
मुंबई के अंडरवर्ल्ड में हाजी मस्तान का नाम कई दशकों तक गूंजता रहा था. अंडरवर्ल्ड माफिया होने के बावजूद हाजी मस्तान दूसरों से अलग था. जैसे माना जाता है कि उसने कभी बंदूक नहीं उठाई न कभी किसी पर गोली चलाई. वह अन्य माफियाओं की तरह झूठ और फरेब की बजाय ईमानदारी पसंद था. अंडरवर्ल्ड से ऊबने के बाद एक वक्त उसने राजनीति की राह भी पकड़ी थी जहां उसने दलितों और मुस्लिमों की एकता की बात कही थी.
कई दशक तक मुंबई के अंडरवर्ल्ड पर राज करने के बाद 80 के दशक की शुरुआत में हाजी मस्तान की ताकत में कमी आना शुरू हो गई थी, क्योंकि मुंबई अंडरवर्ल्ड में नई ताकतें उभरने लगी थी. नए ‘गैंग्स’ ने हाजी मस्तान की प्रासंगिकता को काफी कम कर दिया था. 1974 में इंदिरा गांधी ने हाजी मस्तान को पहली बार ‘मीसा’ के अंतर्गत गिरफ़्तार करवाया था. 1975 में आपातकाल के दौरान भी हाजी मस्तान को सलाखों के पीछे रखा गया.

तब देश के सबसे बड़े ‘क्रिमिनल’ लायर राम जेठमलानी को अपना मामला देने के बावजूद उनकी रिहाई नहीं हो पाई थी. जेल से छूटने के बाद उनकी जयप्रकाश नारायण से मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात ने हाजी मस्तान का राजनीति में आने का रास्ता तैयार किया. इसके बाद मस्तान ने ‘दलित मुस्लिम सुरक्षा महासंघ’ नाम की एक पार्टी भी बनाई. मस्तान ने इस पार्टी को खड़ा करने के लिए काफी पैसे खर्च किए और महीनों तक मेहनत की. उनकी सोच थी कि वो एक दिन शिव सेना का स्थान ले लेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. ये पार्टी कुछ ख़ास नहीं कर सकी. हाजी मस्तान अंडरवर्ल्ड की दुनिया में जितने सफल हुए, राजनीति में नहीं हो पाए.