारक थे। वह महिलाओं के स्वास्थ्य और यौन शिक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने की कोशिश कर रहे थे। तब यौन शिक्षा के बारे में बात करना खासा मुश्किल था।

डॉ, कर्वे की इस काम के लिए आलोचना की जाती थी। समाज स्वास्थ्य पत्रिका में यौन शिक्षा पर लेख प्रकाशित हुआ करते थे। सन 1934 में डॉ. कर्वे पर एक मुकदमा दर्ज हुआ। उन पर आरोप था कि वे अपनी मासिक पत्रिका ‘समाज स्वास्थ्य’ के जरिए वे समाज में अश्लीलता फैला रहे हैं। डॉ. आंबेडकर ने उनकी तरफ से केस लड़ा। अदालत में डॉ. आंबेडकर ने कहा अगर कोई यौन समस्याओं के बारे में लिखता है तो उसे अश्लील नहीं माना जाना चाहिए। उन्होंने अपनी दलील देते हुए कि अगर लोग अपने मन के सवाल पूछते हैं और इसे विकृति मानते हैं तो केवल ज्ञान ही विकृति को दूर कर सकता है। इसलिए उन सवालों के जवाब डॉ. कर्वे को देना चाहिए।

ऐसा ही एक चर्चित मामला था देश के दुश्मन का। ये बात है सन 1926 की। तब दिनकर राव जावलकर और केशव राव जेधे गैर-ब्राह्मण आंदोलन की अगुआई करने वालों में थे। उस समय ब्राह्मण समुदाय के लोग सामाजिक सुधारों का विरोध कर रहे थे। इस विरोध के कारण महात्मा फुले की आलोचना भी की जा रही थी। महात्मा फुले को क्राइस्टसेवक भी कहा जाता था। इन बातों के विरोध में दिनकर राव जावलकर ने देश के दुश्मन नामक पुस्तक लिखी और केशवराव जेधे ने इसका प्रकाशन किया।

मराठी में लिखी इस पुस्तक में लोकमान्य तिलक और विष्णु शास्त्री चिपलूनकर का जिक्र करते हुए उनकी खासी आलोचना की गई। जिससे तिलक के समर्थक नाराज हो गए और उन लोगों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। इस किताब को प्रतिबंधित कर दिया गया था। ‘देश्चे दुश्मन’ (देश का दुश्मन) के लेखक केशव जेधे के खिलाफ ब्राह्मण वकील ने मुकदमा दायर कर दिया। केशव जेधे दलित थे। मुकदमा पुणे में चला और निचली अदालत ने जेधे.जावलकर को सजा सुनाई। जावलकर को एक साल की सजा सुनाई गई, जबकि जेधे को छह महीने जेल की सजा सुनाई गई। इस सजा को चुनौती दी गई और बाबा साहब आंबेडकर इस मामले में वकील बने। बाबा साहब भी देश के दुश्मन पुस्तक पढ़ चुके थे। इस मामले की सुनवाई पुणे सेशन कोर्ट में जज लॉरेंस की अदालत में हुई। डॉ आंबेडकर ने एक पुराने मानहानि केस का हवाला देकर यह केस लड़ा।

उन्होंने जज फ्लेमिंग के आदेश का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि वहां भी मामला समान था क्योंकि शिकायत दर्ज करने वाला व्यक्ति, मानहानि का दावा करने वाले शख्स का दूर का रिश्तेदार है, इसलिए उसके पास कोई अधिकार नहीं है कि वह मुकदमा दर्ज कराए। आंबेडकर ने अपनी वाकपटुता में यहां तक कह दिया कि चूंकि यह किताब किसी खास ब्राह्मण के खिलाफ नहीं और वकील चूंकि पूरे समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, इसलिए इस मुकदमे का कोई तुक नहीं बनता है। डॉ. आंबेडकर ने अदालत के सामने दलीलें पेश की और जेधे.जावलकर दोनों की ही सजा माफी हो गई।

महाड़ सत्याग्रह का मामला भी नजीर बन गया। आजादी के दशकों पहले से अछूतों को सार्वजनिक जलस्रोतों से पानी पीने का हक नहीं था। वहां मवेशी तो पानी पी सकते थे, लेकिन अछूत नहीं। इस अन्याय के खिलाफ डॉ, आंबेडकर ने मुहिम चलाई और इसके कारण ही महाड़ सत्याग्रह हुआ। यह महाड़ झील के पानी पर हक को लेकर लड़ाई थी। कुछ असामाजिक तत्वों ने अछूत समुदाय के लोगों पर भी हमला किया ताकि वे लोग महाड़ झील पर न आए। इसके अलावा डॉ. आंबेडकर और उनके साथियों पर कई मुकदमे भी दर्ज किए गए। इस मामले में तर्क दिया गया कि यह झील पूरी तरह से हिंदुओं की है। यह कोई सार्वजनिक जमीन पर नहीं बनी है। यह भी कहा गया कि इससे दूसरे समुदाय के लोग भी पानी लेते हैं। किसी को रोका नहीं गया है। तब डॉ. आंबेडकर ने अदालत को बताया कि यह झील महाड़ नगर निगम की जमीन पर बनी हुई है। यहां से केवल सवर्ण हिंदुओं को पानी लेने की अनुमति है।

खटीक मुस्लिमों को भी यहां से पानी नहीं लेने दिया जाता। मामले की सुनवाई के दौरान ये तथ्य सामने आया कि यह झील 250 सालों से है और यहां से केवल सवर्ण हिंदुओं को ही पानी मिलता है। डॉ, आंबेडकर ने अदालत में यह भी साबित किया कि झील नगर निगम की जमीन पर है, इसलिए इससे सभी को पानी लेने का हक है। हाईकोर्ट ने बैरिस्टर आंबेडकर की दलील को स्वीकार करते हुए इसे सभी के लिए खोलने का निर्देश दिया। अदालत ने भी माना कि यह आंदोलन किसी एक झील या जलस्रोत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अदालत का आदेश सभी सार्वजनिक जल निकायों पर भी लागू होगा। अदालत ने कहा कि किसी की जाति और सामाजिक स्थिति को देखकर उसे पानी लेने से मना नहीं किया जा सकता।

अहम केसों में एक केस फिलिप स्प्राट का था जो इंगलैंड के रहने वाले थे और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने इंडिया और चाइना नाम से एक पर्चा लिखा था जिसके चलते उसे ब्रिटिश हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया था। कोर्ट में वह बरी हो गए। इसी तरह ट्रेड यूनियन और कम्युनिस्ट लीडर बीटी रणदिवे के राजद्रोह के मामले में डॉ, आंबेडकर ने ही वकालत की जिसमें रणविदे को भी बरी कर दिया गया। ट्रेड यूनियन से जुड़े अनेकों मामले में, जिसमें देश के प्रमुख कम्युनिस्ट नेता वीबी कार्णिक, मणिबेन कारा, अब्दुल मजीद, रणविदे जैसे लोग शामिल थे, का भी बचाव किया था। बाबा साहब ने मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कई प्रकरणों में पैरवी की।

