सरकारी नौकरी छोड़ पर्यावरण बचाने में लगा दी जिदंगी

सिरमौर। पर्यावरण को बचाने के लिए लोग लंबे-लंबे लेख तो लेख लिखते हैं पर जमीनी स्तर पर काम करने का हौसला लाखों में से कुछ के ही पास होता है कुछ इस तरह का हौसला लेकर ही अनिल पैदल हुए. हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के मटरू गांव में 21 जनवरी, 1964 में जन्मे डॉ. अनिल को समाजसेवा का शुरू से ही जुनून था. यह जूनून इस हद तक था कि अपनी सरकारी नौकरी को ज्वाइन करने के दो साल बाद ही त्यागपत्र दे दिया. जल, पर्यावरण संरक्षण और लोगों की सेवा का संकल्प लिया और समर्पित हो गए समाज के लिए, 25 साल से उनकी तपस्या लगातार जारी है.

बात 1990 की है जब उन्होंने सिरमौर जिले के पच्छाद विकास खंड के घिन्नी घाड़ क्षेत्र का दौरा किया. वहां पर पर्यावरण और ग्रामीणों की दयनीय स्थिति को देखकर वह हैरान रह गए. पूरा क्षेत्र पानी की समस्या से जूझ रहा था, जंगल धड़ाधड़ काटे जा रहे थे. तब उन्होंने निर्णय किया कि यहां के लोगों के सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए कुछ करेंगे.

बता दें की उन्होंने 1992 में गैर सरकारी संगठन साथी की नींव ऱख पर्यावरण बचाने की मुहिम छेड़ दी थी. संस्था के गठन के बाद ग्रामीणों ने स्वैच्छिक मदद की. इससे अभियान को आगे ले जाने की राह आसान हुई.

सबसे पहले घिन्नी घाड़ क्षेत्र में जल व मृदा संरक्षण के लिए चेकडैम व जोहड़ों का निर्माण करवाया. परंपरागत जलस्नोतों के संरक्षण व वर्षा जल भंडारण के लिए भी लोगों को जागरूक किया गया. सरकार व विश्व बैंक के सहयोग से चल रही योजनाओं का लाभ उठाया गया. जलस्त्रोत बचाए रखने के लिए पनढाल क्षेत्र में 42 हेक्टेयर में वाटर टैंक, चेकडैम व वर्षा जल संग्रहण टैंक बनवाए गए. इससे पानी की समस्या काफी हद तक सुलझने लगी.

पर्यावरण को बचाने के लिए ग्रामीणों की मांग पर फलदार व लुप्त होते पौधे उपलब्ध करवाए. जब मांग बढ़ी तो स्थानीय लोगों की सहायता से नर्सरी शुरू की गई.

अब साथी संस्था देशभर में विभिन्न प्रजातियों के पौधों के बीज उपलब्ध करवाती है. चारे व ईंधन की समस्या सुलझाने के लिए भी 85.5 हेक्टेयर में तारबंदी कर पौधे उगाए गए. इसमें पौधों की जीवित दर 65 प्रतिशत से अधिक है. पौधरोपण व चेकडैमों के निर्माण के बाद इस क्षेत्र में जमीन में नमी भरपूर है और प्राकृतिक जलस्नोत कभी सूखते नहीं हैं.

जानकारी देते हुए डॉ. अनिल बताते हैं कि 25 साल से किफायती पर्यावरण मित्र गतिविधियों से 52 गांवों के 6,025 परिवारों को लाभ मिला है. पच्छाद में मिली कामयाबी के बाद अब शहर पांवटा साहिब व शिलाई विकास खंड में भी ‘साथी’ की मुहिम रंग ला रही है. पर्यावरणीय मुद्दों के अलावा लोगों की आजीविका सुधारने के प्रयास सार्थक रहे हैं.
संस्था के प्रयास से ग्रामीण क्षेत्रों में भूक्षरण, पर्यावरण ठहराव संभव हो पाया है.

कृषि उत्पादकता में प्रति हेक्टेयर दोगुनी वृद्धि हुई है. कौशल विकास कार्यक्रमों के जरिये युवाओं का मार्गदर्शन किया. महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वयं सहायता समूहों का गठन करवाया गया. हाल ही में शिमला में ‘साथी’ संस्था को सरकार ने सम्मानित किया जिसके बाद हमारे हौसलो का औऱ अधिक बल मिला है. वे कहते हैं कि दूसरे प्रदेशों के लोगों को भी अपने जिले, मंडलो में प्रकृति की प्रति गंभीर होना चाहिए, अगर पेड़, जल नहीं बचेगें तो मानव का आस्तित्व खतरे में आ जायेगा.

 

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