सारण। बिहार के कुछ इलाकों में जातिवाद किस कदर कायम है और जातिवादियों के हौंसले किस कदर बढ़े हुए हैं यह 10 दिसंबर को हुई एक घटना से समझा जा सकता है. यह घटना इस बात को भी दिखाती है कि सामंतवादी बाबासाहेब के नाम और दलितों को देश की सत्ता का रास्ता दिखाने के लिए उठी ऊंगली से कितना डरते हैं. यही वजह है कि तमाम जगहों से लगातार बाबासाहेब की प्रतिमा को तोड़े जाने की खबरें आती रहती हैं.
दरअसल कल रविवार को बिहार के सारण जिले में मशरक स्थित टोटहां जगतपुर, पानापुर में बाबासाहेब की एक ऊंची लंबी प्रतिमा का अनावरण हुआ. इसका निर्माण अम्बेडकर लोक सेवा संघ के द्वारा करवाया गया. प्रतिमा अनावरण के लिए सारण के कमिश्नर नर्वदेश्वर लाल को बुलाया गया. कमिश्नर साहब ने मूर्ति का अनावरण किया और समाज में फैले जातिवाद को एक बुराई बताया. उन्होंने वंचित समाज एवं महिलाओं के लिए बाबासाहेब के द्वारा किए काम के बारे में भी बताया. पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में आस-पास के कई गांवों के अम्बेडकरवादियों के बीच काफी उत्साह था. इस दौरान घंटों तक जय भीम के नारे गूंजते रहे.
शायद जय भीम के यही नारे वहां के सामंतवादियों के कानों में शीशे की तरह पिघल रहे थे. मूर्ति का अनावरण जिले के कमिश्नर कर रहे थे सो उन्होंने चुप्पी साधे रखी. लेकिन गांव के सामंतवादियों के मन में बाबासाहेब और दलित-बहुजन समाज के लिए कितना जहर भरा था यह उसी रात को सामने आ गया. सामंतवादियों ने आंधी रात को बाबासाहेब की उस प्रतिमा को खंडित कर दिया. आज सुबह खंडित प्रतिमा को देखते ही अम्बेडकरवादी सड़कों पर उतर आए हैं. मशरख से लेकर जिला मुख्यालय छपरा में भी अम्बेडकरवादी सड़कों पर उतर गए हैं. अपने मसीहा के अपमान से भड़के अम्बेडकरवादियों ने सड़क से लेकर रेल तक रोक दिया.
हालांकि पुलिस ने लोगों से विरोध वापस लेने की बात कही लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं हैं. लोगों का कहना है कि जब तक प्रतिमा तोड़ने वालों की गिरफ्तारी नहीं होगी, वो आंदोलन वापस नहीं लेंगे. फिलहाल जिले भर के अम्बेडकरवादी गोलबंद होते जा रहे हैं बाबासाहेब के अपमान के खिलाफ साथ खड़े हैं. मामले का एक पहलू यह भी है कि यह सीधे तौर पर जिले के कमिश्नर को भी एक चुनौती है, जिन्होंने प्रतिमा का अनावरण किया था. देखना होगा कि भाजपा और जदयू की सरकार में पुलिस सामंतवादियों पर नकेल कसते हैं या नहीं.

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