बहरहाल, 1946 में वे भारत की संविधान सभा के लिए चुने गये। 15 अगस्त 1947 को उन्होंने स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में शपथ ली। इसके बाद उन्हें संविधान सभा की मसौदा समिति का अध्यक्ष चुना गया और उन्होंने भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया का नेतृत्व किया। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डॉ, बीआर आंबेडकर को आजाद भारत का पहला कानून मंत्री बनाया था। कानून मंत्री के रूप में उन्होंने शोषित-पीडि़त और कमजोर वर्गों को अधिकार देने के लिए संविधान में प्रावधान किए और उन्हें पारित करवाया। जातिगत व्यवस्था को खत्म किया, सभी को समान दर्जा और समान अधिकार दिए। बाबा साहब ने ही महिलाओं को समान दर्जा और अधिकार देने वाले कानूनों की नींव रखी थी।


लेखक- मुस्ताक अली बोहरा पेशे से अधिवक्ता है और मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के निवासी है।

दलित-आदिवासी छात्रों के लिए विदेश में पढ़ने का मौका, आवेदन प्रक्रिया चालू

नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिपः सेकेंड राउण्ड के तहत गत 1 सितम्बर 2024 से आवेदन प्रक्रिया शुरू, 10 अक्टूबर 2024 आवेदन करने की अंतिम तिथि।

नई दिल्ली। यदि आप विदेश में पढ़ाई करना चाहते हैं, लेकिन पारिवारिक आर्थिक स्थिति के चलते अपने सपने को पूरा नहीं कर पा रहे हैं तो यह खबर आपके लिए है। भारत सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के अधीन सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग द्वारा राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति (National overseas scholarship) 2024 के लिए आवेदन का दूसरा राउंड 1 सितम्बर 2024 से शुरू हो चुका है। आवेदन करने की अंतिम तिथि 10 अक्टूबर 2024 है। आवेदन प्रक्रिया के माध्यम से स्टूडेंट्स अमेरिका और ब्रिटेन में अपनी मास्टर्स और पीएचडी की पढ़ाई करने के लिए फीस के साथ-साथ 14 लाख रुपये तक आर्थिक मदद प्राप्त कर सकते हैं। नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप के लिए निर्धारित योग्यता रखने वाले उम्मीदवार आवेदन कर सकते हैं और चयनित होने पर छात्र-छात्राओं को कोर्स की फीस के अतिरिक्त 11 ले 14 लाख रुपये की आर्थिक मदद केंद्र सरकार द्वारा दी जाती है। यह आर्थिक सहायता वार्षिक गुजारा भत्ता, वार्षिक आकस्मिक निधि और अन्य खर्चों के लिए दी जाती है। इसके अतिरिक्त ट्यूशन फीस, आने-जाने का हवाई यात्रा किराया व मेडिकल बीमा आदि स्टूडेंट्स को दी जाती है। दलित दस्तक को विभागीय सचिव योगेश तनेजा ने बताया कि नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप स्कीम के तहत फर्स्ट राउंड में 15 फरवरी से 31 मार्च 2024 तक आवेदन मांगे गए थे। इस दौरान कुल 125 स्कॉलरशिप के लिए पर्याप्त आवेदन प्राप्त नहीं हुए थे। ज्यादा छात्र-छात्राओं को स्कीम का लाभ प्राप्त हो सके। इसलिए दूसरे राउंड के तहत आवेदन मांगे गए है। आवेदक विभागीय वेबसाइट (nosmsje.gov.in) पर स्कीम की पूर्ण जानकारी व आवेदन प्रक्रिया जान सकते है।

कौन कर सकता है आवेदन?

सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग द्वारा जारी राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति 2024 अधिसूचना के मुताबिक कुल 125 छात्र-छात्राओं को दी जाने वाली इस स्कॉलरशिप में से 115 अनुसूचित जातियों, 6 डिनोटिफाईड, नोमैडिक और सेमी-नोमैडिक जनजातियों, 4 भूमिहीन कृषि श्रमिकों व परंपरागत कारीगर परिवारों से आने वाले छात्र-छात्राओं की दी जाती है। नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप प्राप्त करने के लिए छात्र या छात्रा को यूके या यूएस के ऐसे संस्थान में मास्टर्स या पीएचडी एडमिशन का ऑफर लेटर प्राप्त हुआ होना चाहिए, जिन्हें क्यूएस यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स 2024 में शीर्ष 500 में स्थान मिला है। साथ ही, स्टूडेंट्स को क्वालिफाईंग एग्जाम को कम से कम 60 फीसदी अंकों के साथ उत्तीर्ण होना चाहिए। मास्टर्स डिग्री एडमिशन के लिए स्टूडेंट्स को बैचलर्स डिग्री तथा पीएचडी के लिए मास्टर्स डिग्री किसी मान्यता प्राप्त भारतीय विश्वविद्यालय से 60 फीसदी अंकों के साथ उत्तीर्ण होना चाहिए।

कहां करें आवेदन?

नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप-2024 के लिए आवेदन के लिए स्टूडेंट्स को इस छात्रवृत्ति के लिए लॉन्च किए गए आधिकारिक पोर्टल, पर विजिट करना होगा। इस पोर्टल पर पहले रजिस्ट्रेशन और फिर पंजीकृत विवरणों से लॉग-इन करके स्टूडेंट्स अपना अप्लीकेशन सबमिट कर सकेंगे।

अमेरिका में राहुल गांधी के आरक्षण वाले बयान पर बवाल, बहनजी की दो टूक

कांग्रेस नेता राहुल गांधी इन दिनों अमेरिका की यात्रा पर हैं, जहां वह अलग-अलग यूनिवर्सिटी में युवाओं से संवाद कर रहे हैं। हालांकि राहुल गाँधी अमेरिका के जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में आरक्षण को लेकर दिये अपने बयान पर घिर गए हैं। बसपा सुप्रीमों मायावती ने राहुल गांधी के बयान को आधार बनाकर उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

अमेरिकी दौरे पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल से जब आरक्षण को लेकर यह पूछा गया कि आरक्षण कब तक जारी रहेगा, राहुल गाँधी ने कहा कि, कांग्रेस पार्टी आरक्षण खत्म करने के बारे में तब सोचेगी, जब देश में निष्पक्षता होगी। फिलहाल देश में ऐसी स्थिति नहीं है। वंचितों की स्थिति का जिक्र करते हुए राहुल गाँधी ने कहा कि, आदिवासियों को 100 रुपये में से 10 पैसे मिलते हैं। जबकि दलितों को 100 में से 5 रुपये मिलते हैं। ओबीसी समाज को भी कमोबेश इतनी ही राशि मिलती है। यानी देश में 90 फीसदी लोगों को समान अवसर नहीं मिल रहे हैं।

साफ है कि राहुल गाँधी इस असमानता का जिक्र करते हुए आरक्षण को जस्टिफाई कर रहे थे और उनका कहना था कि जब तक ऐसी स्थिति रहेगी और समानता नहीं आएगी, आरक्षण खत्म नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि बहनजी ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी के असमानता वाली थ्योरी को खारिज करते हुए साफ कर दिया कि देश में जातिवाद के रहने तक आरक्षण खत्म नहीं किया जा सकता।

