नई दिल्ली। भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार किए गए पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं पर अब महाराष्ट्र पुलिस ने अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखा है. फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पांचों सामाजिक कार्यकर्ताओं को उनके घर में नज़रबंद रखा गया.
गुरुवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को कड़ी फटकार लगाई. हालांकि उनके घर में नज़रबंदी को लेकर बहस अभी जारी रहेगी और अगली सुनवाई 12 सितंबर को होगी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार महाराष्ट्र पुलिस ने एक हलफ़नामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया. जिसमें कहा गया है कि ‘इन कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ ऐसे सबूत हैं जो बताते हैं कि इनका संबंध प्रतिबंधित माओवादी संगठन के साथ था.’
महाराष्ट्र पुलिस ने इसके साथ ही साफ़ किया है कि इन कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी इस वजह से नहीं हुई कि इनके और सरकार के बीच विचारों में मतभेद थे. गौर करने वाली बात है कि 29 अगस्त को इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ”लोकतंत्र में असहमति एक सेफ़्टी वॉल्व की तरह होती है.”
महाराष्ट्र पुलिस ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जो हलफ़नामा दाखिल किया है वह दरअसल कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील के जवाब में किया गया है. इतिहासकार रोमिला थापर सहित पांच लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में इन गिरफ़्तारियों को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की है. इस हलफ़नामे में महाराष्ट्र पुलिस ने याचिकाकर्ताओं पर भी सवाल उठाए हैं. पुलिस ने कहा है कि ये सभी याचिकाकर्ता इस मामले में हुई जांच से पूरी तरह अवगत नहीं हैं. साथ ही पुलिस ने कहा है कि ‘गिरफ़्तार किए गए पांचों कार्यकर्ता समाज में अराजकता फ़ैलाने की कोशिश कर रहे थे, इन सभी के ख़िलाफ़ पुख्ता सबूत मिले हैं जिनके आधार पर ये गिरफ़्तारियां की गई हैं.’
महाराष्ट्र पुलिस ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जो हलफ़नामा दाखिल किया है वह दरअसल कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील के जवाब में किया गया है. इतिहासकार रोमिला थापर सहित पांच लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में इन गिरफ़्तारियों को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की है.
इस हलफ़नामे में महाराष्ट्र पुलिस ने याचिकाकर्ताओं पर भी सवाल उठाए हैं. पुलिस ने कहा है कि ये सभी याचिकाकर्ता इस मामले में हुई जांच से पूरी तरह अवगत नहीं हैं. साथ ही पुलिस ने कहा है कि ‘गिरफ़्तार किए गए पांचों कार्यकर्ता समाज में अराजकता फ़ैलाने की कोशिश कर रहे थे, इन सभी के ख़िलाफ़ पुख्ता सबूत मिले हैं जिनके आधार पर ये गिरफ़्तारियां की गई हैं.’
गिरफ़्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं में वामपंथी विचारक और कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस शामिल हैं. इन सभी की गिरफ़्तारी इस साल जनवरी में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की जांच के सिलसिले में की गई थी. गिरफ़्तारी के बाद पुलिस ने अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था कि उनकी जांच से पता चला है कि माओवादी संगठन एक बड़ी साजिश रच रहे थे.
प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान महाराष्ट्र पुलिस ने मीडिया के सामने कई पत्र भी पढ़े जिसके ज़रिए यह बताया गया कि ये सभी सामाजिक कार्यकर्ता माओवादी सेंट्रल कमेटी के संपर्क में थे. पुलिस ने यह आरोप भी लगाए थे कि इन कार्यकर्ताओं के संपर्क कश्मीर में मौजूद अलगाववादियों के साथ भी हैं.
इसके बाद गिरफ़्तार सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक वरिष्ठ वकील सुधा भारद्वाज ने अपनी वकील वृंदा ग्रोवर के ज़रिए एक चिट्ठी सार्वजनिक की और पुलिस के लगाए तमाम आरोपों को निराधार बताया था.
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