एक विवाह ऐसा भी

मैंने कल लखनऊ में एक भव्य शादी समारोह में शिरकत किया. समारोह स्थल पर सबसे पहले दरबानो ने स्वागत किया जैसे ही पंडाल में पहुंचे तो देखा कि दूल्हा स्टेज में लगे सोफे पर बैठे है, और बगल के स्टेज में संगीतमय प्रस्तुति हो रही है. चूंकि हम देरी से पहुंचे थे इसलिए हम तुरंत खाने की तरफ मुड गये. खाने के पंडाल में दो बड़ी स्क्रीन लगी थी उनमे वो सब दिख रहा था जो शादी के मंडप मे चल रहा था. हम लोग खाना खा ही रहे थे कि स्क्रीन में ये घोषणा हुयी कि अब दूल्हन धीरे-धीरे क़दमों से दूल्हे के पास आ रही है और एक-दूसरे को माला डालकर एक-दूजे के हो जायेंगे. तभी अचानक मित्र रामपाल और सुमन की शादी फ्लैशबैक में चलने लगी. सच में दोनों कितने अच्छे लग रहे थे. भंतेजी ने जब दोनों से कहा कि अब आप दोनों एक दुसरे के हो गये हो तो वहां मौजूद सभी बाराती-घराती ने जमकर फूलों वाली वर्षा की थी. शादी में घटित एक-एक पल याद आने लगा.

मित्र रामपाल वर्मा से मुलाकात 2013 में अर्जक संघ के एक प्रोग्राम में हुयी थी. रामपाल वर्मा  उम्र में मुझसे छोटे थे, लेकिन समझदारी अच्छी थी. रामपाल ने महामना रामस्वरूप वर्मा जी के विचारो को पढ़ा, जिया और उसे अंगीकार किया. रामपाल ने ब्राह्मणवाद की बारीकियां समझी और मानववाद के विकल्प पर टिकने लगे थे. पिछले साल हम दोनों ने श्रावस्ती के जेतवन आश्रम में विपस्सना की थी. दस दिनों के शिविर से हमने काफी कुछ सीखा. रामपाल ने वहीँ दृढ निश्चय किया कि शादी ब्राह्मणी रीति-रिवाज से नहीं वरन अर्जक विधि से होगी. हालांकि अर्जक विधि से शादी कराने वाले चौधरीजी शादी में नहीं आ पा रहे थे, इसलिए शादी को बुद्धिस्ट तरीके से करने का निश्चय किया.

रामपाल ने शादी के दिन सायं 5 बजे ही भंतेजी को सुमन के घर भेज दिया था. भंते जी जैसे ही सुमन के घर पहुंचे वहां उनका सामना पहले से मौजूद शादी कराने के लिये आये दो ब्राह्मण से हुयी. भंतेजी का कोई स्वागत सत्कार नहीं हुआ. ये बात उन्होंने रामपाल को फोन से बता दिया. रामपाल बारात लेकर 9 बजे मदारगढ़ पहुचे. रामपाल रास्ते भर वधु पक्ष को मनाने का प्रयास किया कि शादी बुद्धिस्ट तरीके से ही होगी. वधु पक्ष मानने को तैयार नहीं था. काफी कोशिशो के बाद वधु पक्ष का एक व्यक्ति जनवासे में आया और कहा कि क्या बीच का रास्ता निकल सकता है यानि पहले पंडित द्वारा शादी संपन्न हो जाये फिर आप अपने पंडितजी (भंतेजी) द्वारा करवा ले.

रामपाल ने कहा कि भंतेजी आपके यहाँ सायं 5 बजे से बैठे हुये है अब शादी बुद्धिस्ट तरीके से ही होगी लेकिन सुमन के घर वाले तैयार नही हुये. रामपाल जब बारातियों के संग सुमन के घर पहुंचे तो देखा कि एक ब्राह्मण सुमन के दादाजी से द्वारचार से पूर्व के संस्कारो को संपन्न करा रहे थे. रामपाल कार से उतरे नहीं. शादी के मंडप में काफी तनाव उत्पन्न हो गया, लड़की पक्ष वाले इस बात की दुहाई दे रहे थे कि हमारे खानदान में बिना ब्राह्मण के शादी हुयी ही नहीं, इस बार यदि बिना ब्राह्मण के शादी हुयी तो भारी अपशकुन हो जायेगा.