राहुल गाँधी के बयान के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए बसपा अध्यक्ष मायावती ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा,

कांग्रेस पार्टी के सर्वेसर्वा श्री राहुल गाँधी ने विदेश में यह कहा है कि भारत जब बेहतर स्थिति में होगा तो हम SC, ST, OBC का आरक्षण खत्म कर देंगे। इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस वर्षों से इनके आरक्षण को खत्म करने के षडयंत्र में लगी है। एससी, एसटी, ओबीसी वर्गों के लोग कांग्रेसी नेता श्री राहुल गाँधी के दिए गए इस घातक बयान से सावधान रहें, क्योंकि यह पार्टी केन्द्र की सत्ता में आते ही, अपने इस बयान की आड़ में इनका आरक्षण जरूर खत्म कर देगी। एससी, एसटी और ओबीसी संविधान व आरक्षण बचाने का नाटक करने वाली इस पार्टी से जरूर सजग रहें।

बहनजी यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने राहुल गाँधी पर अपना हमला जारी रखते हुए कहा कि, कांग्रेस शुरू से ही आरक्षण-विरोधी सोच की रही है। केन्द्र में रही इनकी सरकार में जब इनका आरक्षण का कोटा पूरा नहीं किया गया, तब इस पार्टी से इनको इंसाफ ना मिलने की वजह से ही बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

राहुल गांधी के असमानता वाली थ्योरी के जवाब में बहनजी ने कहा कि, जब तक देश में जातिवाद जड़ से खत्म नहीं हो जाता है तब तक भारत की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर होने के बावजूद भी इन वर्गों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक हालत बेहतर होने वाली नहीं है। अतः जातिवाद के समूल नष्ट होने तक आरक्षण की सही संवैधानिक व्यवस्था जारी रहना जरूरी।

साफ है कि राहुल गांधी जहां आर्थिक और संसाधनों में हिस्सेदारी की समानता आने तक आरक्षण रहने की वकालत कर रहे हैं, बहन मायावती ने जाति व्यवस्था रहने तक आरक्षण जारी रखने की वकालत की है।

यूपी और एमपी में दलित अत्याचार की घटनाओं से रोष

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में दलित समाज की दो युवतियों की मौत और मध्यप्रदेश में जीआरपी थाने में पुलिसकर्मियों द्वारा एक बुजुर्ग और एक नाबालिग दलित की पिटाई का मामला तूल पकड़ चुका है। इन दोनों घटनाओं को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। खास तौर पर ये दोनों घटनाएं भारत में दलितों पर होने वाले अत्याचार की इंतहा को बताती है। मामला इतना संदिग्ध है कि यू-ट्यूब इसको दिखाने के पहले तमाम बंदिशे लगा रहा है। लेकिन आप लिंक पर जाकर यह वीडियो देख सकते हैं।

 

यूपी के गांव में सड़क नहीं, एक घंटे तक मरीज को चारपाई पर ढोया

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के मऊ तहसील क्षेत्र के घुरेटा गांव में एक घटना भारत की असल तस्वीर बताने को काफी है। यह घटना बताती है कि भारत जिस विकास का ढिंढ़ोरा पीटता है, उसकी झलक अभी भी देश के कई गांवों से और खासकर वंचित समाज की बस्तियों से कोसो दूर है। एक्टिविस्ट और ट्राइबल आर्मी के संस्थापक हंसराज मीणा इस घटना को सामने लेकर आए हैं और कई सवाल उठाया है। उन्होंने अपने एक्स अकाउंट पर घटना का पूरा विवरण देते हुए लिखा-


माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, मैं आपके संज्ञान में चित्रकूट जिले के मऊ तहसील क्षेत्र के घुरेटा गांव की एक हृदयविदारक घटना सामने लाना चाहता हूं, जो न केवल प्रशासनिक असफलता बल्कि सरकार की ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की उपेक्षा का भी प्रतीक है। घुरेटा गांव के निवासियों को एक गंभीर मरीज को अस्पताल तक ले जाने के लिए चारपाई पर एक किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ा, क्योंकि गांव में एंबुलेंस नहीं पहुंच सकी। यह घटना सरकारी तंत्र की उस गंभीर विफलता को उजागर करती है, जो आज भी भारत के दूरदराज इलाकों में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने में असमर्थ है।

इस गांव में न तो सड़क की कोई व्यवस्था है और न ही कोई नजदीकी अस्पताल। जिला मुख्यालय से मात्र 30 किमी की दूरी पर होने के बावजूद यहां के निवासियों को इस प्रकार की अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। यह घटना केवल एक गांव की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। क्या यह उन ग्रामीणों के अधिकारों का हनन नहीं है, जिन्हें आप स्वास्थ्य सुविधाएं देने का वादा करते हैं? सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में विकास के बड़े-बड़े दावे किए हैं, लेकिन जब ग्रामीणों को अपनी जीवनरक्षक सेवाओं के लिए चारपाई पर एक किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है, तो यह उन सभी दावों की पोल खोलता है।

यह बेहद शर्मनाक और दुखद है कि 21वीं सदी के भारत में भी ऐसे दृश्य देखने को मिल रहे हैं। मैं आपसे निवेदन करता हूं कि इस घटना को गंभीरता से लेते हुए तुरंत कार्रवाई करें और घुरेटा गांव के साथ-साथ अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं को सुदृढ़ करने के लिए ठोस कदम उठाएं। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों को जीवन की बुनियादी आवश्यकताएं स्वास्थ्य, शिक्षा, और परिवहन उपलब्ध कराए। आशा है, आपकी सरकार इस मामले को प्राथमिकता देगी और इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई करेगी।

आरक्षण में वर्गीकरणः दलित समाज के दिग्गजों ने खोला मोर्चा, देखिए किसने क्या कहा

आरक्षण में वर्गीकरण के खिलाफ दलित समाज ने 21 अगस्त 2024 को भारत बंद कियाआरक्षण में वर्गीकरण के खिलाफ दलित समाज के दिग्गजों ने देश भर में मोर्चा खोल दिया है। 21 अगस्त 2024 को इसको लेकर देश भर में प्रदर्शन हुए। आम से लेकर खास तक, दलित-आदिवासी समाज के तमाम लोगों ने सड़कों पर उतर पर अपना विरोध जताया। इस दौरान दलित दस्तक ने अपने यू-ट्यूब चैनल के लिए तमाम लोगों से बातचीत की। इसमें आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद, दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम, दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. जितेन्द्र मीणा जैसे दिग्गजों ने अपनी बात रखी।

नगीना से सांसद और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने खुद जंतर-मंतर पहुंच कर धरना दिया।
तो वहीं दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम ने इसे साजिश बताकर इसका पर्दाफाश किया। उन्होंने वाल्मीकि समाज से भी अपील की।
वहीं, दूसरी ओर दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर और आदिवासी समाज पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. जितेन्द्र मीणा ने सरकार और सुप्रीम कोर्ट की मंशा पर सवाल उठाया। उन्होंने जस्टिस आर.एस. गवई को भी निशाने पर लिया।
दलित एक्टिविस्ट डॉ. ओम सुधा भी दिल्ली के जंतर-मंतर पहुंचे और न्यायपालिका पर जमकर निशाना साधा।

