नई दिल्ली। कैग की रिपोर्ट में रेलवे की पोल खुलने के बाद कैटरिंग विभाग की जांच शुरू हो गयी है जिसमें बड़ी बड़ी खामियां सामने आ रही हैं. संसद में पेश अपनी हालिया रिपोर्ट में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने इन कैटरिंग माफिया की कलई खोली है जिसके बाद पता लगा है कि रेलवे के खानपान के ज्यादातर ठेकों पर कैटरिंग माफिया का कब्जा हो गया है. जांच में पता लगा है कि ज्यादातर स्टेशनों और ट्रेनों की कैटरिंग चुनिंदा फर्मो को मिलती है. ये वही कैटरिंग फर्म हैं जिनके खाने को कैग ने इंसानों लायक मानने से इन्कार कर दिया है.
संसद में पेश अपनी हालिया रिपोर्ट में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने इन कैटरिंग माफिया की कलई खोली है. कैग ने अपनी पड़ताल में पाया कि कुल मिलाकर आठ-दस फर्मो के पास रेलवे के ज्यादातर कैटरिंग ठेके हैं. आईआरसीटीसी की कैटरिंग में भी इन्हीं का वर्चस्व दिखाई देता है. इसका एकमात्र कारण टेंडर की यह शर्त है कि रेलवे कैटरिंग के लिए केवल वही कैटरर आवेदन कर सकते हैं जिनके पास रेलवे की कैटरिंग का पूर्व अनुभव हो. इस शर्त के कारण पहले से जमी-जमाई फर्मो को ही फिर से ठेके मिल जाते हैं जिस कारण नए कैटरर रेस से बाहर रहते हैं.
रेलवे कैटरिंग के सबसे ज्यादा ठेके हासिल करने वाली फर्म आरके एसोसिएट्स है. इसके पास 54 ठेके हैं. इनमें से 21 स्टेशनों के, जबकि 33 ट्रेनों के हैं. इनमें 6 ठेके आईआरसीटीसी द्वारा तथा बाकी जोनल रेलों द्वारा दिए गए हैं. इसके बाद दूसरे नंबर पर है एरेंको कैटरिंग, जो 44 ठेकों की मालिक है. इनमें से 29 ठेके स्टेशनों के तथा 15 ठेके ट्रेनों के हैं. इनमें से सात ठेके इसे आईआरसीटीसी ने और शेष जोनल रेलों ने दिये हैं. वृंदावन फूड प्रॉडक्ट्स के 39 ठेकों के जखीरे में 14 स्टेशनों के तथा 25 ट्रेनों के हैं. इसे आईआरसीटीसी से 11 तथा जोनल रेलों से बाकी ठेके मिले हैं.

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