घर की स्त्रियाँ भी नाराज हो गयी लेकिन उनके मन में कौतूहल भी था कि दोआबा में ऐसी शादी पहले तो कभी नहीं हुयी. मंडप के बाहर गाँव के प्रधान भी मौजूद थे उन्होंने भी ब्राह्मण के बिना विवाह को अनर्थ माना. जब लगा कि बात बिगड़ सकती है तो मैंने प्रधान जी और अन्य ग्रामीणों को समझाया. उनसे आग्रह किया कि शादी कम खर्चे में होगी और वर और वधु दोनों को बराबर सम्मान मिलेगा. गाँव के लोगो से काफी समय तक तर्क होता रहा. काफी कश्मकश के बाद ब्राह्मण ने अपनी जगह छोड़ दी और भंतेजी से आने का आग्रह किया. मंडप में भंतेजी के बैठ जाने के बाद रामपाल मंडप में गये और शादी के संस्कार सपन्न होना शुरू हुये. भंतेजी को लड़की पक्ष से कोई सहयोग नहीं मिल रहा था लेकिन वे मंडप में डटे रहे.

द्वारचार पूरा होने के बाद जब दुबारा बचे हुये विवाह के संस्कार के लिये भंतेजी मंडप में बैठे तो लड़की के पिता कही चले गये और लौटे ही नहीं. लेकिन कुसुम अब पूरी तरह से तैयार थी. मंडप में मौजूद नाई अजीब बर्ताव कर रहा था. चूंकि मंडप में ब्राह्मण अब मौजूद नहीं था इसलिए नाई का कोई विशेष काम नहीं रह गया था. नाई और ब्राह्मण के बीच अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है. ब्राह्मण जो विवाह में पैसा या अन्य वस्तुओं का चढ़ावा लेता है उसमे से कुछ हिस्सा नाई को भी मिलता है. भंतेजी ने नाई के मन को पढ़ा और कहा कि आपको वाजिब पैसा और चढ़ावा मिल जायेगा. भंतेजी ने विवाह के बचे हुये संस्कार पूरे करना शुरू किया. विवाह समारोह में उदासी का माहौल हो गया था. मैंने भंतेजी से आग्रह किया कि जो मन्त्र आप पालि भाषा में पढ़ रहे है उसका भावार्थ हिंदी में भी बता दीजिये ताकि सभी को समझ में आ सके.

भंतेजी ने वैसा ही किया. भंतेजी जब हिंदी में विवाह संस्कार संपन्न करने लगे तो वहां मौजूद लोगों में हलचल होना शुरू हुयी. वर और बधू पक्ष को एक समान स्तर पर बिठाया गया और समतामूलक प्रतिज्ञा करवाई गयी. सबसे बड़े आदर्श वर और वधु के माता-पिता को बताया और भगवान बुद्ध, संघ और और धम्म के प्रति समर्पित होने को कहा. मंडप में मौजूद लोगों में उत्साह का संचार हुआ और ये सुनने को मिलने लगा कि ऐसा विवाह तो बहुत अच्छा है इसमें वधु को भी बराबरी का सम्मान मिलता है. अंत में जब भंते जी ने दोनों को एक दुसरे के गले माला डालने को कहा तो मौजूद लोगो ने दिल खोलकर फूलों की वर्षा की. पूरा मंडप फूलों की खुशबू से सराबोर हो गया. सभी लोग आह्लादित थे और विवाह की इस कम खर्चीली, सरल सुगम विधि की भूरि-भूरि प्रसंशा की.

रामपाल और कुसुम के दृढ-निश्चय के चलते ये समतामूलक शादी संपन्न हुयी जिसमे ब्राह्मणी संस्कारों और रीति रिवाजो की कोई जगह नहीं है. भंतेजी ने ‘प्रतिज्ञा-पत्र’ में वर और वधु दोनों के दो-दो हस्ताक्षरयुक्त फोटो लिये और उनके हस्ताक्षर भी करवाये. प्रतिज्ञा पत्र दोनों के विवाह का वैध प्रमाण-पत्र है और उनका विवाह सरकारी विभाग में दर्ज भी हो जायेगा. मैं फ्लैशबैक में ही खोया था कि इसी बीच मेरे मित्र तरुण ने टोंका कि क्या सोच रहे हो. मैंने कहा कुछ नहीं. हालांकि मैं ये सोच रहा था कि यदि यहाँ भी ये वर-वधु दोनों बुद्धिस्ट तरीके से शादी के लिये दृढ-निश्चयी होते तो शादी बहुत कम पैसो और समतामूलक तरीके से संपन्न होती.

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