वर्गीकरण के खिलाफ प्रदर्शन देश भर में हुए। देश के अलग-अलग हिस्सों में अंबेडकरवादी संगठनों ने सड़क पर उतर पर इसका विरोध किया और इसे समाज को तोड़ने की साजिश कहा।

 

लैटरल एंट्री पर गरमाई सियासत, बहुजन नेताओं ने खोला मोर्चा

जब वंचित समाज आरक्षण में वर्गीकरण के फैसले की समीक्षा करने में जुटा है, लैटरल एंट्री यानी बिना किसी परीक्षा के जॉइंट सेक्रेटरी, डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेटरी जैसे पदों को भरने का फरमान जारी हो गया है। 17 अगस्त को आए इस नोटिफिकेशन को लेकर बहुजनों में खासा गुस्सा है। सामाजिक न्याय की संस्थाओं के साथ-साथ बहुजन नेताओं ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाई है। बसपा सुप्रीमों मायावती ने इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और इस भर्ती को गलत, असंवैधानिक और गैर कानूनी बताया है। बसपा सुप्रीमों ने कहा कि- केन्द्र में संयुक्त सचिव, निदेशक एवं उपसचिव के 45 उच्च पदों पर सीधी भर्ती का निर्णय सही नहीं है, क्योंकि सीधी भर्ती के माध्यम से नीचे के पदों पर काम कर रहे कर्मचारियों को पदोन्नति के लाभ से वंचित रहना पड़ेगा। इन सरकारी नियुक्तियों में SC, ST व OBC वर्गों के लोगों को उनके कोटे के अनुपात में अगर नियुक्ति नहीं दी जाती है तो यह संविधान का सीधा उल्लंघन होगा। और इन उच्च पदों पर सीधी नियुक्तियों को बिना किसी नियम के बनाये हुए भरना बीजेपी सरकार की मनमानी होगी, जो कि गैर-कानूनी एवं असंवैधानिक होगा।

वहीं, दूसरी ओर आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर ने भी इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। प्रधानमंत्री मोदी को घेरते हुए उन्होंने कहा है कि परम् पूज्य बाबा साहब डॉo भीमराव अंबेडकर जी की प्रतिमा के सामने सिर झुकाकर, संविधान को माथे पर लगाने वाले प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार उसी संविधान की किस कदर हत्या करने पर तुली है लेटरल एंट्री का यह नोटिफिकेशन इसका जीता जागता उदाहरण है।

केंद्र सरकार द्वारा अपनी विचारधारा के 45 लोगों को बिना कोई परीक्षा पास किए बैकडोर से मंत्रालयों में बैठाने के लिए एक बार फिर से विज्ञापन निकाल दिया है। जिसमें किसी भी पद पर कोई आरक्षण नहीं है।

नगीना सांसद चंद्रशेखर का आरोप है कि इन पदों की अघोषित योग्यता ये है कि अभ्यर्थी संघ से जुड़ा हो और राजनैतिक तौर पर भाजपा की विचारधारा लिए काम करता हो। न्यायाधीशों की भूमिका पर सवाल उठाते हुए चंद्रशेखर ने कहा कि OBC/SC/ST में जबरन क्रीमी लेयर खोजने वाले माननीय न्यायमूर्तियों और केंद्र सरकार से सवाल इन पदों पर इन वर्गों का तथाकथित क्रीमीलेयर कहां चला जाता है? चंद्रशेखर ने सड़क से लेकर संसद तक इसके खिलाफ आवाज उठाने की बात कही है।

गौरतलब है की ये पहला मौका नहीं है। इससे पहले मोदी सरकार लेटरल एंट्री के नाम पर 2017 से 2023 के बीच लगभग 52 नियुक्तियां कर चुकी है, जिनमें कोई आरक्षण नहीं दिया गया। यह नियुक्ति “राजनैतिक सरपरस्ती” के चलते मिल गई। लेटरल एंट्री के ज़रिए भरे जाने वाले इन पदों में 𝟒𝟓 जॉइंट सेक्रेटरी, डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेटरी हैं।

अगर 𝐔𝐏𝐒𝐂 परीक्षा के माध्यम से इन यह नियुक्ति करती तो 𝟒𝟓 में से तकरीबन 𝟐𝟑 अभ्यर्थी दलित, पिछड़ा और आदिवासी वर्गों से चयनित होकर आते लेकिन आरक्षण और संविधान विरोधी केन्द्र की भाजपा सरकार ने चोर दरवाजे यानि बैकडोर से खास जातियों और विचारधारा के चहेतों को मंत्रालयों में बैठाने का प्रबंध कर लिया है। हालांकि बहुजन समाज ने भी साफ कर दिया है कि अब वह इस मुद्दे पर चुप बैठने वाली नहीं है और सरकार से दो-दो हाथ करने को तैयार है।

आरक्षण मुद्दे पर फुल फॉर्म में बसपा सुप्रीमो, सरकार से लेकर विपक्ष को ललकारा

सुश्री मायावतीअमूमन यह कम होता है कि बसपा प्रमुख मायावती बार-बार मीडिया के सामने आएं। लेकिन आरक्षण में वर्गीकरण को लेकर उठे बवाल के बीच बसपा सुप्रीमों फुल फार्म में हैं। 4 अगस्त को मीडिया को संबोधित करने और प्रधानमंत्री एवं सरकार से संसद सत्र के दौरान बिल को पास करने की मांग करने वाली बहनजी 10 अगस्त को फिर मीडिया के सामने आईं। तेवर सख्त थे तो सरकार और आवाम दोनों को साफ संदेश था।

लखनऊ में आयोजित प्रेस वार्ता में मायावती ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आश्‍वासन देने भर से काम नहीं चलेगा। केंद्र सरकार को संसद का सत्र बुलाकर अनुसूचित जाति/जनजाति और क्रीमीलेयर मामले में आरक्षण की स्थिति साफ करनी चाहिए। मायावती ने आरोप लगाया कि इस मामले में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ठीक से पैरवी नहीं की। प्रधानमंत्री की नीयत अगर साफ है तो संसद का सत्र समय से पहले स्‍थगित नहीं करना चाहिए। विशेष सत्र बुलाना चाहिए।

कांग्रेस और भाजपा पर एक साथ हमला बोलते हुए बहनजी ने कहा कि बीजेपी और कांग्रेस आरक्षण के खिलाफ हैं। क्रीमीलेयर के बहाने आरक्षण खत्‍म करने की कोशिश की जा रही है। इनकी सरकारों में नौकरियों को खत्‍म कर संविदा पर तैनाती आरक्षण खत्‍म करने की ही कोशिश है। प्रेस कांफ्रेस में बसपा सुप्रीमों ने सभी राजनीतिक दलों को कठघरे में खड़ा किया और कहा कि सभी राजनीतिक दलों को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।

