नवरात्रि में हमारा समाज कन्याओं की पूजा करता आया है. उन्हें भोजन पर आमंत्रित किया जाता है. चरण धोकर स्वागत किया जाता है और तिलक के बाद दक्षिणा और उपहार देकर विदा करने की परंपरा है. पूरे नौ दिन तक देश शक्ति की अराधना करता है. यह कैसी विडंबना है कि जिस नवरात्रि में चारों ओर से जय माता दी की आवाज गूंज रही है, ठीक उसी वक्त में विश्वविद्यालय के एक कैंपस से लड़कियों की चीखें निकल रही थीं. जिस वक्त देश गरबे की उमंग में थिरक रहा था, उसी वक्त लड़कियां अपनी सुरक्षा की मांगों को लेकर धरना—प्रदर्शन कर रही थीं, उनकी बातों को सुनना तो दूर, उल्टे पुलिसिया कहर बरस जाता है, अजीब विडंबना है कि देश के प्रधानमंत्री के सपनों के शहर में यह सब कुछ होता है, एक ऐसे विश्वविद्यालय में यह सब होता है जिसका नाम पूरे देश में बड़े सम्मान से लिया जाता है. ऐसे शहर में यह सब हो जाता है जो अपने आप में अद्भुत है.
साल 2015 में हमारे देश में महिलाओं के साथ बलात्कार की 34651 घटनाएं हुईं. इन्हें साल दर साल टेबल में दिए गए आंकड़ों से देखा जा सकता है. इसी साल में महिलाओं के साथ 3 लाख 27 हजार 394 मामले दर्ज किए गए. यह याद रखा जाना चाहिए कि अब भी समाज में कई-कई वजहों से अपराध दर्ज करवाए और नहीं किए जाते हैं. इसमें बहुत हैरानी की बात नहीं है कि उत्तरप्रदेश में सबसे अधिक 35, 527 अपराध दर्ज किए गए हैं. महिलाओं के साथ छेड़खानी के अपराधों की बात करें तो पूरे देश में 2015 में 82,422 घटनाएं हुईं, इनमें 7885 घटनाएं अकेले यूपी की हैं.
यदि संख्या का बढ़ते जाना प्रगति है तो देखिए कि हमारा समाज कहां से कहां पहुंचा. यह आंकड़े भर नहीं हैं, दरअसल तो इन आंकड़ों की रोशनी में हम अपने विकास के पहिए पर सवार समाज को देख सकते हैं. हम देख सकते हैं कि तमाम धार्मिक मान्यताओं और धर्म के भी बाजार होते जाने के बीच सामाजिक विद्रुपताएं कैसे राक्षसी आकार ले रही हैं. हमें चिंता होने लगती है कि हम आगे जा रहे हैं या नहीं. पन्ने पलट-पलट कर आंकड़ों को देखने लगते हैं, आंकड़े हमारी स्थितियों पर क्रूरता से हंसते हैं.
जब हम इन तस्वीरों को कुछ यूं देखते हैं कि 2005 से लेकर 2014 तक देश में ऐसी 71872 लड़कियां किसी वासना का शिकार हुई हैं तब हमें समझ आता है कि दरअसल हम कन्याओं को पूजते तो हैं, लेकिन उन्हें एक सुरक्षित समाज आज तक नहीं दे पाए हैं. पहले मोर्चे पर तो हम ऐसी घटनाओं को रोक पाने में असफल हैं, मामला अब केवल सड़कों तक ही सीमित नहीं रहा हैं. जिस तरह से हमारे समाज में बच्चों और महिलाओं को चारदीवारी के अंदर व्यवहार मिल रहा है, वह बेहद चिंताजनक है. चाहे उस आलीशान स्कूल का मामला ले लें, जिसकी दीवारों के अंदर के बच्चे की रहस्यमय हत्या हो जाती है, और हम हत्या की वजह भी नहीं खोज पाते, या एक धार्मिक शहर में विवि के होस्टल में लड़कियों का रहना मुहाल हो जाता है.
अपराध को रोकना तो अलग बात है, अब अपराधों के खिलाफ आवाज उठाना भी एक चुनौती भरा काम हो गया है. यदि बीएचयू की लड़कियां अपराध के खिलाफ आवाज उठा रही हैं, तो यह तय करना कि उनके साथ क्या व्यवहार किया जाएगा, पर ऐसा तो कतई नहीं होना चाहिए कि उनकी आवाज का मुकाबला पुलिस की लाठी से किया जाए. इस वक्त मुश्किल यह हो गया है कि ज्यादातर सवालों का जवाब हम राजनीतिक व्यवस्था में खोज रहे हैं, और राजनीति की आंखों पर अपना चश्मा है. वह कहां मुखरित होती है और कहां मौन हो जाती है,समझ में नहीं आता, ऐसे में आमजन अपनी आवाज लगाए भी तो कहां लगाएं.
देश में रेप की घटनाएं : 2005- 18359, 2010- 22172, 2011- 24206, 2012- 24923, 2013-33707, 2014-36735, 2015, 34651. आपको बता दें कि यह सभी आंकड़े एनसीआरबी की ओर से जारी किए गए हैं.
राकेश कुमार मालवीय का यह लेख एनडीटीवी से साभार है.
दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।