भीमकवी वामनदादा कर्डक

भारत में शुरुआत से ही सिंधु संस्कृती समतावादी, मानवतादी रही है. बाद में चार हजार साल पूर्व में आर्यों ने भारत पर आक्रमण कर के वर्णभेद, जातीभेद निर्माण किया. उसके खिलाफ में तथागत बुध्द, गुरू कबीर, गुरू नानक, गुरू नामदेव, गुरू तुकाराम, गुरू गाडगेबाबा इन्होने आंदोलन किया. बाद में महात्मा फुले, छ.शाहू महाराज, डॉ.बाबासाहब आंबेडकर इन्होने जन-आंदोलन किया. डॉ.बाबासाहब के आंदोलन में अनेक कवी तथा गायकों ने योगदान दिया है. इनमें से वामनदादा कर्डक जी ने बाबासाहब के आंदोलन को गीत-गायन द्वारा पूरे भारत भर फैलाया.

जनम:- वामनदादा कर्डक का जनम 15 अगस्त 1922 मे नासिक जिले के सिन्नर तहसील में देषवंडी गांव में हुआ. उनके पिताजी का नाम तबाजी, माता का नाम सईबाई, बडे भाई का नाम सदाषिव तथा बहन का नाम सावित्री था. उनके घर खेती थी. खेतीबाडी लायक पालतु जानवर थे. लेकिन कभी कभी उनकी मॉं लकडीयों के बंडल बेचती थी. उनके पिताजी बैलों का व्यापार करते थे. वामनदादा की शादी अनुसया से हुयी. उनको मीरा नाम की लडकी भी हुई. लेकीन माँ और बेटी जल्दी ही गुजर गयी. बाद मे वामनदादा ने शांताबाई से दुसरी शादी की. बाद में वामनदादा उनकी माताजी के साथ मुंबई में मजदुरी करने के लिए आये. उन्होने मील श्रमिक का काम किया. बाद में कोयले की भंडारण में काम किया. बाद में उन्हे टाटा कंपनी में नोकरी मिल गयी. शिवडी के बीडीडी के किराया घर में रहते थे. उस समय समता सैनिक दल मजबुत था. वे उसमें शामिल हो गये. एक बार उन्हे एक आदमी ने खत पढने को कहा, लेकीन उन्हे पढना-लिखना नही आता था इसका उन्हे बहुत दुःख हुआ. उन्होने देहलवी नाम के अध्यापक से पढना-लिखना शुरू कर दिया. बाद में उनका पढना लिखना बढ गया.

शुरूआत में दादा सिनेमा में जाकर कलाकार बनना चाहते थे. उन्हे मिनर्व्हा फिल्म कंपनी में एक्स्ट्रा कलाकार का काम मिल गया. वे उस समय कारदार तथा रणजित स्टुडियों मे जाते थे. 1943 में उन्होने सर्वप्रथम डॉ.बाबासाहब आंबेडकर जी को देखा. उनके भाषण का दादा पर बहुत असर हुआ. दादा ने हिंदी-मराठी साहित्य पढा था. उस समय महाराष्ट्र में 1927 मे डॉ.बाबासाहब आंबेडकरजी ने महाड़ के चवदार तालाब के पानी के लिए सत्याग्रह शुरू कर दिया तथा 1930 में नासिक के कालाराम मंदिर प्रवेष का सत्याग्रह किया. इससे जनता में जोशो-उल्लास का निर्माण हुआ. हजारो लोग बाबा साहब जी के आंदोलन में शामिल हुए.

गायन पार्टी की स्थापना:- शुरूआती दौर में महाराष्ट्र मे पेषवाओं के जमाने में जलसे चलते थे. लेकीन बाद में महात्मा ज्योतिबा फुले के सत्यशोधक आंदोलन के लोगों ने सामाजिक परिवर्तन के जलसे चलाए. बाद में सभी गायक और कलाकार बाबासाहब के आंदोलन मे सामाजिक परिवर्तन के जंग मे शामिल हो गये. शुरूआती दौर में मुंबई में शाहीर घेंगडे बाबासाहब पर शाहीरी गीत गाते थे. उनका एक गीत मराठी में था. उसका मतलब था के, ‘‘महार का एक बच्चा बहोत होशियार, लंडन से आया बॅरिस्टर बनकर’’ यह गीत बाबासाहब को बहुत पसंद था. उस समय भीमराव कर्डक तथा केरूबा गायकवाड (अकोला) जैसे शाहीर थे. वामनदादा ने गायन पार्टी की स्थापना की थी.

उस समय डॉ.बाबासाहब आंबेडकरजी ने 1927 मे समता सैनिक दल स्थापन किया था तथा 1936 में स्वतंत्र मजदूर पार्टी की स्थापना की. बाद में 1942 मे नागपूर में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन की स्थापना की. उस समय 1933-35 में नागपूर कामठी के विधायक बाबू हरदास इन्होने सर्वप्रथम जयभिम का नारा दिया. 1943 मे बहुचर्चित फिल्म किस्मत में गाना था ‘‘दुर हटो ए दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है.’’ दादाने उस समय गीत लिखा था, ‘‘दुर हटो ये कॉंग्रेस वालो फेडरेशन हमारा है’’ यह गीत उन दिनो बाबासाहब के आंदोलन में बहोत प्रसिध्द हुआ. दादा की कोई संतान नही थी. दादा कहते थे मुझे बाबासाहब से प्रेरणा मिली. ओर वह कहते थे मुझ जैसे गुंगे को जुबान मिली. बाद में दादा पुरे भारत में बाबासाहब के आंदोलन में गित लिखते रहे और गाते रहे. उन्होने कहा था भीम तेरे जन्म से हमारे करोड़ो परिवारों का उध्दार हुआ.