अपने समर्थकों और एससी-एसटी समाज से अपील करते हुए बसपा प्रमुख ने लोगों से आरक्षण के मुद्दे को लेकर एकजुट होने की अपील करते हुए कहा कि अगर अब आवाज नहीं उठाई तो हमेशा के लिए आरक्षण से वंचित रहना पड़ेगा। देश की दिग्गज नेता ने राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना की भी मांग उठाई।

साफ है कि आरक्षण के मुद्दे ने बहुजन समाज पार्टी और उसकी मुखिया मायावती को बड़ा मौका दे दिया है। वह इस मुद्दे के जरिये जहां सीधे अपने खोए हुए जनाधार से जुड़ने की कोशिश कर रही हैं तो वहीं, दलित समाज को एकजुट होने का संदेश देकर उन्होंने साफ कर दिया है कि बसपा इस मुददे का नेतृत्व करने और सरकार से लड़ने के लिए तैयार है।

विश्व आदिवासी दिवस की बधाई देना भूलीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

25 जुलाई 2022 को द्रौपदी मूर्मू भारत की 15वीं राष्ट्रपति बनी थीं। जब वो राष्ट्रपति बनी तो उनकी आदिवासियत पहचान को लेकर भाजपा ने खूब ढिंढ़ोरा पीटा। कहा गया कि देश में पहली बार आदिवासी समाज का व्यक्ति और वो भी महिला शीर्ष पद पर पहुचेंगी। लेकिन वही राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर बधाई देना भूल गईं। इसको लेकर आदिवासी समाज के लोगों ने आपत्ति, अफसोस और विरोध जताया है।

सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर काफी सक्रिय रहने वाले हंसराज मीणा ने एक्स पर पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का विश्व आदिवासी दिवस पर दिये गए संदेश का साझा करते हुए लिखा-

राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू फिलहाल विदेश दौरे पर हैं। 4 अगस्त को वह फिजी, न्यूजीलैंड और तिमोर लेस्ते देशों की यात्रा पर निकली। प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के आधिकारिक एक्स हैंडल पर इसकी जानकारी और तस्वीर दोनों है। अपनी इस यात्रा में राष्ट्रपति जहां भी जा रही हैं, और जिस राष्ट्राध्यक्ष या महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में शामिल हो रही हैं, उसकी तस्वीरें और जानकारी लगातार साझा की जा रही है।

9 अगस्त को इस आधिकारिक एक्स हैंडल से जो पोस्ट किये गए हैं। उसमें नीरज चोपड़ा को पेरिस ओलंपिक में रजत पदक जीतने की बधाई दी गई है, जबकि अन्य में वीडियो जारी किया गया है, जिसमें राष्ट्रपति मूर्मू न्यूजीलैंड के ऑकलैंड में इंडियन कम्यूनिटी रिसेप्शन को संबोधित कर रही हैं। इस दिन विश्व आदिवासी दिवस से जुड़ा कोई पोस्ट नहीं दिख रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू की ताजा पोस्ट तिमोर लेस्ते से 10 अगस्त को साढ़े 11 बजे की है, जिसमें वो पूर्व राष्ट्रपति वी.वी.गिरी की जयंती पर उनकी तस्वीर के सामने झुककर उनको श्रद्धांजलि दे रही हैं। यानी अभी भी वह अपने विदेशी दौरे पर ही हैं।

यहां सवाल यह उठता है कि जब राष्ट्रपति और उनके साथ चल रहे स्टॉफ को हर किसी की जयंती और पेरिस ओलंपिक में चल रही प्रतिस्तपर्धाओं की जानकारी है और वो लगातार राष्ट्रपति के जरिये इससे जुड़े संदेश भी दे रहे हैं तो आखिर वह विश्व आदिवासी दिवस की बधाई देना कैसे भूल गए। हो सकता है कि इसके लिए राष्ट्रपति भवन का स्टॉफ जिम्मेदार हो, लेकिन आदिवासी समाज का होने के नाते राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू का भी विश्व आदिवासी दिवस को भूल जाने को दुर्भाग्यपूर्ण नहीं तो और क्या कहा जाए। संभवतः यह पहली बार है जब कोई राष्ट्रपति विश्व आदिवासी दिवस की बधाई देना भूल गया है। एक सवाल यह भी है कि क्या यह सरकार की आदिवासी समाज को लेकर किसी अलग तरह की राजनीति की शुरुआत तो नहीं?

आरक्षण में कोटे पर नया हंगामा शुरू, अब क्या करेगा दलित समाज?

सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की खंडपीठ के द्वारा एक अगस्त को आरक्षण में वर्गीकरण और क्रीमी लेयर को लेकर टिप्पणी की थी। इसके बाद दलित समाज के भीतर से विरोध उठना शुरू हो गया। इस बीच 9 अगस्त को इस बारे में केंद्र सरकार ने बयान जारी कर स्थिति को साफ किया है। केंद्र सरकार की ओर केद्रीय मंत्री अश्विनी वार्ष्णेय सामने आए। उन्होंने कहा कि एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर नहीं होगा। हालांकि एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण को लेकर केंद्र ने चुप्पी साध रखी है। ऐसे में यह आंदोलन आगे कैसे बढ़ेगा, इसको लेकर दलित दस्तक के संपादक अशोक दास ने सोशल एक्टिविस्ट और विचारक डॉ. सतीश प्रकाश से  चर्चा की। देखिए चर्चा का वीडियो-

आरक्षण में वर्गीकरण पर कांग्रेस की भूमिका पर भड़के अंबेडकरवादी

सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण में वर्गीकरण के फैसले के बाद तेलंगाना सरकार ने इसके पक्ष में फैसला लेना शुरू कर दिया है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने यहां तक कहा कि आरक्षण में वर्गीकरण के फैसले को लागू करने वाला तेलंगाना पहला राज्य बनेगा। इसको लेकर अंबेडकरवादी समाज का एक तबका नाराज हो गया है। दलित एक्टिविस्ट और चिंतक सतीश प्रकाश ने इसको लेकर कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा है। उनके निशाने पर कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भी हैं, जो पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान संविधान बचाने की बात करते हुए दिखे। सतीश प्रकाश ने कांग्रेस और राहुल गाँधी पर कई आरोप लगाए हैं।

दलित दस्तक के संपादक अशोक दास ने सतीश प्रकाश से इस संबंध में दलित दस्तक के यू-ट्यूब चैनल के लिए चर्चा की। देखिए क्या है उनके तर्क-

कितना संवैधानिक है आरक्षण में बंटवारे का SC का फैसला, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट के.एस चौहान ने किया विश्लेषण

 

आरक्षण में वर्गीकरण को लेकर एक अगस्त को दिये गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बहस तेज हो गई है। इस पर चर्चा चल रही है कि यह फैसला कितना सही और संविधान सम्मत है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील एडवोकेट के. एस चौहान ने दलित दस्तक के संपादक अशोक दास से विस्तृत बात की और बताया कि इस फैसले के संवैधानिक मायने क्या है। दलित दस्तक के यू-ट्यूब चैनल पर हुई इस चर्चा का वीडियो लिंक हम यहां दे रहे हैं। सुनिये कितना न्याय संगत है सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण पर फैसला-

