
बुंदेलखंड और विंध्य इलाके में सबसे अधिक सक्रिय रहे डाकू ददुआ ने सबसे अधिक ब्राह्रणों की हत्या की। चंबल घाटी में तमाम डाकू जातीय गर्व के तौर पर आज भी जनमानस में मौजूद हैं। आखिर क्या वजह है कि आज भी उत्तर प्रदेश के एक छोर पर मान सिंह का मंदिर कायम है, जिसके बेटे तहसीलदार सिंह भाजपा के टिकट पर मुलायम सिंह से चुनाव लड़े थे। वे खुद इस बात की पुष्टि करते थे कि उन्होंने 100 पुलिस वालों को मारा था। और क्या वजह है कि ददुआ का दूसरे छोर बुंदेलखंड में मंदिर है जिसके बेटे को समाजवादी पार्टी ने राजनातिक शक्ति दी। समर्पण के बाद चंबल के कई डाकुओं ने कांग्रेस का भी प्रचार किया। यही नहीं जब मुलायम सिंह ने फूलन देवी को टिकट दिया था तो भी मिर्जापुर में जाति ही देखी थी।
जाति और धर्म एक सच है। और हर राजनीतिक दल इसमें नंगा है। राष्ट्रीय दल थोड़ा बचे हैं लेकिन क्षेत्रीय दलों के कई कई नेता दुर्दांत अपराधियों को कुलदीपक जैसा बताने से गुरेज नहीं करते रहे हैंं। क्या कोई सरकार जातीय स्वाभिमान के प्रतीक डाकुओं के सम्मान में बने इन मंदिरों को बंद कराने का साहस कर पायी है।
कोई अपराधी बनता है तो उसके आसपास पहले यही तत्व सबसे आगे होते हैं। अगर नहीं होते हैं तो पुलिस उसके करीबी लोगों, घर परिवार और सजातीय गांव वालों पर ऐसा ठप्पा लगा देती है कि वे न चाह कर भी उनके साथ खड़े होते हैं, जैसे नक्सलियों के साथ आदिवासी खड़े हो जाते हैं। पुलिस की हिस्ट्रीसीट में संरक्षण देने वाले सजातीय लोगों का विवरण और गांवों का भी विवरण होता है।
एक दौर था जब अपराध में राजपूत,ब्राह्मण और मुसलमान आगे होते थे। चंबल घाटी को देखें तो 80 के दशक के बाद वे पीछे हो गए और दलित और पिछ़ड़ी जाति के गिरोह सबसे आगे हो गए। इस नाते जरूरी है कि अगर कोई अपराधी पैदा हो रहा है तो पुलिस उसकी जाति के लोगों को उसका संरक्षक मान कर सताना बंद करे। और अपराधियों का महिमा मंडित करना बंद करे। और राजनीतिक दल उनको टिकट और शक्ति देना बंद करें। वरना इस प्रदेश को बारूद के ढेर पर बैठने से कोई रोक नहीं सकेगा।
– इस आर्टिकल के लेखक अरविंद कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं। वर्तमान में राज्यसभा टीवी में हैं। यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है।

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