लखनऊ। बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के UIET शिक्षण संस्थान अदालत में अपनी लड़ाई जीत गए हैं. विश्वविद्यालय की मनमानी के शिकार इन 28 शिक्षकों को विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक तरफा कार्यवाही करते हुए 6 माह पूर्व निकाल दिया था. वजह यह थी कि इन शिक्षकों ने विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई थी और जिस वजह सीबीआई ने विश्वविद्यालय में छापा मारा था. इससे भड़के विवि प्रशासन ने उक्त शिक्षकों को नियमों के विरुद्ध जाकर विवि से निकाल दिया.
शिक्षकों का आरोप है कि उनको विज्ञापन नियम के अनुसार पहले साल उक्त शिक्षकों की परफॉरमेंस के आधार पर 1 साल बाद 5 साल के लिए सेवा विस्तार का प्रावधान था, लेकिन विवि प्रशासन ने नियमों का उल्लंघन करते हुए इन शिक्षकों को बिना किसी नोटिस के विवि से निकाल दिया था. सभी शिक्षकों ने परेशान होकर देश के शीर्ष अदालत में न्याय के लिए गुहार लगाई थी तथा प्रधामनंत्री नरेंद्र मोदी को भी स्थिति से अवगत कराया था. जहां इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने केस नंबर 32052, कृष्णकांत कन्नौजिया व अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के तहत सुनवाई करते हुए विवि प्रशासन को लताड़ लगाई और कार्यमुक्त शिक्षकों को 1 महीने के अंदर पुनर्स्थापित करने का आदेश दिया है. विवि नियोक्ताओं को AICTE और BBAU अकादमिक अध्यादेश परिनियम,क्लॉज 17 के अनुसार 5 साल के लिए एक पुनः पदस्थापित करने का सख्त निर्देश दिया है. हैरत की बात यह रही कि जिस विश्वविद्यालय ने शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया था, उसने सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष कोई आपत्ति जाहिर नहीं की. शिक्षकों का कहना है कि विवि प्रशासन के खिलाफ यह सत्य की जीत है.
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