SC-ST उपजातियों को मिल सकेगा अलग से कोटा, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

एससी-एसटी आरक्षण में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने 7 जजों की पीठ ने 2004 में ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एसी/एसटी जनजातियों में सब कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती है।

इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने 6-1 के बहुमत से फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अंदर भी कई वर्ग बनाए जा सकेंगे। ऐसे में राज्य सरकारें अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के अंदर आने वाले किसी एक वर्ग को ज्यादा आरक्षण का लाभ दे सकेंगी।

जस्टिस बीआर गवई ने फैसला लिखते हुए कहा कि ईवी चिन्नैया फैसले मामले में कुछ खामियां थीं। यहां आर्टिकल 341 को समझने की जरूरत है जो सीटों पर आरक्षण की बात करता है। उन्होंने कहा कि मैं कहना चाहता हूं कि आर्टिकल 341 और 342 आरक्षण के मामले को डील नहीं करता है। फैसला सुनाने वाले सात सदस्यीय पीठ में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस एससी शर्मा शामिल रहे। पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला सुनाया है।

पीठ ने कहा कि राज्यों के पास आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति में उप-वर्गीकरण यानी Sub Classification करने की शक्तियां हैं। कोर्ट ने कहा कि कोटा के लिए एससी, एसटी में उप-वर्गीकरण का आधार राज्यों द्वारा मानकों एवं आंकड़ों के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिए।

जस्टिस बी आर गवई ने सामाजिक लोकतंत्र की आवश्यकता पर दिए गए बीआर अंबेडकर के भाषण का हवाला दिया। जस्टिस गवई ने कहा कि पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देना राज्य का कर्तव्य है, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के केवल कुछ लोग ही आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि एससी/एसटी के भीतर ऐसी श्रेणियां हैं, जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। उप-वर्गीकरण का आधार यह है कि एक बड़े समूह में से एक ग्रुप को अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

हालांकि इस बारे में बहुमत से अगर राय रखने वाली जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपने फैसले में लिखा कि मैं बहुमत के फैसले से अलग राय रखती हूं। उन्होंने कहा कि मैं इस बात से सहमत नहीं हूं जिस तरीके से तीन जजों की बेंच ने इस मामले को बड़ी बेंच को भेजा था। तीन जजों की पीठ ने बिना कोई कारण बताए ऐसा किया था।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कई बातों का जिक्र किया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब आरक्षण को लेकर नई बहस छिड़ सकती है। इस मामले में यह भी आशंका है कि राज्य सरकारें अपने चुनावी फायदे के लिए इसका अपने तरीके से इस्तेमाल कर सकती हैं।

Mr. BD Virdi and Ujjal Dosanjh awarded in Canada by Chetna Association and other Groups

Mr. BD Virdi and Ujjal Dosanjh awarded in Canada by Chetna Association and other Groups

After the “Sandookadi Kholh Narainia, a play by Dr. Sahib Singh staged at the White Rock Players’ Club on July 20 and 21, the former premier of BC Ujjal Dosanjh was bestowed with the Dr. Ambedkar Arts and Literature Award for his debut novel, ” The Past is Never Dead.”

The retired IES, Mr. BD Virdi, was awarded with the Dr. Ambedkar Social Justice Award for his contributions to policy and program development that helped reducing poverty in the rural areas. The organizers also recognized Dr. Sahib Singh with the “Excellence in Punjabi Theater Award”.

Honoring Dosanjh was a joint community effort led by the Chetna Association of Canada and Dynamic Creative Horizons, with the support Shri Guru Ravidass Sabha of Vancouver, AICS Canada, AISRO Canada, and Dynamic Creative Horizons.

Lamber Rao represented the Shri Guru Ravidass Sabha (Vancouver), Param Kainth represented AICS Canada, and Rashpaul Bharadqaj represented AISRO. Jai Birdi and Surinder Sandhu represented Chetna Association of Canada while Navjot Dhillon and Inderjit represented Dynamic Creative Horizons.

Dr. Sahib Singh, a prominent dramatist from Punjab is on a tour playing his plays in different cities across Canada. Locally, Chetna Association of Canada and Dynamic Creative Horizons, partnered and together arranged with Singh to perform his play, “Sandookadi Kholh Narainia” at a theatre in White Rock on July 20 and 21.

The organizers were very pleased to see the house filled both days and the theatre lovers enjoying the theatre with a needle drop silence with applause at key moments. Sandiokadi Kholh Narainia (SDK) is a story of three youth of Punjab. All three characters are played by Dr. Sahib Singh who is also credited with writing and directing his plays.

Singh, a mastermind, a highly talented, and a creative artist, skillfully projects these characters and challenges the audience to open their minds, using Sandokadi as a symbol. Throughout the play, many in the audience were able to relate to their own experiences validated through applauses, tears, laughter, and sighs.The members of Chetna Association and other Groups

Chetna’s next event is a screening of a short film on women empowerment, “Whistle”. This is a part of celebrating the Gender Equality Week. The screening will be on September 14, 1:30 pm, Dr. Ambedkar Room, Surrey Center Library on the University Drive.

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NCERT की किताबों में बहुजनों का इतिहास मिटाने की कोशिश, हड़प्पा सभ्यता की जगह सिंधु सरस्वती सभ्यता

लगता है सरकार और NCERT भारतीय इतिहास से हड़प्पा सभ्यता, जाति के सवाल, डॉ. आबंडकर के साथ हुए जातीय भेदभाव, सम्राट अशोक, सांची स्तूप, अजंता की गुफाओं आदि को मिटा देना चाहती है। और उसकी जगह अपना एजेंडा थोपना चाहती है। NCERT ने छठवीं क्लास के लिए सामाजिक विज्ञान की जो किताब छापी है, उसे देख कर तो यही लगता है। इस किताब में कई बदलाव किए गए हैं, जो सरकार और NCERT की मंशा पर सवाल उठाने वाले हैं।

दरअसल, अब स्कूलों में छठवीं क्लास के विद्यार्थी हड़प्पा सभ्यता की जगह सिंधु सरस्वती सभ्यता को पढ़ेंगे। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद यानी NCERT ने छठवीं क्लास के सामाजिक विज्ञान की किताब को कुछ बदलावों के साथ तैयार किया है। इस पाठ्यक्रम के सामने आने के बाद सवाल उठने लगे हैं।

नई किताब में हड़प्पा सभ्यता की जगह सिंधु सरस्वती सभ्यता शब्द का जिक्र किया गया है। वहीं नई किताब में जाति शब्द का सिर्फ एक बार जिक्र है। जाति आधारित भेदभाव और असमानता का भी जिक्र नहीं है। यहां तक की भारत रत्न संविधान निर्माता बाबासाहेब आंबेडकर से जुड़े जाति आधारित भेदभाव के सेक्शन को भी हटा दिया गया है।