1952 के लोकसभा के चुनाव में डॉ.बाबासाहब आंबेडकरजी मुंबई से चुनाव में उम्मीद्वार थे. उस समय हजारों कवी गायक तथा कार्यकर्ताओं ने बाबासाहब का आंदोलन उत्साह के साथ चलाया. उस समय गायक कृष्ण शिंदे ये मराठा समाज से थे. वे प्रजा समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता थे. वे बाबासाहब के चुनाव में बाबासाहब के साथ थे. उन पर बाबासाहब का गहरा असर पडा. उन्होने बहोत सारे गीत गाये थे. 1956 में उन्होंने नागपूर में धम्म दिक्षा ली थी. बाद में प्रल्हादजी शिंदे, नागोराव पाटणकर, लक्ष्मण केदार, मिलिंद शिंदे, सरतापे, प्रतापसिंग बोदडे, हरेंद्र जाधव, लक्ष्मण राजगुरू, सुधिर फडके, श्रावण यषवंते, गोविंद मशालकर, नामदेव ढसाल, विठ्ठल उमप, जयवंत कुळकर्णी, पुश्पा वाघधरे, सुरेष वाडकर, अनिरूध्द वनकर, राहुल आन्वीकर, उत्तरा केळकर, अनिल खोब्रागडे, प्रकाश पाटणकर, आनंद शिंदे, मिलिंद शिंदे, सागर समदुर, गवई-मिसाळ, प्रभाकर धाकडे, आनंद षिंदे, डि.आर.इंगळे, इन जैसे कवी-गायक-संगितकारोंने बाबासाहब के आंदोलन पर बहोत गीत तयार किये ओर गाये इनसे लोगोंमे बहोत जागृती हुयी.

उस समय डॉ.बाबासाहब आंबेडकरजी नें अंग्रेज सरकार को बताकर बहोत सारे युवकों को पढाने के लिए इंग्लंड-अमेरिका भेज दिया. लेकिन उनमे से कोई भी सामाजिक आंदोलन के लिए काम में नही आया. इसलिए 1956 की आगरा की सभा में कहा था की, ‘मुझे पढे-लिखे लोगों ने धोका दिया है.’ लेकिन उस समय दादासाहब गायकवाड तथा वामनदादा कर्डक जैसे कम पढे लिखे नेताओं ने आंदोलन को आगे बढाया. उस समय बॅ.खोब्रागडेजी को बाबासाहब ने उनके पिताजी को कहकर उनके खुद के खर्चे से लंडन भेजने को कहा. बाद में बॅ.खोब्रागडेजी ने आंदोलन आगे चलाया. उस समय बाबासाहब का आंदोलन पूरे भारत में ताकत से चल रहा था. पार्टी बहोत मजबुत थी. प्रा.एन शिवराज, प्रा.बी.पी.मौर्य, जोगेन्द्रनाथ मंडल, एल.आर.बाली, अॅड.बी.सी.कांबळे, अॅड.आवळे बाबू, भैय्यासाहेब आंबेडकर, प्रा.आर.डी.भंडारे, शांताबाई दाणी, रा.सु.गवई, दादासाहब रूपवते और ना.ह.कुंभारे ये आंदोलन में शामिल थे. बाद में आंदोलन मे गुटबाजी हुयी.

बाद में भैय्यासाहब आंबेडकर तथा कांशिराम साहब ने एकता के लिए बहोत प्रयास किये. बाद में 1972 में दलित पैंथर की स्थापना हुयी.वामनदादा एक गीत में कहते है की, हम तुफानों मे के दिए है. वामन दादाजी ने निस्वार्थ सामाजिक आंदोलन चलाया. दादा एक गीत मे कहते है, ‘बताउ कितना में दादा, तुम सब यहाँ पर एकता से रहो. उन्होने सामाजिक विषमता के खिलाफ बहोत सारे गीत लिखे ओर गाये. 1956 में जब बाबासाहब आंबेडकरजी ने नागपूर में लाखो लोगों के साथ बौध्द धम्म अपनाया.

उस समय वामनदादाने गीत लिखा था, ‘वामन इस धरतीपर ऐसा हुआ ही नही, ओर पाँच लाख लोग बुध्द को शरण गये नही’. वामनदादा कहते है आजादी का मतलब हमे समझने दो, ओर दो वक्त का खाना हमे मिलने दो. दादा आगे गीत मे कहते है, मैदान मे आकर बेभान होकर दंगा मत करो, और इंसान के बेटे होकर इंसान के दुश्मन मत बनो. आगे वह गीत में कहते है महिलाओं के मुक्ती के लिए आये महात्मा फुले ओर लडकियों की पढाई हो गयी खुली. आगे पढाई के बारे मे दादा एक गीत में कहते है, तुम्हे पढाई की इच्छा हो, ओर तुम इधर-मत भटको ऐसा बच्चों को कहते हे. दादा दुसरे गीत में कहते है ‘मुझे गुस्सा नही आता यही मेरा गुनाह है’. दादा एक गीत मे ऐसा कहते है की, ‘भीम अगर तूम्हारे विचारों के पाँच लोग रहते तो उनके तलवार की धार अलग ही रहती’. वामनदादा छ.शिवाजी महाराज के बारे मे कहते है की, ‘शिवजी के राज में नही थी कुछ कमी, ओर खुशी से रहते थे हिन्दु और मुसलमान’ ऐसे महान भीमकवी का 15 मई 2004 को निधन हुआ. वामनदादा ने कोई भी संपत्ती जमा नही की. ऐसा उनका त्याग था. उनके त्याग और कार्य को अभिवादन.

सुरेश घोरपडे
पूर्व न्यायाधीश

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