यह पुस्तक राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2023 के तहत तैयार की गई पहली सामाजिक विज्ञान की पुस्तक है, जिसे मौजूदा शैक्षणिक सत्र से स्कूलों में पढ़ाया जाएगा। बता दें कि पहले सामाजिक विज्ञान के लिए इतिहास, भूगोल और राजनीतिक विज्ञान की अलग-अलग पाठ्य पुस्तकें थीं। लेकिन अब सामाजिक विज्ञान के लिए एक ही पाठ्य पुस्तक है, जिसे पांच खंडों में बांट दिया गया है।

लेकिन इस पुस्तक में जिस तरह भारतीय इतिहास में कई दशकों से दर्ज घटनाओं, व्यक्तियों और स्थानों को बदलने को लेकर जो फैसले किए गए हैं, वो गंभीर सवाल खड़ा करता है। जैसे कि नई पुस्तक में अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यों से संबंधित पाठों और चाणक्य और उनके अर्थशास्त्र को भी जगह नहीं दी गई है। लौह स्तंभ, सांची स्तूप और अजंता की गुफाओं के चित्रों का जिक्र भी पुस्तक में नहीं है। फिलहाल संसद का सत्र चल रहा है, देखना है कि इस मामले को लेकर कोई सांसद संसद में आवाज उठाता है या फिर देश शोषित वर्ग से संबंधित इतिहास को बदलते हुए देखता रहेगा? और नेताओं से इतर यह मामला समाज का है, देखना होगा अंबेडकरी समाज इसको लेकर क्या खामोश रहता है, या फिर विरोध की आवाज उठाता है।

बहुजन नेताओं ने खोली बजट की पोल, सुनिये बहन मायावती, चंद्रशेखर आजाद और अखिलेश यादव ने क्या कहा

जब भी बजट पेश होता है सरकार उसके कसीदे पढ़ती है तो विपक्ष खामियां निकालता है। लेकिन पक्ष -विपक्ष से इतर बजट को बहुजन समाज के नेता भी अपनी नजर से देखते हैं कि आखिर बजट में देश के बहुजन समाज के लिए क्या है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट पेश करने के बाद बसपा सुप्रीमों मायावती, आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने बजट में सरकारी चालाकियों की पोल खोलकर रख दी है।

 

काँवड़ यात्रा में दुकानों पर नाम, कहीं उपचुनाव को लेकर सीएम योगी का दांव तो नहीं?

घनश्याम हो या इमरान अब हर किसी को अपने फलों की दुकान पर अपना नाम लिखना होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे उत्तर प्रदेश में कांवड़ मार्गों पर खाने पीने की दुकानों पर ‘नेमप्लेट’ लगाने का सख्त आदेश जारी कर दिया है। आदेश में साफ कहा गया है कि हर हाल में दुकानों पर संचालक और मालिक का नाम लिखा होना चाहिए, इसके साथ ही उसे अपनी पहचान के बारे में बताना होगा। कहा जा रहा है कि कांवड़ यात्रियों की आस्था की शुचिता बनाए रखने के लिए ये फैसला लिया गया है।

हालांकि योगी आदित्यनाथ के इस बयान के बाद सूबे में सियासत तेज हो गई है। इस बारे में जब पहली बार मुजफ्फरनगर जिले में फैसला लिया गया था, तभी समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर हमला बोलते हुए न्यायालय से इस बारे में स्वतः संज्ञान लेने की अपील की थी। अखिलेश का कहना था कि-

… और जिसका नाम गुड्डू, मुन्ना, छोटू या फत्ते है, उसके नाम से क्या पता चलेगा? माननीय न्यायालय स्वत: संज्ञान ले और ऐसे प्रशासन के पीछे के शासन तक की मंशा की जाँच करवाकर, उचित दंडात्मक कार्रवाई करे। ऐसे आदेश सामाजिक अपराध हैं, जो सौहार्द के शांतिपूर्ण वातावरण को बिगाड़ना चाहते हैं।

तो वहीं बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती ने भी न सिर्फ योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, बल्कि सीएम योगी की राजनीतिक चाल को भी बेनकाब कर दिया है। बहनजी ने एक्स पर एक बयान जारी कर कहा है कि-

 

यूपी व उत्तराखण्ड सरकार द्वारा कावंड़ मार्ग के व्यापारियों को अपनी-अपनी दुकानों पर मालिक व स्टॉफ का पूरा नाम प्रमुखता से लिखने व मांस बिक्री पर भी रोक का यह चुनावी लाभ हेतु आदेश पूर्णतः असंवैधानिक। धर्म विशेष के लोगों का इस प्रकार से आर्थिक बायकाट करने का प्रयास अति-निन्दनीय है। यह एक गलत परम्परा है जो सौहार्दपूर्ण वातावरण को बिगाड़ सकता है। जनहित में सरकार इसे तुरन्त वापस ले।

अपने बयान में बहनजी ने इसे चुनावी लाभ लेने के लिए उठाया गया कदम बताया है। तो क्या यही सच है? क्योंकि लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में भाजपा सिर्फ 33 सीटें जीत सकी थी, जो उसके लिए एक बड़ा झटका था। यूपी में मिली हार के कारण ही मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में अल्पमत में आ गई थी। जिससे मोदी और अमित शाह योगी से नाराज थे।

उसके बाद से ही भाजपा के भीतर सीएम योगी के खिलाफ आवाज उठने लगी है। केशव प्रसाद मौर्य ने तो जमकर मोर्चा खोल दिया है। बताया जा रहा है कि वह ऐसा दिल्ली के इशारे में पर कर रहे हैं। ऐसे में सीएम योगी उपचुनाव वाली 10 सीटों पर बेहतर प्रदर्शन कर विरोधियों को करारा जवाब देने के मूड में हैं। खबर है कि उपचुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ेंगे। 7 सीटों पर सपा और 3 सीटों पर कांग्रेस के चुनाव लड़ने की खबर सामने आ रही है। ऐसे में अगर योगी आदित्यनाथ मैदान मार लेते हैं तो वह दिल्ली को यह मैसेज देने में कामयाब होंगे कि उनमें अखिलेश और राहुल गाँधी दोनों को रोकने की क्षमता है।

यूपी में जिन 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है उसमें से 5 सीटों पर समाजवादी पार्टी, 3 पर भाजपा और 1-1 सीट पर आरएलडी और निषाद पार्टी का कब्जा था। नियम के मुताबिक छह महीने के भीतर इस पर चुनाव कराने होंगे। हालांकि माना जा रहा है कि इस पर जल्दी ही चुनाव हो सकते हैं। ऐसे में काँवड़ यात्रा के बहाने उग्र हिन्दुत्व का चेहरा सामने रखकर योगी आदित्यनाथ सवर्णों के साथ दलितों और पिछड़ों को भी अपने पाले में लाने की तैयारी में हैं। देखना होगा कि उनका यह दांव कितना सटीक बैठता है।

अमेरिका की अंबेडकरवादी संस्था AIC मनाएगी अपना 12वां स्थापना दिवस

12 साल पहले अमेरिका में एक संस्था बनी। नाम था अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर, जिसे दुनिया अब AIC के नाम से जानती है। यह संस्था 20 जुलाई 2024 को अपनी स्थापना के 12 वर्ष का जश्न मना रहा है। लेकिन इस बार का जश्न खास है। भारत से अमेरिका गए अंबेडकरवादियों ने मिलकर जब अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर बनाया तब शायद ही किसी को यह अहसास होगा कि यह संस्था एक दिन इतिहास रच देगी। इस संस्था ने महज 12 सालों में भारत के बाहर अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के सबसे ऊंचे स्टैच्यू को बनाकर इतिहास रच दिया।

 14 अक्टूबर 2023 को जब AIC की अपनी जमीन पर बाबासाहेब की 12 फुट ऊंची आदमकद प्रतिमा स्थापित हुई थी, तब अमेरिका और कनाडा के तकरीबन दो दर्जन शहरों से 500 अंबेडकरवादी परिवार सहित पहुंचे थे। कार्यक्रम अमेरिका में हो रहा था, लेकिन उसके साक्षी दुनिया भर के अंबेडकरवादी बने। दुनिया भर की मीडिया में इसकी पुरजोर चर्चा हुई, क्योंकि इस स्टैच्यू के अपने मायने थे। इसे स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी का नाम दिया गया है।

दलित दस्तक के संपादक के तौर पर भारत के बाहर इस इतिहास को बनते हुए मैंने भी देखा था और लोगों के उत्साह, भावुकता और इस संस्था के जरिये अंबेडरवाद को अमेरिका में फैलाने के सपने को करीब से महसूस भी किया था।

कर्नाटक सरकार ने किया SC-ST फंड में घपला, अनुसूचित जाति आयोग ने भेजा नोटिस

लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद कांग्रेस पार्टी अपनी छवि को दुरुस्त करने में लगी है। लेकिन सब ठीक हो पाता उससे पहले ही कांग्रेस पर दाग लग गया है। जो राहुल गाँधी लोकसभा चुनाव के दौरान संविधान बचाने की दुहाई देते हुए देश भर में घूमते रहे और दलित और आदिवासी समाज का समर्थन मांगते रहे, कर्नाटक में उन्हीं की सरकार ने एससी-एसटी के लिए आवंटित फंड में हेर-फेर कर दी है।

कर्नाटक सरकार पर एससी/एसटी कल्याण योजनाओं के लिए आवंटित 39,121.46 करोड़ रुपये में से 14,730.53 करोड़ रुपये कांग्रेस की गारंटी योजनाओं के लिए उपयोग किये जाने का गंभीर आरोप लगा है। यह रकम एससी/एसटी कल्याण के लिए आवंटित कुल राशि का 37 प्रतिशत है, जो कि एक बड़ा हिस्सा है। अनुसूचित जाति आयोग ने इस मामले में कर्नाटक सरकार को नोटिस जारी कर दिया है। और इसके बाद भाजपा सहित तमाम दलों ने सिद्धारमैया की सरकार पर हमला बोल दिया है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष विजय मकवाना ने 11 जुलाई को इस बारे में एक बयान जारी कर कर्नाटक सरकार को नोटिस जारी करने और जवाब मांगने की बात भी कही है।

 

इस खबर के सामने आने के बाद कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं ने चुप्पी साध रखी है। तो बाकी दल, खासतौर पर भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस पर हमलावर है। इस मुद्दे पर आजाद समाज पार्टी के प्रमुख और नगीना से सांसद चंद्रशेखर ने भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पत्र लिख कर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। चंद्रशेखर ने चिट्ठी में लिखा है कि, मुख्यमंत्री को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एससी/एसटी समुदायों के कल्याण के लिए आवंटित फंड्स का उपयोग कानून के अनुसार केवल उनके विकास के लिए किया जाना चाहिए। फंड्स के डायवर्जन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

इस मामले में बड़ा सवाल यह है कि जो कांग्रेस पार्टी विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में देश की जनता को तमाम गारंटी देकर उनसे वोट मांग रही थी, क्या उसके शासन काल में ये गारंटी दलितों और आदिवासियों की बेहतरी के लिए आवंटित पैसे से पूरी की जाएगी? न्याय यात्रा के जरिये देश के वंचितों को न्याय दिलाने और हर जगह वंचितों की भागेदारी की बात करने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी को इसका जवाब देना होगा।

हरियाणा में बसपा और इनेला मिलकर लड़ेंगे चुनाव, जानिये हर डिटेल

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी और इंडियन नेशनल लोकदल मिलकर चुनाव लड़ेंगे। दोनों दलों के नेताओं ने आज 11 जुलाई को गठबंधन की घोषणा कर दी, जिस पर बसपा सुप्रीमों मायावती ने भी मुहर लगा दी है। खबर है कि गठबंधन में प्रदेश की 90 सीटों में से बीएसपी 37 सीटों पर जबकि इनेलो 53 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। अभय चौटाला गठबंधन के नेता होंगे और सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री बनेंगे। चंडीगढ़ में इनेलो नेता अभय चौटाला, बसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आनंद कुमार और नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद की मौजूदगी में गठबंधन की घोषणा हुई।

इस पर मुहर लगाते हुए बसपा सुप्रीमों मायावती ने सोशल मीडिया X पर लिखा-

बहुजन समाज पार्टी व इण्डियन नेशनल लोकदल मिलकर हरियाणा में होने वाले विधानसभा आमचुनाव में वहाँ की जनविरोधी पार्टियों को हराकर अपने नये गठबंधन की सरकार बनाने के संकल्प के साथ लड़ेंगे, जिसकी घोषणा मेरे पूरे आशीर्वाद के साथ आज चंडीगढ़ में संयुक्त प्रेसवार्ता में की गयी।

हरियाणा में सर्वसमाज-हितैषी जनकल्याणकारी सरकार बनाने के संकल्प के कारण इस गठबंधन में एक-दूसरे को पूरा आदर-सम्मान देकर सीटों आदि के बंटवारे में पूरी एकता व सहमति बन गई है। मुझे पूरी उम्मीद है कि यह आपसी एकजुटता जन आशीर्वाद से विरोधियों को हरा कर नई सरकार बनाएगी।

बता दें कि 6 जुलाई को दिल्ली में अभय सिंह चौटाला ने बसपा सुप्रीमों मायावती से मुलाकात की थी। इस दौरान बहनजी और अभय चौटाला के बीच गठबंधन को लेकर लंबी बातचीत हुई थी। जिसके बाद आज गठबंधन का आधिकारिक ऐलान कर दिया गया। चंडीगढ़ में गठबंधन की घोषणा के बाद आकाश आनंद ने कहा कि चुनाव में जीत हासिल होने पर अभय चौटाला जी मुख्यमंत्री होंगे। वहीं दूसरी ओर अभय चौटाला में इस दौरान मुफ्त बिजली और पानी का वादा किया। उन्होंने कहा कि हम ऐसे मीटर लगाएंगे कि बिजली बिल 500 रुपये से कम होगा।